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तस्वीर गूगल से |
पहले पढ़ने का शौक था अब लिखने की बिमारी है।ये कलम कभी न रुकी थी, न ही आगे किसी के सामने झुकने और रुकने वाली है।क्योंकि कलम की जिंदगी में साँसें नहीं होतीं।कवयित्री तो नहीं हूँ पर अपनी भावनाओं को कविताओं के जरिए व्यक्त करती हूँ।लेखिका भी नहीं हूँ लेकिन निष्पक्ष लेखन के माध्यम से समाज को आईना दिखाने का दुस्साहस कर रही हूँ।
सोमवार, मई 31, 2021
सिर्फ सोशलमीडिया पर ही नहीं जम़ीन पर भी पेड़ लगाएं इस पर्यावरण दिवस पर
शुक्रवार, मई 28, 2021
अब इस अनोमल जिंदगी को यूँ ही नहीं गवाना
क्या कसूर है हमारा ?
क्यों कैद भरी जिंदगी जीने पर
मजबू़र कर रहा ये जमाना ?
बता दे हमे ऐ जमाना ?
क्या लड़कियाँ नहीं जीत सकती जंग ?
भूल गए क्या वो अतीत ?
झाँसी की मर्दानी की जीत !
कहाँ की है ये रीत ?
कि लड़कियों को रखो घरों में कैद,
किसने बनाई ये रीत ?
यदि तुम लोगों की यही है नीत,
तो अब तुम्हारी हार है नजदीक |
अब कान खोल कर सुन ले ऐ जमाना |
इन चार दिवारियों को,
तोड़ने का हमने है ठाना |
अब नहीं रोक सकता हमे ऐ जमाना |
अभी तक हमने तुम्हारा कहना माना ,
तुम्हारें हर जुर्म को सहना चाहा ,
पर अब इस अनोमल जिंदगी को
यूँ ही नहीं गवाना |
किसी भी लड़की की ख्वाहिशों को
नहीं दफना सकता ऐ जमाना!
सदियों से दबी है जो आवाज़ ,
उसे ज्वालामुखी के रुप मे है बाहर लाना |
अब इस जमाने को धूल है चटाना |
कलम को है अपनी ताकत बनाना |
जिंदगी जीने का
असली मकसद अब है जाना |
मंगलवार, मई 25, 2021
दास्ताँ-ए-गाँव
मैं आज आप लोगो को अपने गाँव की कुछ रूढ़िवादी विचारधाराओं से रूबरू करवाती हूँ ! हमारे गाँव में आज भी कुछ ऐसे बुद्धिजीवी लोग है जिनका मानना है कि महिलाएँ ज्यादा पढ़- लिख लेती हैं तो उनका दिमाग खराब हो जाता है वे हमारे यहाँ की परंपरा , रीत -रिवाजों , और संस्कारों को भूल जाती है । अपने पैर पर खड़े होते ही अपने से बडो़ की इज्ज़त करना भूल जाती है दरअसल इन बुद्धिजीवियों की समस्या ये है, इनको लगता है, कि जो ये कहते है और जो करते है सिर्फ वही सही है । यदि कोई औरत इनके विचारों पर अपने विचार रखती है तो इन को उसमें अपना अपमान नज़र आता है । इसलिए इन लोगो को स्याही वाले हाथ की उम्र में मेहंदी वाले हाथ भाते है ! कानून ने भले ही महिलाओं को हर क्षेत्र में जाने अधिकार दे रखा है पर हमारे यहाँ घर वाले और गाँव वाले ने सिर्फ मेडिकल, टीचिंग, पुलिस ,बैकिंग के ही क्षेत्रों में जाने का अधिकार दिया है! मैं आप लोगो को आज अपने गाँव की चाची जी के बारे में बताती हूँ जिनकी उम्र लगभग 40 के आस - पास है जो पहले गाँव में दिहाड़ी मजदूरी करती थी पर दो, तीन साल से एक सरकारी अस्पताल में काम करती है बस इसी बात से गाँव के लोगों के निशान पर रहती है मौका पाते ही कुछ लोग उनके चरित्र पर उंगली उठाने से नहीं चूकते हैं । और कहते है , "यैं रात रात भर अस्पताल मा रहत हीं इनके घरे खाना खाय वाला नाय है, पता नाय कतने जन से मुंह काला करावत हीं, ई मिहारू पूरे गाँव कैय नाक कटाय कैय तब दम ली! इन लोगों को गाँव की चिंता तब नही सताती जब एक औरत रात के दो बजे ही खेतों मे मर्दों के बीच काम करती है और तब भी जब तेज़ दोपहरी में काम करते करते पसीने में भीगने के कारण सारे कपडे़ बदन से चिपक जाते हैं जिससे खेत मे काम कर रहे लोगो के फूहड़ मजाक का सामना करना पड़ता है जब बोझा उठाते वक्त पल्लू को गिरने के कारण गंदी नजरों का शिकार होती है ! तब इन बुद्धिजीवियों को गााँव के इज्जत के साथ खिलवाड़ होता हुआ नज़र नहीं आता और अनहोनी की बू नहीं आती ! लेकिन जब एक औरत 7-8 किमी की दूरी पर एक अस्पताल मे काम करने जाने लगी तो ये बात गले नहीं उतर रही है और ये समाज उनके गलत हो जाने के डर से पतला होता जा रहा है ! कुछ महान लोगो ने तो उनसे सारे रिश्ते तोड़ लिए उनके यहाँ का पानी भी नहीं पीते हैं । क्योंकि वो रात के नौ - दस बजे काम से वापस आतीं हैं जो इनकी नजर मे गलत है हमारे यहाँ किसी की बेटी भाग जाती है तो उसकी सजा मां - बाप को मिलती है सजा के तौर पर उन्हें समाज से अलग कर दिया जाता है उनके यहाँ पानी तक नहीं पीते है . क्योंकि लोगों को लगता है कि यदि कोई उसके घर खाना खाता है या पानी पीता है सारा पाप उसके सर पर आ जाता है लेकिन यदि कोई पुरुष एक पत्नी के रहते हुए दूूसरी औरत ले कर आ जाए जो उनसे नीची जाति की ना हो ( दरअसल हमारे यहाँ आज भी ऊँच नीच का भेद भाव कायम है) तो बिना कोई सवाल किए सारे लोग स्वीकार कर लेते है । जब यही काम कोई महिला करती है तो उसे समाज से अलग कर दिया जाता है मुझे समझ नहीं आता जो काम महिलाओं के लिए गलत है वो पुरुषों के लिए सही कैसे हो जाता है ? क्या काम का भी जेंडर होता है ? जो चीज गलत है मतलब गलत है वो किसी एक के लिए सही कैसे हो सकती है ?ये तो वही बात हुई तुम करो तो रासलीला और हम करे तो कैरेक्टर ढीला! जो काम गलत है वो हर किसी कर लिए गलत होता है किसी एक के लिए सही नहीं हो सकता! क्योंकि सत्यनारायण की कथा कहने वाले पंडित जी यदि मंत्र की जगह अगर गाली देते हैं तो वो मंत्र नहीं हो जाती !गाली ही रहती । या मस्जिद मे कुरान पढ़ने वाले मौलवी नवाज़ की जगह अशब्द का इस्तेमाल करे तो वो शब्द पाक नहीं हो जाता वो अशब्द ही रहता है ठीक उसी तरह गलत काम गलत ही रहता है फिर करने वाला चाहे कोई भी हो । हमारे यहाँ आज भी महिलाएं साड़ी के सिवा कुछ और नहीं पहन सकती । क्योंकि ऐसा करने पर हास्य , तंज भरी निगाहों और व्यंग्य के चुभते बाड़ों का सामना करना पड़ता है लेकिन पुरुषों के साथ ऐसा कुछ भी नहीं होता , वे तो बहुत पहले ही ' आधुनिक हो चुकें है बड़े - बूढ़े भी पैंट -शर्ट और वरमूडा पहनते है लेकिन महिलाएँ अगर सलवार -कुर्ता भी पहन ले तो इन्हे रास नहीं आता है लेकिन साड़ी में आधा बदन भी दिखे तो भी स्वीकार है । यहाँ महिलाओं के लिए बदलाव कछुआ की तरह रेेंगते हुुए आता है पर पुरुषों के लिए चीते की रफ्तार से! यहाँ यदि 14 साल का लड़का बुलेट जैसी वजनदार बाइक पर फर्राटे भरता तो समाज ,कानून किसी के भी कान पर जूं तक नहीं रेंगती लेकिन जब एक 40 साल की महिला खुद की कमाई से गाड़ी खरीद कर ड्राइविंग लाइसेंस साथ लेकर गाड़ी चलाए तो ये बात इनके गले नहीं उतरती उसके बिगड़ने की चिंता में समाज अवसाग्रस्त होता जाता है! जिसके चलते दिन प्रति दिन पतला होता जाता है!
कुछ पंक्तियाँ हमारे समाज के महान लोगो के लिए-
इन नाजुक हाथों से
जिस दिन कलम की तेज धार निकलेगी,
जिस दिन रिश्तों का लिहाज़ किये बिना,
खुल कर रूढ़िवादी विचारधारा पर प्रहार करेगी,
शराफ़त की नकाब ओढ़ कर बैठे हैं,
जितने शरीफ़जादे ,
उनके चेहरे बेनकाब करेगी!
शनिवार, मई 22, 2021
ई- गोल्ड
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तस्वीर गूगल से |
सोने को इलेक्ट्रॉनिक सोने में कैसे परिवर्तित करते है?
तो इसके लिए हमें बैंक के पास जाना होगा और अपना सोना बैंक को देकर उसके बदले एक रसीद ले सकते हैं जिसकी कीमत सोने की वजन पर निर्भर होगी और वर्तमान के सोने के भाव जितनी होगी! ऐसा करने से ये फयदा होता है कि हम जितने भाव में सोने को सुनार की दुकान से खरीदें थे उतने भाव में ही बैंक को दे सकते हैं और वही जब हम दुकानों में बेचते हैं तो सुनार कटौती कर लेता है लेकिन इसमें ऐसा कुछ नहीं है! और इस रसीद को हम किसी को भी कभी भी सोने के भाव में बिना किसी काटौती के बेच सकते हैं (जितना भाव बैंक में सोने को देते वक्त था) जिसको बेचेगे वो व्यक्ति किसी दूसरी बैंक से भी सोने को निकाल सकता है! और अगर आप बेचते नहीं हो तो आप जब चाहे अपने सोने को वापस ले सकते हैं! इससे फायदे ये होगें कि आप सोने को बैंक के लॉकर में जमा कर के पैैसे देने की जगह आप बैंक को दे कर उससे आप एक रसीद ले सकते जिससे आपका सोना भी सुरक्षित रहेगा और आपका पैैैैसा भी आपके पास रहेेगा! जिस तरह हम बैकों में FD, RD करते हैं ये वैैैैसा ही है!
ये सोब्रिन गोल्ड बॉण्ड स्कीम से अलग है क्योंकि इसमें सोने को ,सोन के रूप आप दुबारा वापस ले सकते हैं पर सोब्रिन गोल्ड बॉण्ड स्कीम में ऐसा नहीं कर सकते! पर इसमें उन लोगों का फायदा नही होने वाला जिन्होंने ने काले धन को पीला धन बना रखा है 😃😃😅😅
अगर इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया जाता है तो अच्छा रहेगा! बाकी हर सिक्के के दो पहलू होते हैं पर ये बात ज्यादा मायने रखती है कि कौन सा पहलू भारी खूबियों वाला या कमियों वाला! और इसमें खूबियों वाला पड़ला भारी नज़र आ रहा है फ्रॉड होने के भी नहीं हो सकता क्योंकि ये भारतीय सुरक्षा विनिमय बोर्ड की निगरानी में किया जाएगा और अगर हो भी जाता है तो उसकी पूरी जाच भारतीय सुरक्षा विनिमय बोर्ड द्वारा किया जाएगा जिससे पैसे डूबने का खतरा बहुत ही कम है!
गुरुवार, मई 20, 2021
कम्पल्सरी लाइसेंस से जल्द ही आसानी से मिलेगी वैक्सीन
18 मई को स्वदेशी जागरण मंच पर नितिन गडकरी ने कहा कि भारत सरकार को वैक्सीन बनाने का अधिकार एक ही कम्पनी को ना दे कर कम से कम 10 अन्य कम्पनियों में दे देना चाहिए जिससे अधिक दवा का निर्माण हो सके और आसानी से दवा पर्ति की जा सके! इस बयान के आते ही कई सवाल उठाने लगे! उनमें से कुछ के सवाल थे कि ये तो कम्पनी के साथ गलत होगा!
अब सवाल उठता है कि क्या सरकार किसी कम्पनी पर दबाव बना सकती है कि वह अपने द्वारा खुद से बनाए गए फॉर्मूला किसी अन्य के साथ साझा करे?
पेटेंट लॉ 1970 के तहत यदि कोई कम्पनी किसी नए प्रोडक्ट की खोज खुद की है तो आपको 20 साल के लिए पेटेंट दिया जाएगा! इस लॉ के तहत ऐसा कोई भी कार्य भारत सरकार आपको करने की इजाज़त देती है जिसके तहत आप अपने प्रोडक्ट और प्रोपर्टी को सिर्फ आप ही बेच सकते हैं! लेकिन पेटेंट ऐक्ट 2005 के तहत यदि आप किसी पूराने प्रोडक्ट के फॉर्मूले में कुछ बदलाव ला कर फिर से 20 साल के लिए पेटेंट चाहते हैं तो आपको पेटेंट नहीं दिया जाएगा!
लेकिन कम्पल्सरी लाइसेंस जो की ( 𝗧𝗥𝗜𝗣𝗥 𝗧𝗿𝗮𝗱𝗲 𝗥𝗲𝗹𝗮𝘁𝗲𝗱 𝗜𝗻𝘁𝗲𝗹𝗹𝗲𝗰𝘁𝘂𝗮𝗹 𝗣𝗿𝗼𝗽𝗲𝗿𝘁𝘆 𝗥𝗶𝗴𝗵𝘁𝘀) द्वारा लाया गया था के तहत यदि कोई कम्पनी किसी ऐसे प्रोडक्ट की सप्लाई पूरी नहीं कर पा रही जिस पर उसे पेटेंट मिला है और मॉर्केट में उस प्रोडक्ट की बहुत अधिक माँग है तो ऐसे में सरकार उस कम्पनी पर एक्शन लेते हुए उस प्रोडक्ट को बनाने का फॉर्मूला अन्य कम्पनियों को दे सकती बशर्ते कि जिन्हें भी फॉर्मूला दिया जाएगा उन्हें अपनी कमाई का 10% उस कम्पनी को देना पड़ेगा जिसका प्रोडक्ट है! इस लिए भारत सरकार भारत बायोटेक और सीरम इंस्टीट्यूट के वैक्सीन का फॉर्मूला अन्य कम्पनियों को देगी जिससे दवा पूर्ति आसानी से हो पाएगी ! इस लिए अब जल्द ही हर एक को आसानी से वैक्सीन लग जाएगी! भारत सरकार का ये एक अच्छा कदम होगा! जिसका हमे विरोध नहीं करना चाहिए क्योंकि कम्पनी के फायदे से ज्यादा लोगों की जान बचाना जरूरी है🙏🙏🙏
मंगलवार, मई 18, 2021
जब पानी सर से बह रहा, फिर कैसे मैं मौन रहूँ?
तुम कहते हो मैं मौन रहूँ,जब पानी सर से बह रहा,तो कैसे मैं चुप- चाप सहू?क्या डूबने का इंतज़ार करूँ?दम घुट रहा है अब मेरा,और तुम कहते हो थोड़ा धैर्य धरूं!क्या आखिरी सांस का इंतज़ार करूँ?जब पानी सर ....................व्यंग्यों के चुभते बाणों को,कैसे मैं दिन रात सहूँ?जो घायल करते मेरे हृदय को,उन पर कैसे ना पलटवार करूँ?हद से अधिक सहनशीलताकायरता कहलाती है!फिर कैसे मैं चुप- चाप रहूँ?वे करते हैं अस्त्र- शस्त्र से वार,मैं कलम से भी ना प्रहार करूँ?तुम्हें शोभा देता होगा चुप रहना,पर मेरे लिए धिक्कार है!जब पानी सर...........चीरहरण हो रहा द्रोपदी काकैसे मैं नज़रअंदाज़ करूँ?जी करता है उस हैवान के प्राण हरूँ,और तुम कहते हो,मैं जीना भी ना दुशवार करूँ!जो क्षमा के पात्र नहीं,उसकी दया यचिका,कैसे मैं स्वीकार करूँ?माफ़ी गलती की दी जाती है,गुनाहों को कैसे मैं माफ़ करूँ?जब पानी सर............
मंगलवार, मई 11, 2021
सत्ता के गुलाम बनते कलम के सिपाही
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ℝ𝔼𝔸𝕃𝕋𝕐 𝕆𝔽 𝕀ℕ𝔻𝕀𝔸ℕ 𝕄𝔼𝔻𝕀𝔸 |
रविवार, मई 09, 2021
माँ
मंगलवार, मई 04, 2021
सफर जिंदगी का
नारी सशक्तिकरण के लिए पितृसत्तात्मक समाज का दोहरापन
एक तरफ तो पुरुष समाज महिलाओं के अधिकारों और उनके सम्मान की बात करता है और वहीं दूसरी तरफ उनके रास्ते में खुद ही एक जगह काम करता है। जब समाज ...

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एक तरफ तो पुरुष समाज महिलाओं के अधिकारों और उनके सम्मान की बात करता है और वहीं दूसरी तरफ उनके रास्ते में खुद ही एक जगह काम करता है। जब समाज ...
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मैं आज आप लोगो को अपने गाँव की कुछ रूढ़िवादी विचारधाराओं से रूबरू करवाती हूँ ! हमारे गाँव में आज भी कुछ ऐसे बुद्धिजीवी लोग है जिनका मानना ...
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चित्र गूगल साभार निती अभी कक्षा आठ में पढ़ती, है अपनी माँ करुणा की तरह समाजसेवी बनने का और वृद्धाश्रम खोलने का सपना है।आज उसका म...