बुधवार, सितंबर 29, 2021

जीवित वृद्धजनों को सम्मान व प्यार दो तो बात बने!

तस्वीर गुगल साभार से
मेरे जेहन में पितृपक्ष मैं हो रही श्राद्ध को देखकर कुछ सवाल उठ रहे हैं कि जब लोग अपने घर के बुजुर्गों से इतना प्यार करते हैं कि उनकी याद में पितृपक्ष में प्रीतिभोज का आयोजन करते हैं और  उनके आगमन के लिए चौखट को फूलों से सजातें हैं! तो फिर वृद्धाश्रम क्यों खुले होते हैं हमारे शहर में क्या जरूरत ? मैं ये नहीं कहती कि  पितृपक्ष में ऐसा ना करें, बिल्कुल करें,शौक से कर लेकिन जब जीवित रहें तब भी इतना ही प्यार और सम्मान दे तो अधिक बेहतर होगा! और तब यह सब भी शोभा देगा! क्योंकि मरने के बाद वह इंसान देखने नहीं आता है कि कौन मुझे कितना प्यार कर रहा है ! सिर्फ समाज और दुनिया देखती है, कुछ लोग तो दिखावे के लिए ही करते हैं बात कड़वी है पर सच है! देखा है मैंने उन लोगों को पितृपक्ष में श्राद्ध पर बहुत बड़ा प्रीतिभोज का आयोजन करते हुए जो घर के बुजुर्गों के जीवित रहने पर उन्हें घृणा भरी नजर से देखते थे !और ताने पे ताने  सुनाते रहते थे खासकर घर की महिलाएं  शहर में तो वृद्ध आश्रम भेज देते हैं लेकिन गांव में  बुजुर्ग दंपत्ति को दो टुकड़ों में बांट दिया जाता है बड़े के पास पिता, तो छोटे के पास माँ और जिनके यहाँ एक ही वृद्ध व्यक्ति होता है! उसे एक महीना बड़े बेटे के पास, तो एक महीना छोटे बेटे के पास रह कर! ऐसे करके बची हुई जिंदगी गुजारनी पड़ती है! जिन बुजुर्ग दंपत्ति के पास एकमात्र सहारा होता है! उनकी जिंदगी तो और भी दर्द भरी हो जाती है! जब तक जीवित होते हैं फूटी आंख भी नहीं भाते हैं खासकर औरतों को जो एक भी मौका नहीं छोड़ती हीनता का भाव  महसूस कराने में बुजुर्गों को, और का बात-बात पर ताने मारती रहती है कि इनकी वजह से हमारी रातों की नींद हराम हो चुकी है पूरी रात सिर पर ही खाता रहता है! बुड्ढा नींद  भी नहीं आती है इसे, अरे! नींद आय भी कैसे, पूरा दिन पड़े पड़े बस पलंग तो तोड़ता रहता है! जब कुछ काम धंधा करेगा तब नींद आएगी !ऊपर से पूरा दिन बड़बड़-बड़बड़ करता रहता है हर काम में बस नुक्स निकालता रहता है! आदि बहुत कुछ सुनाती रहतीं हैं! ऐसी बातें करने वाले और वे लोग जो घर में वृद्ध जन के होने पर मेहमानों के सामने शर्म महसूस करते हैं! उन्हीं को मैंने पितृपक्ष में बुजुर्गों के श्राद्ध पर मेहमानों को शौक प्रीतिभोज निमंत्रण भेजते हुए देखा है! मुझे समझ नहीं आता कि इन्हें,उन्हीं बुजुर्गों के  श्राद्ध पर मेहमानों को बुलाते हुए शर्म नहीं आती? तब शर्म नहीं महसूस होता ? जब तक जीवित थे तब तो बहुत शर्म महसूस होता था! तो फिर ये दिखावा किस लिए करते हैं? जबकि सबको पता होता है कि बाप के जीवित होने पर कितने खुश थे यह लोग! यह लोग एक बार भी यह क्यों नहींं सोचते इसका असर उनके बच्चों पर कैसा पड़ेगा अगर यह ऐसा करेंगेे तो बच्चे भीी तो इन्हीं से सीखेंगे इन्हीं की तरह जीवित रहने पर कद्र नहीं करेंगे और मरणोपरांत धूमधाम से श्राद्ध करेंगे! 
पितृपक्ष में श्राद्ध करने से अधिक महत्वपूर्ण है घर के  जीवित बुजुर्गों को प्यार सम्मान देना ! जिस उम्र में सबसे ज्यादा व्यक्ति अकेलापन महसूस करता है उस उम्र में उसे  अपनेपन का एहसास करा कर खुश रखना! 

बुधवार, सितंबर 22, 2021

राष्ट्र चिंतक मतलब भगत सिंह

  आप हमेशा मेरे❤में रहेगें!आप से मेरी हिम्मत है! 
किसी भी राष्ट्र का निर्माण एक माँ से आरंभ होता है , क्योंकि किसी भी राष्ट्र का अभिन्न अंग अर्थात मानव एक माँ की कोख में ही नौ महीने तक पलता है! जब एक माँ नौ महीने एक बच्चे को अपने गर्भ मैं पालती है तो वो सिर्फ़ एक बच्चे को ही नही अपितु एक मुल्क के सुनहरे भविष्य को अपनी कोख में पाल रही होती है! जब वो बच्चे की अच्छी सेहत के खातिर अपने खान-पान के साथ समझौता कर रही होती है, तब वह एक संबल राष्ट्र का निर्माण कर रही होती है ,क्योंकि एक स्वस्थ युवक से ही एक संबल राष्ट्र का निर्माण होता है । इस लिए एक माँ को राष्ट्रजननी कहना गलत नहीं होगा ! 1907 भारत का स्वर्णिम काल जब एक माँ के गर्भ में भारत को खुद पर गर्व महसूस कराने वाला इतिहास और क्रांति सांसे ले रहा था ! इसके साथ ही एक निर्भीक क्रांति और भारत माँ के लिए अपनी जान हंसते- हंसते न्यौछावर करने वाला राष्ट्रपुत्र , राष्ट्रजननी की कोख में पल रहा था । 28 सितंबर (1907) के सूरज की चमक धूमिल मालूम पड़ रही थी उसकी तेज के सामने! ये वह दिन था जब एक ऐसे महानायक और राष्ट्र चिंतक का जन्म हुआ था के साथ नई चेतना, नई विचारधारा का जन्म हुआ था ।यानी कि हम सबके प्रिय सरदार भगत सिंह का जन्म हुआ था!एक ऐसे स्वतंत्र विचार का ,जो व्यक्ति को जेल की काल कोठरी में भी आज़ाद रखता था ! और बेखौफ परिंदे की तरह ऊंची उड़ान भराता था । कुछ इस तरह-
      "राख का हर एक कण, 
      मेरी गर्मी से गतिमान है, 
      मैं एक ऐसा पागल हूँ, 
     जो जेल में भी आज़ाद है!"
भगत सिंह सिर्फ एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक विचारधारा एक इतिहास और एक क्रांति है! जिससे आज की युवा पीढ़ी में जोश आता है! एक ऐसा नास्तिक जो आस्तिकों के हृदय पर राज करता है! आज इक्कीसवीं सदी में जिस उम्र को अपनी जिम्मेदारी उठाने का अधिकार नहीं है! जिसे कानूनन अपराध माना जाता है ! उसी कच्ची उम्र में (1919) जलियावाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के बाल मन पर इतना गहरा असर डाला कि नाजुक कंधों ने मजबूत इरादों के साथ समस्त देशवासियों को अर्थात संपूर्ण भारतवर्ष को अंग्रेज़ो से गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराने का जिंमा उठा लिया! भगत सिंह की उम्र भले ही कच्ची थी ,पर भारत माँ से किया गया वादा पक्का था।
             "उम्र छोटी थी,
         पर समझदार बड़े थे।   
       कच्ची उम्र ने भारत माँ से 
         वादे पक्के किये थे।।"
ऐसे पुत्र पर किस माँ को नाज़ नहीं होगा ! हर माँ जिसको अपना पुत्र कहने पर गर्व महसूस करती है! ऐसे पुत्र की चाह कौन सी माँ नहीं रखती है! जो युवा भगत सिंह के विचारों और सिद्धांतों का अनुसरण करते हैं!उनकी ताकत हैं! अगर मेरी चले तो मैं भगत सिंह की जयंती जितनी लोग कृष्ण जन्म अष्टमी को धूम -धाम से मनातेे हैं! उससे भी अधिक धूमधाम सेे मनाऊँ! कुछ चीजें देखकर मन को बहुत ठेस पहुंचता हैं ,जैसे महात्मा गाँधी जी का जन्म दिवस हर किसी को याद रहता है! 2अक्टूबर मतलब गांधी जयंती! बच्चे बच्चे को पता है ! पर 28 सितंबर के बारे में नहीं पता! 28 सितंबर सुनकर किसी को कुछ याद नहीं आता! सोशलमीडिया पर अभी से गाँधी जी की जयंती के लिए शुभकामनाएं वाले संदेश तैरने लगे हैं, पर भगत सिंह की जयंती की किसी को खबर नहीं जबकि भगत सिंह की पहले है! मुझे गांधी जी से जलन नहीं है! न ही गांधीजी के लिए जो लोगों का जो प्रेम प्रदर्शन है उससे कोई आपत्ति है! मैं बस इतना चहाती हूँ कि भगत सिंह का जन्म दिवस भी बच्चे बच्चे को याद हो! भगत सिंह के बारे में सब कुछ पता हो और उनके विचार भी! बहुत कम लोगों को भगत सिंह का जन्म दिवस याद रहता है! जो कि अत्यंत दुखद है! इससे भी अधिक मुझे तब दुख होता है जब आज की युवा पीढ़ी के पास इस महानायक और राष्ट्र चिंतक के बारे में जानने के लिए वक्त नहीं होता है ! जिसने अपना पूरा जीवन देश के नाम समर्पित कर दिया!  जिसने हमारें लिए फांसी के फंदे को हंसते हंसते चूम लिया! पर मुझे है कि उम्मीद कि ब्लॉग जगत के सभी ब्लॉगर खासकर चर्चा मंच कुछ ख़ास जरूर करेंगे भगत सिंह के जन्म दिवस पर !खैर!  वैसे तो मुझे भगत सिंह के सभी कथन बहुत अच्छे लगते हैं, पर ये कथन जो मुझे सबसे ज़्यादा हिम्मत देता है -
                    दिल में जो जख्म है 
                    सारे फूल के गुच्छे हैं
                   हमें पागल ही रहने दो, 
                   हम पागल ही अच्छे हैं! 
आने वाले स्वर्णिम दिन (28 सितम्बर)की सभी को बधाई!  
कुछ पंक्ति मेरे आदर्श सरदार भगत सिंह और उनकी माँ को समर्पित- 
पावन है वह धरा 
जहाँ तुझ जैसे वीर 
सपूत का जन्म हुआ! 
कितनी खुश किस्मत है ! 
वह माँ जिसकी कोख में
भारत का शानदार
इतिहास पला! 
नमन् है उस माँ को 
जिसने हमें राष्ट्र पुत्र दिया! 



रविवार, सितंबर 19, 2021

पौधा प्रेम का

तस्वीर गूगल से
प्रेम का वो पौधा 
हृदय तल में, 
आज भी लगा है! 
कभी मुरझाया, 
तो कभी हरा-भरा है! 

इक कोने में वो आज भी, 
यही उम्मीद लिए खड़ा है! 
कि पड़ेगी कभी 
उसकी की नज़र मुझ पर, 
फिर प्रेम रूपी अमृत से मिलेगा, 
मुझे इक नया जीवन! 

निकलेगी नई शाखाएँ 
और नई पत्तियाँ, 
फिर से खिल उठेगी 
मुरझाई हुई कलियाँ! 
जो महका देगी ,
हृदय तल की सभी गलियां! 

जो ले कर आयेगी, 
मेरे कष्ट भरे जीवन में खुशियाँ!
इसी आश में वो आज भी खड़ा है, 
कभी मुरझाया, 
तो कभी हरा- भरा है! 

मंगलवार, सितंबर 14, 2021

जिस्म की चाह में रूह के रिश्ते तोड़े जा रही थी!

भागी तो वह अकेली थी 
उसे नहीं पता था 
कि वह अपने साथ 
बाकी लड़कियों के आंखों से 
उनके सुनहरे सपने 
छीन कर ले जा रही थी! 

खुद को तो आजाद कर रही थी 
पर बाकी लड़कियों को 
हमेशा के लिए चारदीवारी में 
कैद किए जा रही थी! 
गलती तो उसने की थी ! 
पर सजा उसके मां-बाप को मिल रही थी 

उसके चेहरे पर तो 
कलिख ही लग ही चुकी थी ! 
किंतु अपने कलिख की साया 
छोड़े जा रही थी ! 
अनेकों लड़कियों की ख्वाहिशों का 
गला घोट कर वह खुली हवा में 
सांस लेने जा रही थी! 
खुद गलत कदम उठा कर 
हर लड़की को शक के घेरे में 
कैद किए जा रही थी! 

रात के अंधेरों में चोरों की तरह भागकर 
बादशाह की 
जिंदगी जीने जा रही थी! 
समाज की रूढ़िवादी विचारधारा को 
बदलने की बजाय 
उसे और मजबूती देते जा रही थी ! 
खुद की जिंदगी में मधुर संगीत भरने के लिए 
अपने मां- बाप की जिंदगी में
समाज के ताने तोहफे में दिए जा रही थी! 

जिन की उंगलियों को 
पकड़कर चलना सीखा
उन्हीं पर उंगली उठाने का 
मौका दिए जा रही थी
एक जिस्म की चाह में वह 
रूह के रिश्ते तोड़े जा रही थी ! 
जिनके सर चढ़ी थी ,
उन्हीं को सर झुका कर 
जीने पर मजबूर किए जा रही थी! 

बुधवार, सितंबर 08, 2021

कुछ पल अपनों के लिए!


हर साल 10 सितंबर को आत्महत्या रोकथाम दिवस के रूप में मनाया जाता है जिसका मुख्य उद्देश्य है कि विश्व में तेजी से बढ़ रही आत्महत्या की प्रवृत्ति पर रोक लगाई जा सके! डब्ल्यूएचओ के अनुसार हर 4 मिनट में एक व्यक्ति की मौत आत्महत्या से होती है ! डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक 89 परसेंट लोग आत्महत्या करने से पहले कुछ ना कुछ संकेत जरूर देते हैं !और यह बात सच भी है! लेकिन अक्सर हम नजरअंदाज कर देते हैं यह सोच कर कि यह तो हमेशा बस अपना दुखड़ा सुनाता रहता है ! और हर छोटी समस्या को बड़ा मान लेता है! और जब वही व्यक्ति कोई गलत कदम उठा लेता है तो हम कहते हैं कि अगर कोई समस्या थी तो हमसे साझा करना चाहिए था! लेकिन जब वही व्यक्ति जीवित होता है तब हम उसकी थोड़ी सी भी परवाह नहीं करते! 
जब किसी को हमारे इसने और अपनेपन की जरूरत होती है तब हम अक्सर व्यस्त होते हैं क्या वक्त काम इंसान की जान से ज्यादा महत्वपूर्ण है? एक शोध के अनुसार 19 मार्च 2020 से 2 मई तक 338 लोगों ने आत्महत्या की वजह अकेलेपन था! जब कोई व्यक्ति हमसे कहता है कि हमें अकेला छोड़ दो तो हम उसे अकेला छोड़ देते हैं यह सोच कर की उसे शांति और सुकून की जरूरत है शायद इसलिए सब से दूर रहना चाहता है! जबकि सच तो यह है की असली शांति और सुकून अपनों के साथ अपनों के बीच मिलती है अपनों के प्यार से अपनों के अपनेपन मिलती है ना कि अकेले रहने से! कोई व्यक्ति कितना ही मजबूत क्यों ना हो पर एक वक्त ऐसा जरूर आता है !जब वह चाहता है कि कोई उसकी ताकत बने! जो उसके अच्छे और बुरे समय में उसके साथ खड़ा हो लेकिन तब वह खुद को अकेला पाता है! जब उसे जरूरत होती है! किसी की प्यार भरी झप्पी की तब वह अकेले में रो रहा होता है! हम इतने व्यस्त हो गए हैं कि कभी किसी पर ध्यान ही नहीं देते कभी किसी के दर्द को समझना ही नहीं चाहते महीनों तक अपनों की खबर तक नहीं लेते एक वक्त था जब महीनों चिट्ठी के जवाब का इंतजार बेसब्री से करते थे लेकिन आज जब एक सेकंड में किसी के आमने सामने हो सकते हैं तो किसी के पास वक्त ही नहीं कोई कितना भी व्यस्त क्यों ना हो पर हफ्ते में एक बार एक दो लोगों से बात तो कर ही सकता है उसकी खैरियत पूछी सकता है इससे सिर्फ उस व्यक्ति का ही नहीं बल्कि हमें भी खुशी मिलेगी कुछ लोगों को लगता है कि दूसरों को वक्त देना समय की बर्बादी है ! किंतु मुझे नहीं लगता कि अगर हमारे थोड़े से वक्त की वजह से किसी के लबों पर मुस्कान आ जाए किसी के मन का बोझ उतर जाए तो उसमें समय की बर्बादी है! आत्म हत्या को रोकने के लिए हम सबको मिलकर काम करना ही होगा !एक दूसरे का सहारा बनना ही होगा! एक आंकड़े के मुताबिक आत्महत्या करने वालों में 81% युवा होते हैं  जिनकी उम्र 15 से 29 के बीच की होती है जिनमें अधिकतर छात्र होते हैं!  इन के आत्महत्या की वजह परीक्षा में कम अंक और सिलेक्शन ना होने की है! और ऐसा इसलिए होता है क्योंकि यह लोग पढ़ाई के वक्त हर किसी से रिश्ते तोड़ देते हैं दोस्त से दूरी बना लेते हैं रिश्तेदारों से दूरी बना लेते हैं किसी भी समारोह में नहीं जाते एक तरह से कहा जाए तो जिंदगी को जीना ही भूल जाते हैं सिर्फ बस एक ही लक्ष्य रहता है और वह रहता है नौकरी पाना या फिर अच्छे अंक लाना! नौकरी और अच्छे नंबर लाने की इच्छा है इनके ऊपर इतनी हावी हो जाती है की इनके अंदर की मानवीय संवेदना को मार देती है कोई व्यक्ति कितना परेशान है उस व्यक्ति को इनकी कितनी जरूरत है इससे उन्हें कोई फर्क ही नहीं पड़ता और जब इस सब के बावजूद सफलता इनके हाथ नहीं लगती तो इनकी आंखों के सामने अंधेरा छा जाता है कोई व्यक्ति ऐसा नजर नहीं आता जिससे यह अपनी मन की बात कर सके और इन्हें सभी के तारों का डर सताने लगता है और फिर गलत कदम उठा लेते हैं यह भूल जाते हैं कि जितनी खुशी अपने पल प्यार इसमें से मिलती है उतनी खुशी सफलता से नहीं मिलती सफलता की खुशी तो बस छोटी होती है और प्रेम और स्नेह की खुशी हमेशा के लिए होती है जो यादें बनने के बाद भी लबों पर मुस्कान ला देती है! मैं जितनी भी क्लास करती हूं वहां के सभी शिक्षक अधिकतर यही कहते हैं कि अगर सफलता प्राप्त करनी है तो सभी से दूरियां बना लो दोस्तों के साथ बाहर मत जाओ किसी की शादी में मत जाओ किसी की बर्थडे पार्टी में मत जाओ बस अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो एक तरह से कहा जाए तो जिंदगी को जीना छोड़ कर सिर्फ नौकरी के लिए जिओ ! और ऐसे में अधिकतर छात्र अवसाद ग्रसत हो जाते हैं! सफलता और असफलता के बीच इतना उलझ जाते हैं कि जिंदगी जीना ही भूल जाते हैं! आत्म हत्या को रोकने के लिए हम सबको एक साथ काम करना होगा! हर किसी अपने को अपनेपन का एहसास कराना होगा !उसे एहसास कराना होगा कि वह अकेला नहीं है हम उसके साथ हैं! 

नारी सशक्तिकरण के लिए पितृसत्तात्मक समाज का दोहरापन

एक तरफ तो पुरुष समाज महिलाओं के अधिकारों और उनके सम्मान की बात करता है और वहीं दूसरी तरफ उनके रास्ते में खुद ही एक जगह काम करता है। जब समाज ...