सोमवार, फ़रवरी 28, 2022

रो रही मानवता हँस रहा स्वार्थ

नीला आसमां हो गया धूमिल-सा
बेनूर और उदास, 
स्वच्छ चाँदनी का नहीं दूर तक 
कोई नामों निशान।
रात में तारों की मौजूदगी के 
बचें नहीं कोई निशाना।
आग उगल रहा अम्बर,धरती रो रही आज।
सूर्योदय से पूर्व नहीं रहा
उषा की चुनरी का चम्पई आलोक।
फीकी पड़ रही रोशनी सूर्य की
धमाकों की आग के आगे आज।
नज़र नहीं आ रहा उड़ता हुआ 
आसमां में पक्षी कोई, 
नहीं आ रही पक्षियों की 
चहकने की आवाज़।
सिर्फ़ नज़र आ रहा है काल बनकर
उड़ता हुआ लड़ाकू विमान।
पहाड़ों की नोकों पर 
चमकीली बर्फ़ की परतें न रहीं
बर्फ़ की आहों का घुट-घुटा धुआं
भी नज़र नहीं आ रहा आज।
सिर्फ़ नज़र आ रहा है, 
काले धुएं का गुब्बार।
आसमां की छाती में सुराख़ कर, 
मिसाइलें ले रही मासूमों की जान।
धमाकों की गूँज में दब रही, 
हमेशा के लिए लोगों की आवाज़ ।
चीख़ रही इंसानियत,
मानवता हो रही तार तार।
यह सब देख ठहाके मार कर 
हँस रहा है स्वार्थ।


बुधवार, फ़रवरी 23, 2022

ऐसा क्यों और कब तक?

बात पिछले साल की है,मैं कम्प्यूटर क्लास के लिए रोज़ कि तरह जा रही थी, मेरे घर से करीब एक किमी की दूरी पर ही एक शौचालय का निर्माण हो रहा था वहाँ कुछ मज़दूर काम कर रहे थे मैं जैसे ही शौचालय के सामने से गुज़रती उन मज़दूरों में से कोई एक ने माक्स पर टिप्पणी की तबतक मैं आगे निकल चुकी थी मुझे साफ़ साफ़ सुनाई तो नहीं पड़ा कि क्या कहा पर मास्क को लेकर कुछ कहा इतना समझ में आ गया मैं ये सोच कर बिना कुछ कहे चली गई कि वापसी में अगर कुछ कहेगा तब इसकी खबर लुंगी पर वापसी में कुछ नहीं कहा। फिर दूसरे दिन जाते वक़्त उसने कोरोना वाला कोई गाना गाया क्योंकि मैंने माक्स लगा रखा था, कुछ लोग होते हैं ना जो लड़की को देखकर खुद को रोक नहीं पाते हैं कुछ ना कुछ कहे ह डालते हैं उन्हीं में से एक वो था, किस मुझ पर क्या टिप्पणी करें समझ नहीं आया, इसलिए वो माक्स पर ही करता रहता था।पर आते वक़्त फिर कुछ नहीं बोला,लेकिन तीसरे दिन आते वक़्त जब उसने फिर टिप्पणी की तो मेरे मन में जो आया उस वक़्त सब कुछ कहा,वहीं काम कर रहे बाकी मज़दूर मुझे समझाने लगे और उससे डाटने लगे तो मैंने कहा इतने दिनों से जब ये हमेशा माक्स को लेकर कुछ न कुछ कहता रहता था तब कहाँ थे आप? फिर एक लोग बोले "बिटिया तू जाऊ यैं ऐसे बका करत हैं " फिर जब मैं वहाँ से थोड़ी दूर निकल आयी तो एक मज़दूर उससे बोला "कहत रहेन तूहसे कि फालतू न बोला कराऊ देख लिहेव" फिर मैं घर आ गयी पर घर पर किसी को कुछ नहीं बताया क्योंकि घरवालों के बारे में मुझे अच्छे से पता था क्या करते हैं।लेकिन दूसरे दिन जाते वक़्त मुझे बहुत डर लग रहा तरह-तरह के ख्याल मन में आ रहे थे चूंकि मैंने सरेआम उसे बहुत कुछ कहा था इसलिए डर लग रहा था कि कहीं बदला लेने की कोशिश न करें, लेकिन मैं जब वहाँ से गुजरी तो उसी तरफ़ देखते हुए कि उसे ये न लगे कि मैं थोड़ी भी डरी हुई हूँ। मैं अपनी सुरक्षा के लिए एक खुली ब्लेड अपनी टोकरी में हमेशा रखतीं हूँ मैंने सोचा अगर कुछ हुआ तो...! लेकिन फिर वह कभी कुछ कहना तो बड़ी दूर की बात नजर उठा कर देखता भी नहीं था ऐसे ही एक बार रास्ते में एक बाइक पर तीन लड़कों ने मुझ पर टिप्पणी करते हुए मुझे छेड़।फिर जब वे वापस आने लगे तो मैंने अपनी साइकिल उनके बाइक के आगे खड़ी कर दी वो लोग हैरान रह हो गयें और मेरी साइकिल तक आते-आते इतनी तेज स्पीड बढ़ा दी अपनी बाइक की और मेरी साइकिल की टोकरी में ठोकर मारते हुए इतनी तेजी से निकले लेकिन तभी मेरा एक सहपाठी बाईक से वहाँ गया जिसके साथ दो लोग और थे जो पुलिस की ट्रेनिंग कर रहे थे इसलिए पुलिस की ड्रेस में थे उन्होंने ,उन मनचलों को आवाज लगाते हुए पीछा पीछा किया, वे मनचले इतनी तेज भागे कि अगर कोई गाड़ी आ रही होती तो वही तुरंत ढेर हो जाते हैं।मुझे बहुत ही खुशी मिली उन लोगों को भागते हुए देख कर और यकीन हो गया कि वे दोबारा किसी लड़की को नहीं छेड़ेंगे। यह दो ही ऐसे केस थे जिनमें मैंने पलट कर जवाब दिया।लेकिन अनगिनत बार रास्तें में लोग टिप्पणी करते रहते हैं इनमें वो लोग भी होतें है जो हमसे दुगनी उम्र के होते हैं जिनकी खुद की बेटी हमारी उम्र की होती है, लेकिन हम कुछ कहें उससे पहले वो निकल जाते हैं। इन लोगों की हरक़त की वज़ह से अधिकतर लड़कियों की पढ़ाई बंद हो जाती है ,बाहर जाना बंद हो जाता है।जो लोग कहते हैं कि अगर लड़कियों की जिंदगी में परेशानियाँ हैं तो लड़कों की जिंदगी भी आसान नहीं, सही कहते हैं। पर कितने लड़के या पुरुष हैं जिनकी परेशानी और बर्बादी का कारण वे लड़कियाँ हैं जिन्हें वे जानते तक नहीं?कितनी बार उन्हें रास्ते मेंं लड़कियाँ ने छेड़ा हैं?कितनी बार अज़नबी लड़कियों की वजह से लड़कों के सपने टूट कर चकनाचूर हुएं हैं?लेकिन अधिकतर लड़कियों के सपने तो लड़कों के कारण ही टूट कर चकनाचूर होतें हैं वो भी उन लड़कों के कारण जिन्हें वे जानती तक नहीं।लड़कियों का स्कूल जाना बंद,कारण लड़के।बाहर जा कर पढ़ नहीं सकती कारण लड़के। सूरज के ढलते ही घर के अन्दर, बाहर खतरा किससे?जवाब लड़कों से।एक लड़की रास्ते में तब उतना नहीं डरती जब वो अकेली होती है जितना दो चार-लड़कों के होने पर डरती है।क्या कभी लड़कों को भी रास्ते की लड़कियों से डर लगा है? अगर रास्ते में किसी ने छेड़ा तो समाज व घर वाले लड़की को ही दोष देंगे अगर नही देगें तो ये कहेंगे कि लड़के तो कुत्ते हैं उन्हें कोई कुछ नहीं कहेगा उंगलियाँ तुम पर ही उठेंगी।कीचड़ में कभी दाग़ थोड़ी लगता है और लड़कें तो कीचड़ हैं।इसलिए लड़कियााँ हर एक से उचित दूर बनाएं रखना पसन्द करती हैं,लड़कियाँ अपने माँ बाप के सर पर बोझ कारण लड़के।क्योंकि लड़कों का जन्म ही होता है दहेज़ लेने के लिए और इसी दहेज़ के कारण लड़कियों को अपनी ही जिंदगी बोझ लगने लगती है।अपने जिन्दगी का बीस प्रतिशत जिंदगी तो बोझ होने के घुटन के साथ गुजारती हैं।और जो लोग कहते हैं कि लड़के भी बहुत बड़ा समझौता करते हैं अपनी जिन्दगी के साथ।क्योंकि एक अनपढ़ लड़की के साथ अपनी पूरी जिंदगी गुजार देते हैं,अगर इन लोगों को एक अनपढ़ लड़की के साथ बहुत बड़ी बात लगती है क्योंकि नहीं अपनी पत्नी को पढ़ाने का काम करते? अगर अपने पढ़ाई को आधी करके अपने पत्नी की भी पढ़ाई चालू करवा दे तो मानू कि ये वाक़ई समझौता करते हैं और दूसरा ये लोग दहेज़ के मामले में ऐसा समझौता क्यों नहीं दिखाते? बिना दहेज़ लिए क्यों नहीं शादी करते? क्यों नहीं अमीर होने के बावजूद एक गरीब लड़की से शादी बिना दहेज़ लिए कर लेते? मुझे तो अभी तक एक भी ऐसा शख़्स नहीं दिखा जिसने ऐसा कुछ किया हो।अपने जान पहचान में।यहाँ पर लोग हैं जिनकी शादी बिना दहेज़ के बिना हुई है? जिन लोगों की हुई है वो बहुत ही खुशकिस्मत वाली हैं,और जिन लोगों ने बिना दहेज़ लिए शादी की मैं उन्हें शलाम करती हूँ क्योंकि ऐसे लोगों सच में महिलाओं की इज़्ज़त करते हैं। 

मंगलवार, फ़रवरी 15, 2022

एक साल बेमिसाल

आज ही के दिन मैंने इस खूबसूरत ब्लॉग जगत में कदम रखा था।ब्लॉगिंग करने का मेरा मुख्य कारण लोगों तक अपनी विचारों को साझा करना और अपने अंदर उठ रहे तमाम सवालों को लोगों के बीच रखना।जिससे मुझे आत्म संतुष्टि मिलती है।जब मैं ब्लॉगिंग नहीं करती थी तब मुझे बहुत ही घुटन होती रहती थी जब कभी किसी का बलात्कार होता,किसी हत्या भीड़ द्वारा कर दी जाती, या किसी के साथ कोई भी अन्याय होता और मेरी रातों की नींद उड़ जाती थी मुझे चैन की नींद नहीं आती अजीब सी हलचल होती रहती थी मन में घुटन होने लगती थी। ऐसा लगता था कि मैं भी इसमें शामिल हूं क्योंकि मैं कुछ नहीं कर पा रही हूं चुप रहना मेरे लिए गुनाह करने जैसा था। इसलिए मैं अक्सर व्हाट्सएप स्टेटस पर छोटे-छोटे लेख डालती रहती थी, पर पता था कोई ज्यादा पढ़ता नहीं है किसी को फर्क नहीं पड़ने वाला।और न ही सुधार आने वाला, कुछ एक थे जो पढ़ते थेपर मुझे फर्क नहीं पड़ता था क्योंकि मैं लिखती इसलिए थी कि मुझे अफसोस ना रहे कि मैं नहीं उतना भी नहीं किया जितना कर सकती थीमैंने जब से लिखना शुरू किया यानी कि 2015 में ही ब्लाग जगत में कदम रख चुकी होती पर कुछ कारणवश ऐसा नहीं हो पाया।मुझे इस बात का थोड़ा अफसोस है पर देर से ही सही.....। 
सुनहरे शब्द
इस एक वर्ष में मुझे जितना प्यार मिला सभी प्रिय जनों से जिसे शब्दों के माध्यम से बयां कर पाना बहुत ही मुश्किल है! जब मैंने ब्लॉगिंग करना शुरू किया था मुझे ब्लॉगर तक पहुंचना भी नहीं आता था मुझे नहीं पता था कि मैं ऐसे ब्लॉगर तक कैसे पहुंचूं और ना ही किसी ब्लॉगर को जानती थी जिसके जरिए मैं पहुंच पाती।लेकिन एक दिन जब मैंने नास्तिक विचारधारा को गूगल पर सर्च किया तब मुझे एक ब्लॉग मिला जिसके माध्यम से मैं आप सभी तक पहुंच पाई, मेरे ब्लॉग पर पहली प्रतिक्रिया मेरे लिए  खूबसूरत सपने जैसा था जितेंद्र सर और रेणु मैम की हौसला बढ़ाने वाली पहली प्रतिक्रिया अद्भुत थी जिसे याद करके मैं पूरा दिन मुस्कुराती रहती थी! जिस तरह पहली पोस्ट पर सब ने खासकर कामिनी  मैम और जितेंद्र सर ने मेरा हौसला बढ़ाया और मेरे नास्तिक विचारधारा का समर्थन किया उससे मुझे हमेशा निर्भीक और स्वतंत्र होकर लिखने के लिए बहुत हिम्मत मिली।कामिनी मैम का मुझे बच्चे कहकर संबोधित करना मां की प्यारी सी झप्पी जैसी थी और रेणु मैम का हमेशा मेरी लेखनी में सुधार करवाते रहना मेरे लिए बहुत ही खूबसूरत एहसास था।
सुनहरे शब्द
शुरुआत में मुझे लगता था कि कहीं बाकी सोशल मीडिया ऐप्स की तरह यहां भी सब लोग सिर्फ औपचारिकता के लिए इतनी तारीफ के पुल तो नहीं बांध रहें हैं पर जैसे-जैसे वक्त बीतता गया साफ हो गया कि यहां पर उपस्थित सभी लोग बाकी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एकदम अलग है सभी के परिवार की तरह लगने लगे और यहां उपस्थित अधिकतर लोग मेरे माता- पिता के उम्र के हैं और सभी लोग मुझे माता-पिता के जैसा प्यार दे देते रहें हैं और मेरी गलतियों को सुधारने में मेरी मदद जिस तरह करते रहें हैं यशोदा दी की वो पांच लिंकों की प्रस्तुति जिसमें सभी रचनाएँ  मेरे ब्लॉग से ही थी और दी की वो प्रतिक्रिया मेरा हमेशा हौसला बढ़ाती है।संगीता मैम,ज्योति दी,अनिता मैम सबने मेरी लेखनी को सुधारने में बहुत ही मदद की!ब्लॉगिंग के जरिए ही मुझे जिज्ञासा मैम मिली जिनका मायका हमारे क्षेत्र में ही है पर अगर ब्लॉगिंग न करती तो कभी नहीं जान पाती, हमेशा मेरा हौसला बढ़ाती है और आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा देती रहतीं हैं। बहुत शुभचिंतक मिले मुझे।
सुनहरे शब्द
यूं तो नहीं है कोई सगा संबंधी 
यहां किसी का 
पर सगे संबंधियों से भी अधिक खास है ।
किसी का प्यार मां जैसा 
तो कोई पिता समान है
कोई शुभचिंतक 
तो किसी का लाड प्यार बेहिसाब है
अलग बोली, अलग भाषा 
अलग-अलग शहरों में सभी का घर द्वार है
पर सभी का व्यवहार एक समान है
सब में अपनत्व और प्रेम बेमिसाल है
मेरे परिवार से मिला मुझे 
बहुत ही प्यार और सम्मान है
प्यार और सम्मान के लिए सभी की
मनीषा शुक्रगुजार है
सभी प्रिय जनों को करती प्रणाम है

रविवार, फ़रवरी 13, 2022

युवा वर्ग अपनी जिम्मेदारी को पहचाने

जिस तरह से कर्नाटक में ही हिजाब पहनकर कक्षाओं में प्रवेश ना देने की वजह से देश के विभिन्न हिस्सों में विवाद उपज रहा है। यह छात्राओं संकीर्ण सोच को दर्शा रहा है विद्यालय एक ऐसा स्थान जहां सभी को एक समान माना जाता है ना कोई हिंदू होता ना कोई मुस्लिम सभी सभी का एकमात्र धर्म होता है और वह होता है शिष्य धर्म।इसलिए सभी विद्यार्थियों को धर्म धर्म ,जाति से ऊपर छात्र धर्म को रखने की जरूरत है। जैसे डॉक्टर की नजर में एक मरीज का कोई धर्म जाति नहीं होता सिर्फ और सिर्फ मरीज होता है और मरीज की जान बचाना डॉक्टर का कर्तव्य होता है, 
वैसे ही एक शिक्षक की नजर में विद्यार्थियों का कोई धर्म और जाति नहीं होता है सभी एक समान होते हैं जिन्हें शिक्षा देना अध्यापक का मुख्य कर्तव्य होता है और वह अपने कर्तव्य का पूरी निष्ठा से पालन करने की कोशिश करता है ठीक उसी तरह छात्र-छात्राओं को भी चाहिए कि वह धर्म जाति या वर्ग से हटकर विद्यार्थी होने के कर्तव्य का पालन पूरी निष्ठा से करें और उनके मन में ऐसे भाव होने चाहिए कि उन्हें शिक्षण संस्थाओं में एक विद्यार्थी के रूप में पहचाना जाना चाहिए ना कि किसी धर्म या जाति के रूप में। साथ ही हमारा देश विविधता में एकता ही हमारी विशेषता के लिए दुनिया में जाना जाता है। इसलिए इस विशेषता को बनाए रखने की जरूरत है। देश की एकता को बनाए रखने की जरूरत है। अगर ऐसा नहीं करते हैं तो इससे हमारे देश की छवि पर बहुत ही बुरा असर पड़ेगा वैसे भी दुनिया के तमाम देश निगाह गड़ाए बैठे रहते हैं हमारे देश पर और ऐसे मौके की तलाश में रहते हैं कि कब ऐसा मौका मिले जिससे हमारे देश की छवि दुनिया के सामने खराब कर सकें। जिस तरह कुछ उग्र धार्मिक संगठन और राजनीतिक पार्टियां अपनी रोटी सेकने के चक्कर में विद्यार्थियों का इस्तेमाल करके आग में घी डालने का काम कर रही है और दुर्भाग्यपूर्ण है कि विद्यार्थी आसानी से उनके जाल में फंस रहें हैं और अशोभनीय हरकत कर रहें हैं।
ऐसे में विद्यार्थी अपने पैर पर तो कुल्हाड़ी मार ही रहे हैं पर देश की शांति व्यवस्था को भी भंग कर रहे हैं सभी विद्यार्थियों को अपने तर्क शक्ति का इस्तेमाल करने की जरूरत है ना की किसी के हाथ की कठपुतली बनकर उनके इशारे पर नाचते रहने की,क्योंकि इससे उनका ही नुकसान होगा।भविष्य में ऐसी कोई भी हरकत करने से बचने की सख्त जरूरत है जिससे हमारी एकता में फूट डाला जा सके और विविधता में एकता यही हमारी विशेषता यह एक स्लोगन मात्र बन कर रह जाए। हाई कोर्ट का आखिरी निर्णय आने तक सभी को शान्ति व्यवस्था कायम रखने की जरूरत है और शांति पूर्वक शैक्षिक संस्थाओं के नियमों का पालन करने की जरूरत है।युव हमारे देश की सबसे बड़ी ताकत है और इस ताकत का सही से उपयोग करने की जरूरत है।

गुरुवार, फ़रवरी 10, 2022

हवाओं के संग उड़ती थी तितली बन

उड़ती रहती थी 
हवाओं के संग 
वो तितली बन, 
पेड़ पौधों से 
दोस्ती थी उसकी, 
मस्ती करती थी 
वो पशु-पक्षियों के संग|
किलकाती रहती थी 
कली में मधुप बन, 
चहकती रहती थी 
वो चिड़ियों के संग|
लहराती थी, 
वह लहरों के संग, 
बरखा में लरजाती थी 
बन उमंग|
बांधा करती थी 
जो पांव में तरंग, 
उन्हीं पांवों को 
अब रिश्तों के बंधन 
ने लिए हैं जकड़|
भावनाओं पर लगने लगे हैं, 
अब मर्यादा के पहरे|
जिन नयन ने सजाएं थे 
अनगिने-स्वप्न, 
उन नयनों में भर दिए गए 
खौफनाक मंजर|
जो खेला करती थी
अंजुरी भर धूप के संग, 
खेल, खेल रही जिंदगी 
आज उसके संग|
अभिव्यक्ति पर है 
अब उसके सीमा के बंधन, 
फीकी है उसके चेहरे की चमक|
किसी चित्रकार की 
अधूरी पड़ी तस्वीर सी, 
आज उसकी जिंदगी है बेरंग|
बिखरा हुआ है सब कुछ, 
पर अब भी ढूंढ रही है
चित्रकार को आशा भरी नजर|
 ◦•●◉✿मनीषा गोस्वामी✿◉●•◦
      



शुक्रवार, फ़रवरी 04, 2022

बुराई से लड़ते लड़ते बुरे बन गयें हम

बुराई से लड़ते लड़ते 
लोगों की नज़र में 
बुरे बन गए हम।
ये सब देख 
सहम कर ठहर गए हम।
गलत धारणाओं को 
खत्म करने की चाह में
लोगों की नजरों में 
बुरा बनना भी 
कबूल कर गए हम।
गैरों से जीतने की 
तो दूर की बात
अपनो से ही 
मात खा गए हम! 
एक बार फिर अपनो को 
जीतने के खातिर
आपनो से हार गए हम।  
दर्द तो तब खूब हुआ
जब आपनो की नज़र
गलत हो गयें हम।
एक बार फिर टूट कर 
खामोश हो गए हम।
दूसरों को खुश रखने की 
चाह में अपने 
फड़कते होठों की 
मुस्कान गव़ा बैठे हम।
आपनो को पाने की चाह में
खुद को खोते चले गए हम।

- मेरी डायरी से (2020) 

नारी सशक्तिकरण के लिए पितृसत्तात्मक समाज का दोहरापन

एक तरफ तो पुरुष समाज महिलाओं के अधिकारों और उनके सम्मान की बात करता है और वहीं दूसरी तरफ उनके रास्ते में खुद ही एक जगह काम करता है। जब समाज ...