सोमवार, फ़रवरी 22, 2021

उसके भी थे कुछ सपने!

उसके भी थे कुछ सपने!
अभी वो खुद को भी ठीक से समझ नहीं सकी थी
कि दूसरों को समझने की बारी आ गई
खुद के पैरों पर खडी़ होती उससे पहले
किसी का सहारा बनने की जिम्मेदारी उसके कंधे पर आ गई
अभी वो खुद से ठीक से रू -ब -रू भी नहीं हुई थी
कि इक नई जान को इस दुनियाँ से रूबरू कराने की जिम्मेदारी आ गई 
गाल गुलाबी होते उससे पहले
उसके हाथ पीले हो गए
उसकी आँखों में सुनहरे सपने पलने से पहले
टूट कर चकनाचूर हो गए
उसके भी थे कुछ सपने
पर नहीं समझ सके उसके अपने
अपना कहती किसी को उससे पहले
उसके अपने पराये हो गए
धूम धाम से करके तैयारी 
बना दिया उसे समाज की नजरों में अबला नारी


(बाल विवाह का शिकार होने वाली लड़कियों के दर्द को अपनी टूटी -फूटी पंक्तियों से बयां करने का इक छोटी -सी कोशिश ) 



रविवार, फ़रवरी 21, 2021

रोता बचपन

  
             𝓗𝓮𝓪𝓻𝓽 ❤ 𝓣𝓸𝓾𝓬𝓱𝓲𝓷𝓰 𝓜𝓸𝓶𝓮𝓷𝓽 😭
      उढ़ा देतीं हैं कुछ तस्वीरें नींद रातों की मेरी
      जब याद आता है वो मंज़र छलक आती है 
                            आंखें मेरी|
        खिलौने और मैदान के झूले को निहारती                                 लालचभरी निगाहें|
        कैसे वो बच्चा मन मार कर रह जाता है.
स्कूल के बस्ते को उठाने की उम्र में वो जिम्मेदारियों                        का बोझ उठाता है|
  जिद करने की उम्र में वो जरुरतें पूरी करता है|
            हम ब्रांडेड जूते चप्पल पहनते है 
            वो नगें पैर मीलों चलता रहता है|
                     हम महलों में रहते हैं 
           और वो चारदीवारी को तरसता है|
       उसका पूरा दिन कूड़े के ढेर में गुजरता है
   पर किसी का दिल उसके लिए नहीं पसीजता है|
         उसका बचपन  हर रोज जोरो से रोता है, 
              पर किसी को सुनाई नहीं देता है.
             जुबां होने पर भी वे जुबा बन कर                                           सब सहता है|
 
            ऐसी तस्वीरें देख धूमिल जी की ये पंक्ति मेरे जेेेहन में आ जाती है_
               "गरीबी एक खुुुली हुई किताब , 
      जो हर समझदार और मुर्ख के हाथ में दे दी गई है|
                       कुछ उसे पढ़ते हैं, 
                     कुछ उसके चित्र देख
                   उलट -पुलट कर रख देते 
                       नीचे 'शो- केस' के |"


                

नारी सशक्तिकरण के लिए पितृसत्तात्मक समाज का दोहरापन

एक तरफ तो पुरुष समाज महिलाओं के अधिकारों और उनके सम्मान की बात करता है और वहीं दूसरी तरफ उनके रास्ते में खुद ही एक जगह काम करता है। जब समाज ...