क्या कसूर है हमारा ?
क्यों कैद भरी जिंदगी जीने पर
मजबू़र कर रहा ये जमाना ?
बता दे हमे ऐ जमाना ?
क्या लड़कियाँ नहीं जीत सकती जंग ?
भूल गए क्या वो अतीत ?
झाँसी की मर्दानी की जीत !
कहाँ की है ये रीत ?
कि लड़कियों को रखो घरों में कैद,
किसने बनाई ये रीत ?
यदि तुम लोगों की यही है नीत,
तो अब तुम्हारी हार है नजदीक |
अब कान खोल कर सुन ले ऐ जमाना |
इन चार दिवारियों को,
तोड़ने का हमने है ठाना |
अब नहीं रोक सकता हमे ऐ जमाना |
अभी तक हमने तुम्हारा कहना माना ,
तुम्हारें हर जुर्म को सहना चाहा ,
पर अब इस अनोमल जिंदगी को
यूँ ही नहीं गवाना |
किसी भी लड़की की ख्वाहिशों को
नहीं दफना सकता ऐ जमाना!
सदियों से दबी है जो आवाज़ ,
उसे ज्वालामुखी के रुप मे है बाहर लाना |
अब इस जमाने को धूल है चटाना |
कलम को है अपनी ताकत बनाना |
जिंदगी जीने का
असली मकसद अब है जाना |
नारी अस्मिता का उदबोधन करती एक सार्थक कविता!!!!
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏🙏धन्यवाद सर🙏🙏🙏🙏
हटाएंस्त्री विमर्श का आगाज करती सार्थक रचना, बहुत बहुत शुभकामनाएं प्रिय मनीषा ।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत धन्यवाद और आभार 🙏🙏
हटाएंThis is real free voice. Amazing👍👍👍👍👍
जवाब देंहटाएं𝗧𝗵𝗮𝗻𝗸 𝘆𝗼𝘂😇😇😇😇😇
हटाएंबहुत मुश्किल है बेड़ियों को तोड़ना। स्त्री कम जिम्मेदार नहीं
जवाब देंहटाएंहाँ सर आप सही कह रहें हैं बहुत मुश्किल तो है पर नामुंकिन नहीं यदि किसी गाँव या मोहल्ले की एक लड़की बेड़ियों को तोड़ कर आगे बढ़ती है तो अपने पीछे सारी लड़कियों के लिए रास्ते खोल देती है!
हटाएंमातृ शक्ति को सबल देती रचना
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत धन्यवाद और आभार 🙏🙏
हटाएंAmazing post .
जवाब देंहटाएंYou can do it.👍👍👍👍👍👍👍
𝕿𝖍𝖆𝖓𝖐 𝖞𝖔𝖚😇😇😇😇😇
हटाएंवाह बेहतरीन सृजन
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मैम🙏🙏🙏🙏🙏
हटाएंक़लम को अपनी ताक़त बनाइए और हिम्मत के साथ आगे बढ़िए। आपका जज़्बा यही रहना चाहिए - 'हम ख़ाकनशीनों की ठोकर में ज़माना है'।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार और हृदय तल से धन्यवाद सर🙏🙏🙏🙏🙏
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