सोमवार, जनवरी 31, 2022

नेताओं का भी दर्द तो समझों कोई (व्यंग्य)

वादे नये इरादे पुराने हैं।
नेताजी हमारे बड़े दिलवाले।
कब अकड़ना है और कब पैर पकड़ना है
नेता जी ये बड़े अच्छे से जाने।
आपत्ति में भी अपने लिए अवसर ढूढ़ने वाले।
वक़्त पड़ने पर जनता जनार्दन बोलकर 
जनता के चरणों में लोटने वाले।
वक्त आते ही अपने चरणों में लोटवाने वाले। 
नेता जी हमारे बड़े दिलवाले।
ना जातिवाद करते हैं ,ना भेदभाव करते हैं।
सभी को एक ही तराजू में तौलने का दावा करते हैं।
जनता नासमझ है तो क्या करें नेता जी? 
भेदभाव,जातिवाद तो आम लोग करते हैं।
नेताजी तो ऐसे लोगों का 
सिर्फ हौसला बुलंद करते हैं।
अपने प्रपौत्र के बेटे के सुनहरे भविष्य के लिए 
बस कुछ हजार युवाओं के 
वर्तमान को धूमिल व बेरंग ही तो करते हैं ।
ऐसा तो हमारे नेता जी 
स्वावलंबी बनने के खातिर करते हैं।
चुनाव के वक्त आम जनता को 
कर्ताधर्ता बताते हैं और सबसे खास होने का
एहसास कराते हैं।
चुनाव के बाद आम जनता की चटनी बनाते हैं।
और अपने हिसाब से इस्तेमाल करके चुनावी व्यंजन का 
जायका भी आम जनता से ही तो बढ़ाते हैं।
ऐसे ही तो नेता जी  हमेशा आम जनता को खास बनाते हैं।
साफ कुर्ते-पजामे के साथ नेताजी 
दिल काला भी तो रखते हैं।
फिर भी लोग सफेद धोती कुर्ते को
ही नज़र लगाते रहते हैं।
इतनी खूबियां होने के बाद भी 
            नेताजी को लोग भला बुरा पता नहीं क्यों कहते हैं
अक्सर नेता जी की आंखें नम हो जाती हैं 
      ये सोच कर कि लोग उनके दर्द को क्यों नहीं समझते हैं।
                                 मनीषा गोस्वामी

गुरुवार, जनवरी 27, 2022

सोच का नया नजरिया

चित्र गूगल साभार
निती अभी कक्षा आठ में पढ़ती, है अपनी माँ करुणा की तरह समाजसेवी बनने का और वृद्धाश्रम खोलने का सपना है।आज उसका मूड बहुत ही ऑफ है स्कूल से आते ही उसने एकतरफ बैग पटक कर कपड़े चेंज करके, बिना कुछ कहे झन में छत पर चली गई और बालकनी में पड़ी कुर्सी पर बैठ गयी।हर रोज की तरह आज उसने मम्मी को भी नही पूछा और न ही किचन में खाने की तलाश में गयी।गुमसुम सी बैठी सामने आ जा रहे लोगों को देख रहीं थी।तभी उसकी मम्मी की आवाज आयी। निती! तू टिफन बॉक्स वैसे ही वापस क्यों ले आई कुछ खाया क्यों नहीं?देख तेरी आदते दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है, पक्का तूने बाहर की चीजें खाई होगी। मैं तुम्हें कितनी बार समझा चुकी हूं कि बाहर की चीजें हमारे सेहत के लिए अच्छी नहीं होती है।पर निती, करुणा के सवालों का कोई जवाब नहीं दिया और वहीं चुपचाप बैठी रही। करुणा दोबारा वहीं सीढ़ियों से आवाज लगाती है "अच्छा कोई बात नहीं आगे से ख्याल रखना!" अब चल नीचे आजा कुछ खा ले भूख लगी होगी तुझे! पर इस बार भी निती कुछ नहीं कहती और वहीं चुपचाप बैठी रही। जब कुछ देर तक निती नीचे कुछ देर तक नीचे नहीं आयी, तो फिर करुणा सोचने लगी  कि शायद दोस्तों के साथ लड़ाई हुई होगी इसलिए  मूड ऑफ है। सो नीचे नहीं आ रही है! 
ओह!
ऊपर से मैंने भी डांट दिया, चलो मनाते हैं किसी तरह।निती को मनाने के लिए करुणा सीढ़ियों से ही आवाज़ लगाने लगी, निती बेटा चलो जल्दी-जल्दी कुछ खा लो फिर तुम्हें अपने वृद्धाश्रम में आए नये मेहमानों से मिलाती हूं तुम्हें उनसे बातें करना कितना पसंद है ना ,और तुम्हें अपने दोस्तों के साथ खेलने भी तो जाना है। "मुझे किसी के साथ नहीं खेलना और ना ही किसी से मिलना है।" कहते हुए निती का गलाभर आया। अब तक करुणा बालकनी पर आ गयी होती है, निती की आंखों में आंसू देख करुणा परेशान हो गयी, मम्मी को देख कर निती रो पड़ी और करुणा की सीने से चिपक गयी!अब करुणा और भी ज्यादा परेशान हो गयी।"क्या हुआ मेरे बच्चे तू रो क्यों रही है किसी ने कुछ कहा क्या ? 
रो मत! 
तू बता मुझे! मैं तेरे साथ हूं! तुझे कुछ नहीं होगा तेरी मम्मा है ना तेरे साथ, सब ठीक कर देगी तू बता तो सही। 
निती रोते हुए कहती है मम्मी आप कहती हो कि बाहर की चीजें हमारे सेहत के लिए ठीक नहीं होती है जितनी घर की ठीक होती है।
 "हां तो सही तो कहती हूं!"
तो फिर लोग अपने वृद्ध मां बाप को वृद्धाश्रम क्यों भेज देते हैं ?बाहर के लोग भी तो उतने अच्छे नहीं होते उनके लिए, जितने अपने अच्छे होते हैं। जितनी अपनों की प्यार से उन्हें खुशी मिलती है उतनी खुशी बाहर के लोगों के प्यार से तो नहीं मिलती। जब कोई पराया प्यार करता है व परवाह करता है तब-तब सोचते हैं कि काश ये प्यार मुझे मेरे अपनो से मिलता! मम्मी पता है आपको, मेरे दोस्त के दादाजी को वृद्धाश्रम भेज दिया आज उसके मम्मी पापा ने ,उसके दादा इतने अच्छे हंसमुख और प्यार बांटने वाले थे , खुशियों का पिटारा होता था उनके पास। जो भी उनके पास जाता था मुस्कुराते हुए वापस आता था। फिर भी उन्हें वृद्धाश्रम भेज दिया। दादा जी से मैं जब भी बात करती थी टाइम का पता ही नहीं चलता था, मैं हमेशा सोचती थी कि मैं उनको भी अपने यहाँ बुला लूं लेकिन आज जब वह हमारे पास आ रहे थे तब मुझे खुशी नहीं हुई जब उनकी आंखों में आंसू देखा तब मैंने तय कर लिया कि मैं कभी भी आपकी तरह नहीं बनूंंगी, मैं कभी भी वृद्धाश्रम नहीं खोलूंगी बल्कि मैं किसी भी मां-बाप को उसके दो बेटे से अलग नहीं होने दुंगी।मैं ऐसा काम करूंगी कि लोग अपने मां बाप को वृद्धाश्रम भेजने के बारे में सोचें भी ना, मैं लोगों की नजरिया बदलने का काम करूंगी! लोगों को जागरूक करूंगी।लोगों के मन में अपने मां-बाप के लिए प्रेम का पौधा लगाऊंगी और खुद ही सींचुंगी कि हमेशा हरा भरा रहे और जिससे मैं अपने समाज को वृद्धाश्रम मुक्त बना सकूं। यह सब सुन कर करुणा की आंखों में खुशियों के आंसू छलक आए। करुणा ने कहा हां बिल्कुल! तुम मेरी तरह मत बनना तुम मुझसे एक कदम हमेशा आगे ही रहना।करुुणा को अपनी बेटी की नई सोच पर नाज हो रहा था। 

शनिवार, जनवरी 22, 2022

अनुराग

 
यूं तो मुझसे छोटा है उम्र में, 
पर लगता है हम उम्र-सा।
मासूम है छोटे बच्चे-सा।
मासूमियत झलकती है, 
उसके बातों में।
गलती से भी न जाए गलत राह पे
बस यही चाह है इस दिल में।
कभी उदास कर जाता है, 
तो कभी मेरी उदासियों को 
मुस्कान में बदल जाता है।
लोगों को प्रभावित करने का तो
उसे तरीका नहीं आता है।
पर अपनी मासूमियत और साफ़ दिल से
वो सबका दिल जीत ले जाता है।
कहने को तो मुझसे छोटा है
पर हमेशा बड़ेभाई वाला फ़र्ज़ निभाता है।
जब जब बिना हेलमेट वो सफ़र करता है, 
तब मुझे सबसे अधिक गुस्सा आता है।
यूं तो रिश्ता जन्म से था,
पर कभी न सोचा था 
कि इतना हो जाएगा खास।
यूं तो सबके दिलों पर करता है राज।
पर मेरे लिए वो एक अकेला शख़्स है
जिसे देखने मात्र से  
मेरे लबों पर आ जाती है मुस्कान।
जिसके खातिर मैं अपने आत्मसम्मान को भी 
कुछ पल के लिए कर सकती हूँ दरकिनार।
खुशी मिलती है मुझे बहुत, 
खराब करके उसके 
सुलझे हुए काले घने बाल।
पर अब शायद ये अवसर मिलेगा नहीं 
इस बात का भी है मुझे एहसास।
कुछ मामलों में है 
अभी छोटे बच्चे-सा नादान 
तो कुछ में है चालीस के पार।
लड़ाई करने के लिए 
हर पल रहता है तैयार
सो प्यार से मैं कहती हूँ 
उसे लड़ाकू विमान।
आज भी याद है मुझे 
वो छोटा-सा अनुराग
जो बेवजह टीप मार कर मेरे सिर पर, 
करता था मुझे परेशान। 
यूंही नहीं नाम है उसका अनुराग।
इक छोटी सी चाह है इस दिल की 
कि बना रहे ये रिश्ता यूंही 
और होती रहें मीठी तकरार 
जितना सुरक्षित मैं महसूस करती हूँ 
उतना ही सुरक्षित हर लड़की महसूस करे उसके साथ।
     - मेरे छोटे भाई पर आधारित जो मुझसे दूर रहता है क्योंकि फुफेरा है पर दिल के बहुत ही करीब रहता है।

बुधवार, जनवरी 19, 2022

एक कदम जिम्मेदार नागरिक बनने की ओर


हो सकता है यह लेख बहुतों को रास न आये और उन्हें लगे कि हर काम में मुझे नकारात्मकता ही नज़र आती है।खास उन लोगों को जो ऐसा करते हैं।जरूरी तो नहीं कि मैं पूर्णतः सही ही हूँ! तो इस लिए उन लोगों से निवेदन है कि कृपया तारीफों के पुल बांधने के बजाय अपनी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया दे और अपनी राय प्रकट करें जो वो सच में सोचते हैं और तभी ऐसा करते हैं ।चाहे वो आलोचनात्मक हो या और। 
चलो अब लेख पढ़ते हैं- 
मैं अक्सर देखती हूं कि लोग कुछ ही दूरी तय करने के लिए चार पहिया वाहन का सहारा लेते हैं वह भी अकेले जाने के लिए! जी करता है कि इन लोगों को रास्ते में ही रोक कर बोलूं कि मानती हूं आपके पास बहुत पैसा है इसलिए आपको पेट्रोल-डीजल को यूंही जलाते हुए एक बार भी नहीं सोचना पड़ता! जहां एक लीटर की जरूरत होती है वहां दो लीटर का उपयोग करते हुए एक बार भी नहीं हिचकिचाते ! इससे दूसरे लोगों को कितनी असुविधा होती है और परेशानियों का सामना करना पड़ता है कभी सोचा है? और तो और इससे देश का कितना नुकसान होता है कभी सोचा है? बेशक आपकी गाड़ी आपके पैसे पर चलती है ,पर इससे देश की आर्थिक स्थिति पर बहुत ही प्रभाव पड़ता है! जब आप कुछ ही किलोमीटर पर अकेले ही जाने के लिए बाइक की बजाय फोर व्हीलर का सहारा लेते हैं तो इससे ट्राफिक बढ़ती है!जहां दो से तीन बाइक निकल सकती है यानि तीन से छ: व्यक्ति आराम से निकल सकते हैं  वहां से मात्र एक गाड़ी निकलती है यानि कि मात्र एक व्यक्ति! इस कारण से ट्रॉफी बढ़ता है और इससे सभी के वक्त की बर्बादी होती है! और आपके वक्त की भी इसलिए दूसरों के लिए ना सही तो अपने लिए ही ऐसा करने से बचें! दूसरा नुकसान देश की आर्थिक स्थिति का होता है एक लीटर पेट्रोल-डीजल के बजाय दो लीटर(दुगने इंधन ) का इस्तेमाल होने पर पेट्रोल और डीजल की मांग बढ़ती है और जब इंधन की मांग बढ़ती है तो विदेशों से अधिक तेल का आयात करना पड़ता है ! इससे हमारे देश की मुद्रा यानी कि पैसे का इस्तेमाल विदेशी चीजों पर अधिक होता है|जिससे हमारी मुद्रा का बहुत नुकसान होता है हमें अपने पास विदेशी धन इकट्ठा करने के बजाय विदेशों में अपना धन खर्च करना पड़ता है ! जिसका सीधा असर हमारी अर्थव्यवस्था पर पड़ता है जिससे महंगाई बढ़ती है! और हमारी मुद्रा की कीमत घटती है! इसलिए अगर देश की थोड़ी भी चिंता है तो कृपया अपनी हरकतों से बाज आइए! और तीसरा नुकसान तो आपको पता ही होगा लेकिन फिर भी याद दिला देती हूं! जब एक लीटर तेल के बजाय दो लीटर तेल का इस्तेमाल करते हैं! तो दुगना ईंधन इस्तेमाल करने से कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन भी दुगना होता है ! जोकि अत्यंत घातक है भविष्य के लिए! अगर ऐसे ही आप लोग कुछ ही दूरी पर जाने के लिए ऐसे वाहन का सहारा लेंगे जिसमें दुगने इंधन का उपयोग होता हो तो 2070 तक नेट जीरो (कार्बन मुक्त) होने का तो पता नहीं पर 2030 तक विश्व के तापमान में 3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने की संभावना जो जताई गई है उससे आगे निकल जाओगे! इसमें कोई शक नहीं! और तो और आप अपने बच्चे के जीवन को खतरे में डाल रहे हैं इसलिए बच्चे को पढ़ाने लिखाने की क्या जरूरत? सुनहरे भविष्य के सपने दिखाने की क्या जरूरत?क्यों उनकी आंखों में सुनहरे सपने डाल रहे हो? जब भविष्य ही नहीं रहेगा तो सुनहरा क्या खाक बनेग! जब सांस लेने के लिए शुद्ध हवा ना होगी पीने के लिए शुद्ध पानी नहीं होगा तो भविष्य सुनहरा कैसे होगा?क्या बिना शुद्ध हवा और पानी के भविष्य सुनहरा हो सकता है? अब आप कहोगे कि पानी को मशीन से शुद्ध कर लेंगे और हवा को भी ! बिल्कुल सही कहा आपने पर यह हम मनुष्य कर सकते हैं जानवर और पेड़ पौधे नहीं |क्या बिना पेड़ -पौधे और जानवर के मानव का जीवन संभव है?नहीं ना ये तो आप भी जानते होंगे! मानव जीवन के लिए जैव विविधता अनिवार्य है! इसलिए महाशय कृपया अपने पैसे की अकड़ कहीं और पर दिखाया कीजिए जिससे सब को फायदा हो अगर किसी को फायदा ना हो तो कमसेकम नुकसान तो ना ही हो! पर अफसोस मैं किसी की कार रोककर इतना सारा भाषण तो नहीं दे सकती और ना ही कोई इतनी देर तक मुझे चुपचाप सुनता रहेगा! या तो इतनी देर में मुझे अस्पताल पहुंचा देगा या फिर मुझे धक्का मार कर नौ दो ग्यारह हो जाएगा!😄 पर कोई बात नहीं! यहां तो दे सकती हूं ,और जरूरी थोड़ी है कि ऐसे लोग सिर्फ सड़क पर ही मिलते हैं| ऐसे लोग हमारे ब्लॉग जगत पर भी होंगे मुझे पूरा विश्वास है| इसलिए मैंने यहीं पर अपनी बात रख दिया| अगर समझना चाहते होंगे तो समझ जाएंगे नहीं तो क्या ही कर सकते हैं! कुत्ते की दुम सीधी ठोड़ी की जा सकती! वैसे ही इन लोगों को भी .....! 
जैसा कि पता है कि पिछले महीने हुई COP-26 की मीटिंग में प्रधानमंत्री जी ने 2070 तक नेटजीरो यानी कि कार्बन मुक्त होने का (जितना कार्बन उत्सर्जित करेंगे उतना ही अवशोषित करेंगे)वादा किया है| इस वादे को पूरा करने के लिए आमजन से लेकर खास व्यक्ति हर किसी को पूरा सहयोग देना होगा| तभी यह सम्भव हो पायेगा! इसलिए यहां उपस्थित सभी आदरणीय और प्रिय जन से हाथ जोड़कर कर सच्चे दिल से निवेदन है  कि कृपया ऐसा कुछ भी काम मत करिये अगर करते थे तो आगे से मत किया कीजिएगा! जिससे आमजन से लेकर देश और पर्यावरण को नुकसान हो! ये हमारे देश के लिए सच्ची देश भक्ति से कम नहीं होगी !🙏🙏🙏

गुरुवार, जनवरी 13, 2022

सूर्य सा जलकर सूर्य सा चमकना है

ये हवाएं जो इतरा रहीं है 
ये सोच कर कि इक झोंके से
मेरे हौसले उड़ा ले जाएगीं|
पर इन्हें कहाँ मालूम कि
ये मुझे तूफानों से लड़ने के 
काबिल बना जाएगीं! 
ये चिंगारियाँ जो 
मुझे जला कर लाल लाल 
आंखें दिखा रहीं हैं, 
इन्हें बता दे कोई कि
ये मुझे सुलगते अंगारों पर 
चलने के काबिल बना रहीं हैं|
ये काँटे मुझे थोड़ा सा जख्म दे कर 
बहुत ही गर्वान्वित हो रहें हैं, 
बेचारे को कहाँ मालूम कि
मैं खंजर के वार को सह सकूँ 
उतना मजबूत बना रहें हैं|
ये लोग जो मेरा साथ छोड़ कर
खुश हो रहें हैं, 
कोई जा के बताए 
इन लोगों को कि, 
ये मुझे अकेला नहीं बल्कि 
मुझे, खुद से मिलने का अवसर दे रहें हैं|
ये लोग जो मेरी असफलताओं पर
मेरा अपमान व उपहास कर रहें हैं
इन्हें नहीं पता कि, 
यही लोग भविष्य में मेरे सम्मान का 
कारण बनने जा रहें हैं|
इनके व्यंग्यों के चुभते बाण , 
            मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहें हैं|

                               -तस्वीर गूगल साभार से 

सोमवार, जनवरी 10, 2022

हिंदी है हमारी पहचान

हिंद से ये हिंदी बनी  है 
और हिंद से हुआ
हिंदुस्तान का निर्माण! 
हिंदी से है हमारी पहचान ! 
हिंदी है साहित्य का श्रृंगार! 
हिंदी में बसती है साहित्यकारों की जान
हिंदी साहित्य में लगाती चार चांद! 
हिंदी के महाकवियों से मिली
हमें इक नई पहचान! 
हिंदी ने गढ़ा खूबसूरत महाकाव्य ! 
हिंदी से होता अपनत्व का एहसास!
आत्मा है हिंदी जिस्म है हिंदुस्तान! 
हिंदी के बिना अधूरा हिंदुस्तान! 
हिंदी से हुई क्रांति की शुरुआत! 
हिंदी है हमारे संस्कृति की पहचान! 
हिंदी है हिंदुस्तान का स्वाभिमान! 
भले ही अन्य भाषाओं का आज
हो रहा इस्तेमाल! 
किन्तु हिंदी आज भी करती है
हर हिंदुस्तानी के दिल पर राज! 
हिंदी से ही बनेगा विश्व गुरु हिंदुस्तान! 
हिंदी मात्र भाषा नहीं, 
ये है हमारी संस्कृति और संस्कार ! 
हिंदी है हिंदुस्तान की 
आन बान और शान! 
हिंदी पर करता है,
                             हर हिन्दुस्तानी नाज!      

गुरुवार, जनवरी 06, 2022

दहेज़ एक अभिशाप

आज सुबह लगभग 5:00 बजे  मैं जब सो रही थी तभी मुझे एक सपना आया सपने में मैं अपने चचेरे भाई को यह कहते हुए ताने मार रही थी कि कितने की बोली लगी  आपकी भैया जी?लड़की वालों की नजर में आप की कितनी कीमत है कितने में आपको खरीदना पसंद किया? और ये बात मैंने लड़की वालों के सामने बोली जिसके चलते रिश्ता ही नहीं जुड़ सका|और मुझे बहुत ही डांट पड़ी|मैंने कहा बिकना तो सभी लड़कों को हैं एकदिन, बोलीं तो सबकी लगेगी|तो मेरी बहन बोलती है कि तुम्हारे इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है ये मत सोचों कि अभी कोई सामने से आके कहेगा कि मैं मेरी बोली नहीं लगेगी|सभी लोग पता नहीं क्या क्या मुझे बोले जा रहे थे| खैर ये तो एक सपना मात्र था पर हकीकत में लोग मेरी इन्हीं आदतों के कारण मुझे अक्खड़,जिद्दी और पता नहीं क्या क्या कहते हैं| ये लेख मैनें लिख तो बहुत पहले रखा था पर सपने की वजह से ही मैने ये लेख आज ही सबके बीच साझा करना चाहा वैसे अभी नहीं करने वाली थी|
दहेज लेना व देना कानूनी रूप से अपराध है| ये बात हर एक को पता है, लेकिन हकीकत देखकर लगता है कि हमारे यहां कानून तोड़ने के लिए ही बनाए जाते हैं|जिस तरह धड़ल्ले से सारे कानून की धज्जियां उड़ाई जाती हैं,उसे देखकर तो यही लगता है|कानून के रखवाले जिन्हें कानून (संविधान)के नियमों की रक्षा के लिए तैनात किया जाता है,पर कानून के रखवाले खुद बहुत से कानून तोड़ने के बाद कानून के रखवाले बनते हैं|साफ शब्दों में कहे तो कानून के रक्षक बनने के लिए पहले कानून के भछक बनते है|तो इनसे न्याय की क्या ही उम्मीद की जाए|दहेज जैसी कुप्रथाओं को कानून के भय पर दूर करना तो बहुत ही दूर की बात|जो खुद अपनी नौकरी का हवाला देते हुए दहेज मे बड़ी रकम की माग करते हैं| तो ऐसे में क्या ही आश लगाया जाए! दहेज प्रथा एक ऐसी कुप्रथा जिसके चलते अनेकों जिंदगियां तबाह हो गई हैं पर यह प्रथा ज्यों-कि-त्यों आज भी कायम है और वर्तमान में तो और भी विकराल रूप धारण कर चुकी है शहर की स्थिति तो मुझे ज्यादा अच्छे से नहीं पता पर अपने यहां की बात करूँ तो मुझे एक भी ऐसा व्यक्ति (पुरुषों में) नजर नहीं आता जो दहेज के खिलाफ हो, इस मामले में गरीब से लेकर अमीर सभी एक ही घाट के पानी है | पहले दहेज संपत्ति आदि को ध्यान में रखते हुए लिया जाता था पर आज डिग्रीयों और नौकरियों को ध्यान में रखते हुए लिया जाता है| सबसे अधिक तो विचलित करने वाली बात है की पढ़ी-लिखी युवा पीढ़ी भी दहेज लेना गलत नहीं समझती बल्कि अपनी शान समझती है, वैसे चाहे कितनी भी आधुनिक सोच रखें पर दहेज के मामले में रूढ़िवादी विचारधारा ही रखती है| और अपने पूर्वजों के पद चिन्हों पर चलना ही पसंद करती है अपने दहेज की रकम इतनी शान से बताते हैं ये लोग जैसे आईएएस की रैंक| ऐसा लगता है आज इनका पैदा होना सफल हो गया|हमारे यहां लड़कों के लिए एक कहवत है कि "घी का लड्डू टेड़ा ही सही" मुझे लगता है घी का तात्पर्य यहां दहेज से मिलने वाली रकम से है क्योंकि लड़कियां हर क्षेत्र में लड़कों को मात दे सकती हैं पर दहेज लेने के क्षेत्र में नहीं| यही एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें लड़कियां लड़कों से पीछे रहतीं हैं|अपने अभिभावक को सब कुछ दिला सकती हैं पर दहेज़ नहीं| मेरी नज़र में वे सभी पढ़े लिखे लोग एक अनपढ़ गंवार से बदतर है जो पढ़े लिखे होने के बाद भी ऐसी चीजों को बढ़ावा देते हैं|धिक्कार है ऐसी पढ़ाई पर जो विचारों को विस्तार न दे सके, शिक्षा का मुख्य उद्देश्य है व्यक्ति को जागरुक करना और मानवता को प्रभावित करने करने वाली हर चीज की विरोध करना! पर विडम्बनाा हैै कि पढ़े लिखे लोग जो अपने पढ़े लिखे होने का गलत फायदा उठाते हैं! डिग्रियाँ दिखाकर दहेज़ मागते हैं| धिक्कार है ऐसे लोगों पर! ये लोग कभी ये क्यों नहीं सोचते कि दहेज़ जैसी कुप्रथा के कारण कितनी लड़कियाँ खुद को बोझ महसूस करती हैं अपने अभिभावक के सर पर! न करें तो करया जाता है|कितनी लड़कियां हैं जो बड़ती उम्र के साथ आईने से दूरी बना लेती हैं क्योंकि आईने में उन्होंने अपने गुलाबी होते गाल नहीं बल्कि पिता का बैचेनियों से भरा चहरा बढ़ती चिताओं से फीका पड़ता चेहरा नज़र आता है| जिसकी वजह वो खुद को समझतीं हैं, पर दुर्भाग्यपूर्ण है कि ये  लड़कियांं भी मां बनने के बाद वरिष्ठ व्यक्ति होने पर अपने लड़के की शादी में दहेज की मांग करती हैं| उस लड़की के और उसकेेे परिवार वालों के बारे में एक बार भी नहीं सोचती  और ना ही अतीत याद आता है जिससे इनका दिल पिघल सके| और वही बाप जिसका अपनी बेटी के समय में दहेज देने के वक़्त जो चेेहरा उतरा-उतरा 40-45 की उम्र में 60-65 का लग रहा था वही दहेज़ मागते वक़्त 35-40 के युवा जैसा चमक चमकने लगता है|और तो और दहेज़ की मांग करते वक्त ये लोग अपनी बेटी की शादी में दिये गये दहेज़ को बड़े शान से बताते हुए जता देते हैं कि इससे कम में तो बात नहीं बनेगी|पर दहेज़ की रकम देते वक़्त जो तकलीफ़ हुई वो इन्हें याद आती जिससे दहेज़ मागते वक़्त थोड़ी शर्म आ सके|आये भी कैसे दहेज़ की भूख इन पर हावी जो होती है जिसके आगे इन्हें किसी की तकलीफ़ नज़र ही नहीं आती| जिस तरह भूखे शेर को पर शेर की मजबूरी होती है लेकिन इन लोगों की क्या मजबूरी होती है? क्यों इनकी संवेदनाएं मर जाती है? 

रविवार, जनवरी 02, 2022

शिक्षा का सही अर्थ तो समझना होगा हमें

दिल्ली अमर उजाला द्वारा प्रकाशित 02/01/2022
शिक्षा का सही अर्थ समझना उतना ही महत्वपूर्ण है , जितना की शिक्षित होना । लेकिन यह तभी संभव है , जब शिक्षा को सिर्फ नौकरी पाने के मकसद से ग्रहण न किया जाए , बल्कि शिक्षा को मैत्री , करुणा , प्रसन्नता और उपेक्षा के भाव को जागृत करने के लिए अर्जित किया जाए । यह भाव व्यक्ति में नैतिक शिक्षा से ही उत्पन्न होता है । नैतिक शिक्षा से ही व्यक्ति को शिक्षा का सही अर्थ पता चलता है । जब व्यक्ति को शिक्षा का सही अर्थ पता चलता है , तभी व्यक्ति में निष्काम की भावना उत्पन्न होती है , तभी व्यक्ति में पर सेवा की भावना जागृत होती है और जब यह भावना जागृत होती है तो समाज के सारे अनाचार और दुराचार स्वयं समाप्त हो जाते हैं । आंतरिक कलह से निजात मिल जाती है , जिससे एक सुखी और संपन्न समाज के निर्माण के साथ प्रगतिशील राष्ट्र का निर्माण होता है । बच्चों से प्यार , नारी जाति का सम्मान और हर किसी के साथ सभ्य व्यवहार करना नैतिक शिक्षा ही सिखाती है । शिक्षा का सही अर्थ समझाने के लिए नैतिक शिक्षा को प्रत्येक कक्षा में अनिवार्य करने की आवश्यकता है , ताकि किशोरावस्था में गलत राह पर जाने वाली युवा पीढ़ी को बचाया जा सके और उनका सही मार्गदर्शन हो सके । जिस तरह से आज के अधिकतर युवा शिक्षा का अर्थ सिर्फ और सिर्फ नौकरी ही समझ बैठे हैं और उन्होंने मान लिया है कि शिक्षा सफल तभी होगी , जब उन्हें नौकरी मिलेगी । यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है । जिस तरह आज के युवा अपनी सफलता की हवस को मिटाने की खातिर और अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए समाज के हितों को दरकिनार कर रहे हैं , यह बहुत ही चिंतनीय है । इस बात को ध्यान में रखते हुए उन्हें यह समझाना आवश्यक है कि शिक्षा में सफलता का अर्थ है व्यक्ति के अंदर करुणा , मैत्री और संवेदना का भाव उत्पन्न होना । अपने हितों के साथ समाज के कल्याण का भी ध्यान रखना , क्योंकि बिना समाज कल्याण के विकासशील देश की कल्पना तक नहीं की जा सकती है ।

नारी सशक्तिकरण के लिए पितृसत्तात्मक समाज का दोहरापन

एक तरफ तो पुरुष समाज महिलाओं के अधिकारों और उनके सम्मान की बात करता है और वहीं दूसरी तरफ उनके रास्ते में खुद ही एक जगह काम करता है। जब समाज ...