गुरुवार, जनवरी 06, 2022

दहेज़ एक अभिशाप

आज सुबह लगभग 5:00 बजे  मैं जब सो रही थी तभी मुझे एक सपना आया सपने में मैं अपने चचेरे भाई को यह कहते हुए ताने मार रही थी कि कितने की बोली लगी  आपकी भैया जी?लड़की वालों की नजर में आप की कितनी कीमत है कितने में आपको खरीदना पसंद किया? और ये बात मैंने लड़की वालों के सामने बोली जिसके चलते रिश्ता ही नहीं जुड़ सका|और मुझे बहुत ही डांट पड़ी|मैंने कहा बिकना तो सभी लड़कों को हैं एकदिन, बोलीं तो सबकी लगेगी|तो मेरी बहन बोलती है कि तुम्हारे इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है ये मत सोचों कि अभी कोई सामने से आके कहेगा कि मैं मेरी बोली नहीं लगेगी|सभी लोग पता नहीं क्या क्या मुझे बोले जा रहे थे| खैर ये तो एक सपना मात्र था पर हकीकत में लोग मेरी इन्हीं आदतों के कारण मुझे अक्खड़,जिद्दी और पता नहीं क्या क्या कहते हैं| ये लेख मैनें लिख तो बहुत पहले रखा था पर सपने की वजह से ही मैने ये लेख आज ही सबके बीच साझा करना चाहा वैसे अभी नहीं करने वाली थी|
दहेज लेना व देना कानूनी रूप से अपराध है| ये बात हर एक को पता है, लेकिन हकीकत देखकर लगता है कि हमारे यहां कानून तोड़ने के लिए ही बनाए जाते हैं|जिस तरह धड़ल्ले से सारे कानून की धज्जियां उड़ाई जाती हैं,उसे देखकर तो यही लगता है|कानून के रखवाले जिन्हें कानून (संविधान)के नियमों की रक्षा के लिए तैनात किया जाता है,पर कानून के रखवाले खुद बहुत से कानून तोड़ने के बाद कानून के रखवाले बनते हैं|साफ शब्दों में कहे तो कानून के रक्षक बनने के लिए पहले कानून के भछक बनते है|तो इनसे न्याय की क्या ही उम्मीद की जाए|दहेज जैसी कुप्रथाओं को कानून के भय पर दूर करना तो बहुत ही दूर की बात|जो खुद अपनी नौकरी का हवाला देते हुए दहेज मे बड़ी रकम की माग करते हैं| तो ऐसे में क्या ही आश लगाया जाए! दहेज प्रथा एक ऐसी कुप्रथा जिसके चलते अनेकों जिंदगियां तबाह हो गई हैं पर यह प्रथा ज्यों-कि-त्यों आज भी कायम है और वर्तमान में तो और भी विकराल रूप धारण कर चुकी है शहर की स्थिति तो मुझे ज्यादा अच्छे से नहीं पता पर अपने यहां की बात करूँ तो मुझे एक भी ऐसा व्यक्ति (पुरुषों में) नजर नहीं आता जो दहेज के खिलाफ हो, इस मामले में गरीब से लेकर अमीर सभी एक ही घाट के पानी है | पहले दहेज संपत्ति आदि को ध्यान में रखते हुए लिया जाता था पर आज डिग्रीयों और नौकरियों को ध्यान में रखते हुए लिया जाता है| सबसे अधिक तो विचलित करने वाली बात है की पढ़ी-लिखी युवा पीढ़ी भी दहेज लेना गलत नहीं समझती बल्कि अपनी शान समझती है, वैसे चाहे कितनी भी आधुनिक सोच रखें पर दहेज के मामले में रूढ़िवादी विचारधारा ही रखती है| और अपने पूर्वजों के पद चिन्हों पर चलना ही पसंद करती है अपने दहेज की रकम इतनी शान से बताते हैं ये लोग जैसे आईएएस की रैंक| ऐसा लगता है आज इनका पैदा होना सफल हो गया|हमारे यहां लड़कों के लिए एक कहवत है कि "घी का लड्डू टेड़ा ही सही" मुझे लगता है घी का तात्पर्य यहां दहेज से मिलने वाली रकम से है क्योंकि लड़कियां हर क्षेत्र में लड़कों को मात दे सकती हैं पर दहेज लेने के क्षेत्र में नहीं| यही एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें लड़कियां लड़कों से पीछे रहतीं हैं|अपने अभिभावक को सब कुछ दिला सकती हैं पर दहेज़ नहीं| मेरी नज़र में वे सभी पढ़े लिखे लोग एक अनपढ़ गंवार से बदतर है जो पढ़े लिखे होने के बाद भी ऐसी चीजों को बढ़ावा देते हैं|धिक्कार है ऐसी पढ़ाई पर जो विचारों को विस्तार न दे सके, शिक्षा का मुख्य उद्देश्य है व्यक्ति को जागरुक करना और मानवता को प्रभावित करने करने वाली हर चीज की विरोध करना! पर विडम्बनाा हैै कि पढ़े लिखे लोग जो अपने पढ़े लिखे होने का गलत फायदा उठाते हैं! डिग्रियाँ दिखाकर दहेज़ मागते हैं| धिक्कार है ऐसे लोगों पर! ये लोग कभी ये क्यों नहीं सोचते कि दहेज़ जैसी कुप्रथा के कारण कितनी लड़कियाँ खुद को बोझ महसूस करती हैं अपने अभिभावक के सर पर! न करें तो करया जाता है|कितनी लड़कियां हैं जो बड़ती उम्र के साथ आईने से दूरी बना लेती हैं क्योंकि आईने में उन्होंने अपने गुलाबी होते गाल नहीं बल्कि पिता का बैचेनियों से भरा चहरा बढ़ती चिताओं से फीका पड़ता चेहरा नज़र आता है| जिसकी वजह वो खुद को समझतीं हैं, पर दुर्भाग्यपूर्ण है कि ये  लड़कियांं भी मां बनने के बाद वरिष्ठ व्यक्ति होने पर अपने लड़के की शादी में दहेज की मांग करती हैं| उस लड़की के और उसकेेे परिवार वालों के बारे में एक बार भी नहीं सोचती  और ना ही अतीत याद आता है जिससे इनका दिल पिघल सके| और वही बाप जिसका अपनी बेटी के समय में दहेज देने के वक़्त जो चेेहरा उतरा-उतरा 40-45 की उम्र में 60-65 का लग रहा था वही दहेज़ मागते वक़्त 35-40 के युवा जैसा चमक चमकने लगता है|और तो और दहेज़ की मांग करते वक्त ये लोग अपनी बेटी की शादी में दिये गये दहेज़ को बड़े शान से बताते हुए जता देते हैं कि इससे कम में तो बात नहीं बनेगी|पर दहेज़ की रकम देते वक़्त जो तकलीफ़ हुई वो इन्हें याद आती जिससे दहेज़ मागते वक़्त थोड़ी शर्म आ सके|आये भी कैसे दहेज़ की भूख इन पर हावी जो होती है जिसके आगे इन्हें किसी की तकलीफ़ नज़र ही नहीं आती| जिस तरह भूखे शेर को पर शेर की मजबूरी होती है लेकिन इन लोगों की क्या मजबूरी होती है? क्यों इनकी संवेदनाएं मर जाती है? 

27 टिप्‍पणियां:

  1. दहेज के लिए कितने ही कानून बन जाएँ ये जब तक ऐसा ही विकराल रूप धारण किये रहेगा जब तक लोग स्वयं इसका विरोध नहीं करेंगे ।
    मैं इस मामले में खुशकिस्मत हूँ कि मैंने अपने परिवार में दहेज़ रूपी दानव नहीं देखा है । मेरी शादी बिना दहेज़ के हुई थी और बेटे की शादी में हमने कुछ भी लेने से इनकार कर दिया था । इसलिए इस तरह का कोई अनुभव नहीं है । हाँ , जब कभी सुनती हूँ या पढ़ती हूँ तो बहुत अफसोस होता है लोगों की सोच और उनके लालच पर ।
    सार्थक लेख ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आप बहुत खुश किस्मत है कि आपको ऐसा परिवार मिला, पर हमारे यहां तो दहेज के एक नहीं अनेकों रूप है जैसे कि शादी के बाद दमाद ससुराल में खाना तब तक नहीं खाता है जब तक उसे नेग में उसकी मुंह मांगी चीजें (सोने की चैन,बाईक,कार आदि) ना दी जाए! इसे हमारे यहाँ गंवहीं के नाम से जाना जाता है!और भी ऐसी बहुत सी रसमें हैं जिसके जरिए धन की मांग करते हैं लड़के वाले! यहाँ बिना दहेज़ वाला परिवार ढूढ़ना माउंट एवरेस्ट फतहै करने जैसा है !

      हटाएं
  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(०७-०१ -२०२२ ) को
    'कह तो दे कि वो सुन रहा है'(चर्चा अंक-४३०२)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मेरे लेख को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपका तहे दिल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय मैम🙏

      हटाएं
  3. दहेज पर विचारणीय आलेख, मनीषा।
    इस विषय पर मेरा लेख https://www.jyotidehliwal.com/2015/01/dahej-ek-abhishap-ya-ek-hathiyar.html जरूर पढ़ना।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद प्रिय दीदी🙏
      जी बिल्कुल पढ़ूंगी

      हटाएं
  4. सही कहा इन दहेज लोभियों को और क्या ही कहें वाकई ये कभी नहीं सुधरेंगे कहीं इस तरह लड़के की काबिलियत की बोली लगती है तो कहीं कुछ नहीं चाहिए की आड़ में भी दहेज का इंतजार होता है...
    बहुत सारगर्भित एवं सार्थक लेख।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी आप बिल्कुल सही कह रही है आपकी बात से मैं पूर्णता सहमत हूं!
      आपका बहुत-बहुत आभार 🙏

      हटाएं
  5. हमारी धारणा है कि कानून बना कर हम सोच बदल सकते हैं, पर ऐसा होता नहीं इसलिए यह कुप्रथा अब तक खत्म नहीं हुई.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी हां जब तक सोच नहीं बदलेगी कानून से कुछ नहीं बदलने वाला हर किसी को अपनी सोच बदलनी ही होगी तभी बदलाव आएगा!
      धन्यवाद आदरणीय🙏

      हटाएं
  6. बहुत ही सुन्दर सार्थक और सारगर्भित लेखन मनीषा हार्दिक बधाई

    जवाब देंहटाएं
  7. मनीषा जी, बहुत अच्‍छे से बखिया उधेड़ी है आपने दहेज लेने और देने वालों की.... बहुत खूब।

    जवाब देंहटाएं
  8. आश्‍चर्य की बात तो ये है कि अब लड़कियां भी मांगने में कम नहीं हैं ... #विभीषिका

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी आप बिल्कुल सही कह रहीं हैं! यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण और खतरनाक है! ऐसी लड़कियों को शर्म नहीं आती जब अपने हक(शिक्षा,हर क्षेत्र में अपना करियर बनाने की स्वतंत्रता,अवसर लड़कों के बराबर आदि)की लड़ाई लड़नी चाहिए तब तो मुंह में दही जम जाता है है लेकिन दहेज़ लेने के वक़्त अपना हक की बात करने लगतीं हैं!

      हटाएं
  9. बेहद खूबसूरत आलेख

    जवाब देंहटाएं
  10. समाज का बहुत ही सुन्दर चित्रण

    जवाब देंहटाएं
  11. हमारे समाज में बहुत ही ज्यादा प्रचलित कुरीति पर तुम्हारा आलेख बहुत ही सार्थक और चिंतनपूर्ण है,मैं तो तुम्हारी हर पंक्ति से ऐसे कई परिवारों से जोड़ पा रही हूं, जिन्हें दहेज लेना, और उसका वर्णन तथा मिले हुए दहेज का गुणगान करते सुना है ।
    चिंतनपूर्ण आलेख के लिए हार्दिक शुभकामनाएं प्रिय मनीषा ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आप तो हमारे यहां से हैं आप तो बहुत अच्छे से रूबरू होंगी इन कुरीतियों से!
      प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद🙏

      हटाएं
  12. समाज को आईना दिखाती प्रभावशाली रचना

    जवाब देंहटाएं
  13. हमारे समाज में बहुत ही ज्यादा प्रचलित कुरीति पर अच्छे अच्छे पढ़े लिखे नौजवाँ भी शामिल है तभी हम पीछे है अपने सारगर्भित एवं सार्थक लेख है इस पर

    जवाब देंहटाएं

नारी सशक्तिकरण के लिए पितृसत्तात्मक समाज का दोहरापन

एक तरफ तो पुरुष समाज महिलाओं के अधिकारों और उनके सम्मान की बात करता है और वहीं दूसरी तरफ उनके रास्ते में खुद ही एक जगह काम करता है। जब समाज ...