सोमवार, फ़रवरी 28, 2022

रो रही मानवता हँस रहा स्वार्थ

नीला आसमां हो गया धूमिल-सा
बेनूर और उदास, 
स्वच्छ चाँदनी का नहीं दूर तक 
कोई नामों निशान।
रात में तारों की मौजूदगी के 
बचें नहीं कोई निशाना।
आग उगल रहा अम्बर,धरती रो रही आज।
सूर्योदय से पूर्व नहीं रहा
उषा की चुनरी का चम्पई आलोक।
फीकी पड़ रही रोशनी सूर्य की
धमाकों की आग के आगे आज।
नज़र नहीं आ रहा उड़ता हुआ 
आसमां में पक्षी कोई, 
नहीं आ रही पक्षियों की 
चहकने की आवाज़।
सिर्फ़ नज़र आ रहा है काल बनकर
उड़ता हुआ लड़ाकू विमान।
पहाड़ों की नोकों पर 
चमकीली बर्फ़ की परतें न रहीं
बर्फ़ की आहों का घुट-घुटा धुआं
भी नज़र नहीं आ रहा आज।
सिर्फ़ नज़र आ रहा है, 
काले धुएं का गुब्बार।
आसमां की छाती में सुराख़ कर, 
मिसाइलें ले रही मासूमों की जान।
धमाकों की गूँज में दब रही, 
हमेशा के लिए लोगों की आवाज़ ।
चीख़ रही इंसानियत,
मानवता हो रही तार तार।
यह सब देख ठहाके मार कर 
हँस रहा है स्वार्थ।


37 टिप्‍पणियां:

  1. समसामयिक कविता।आप यशस्वी हों

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  2. उत्तर
    1. आदरणीय Mamisha ji ,
      वर्ष कि शुरुआत कुछ अच्छी नहीं रहीं So Blog एवं आपके post से हटी रहीं।
      BY the way.
      कहतें हैं कि, चल आजमाईशों को आजमातें है ,
      हम इन्सान है डुबकर ही तैरने का हुनर पाते हैं।
      युं ही नहीं! किसी के मौत कि चीख से, किसी के ( कफन वाला , कर्ब खोदने वाला ) घर ईद और दीवाली मनती हैं।
      मसलन व्यर्थ चिन्ता न करें जो जैसा चल रहा है चलने दें ।

      रचना वास्तविक एवं स्वभाविक है - सुन्दर अति सुन्दर |

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    2. मैं बहुत बार आपके ब्लॉग पर गयी पर कोई नयी पोस्ट नहीं दिखी मैंने सोचा शायद कुछ जरूर काम में व्यस्त होगें आप!
      सर जिंदगी का दूसरा नाम ही संघर्ष है और जो मुसिबतों के आगे घुटने न टेके वही निखरता है! होली के रंगों की तरह आपकी जिंदगी में खुशियों के रंग भर जाए और आपकी सारी समस्या दूर हो जाए!आप हमेशा खुश और स्वस्थ रहें! गमो का आपसे छत्तीस का आकड़ा रहें! सर एक बार मेरी "एक साल बेमिसाल "पोस्ट को जरूर देखें क्योंकि वो आप सभी के लिए ही लिखी है मैंने!
      सर आपका बहुत बहुत धन्यवाद आपकी प्रतिक्रिया बहुमूल्य है मेरे लिए!

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    3. आदरणीय मनीषा जी ,
      हृदय से धन्यवाद् ! मेरे post पर आने एवं रचना कि शब्दावली में श्रुटियों पर मेरा ध्यान
      आकृष्ट करने लिए।

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  3. सटीक और सामयोक रचना ...
    आज के हालात का चित्रण किया है शब्दों के माध्यम से ...

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  4. वर्चस्व की लड़ाई में मानवता की किसको पड़ी है
    समसामयिक हालातों और युद्ध से उपजी परिस्थितियों का लाजवाब शब्दचित्रण।

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  5. मनीषा, युद्ध की विभीषिका को बहुत ही सुंदर तरीके से व्यक्त किया है तुमने। युद्ध से नुकसान ही ज्यादा होता है यह बात वर्चस्व की लड़ाई करने वालो को कब समझ मे आएगी?

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  6. युद्ध की विभीषिका को आपकी लेखनी ने सटीक स्वर दिए हैं।
    युद्ध से जन जीवन के साथ प्रकृति भी कितनी बेनूर हो जाती है,और धरा की कोख कितनी सीमा तक बंजर हो जाती है।
    हृदय स्पर्शी सृजन।

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  7. रो रही मानवता हँस रहा स्वार्थ
    आज के सच की तस्वीर
    सार्थक लेखन

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  8. बहुत आछा सुन्दर , बहुत बधाई

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  9. युद्ध की विभीषिका को बहुत ही सुंदर तरीके से व्यक्त किया है

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  10. मानवता युद्ध के कारण परेशानी हो गयी है .आज जो इसके लिए जिम्मेदार हैं ,उन्हें इतिहास माफ़ नहीं करेगा .
    हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika

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  11. हँस रहा है स्वार्थ..वाह! सार्थक प्रस्तुति।

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  12. सार्थक अभिव्यक्ति, बधाई मनीषा जी.

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  13. सुंदर प्रस्तुति 👌👌

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  14. आपके कमेंटस् मैंने आज ही देखे, काफ़ी वक़्त ब्लॉगिंग को लेकर अनमना और अनियमित रहा, देख नहीं पाया, माफ़ी चाहता हूं.
    कोई नास्तिक मिलता है तो अच्छा ही लगता है.
    आपमें वह संवेदनशीलता दिखाई पड़ती है जो एक इंसान होने के लिए ज़रुरी है.
    कोशिश करुंगा कि आगे भी पढ़ता रहूं.

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  15. बहुत ही बढ़िया रचनाकार हैं आप पर आध्यात्मिक होना मनुष्य के जीवन के लिए लाभदायक है पर अपने धर्म के लिए दूसरे को निकृष्ट समझना गलत है।

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