नीला आसमां हो गया धूमिल-सा
बेनूर और उदास,
स्वच्छ चाँदनी का नहीं दूर तक
कोई नामों निशान।
रात में तारों की मौजूदगी के
बचें नहीं कोई निशाना।
आग उगल रहा अम्बर,धरती रो रही आज।
सूर्योदय से पूर्व नहीं रहा
उषा की चुनरी का चम्पई आलोक।
फीकी पड़ रही रोशनी सूर्य की
धमाकों की आग के आगे आज।
नज़र नहीं आ रहा उड़ता हुआ
आसमां में पक्षी कोई,
नहीं आ रही पक्षियों की
चहकने की आवाज़।
सिर्फ़ नज़र आ रहा है काल बनकर
उड़ता हुआ लड़ाकू विमान।
पहाड़ों की नोकों पर
चमकीली बर्फ़ की परतें न रहीं
बर्फ़ की आहों का घुट-घुटा धुआं
भी नज़र नहीं आ रहा आज।
सिर्फ़ नज़र आ रहा है,
काले धुएं का गुब्बार।
आसमां की छाती में सुराख़ कर,
मिसाइलें ले रही मासूमों की जान।
धमाकों की गूँज में दब रही,
हमेशा के लिए लोगों की आवाज़ ।
चीख़ रही इंसानियत,
मानवता हो रही तार तार।
यह सब देख ठहाके मार कर
हँस रहा है स्वार्थ।
पहले पढ़ने का शौक था अब लिखने की बिमारी है।ये कलम कभी न रुकी थी, न ही आगे किसी के सामने झुकने और रुकने वाली है।क्योंकि कलम की जिंदगी में साँसें नहीं होतीं।कवयित्री तो नहीं हूँ पर अपनी भावनाओं को कविताओं के जरिए व्यक्त करती हूँ।लेखिका भी नहीं हूँ लेकिन निष्पक्ष लेखन के माध्यम से समाज को आईना दिखाने का दुस्साहस कर रही हूँ।
सोमवार, फ़रवरी 28, 2022
रो रही मानवता हँस रहा स्वार्थ
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समसामयिक कविता।आप यशस्वी हों
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏
हटाएंबेहतरीन रचना,
जवाब देंहटाएं🙏🙏
हटाएंमार्मिक चित्रण।
जवाब देंहटाएं🙏🙏
हटाएंआदरणीय Mamisha ji ,
हटाएंवर्ष कि शुरुआत कुछ अच्छी नहीं रहीं So Blog एवं आपके post से हटी रहीं।
BY the way.
कहतें हैं कि, चल आजमाईशों को आजमातें है ,
हम इन्सान है डुबकर ही तैरने का हुनर पाते हैं।
युं ही नहीं! किसी के मौत कि चीख से, किसी के ( कफन वाला , कर्ब खोदने वाला ) घर ईद और दीवाली मनती हैं।
मसलन व्यर्थ चिन्ता न करें जो जैसा चल रहा है चलने दें ।
रचना वास्तविक एवं स्वभाविक है - सुन्दर अति सुन्दर |
मैं बहुत बार आपके ब्लॉग पर गयी पर कोई नयी पोस्ट नहीं दिखी मैंने सोचा शायद कुछ जरूर काम में व्यस्त होगें आप!
हटाएंसर जिंदगी का दूसरा नाम ही संघर्ष है और जो मुसिबतों के आगे घुटने न टेके वही निखरता है! होली के रंगों की तरह आपकी जिंदगी में खुशियों के रंग भर जाए और आपकी सारी समस्या दूर हो जाए!आप हमेशा खुश और स्वस्थ रहें! गमो का आपसे छत्तीस का आकड़ा रहें! सर एक बार मेरी "एक साल बेमिसाल "पोस्ट को जरूर देखें क्योंकि वो आप सभी के लिए ही लिखी है मैंने!
सर आपका बहुत बहुत धन्यवाद आपकी प्रतिक्रिया बहुमूल्य है मेरे लिए!
आदरणीय मनीषा जी ,
हटाएंहृदय से धन्यवाद् ! मेरे post पर आने एवं रचना कि शब्दावली में श्रुटियों पर मेरा ध्यान
आकृष्ट करने लिए।
🙏🙏
हटाएंसटीक और सामयोक रचना ...
जवाब देंहटाएंआज के हालात का चित्रण किया है शब्दों के माध्यम से ...
🙏🙏🙏
हटाएंवर्चस्व की लड़ाई में मानवता की किसको पड़ी है
जवाब देंहटाएंसमसामयिक हालातों और युद्ध से उपजी परिस्थितियों का लाजवाब शब्दचित्रण।
🙏🙏🙏
हटाएंमनीषा, युद्ध की विभीषिका को बहुत ही सुंदर तरीके से व्यक्त किया है तुमने। युद्ध से नुकसान ही ज्यादा होता है यह बात वर्चस्व की लड़ाई करने वालो को कब समझ मे आएगी?
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏
हटाएंयुद्ध की विभीषिका को आपकी लेखनी ने सटीक स्वर दिए हैं।
जवाब देंहटाएंयुद्ध से जन जीवन के साथ प्रकृति भी कितनी बेनूर हो जाती है,और धरा की कोख कितनी सीमा तक बंजर हो जाती है।
हृदय स्पर्शी सृजन।
🙏🙏🙏
हटाएंबढ़िया रचना
जवाब देंहटाएं🙏🙏
हटाएंरो रही मानवता हँस रहा स्वार्थ
जवाब देंहटाएंआज के सच की तस्वीर
सार्थक लेखन
🙏🙏
हटाएंबहुत आछा सुन्दर , बहुत बधाई
जवाब देंहटाएं🙏🙏
हटाएंयुद्ध की विभीषिका को बहुत ही सुंदर तरीके से व्यक्त किया है
जवाब देंहटाएं🙏🙏
हटाएंमानवता युद्ध के कारण परेशानी हो गयी है .आज जो इसके लिए जिम्मेदार हैं ,उन्हें इतिहास माफ़ नहीं करेगा .
जवाब देंहटाएंहिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
🙏🙏
हटाएंहँस रहा है स्वार्थ..वाह! सार्थक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं🙏🙏
हटाएंसार्थक अभिव्यक्ति, बधाई मनीषा जी.
जवाब देंहटाएं🙏🙏
हटाएंसुंदर प्रस्तुति 👌👌
जवाब देंहटाएं🙏🙏
हटाएंआपके कमेंटस् मैंने आज ही देखे, काफ़ी वक़्त ब्लॉगिंग को लेकर अनमना और अनियमित रहा, देख नहीं पाया, माफ़ी चाहता हूं.
जवाब देंहटाएंकोई नास्तिक मिलता है तो अच्छा ही लगता है.
आपमें वह संवेदनशीलता दिखाई पड़ती है जो एक इंसान होने के लिए ज़रुरी है.
कोशिश करुंगा कि आगे भी पढ़ता रहूं.
🙏🙏
हटाएंबहुत ही बढ़िया रचनाकार हैं आप पर आध्यात्मिक होना मनुष्य के जीवन के लिए लाभदायक है पर अपने धर्म के लिए दूसरे को निकृष्ट समझना गलत है।
जवाब देंहटाएं