क्यों तू इंसान से है हैवान बना?
वाह! पत्थर पूजते पूजते तूभी पत्थर बन गया।
धर्म जाति के नाम पर इंसानियत का गला घोंटने को
है तू सीना तान खड़ा।
धर्म-जाति के चक्रव्यूह में ऐसा फसा,
कि तू इंसान को इंसान समझना ही भूल गया।
किसी को हिंदू तो किसी को मुस्लिम तूने नाम दिया,
किताबों वाले हाथों में पत्थर तूने थमा दिया।
स्याही से रंगने वाले हाथों को रक्तरंजित तूने करा दिया,
प्रेम व सौहार्द की खुशबुओं से महकने वाले बागों में
नफ़रत का बीज तूने लगा दिया।
भूल गया तू ,
कि सबसे पहले तू इंसान है
फिर हिन्दू -मुस्लिम, सिक्ख आदि है ।
मानवता को मृत्यु शैय्या पर सुला कर
तूने खुद पर बड़ा नाज किया,
पर भूल गया कि जिस रास्ते पर है तू चला,
उससे तूने खुद का ही विनाश किया ।
इंसान का मानवता ही है सबसे बड़ा धर्म ,
ये भी तुझे न याद रहा।
है कैसा तू किसी धर्म का अनुयायी?
जो इंसानियत का फर्ज भी तुझे न याद रहा।
है किस काम का वो धर्मग्रंथ?
जो इंसानों को इंसानियत का पाठ न पढ़ा सका।
है किस काम का वो ईश्वर ?
जो इंसानों से पत्थर की मूरत के खातिर
रक्त की नदियाँ है बहा रहा।
जला कर खाक कर देने चाहिए ऐसे धर्मग्रंथों को
जो इंसानियत का जनाजा उठवाते हो।
-मनीषा गोस्वामी
समसामयिक परिदृश्य को दर्शाती आपकी रचना मर्म स्पर्शी, भावपूर्ण
जवाब देंहटाएंधन्यवाद प्रिय मैम 🥰🙏🙏
हटाएंबहुत सुंदर एवं मार्मिक रचना,
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर 🙏
हटाएंमानव को इंसानियत का पाठ पढ़ाता प्रभावशाली लेखन
जवाब देंहटाएंशुक्रिया प्रिय मैम 🥰
हटाएंसुरज चाँद ढुंढ रहें थे ... नदीयां भी कल - कलकर पुकार रही थी
जवाब देंहटाएंरिश्तों का ताना वाना , समाज कि कुंठित व्यवस्था
सब साथ मिलकर रुदन गा रही थी ... कहां गई वो बहादूर चिरैयां ...
जिसकी चोटिल वाणी थी ... सही को सही और गलत को गलत ...
हर मशले पर ॥ स्वतंत्र आवाज़॥ उठाती शब्दों कि जो रानी थी / /
मनीषा जी कहां थी ? चलो कोई नहीं ... देर आये दूरस्त आईं ।
हमेशा कि तरह बेहतरीन रचना !
कुछ गलत लिखा हो तो माफ किजिएगां ।
सर पहले प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में व्यस्त थी फिर दाखिला.....पढ़ाई में....!
हटाएंवैसे अभी भी पढ़ाई चल रही है फरवरी में परीक्षा है पर अब जब फिर से सफर पर चल पड़े हैं तो बिना रुके चलना है... !
सर माफ़ी की बात करके शर्मिंदा न करें आप सबका प्यारी प्यारी प्रतिक्रियाएँ बहुमूल्य हैं मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकती की मुझे कितनी हिम्मत मिलती है आप सबके साथ से! तहेदिल से आपका बहुत बहुत धन्यवाद🙏🙏😊
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर 🙏
हटाएंसुंदर रचना 👌👌
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मैम 🙏
हटाएंसही कहा इंसान स्वयं ही इंसानियत का दुश्मन बन बैठा है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सृजन
वाह!!!
धन्यवाद मैम🥰🙏
हटाएंमानवता की सीख देता सुन्दर सृजन । आपकी परीक्षा की तैयारी अच्छी चल रही होगी। हार्दिक शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएं🙏🙏
हटाएंवाह!सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएं🙏🙏
हटाएंमानवता के महत्व को दर्शाती सुंदर रचना
जवाब देंहटाएं🙏🙏
हटाएंबहुत सुंदर कहा प्रिय मनीषा आपने, हमने चिंतन ममन करना छोड़ दिया है छोड़ दिया है विवेक से बातें करना जिसने जो कहा जैसे कहा हमने बेसुध हो वही धारण कर लिया।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
सादर स्नेह
🙏🙏
हटाएंआपकी रचना पढ़कर मुझे मेरी रचना की पंक्तियां याद आ गयी-
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धर्म के नाम पर
कराह रही इंसानियत
राम,अल्लाह मौन है
शोर मचाये हैवानियत
धर्म के नाम पर
इंसानों का बहिष्कार है
मज़हबी नारों के आगे
मनुष्यता बीमार है...।
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विचार मंथन से युक्त बहुत अच्छी अभिव्यक्ति ।
सस्नेह।
वाह! बहुत ही बेहतरीन पंक्तियाँ !
हटाएंसादर 🙏🙏🙏
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (12-1-23} को "कुछ कम तो न था ..."(चर्चा अंक 4634) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपका तहेदिल से धन्यवाद प्रिय मैम🙏🥰
हटाएंधर्मग्रन्थ किसी का भी हो वे कभी भी इंसानियत के दुश्मन नहीं होते हैं। उन्हें न समझने वाले, उनका गंभीर अध्ययन न करने वाले उथली बुद्धि के स्वार्थी किस्म के लोगों की वजह से उन्हें गलत समझने की कुछ नासमझ लोग भूल कर बैठते हैं और उन पर सवाल दाग लेते है, जबकि वास्तव में कोई भी धर्मग्रन्थ मानवता के विरुद्ध नहीं होता।
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