कुश्ती के अखाड़े में जिन शेर और शेरनियों को लड़ते हुए देखते थे उन्हें आज जंतर मंतर पर अपने स्वाभिमान,अपने आत्मसम्मान के लिए लड़ना पड़ रहा है। इससे दुर्भाग्यपूर्ण और क्या होगा? जिनका एक एक पल बेशकीमती होता है वे आपना वक़्त अपनी प्रतिभा को देने के बजाय जंतर मंतर पर बर्बाद करने पर मजबूर हो रहें हैं। जिस लड़ाई की नौबत ही नहीं आनी चाहिए उसे लड़ते हुए तीन दिन हो गए और सत्ताधारी लोग मुंह में दही जमाये बैठे हैं।जिस महाशय पर आरोप लगा है उनके रंगीन मिज़ाज से सब वाकिफ़ हैं फिर भी मूकदर्शक बने बैठे हैं। सत्ता के नशे में इस तरह लीन रहते हैं कि किसी को मंच पर ही थप्पड़ जड़ सकते हैं और सरेआम किसी की हत्या करने की बात कबूल सकते हैं।और पता नहीं कितनी लड़कियों का नजरों से बलात्कार कर चुके हैं।जो खुद को सांवरिया समझतें हैं। जिनके महाविद्यालय कुछ इस हर जगह खुले हैं जैसे कुकुर मुत्ता हर जगह उगा रहता है।शिक्षा व्यवस्था की पूरी धज्जी उड़ा कर रख दी है। पर इसकी जिम्मेदार आम जनता है क्योंकि आम जनता ने ही इन्हें सर पर चढ़ा रखा है। जहाँ आज सबको आगे आकर पहलवानों का साथ देना चाहिए और उनके कंधे से कंधा मिलाकर चलना चाहिए तो हमारे गोण्डा के महान लोग उत्तर प्रदेश बनाम हरियाणा करने में लगे हैं। नेता जी हम आपके साथ है कह कर अपनी उच्च सोच का प्रदर्शन कर रहें हैं। पर नेताओं के तलवे चाटने वाले भूल रहें हैं कि उनकी माँ-बहन और बेटी भी इसका शिकार हो सकती है या शायद हो चुकी भी हो पर चुप हो। और उन लड़कियों को तो इक्कीस तोपों की सलामी जो आज भी इस नरभक्षी की दिवानी बनी बैठीं है और सेल्फी लेने के लिए मरती रहतीं है। मुझे हैरानी होती है कि ये लड़कियाँ किसी के स्पर्श को महसूस कैसे नहीं कर पाती कि गंदे इरादों से स्पर्श कर रहा है, यहाँ गंदी नजरें भी महसूस कर ली जाती है कि कौन अपनी अश्लील नज़रों से निवस्त्र कर रहा है और कौन नहीं। लेकिन हमारे गोण्डा वाले बहुत महान है अपने परिवार के सदस्य(गोण्डा के निवासियों) की हर गलती और गुनाहों को मांफ कर देते हैं।और अपनी बहन और बेटियों की इज़्ज़त अपने प्रिय नेता जी के लिए दांव पर भी लगा देते हैं। अभी भी कुछ लोग इस हवस्खोर के साथ सेल्फी लेकर सोशल मीडिया पर ऐसे पोस्ट करेंगे और ऐसा महसूस करेंगे जैसे कि साक्षात भगवान के दर्शन हो गयें हो। शुक्रगुज़ार होना चाहिए इन पहलवानों का कि वे हमारे और आपके हिस्से की लड़ाई लड़ रहे हैं और इस जिस्म के पुजारी से निजात दिलाना में एड़ी चोटी का जोर लगा रहें हैं। पर नहीं हम तो गोण्डा वाले है हम अपने गोण्डा के लोगों की अलोचना कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं।यही चमचागिरी हमें आगे बढ़ने नहीं दे रही, जिस लड़ाई की नौबत ही नहीं आनी चाहिए उसे लड़ते हुए तीन दिन हो गए और कुर्सी के लालची मुंह में दही जमाये बैठे हैं।पर ब्रिज भूषण को और उनके चमचों को उनकी पंसदीदा पंक्तियाँ याद रखनी चाहिए कि- सच है विपत जब आती है कायर को ही दहलाती है............सूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते.........! हमारे सूरमा (पहलवान)भी विचलित होने वाले नहीं है इतनी आसानी से। कहते मानव जब जोर लगता पत्थर पानी बन जाता है, जब हमारे सूरमाओं ने जोर लगाया तो.....! हम दुआ करते हैं कि हमारे प्रिय सांसद जी की रंगीन जिंदगी से ये वक़्त जल्द से जल्द गुजर जाए और इससे भी अधिक बुरा वक़्त आए। मासूमों की इज़्ज़त के साथ खेलने वाले की सराफत की नकाब कुछ इस तरह बेनकाब हो कि छुपाने के लिए कपड़े कम पड़ जाए । ऐसा पहली बार नहीं है जब हमारी महिला खिलाड़ियों के साथ ऐसा हुआ है ऐसे अनगिनत हवस्खोर हर क्षेत्र में उच्च पदों पर विराजमान हैं। इससे पहले हरियाणा के खेल मंत्री और पूर्व हॉकी कप्तान संदीप सिंह द्वारा हरियाणा में एक जूनियर महिला कोच पर यौन शोषण का आरोप लगाया गया, सच्चाई तो जांच के बाद पूरी तरह स्पष्ट होगी।लेकिन ये बात साफ हो गई है कि किस तरह प्रति दिन खेल जगत में महिलाओं के साथ खेल खेला जा रहा है और और यौन शोषण के आरोपों ने एक बार फिर खेल जगत में व्याप्त गंदगी को उजागर कर दिया है। इससे पहले भी खेल जगत से कई महिलाओं के साथ अभद्रता और छेड़छाड़ जैसी घटनाएं सामने आई हैं, लेकिन ये घटना ज्यादा हैरान करने वाली इसलिए है क्योंकि दोषी भारतीय हॉकी टीम का जाना-माना चेहरा है जिस पर सूरमा फिल्म भी बनी है।और इसी साल मई में एक महिला साइकिलिस्ट के साथ कोच द्वारा यौन उत्पीड़न और कोच के साथ कमरे में सोने का विरोध करने पर महिला साइकिलिस्ट को लक्ष्य (एनसीआई) से हटाकर अपने करियर को पूरी तरह से बर्बाद करने की धमकी देने की बात निकल कर सामने आई थी।,कितना संघर्ष करना पड़ता है और कितनी ऐसी लड़ाइयाँ लड़ती हैं जिन लड़ाइयों की नौबत ही नहीं पैदा होनी चाहिए। और ऐसी घटनाओं से खेल जगत में भविष्य देखने वाली युवा लड़कियों का मनोबल भी टूटता है। जिस तरह आये दिन खेल जगत से महिलाओं के साथ अभद्रता की खबरें बाहर आ रही हैं ये उभरती हुई युवा महिला खिलाड़ियों के रास्ते का रोड़ा बनती जा रहीं हैं।हमारे देश में पहले से ही लड़कियां का खेलना अधिकतर अभिभावक और समाज पसंद नहीं करता था, और अब जब लोगों की सोच में थोड़ा बहुत खुलापन और विस्तार आ रहा था, जब लोगों को लगने लगा था कि हां, खेल सिर्फ खेल नहीं है बल्कि बहुत कुछ है, जिसमें अपना हुनर दिखाने का लड़के-लड़कियों सभी को बराबर अवसर मिलना चाहिए।आज जब खेल के प्रति सदियों से चलती आ रही रूढ़िवादी विचारधाराओं को महिला खिलाड़ियों ने खेल के मैदान में झंडे गाड़ कर अपना लोहा मनवा रहीं हैं और लोगों का महिलाओं के प्रति लोगों का नजरिया बदल रहीं हैं तो ऐसी घटनाएं इन सभी खिलाड़ियों के मेहनत पर पानी फेरने का काम कर रहीं हैं।पहले से ही बहुत कम अभिभावक अपने बेटियों को खेल जगत में भेजते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इसमें उनकी बेटियां सुरक्षित नहीं है और न ही उनकी इज्जत है।और अब ऐसी घटनाएं होने के बाद अधिकतर अभिभावक अपनी बेटियों को इस खेल जगत में भेजने से बचेंगे।क्योंकि हर अभिभावक के लिए सबसे अधिक जरूर कोई चीज होती है तो उनके बच्चों की सुरक्षा। इसलिए खेलों में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने की सख्त जरूरत है।और ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्यवाही करने और सज़ा देने की जरूरत है जिससे दुबारा कोई ऐसी हरकत करने के बारे में सोचने से रूह काँप जाए।
स्वतंत्र आवाज़
पहले पढ़ने का शौक था अब लिखने की बिमारी है।ये कलम कभी न रुकी थी, न ही आगे किसी के सामने झुकने और रुकने वाली है।क्योंकि कलम की जिंदगी में साँसें नहीं होतीं।कवयित्री तो नहीं हूँ पर अपनी भावनाओं को कविताओं के जरिए व्यक्त करती हूँ।लेखिका भी नहीं हूँ लेकिन निष्पक्ष लेखन के माध्यम से समाज को आईना दिखाने का दुस्साहस कर रही हूँ।
शुक्रवार, जनवरी 20, 2023
शनिवार, जनवरी 14, 2023
देखो कैसा वक़्त आया आज
देखो कैसा वक़्त है आया आज।
जो कभी चलते थे सीना तान ,
चीर निन्द्रा में सो गयें हैं आज।
खा रहें हैं काग
उनके चुन चुन आज मांस,
सिर पर बैठ गिद्ध निकाल खा रहे आँख।
देखो कैसा वक़्त है आया आज।
लाल हुएं कुत्ते के मुंह , प्रफुल्लित हुआ काग।
करते नहीं थे जो कभी किसी से सीधे मुंह बात,
न सुनते थे किसी की बात।
हुई दुर्दशा देखों उनकी कैसी आज
जीभ कुत्ते नोच रहें , चील नोच रही कान
और खाल खींच रहे सियार।
हुए आनन्दित मांसभक्षी
दौड़े जा रहे दुर्गंध के पास।
सड़े मांस की तीक्ष्ण दुर्गंध
रहगुज़र को मजबूर कर रही,
बंद करने को आँख और नाक ।
था जिस तन पर बड़ा ही नाज़ ।
इत्र से महकता रहता था जो तन हमेशा,
वो तन सड़ कर दुर्गंध फैला रहा है आज।
उस तन पर क्षुद्र जन्तु कर रहे निवास।
उस तन की दुर्गंध से दूषित हो रहा वातावरण आज।
देखो कैसा वक़्त है आया आज।
शुक्रवार, जनवरी 06, 2023
इंसानियत का दुश्मन क्यों तू आज बना?
क्यों तू इंसान से है हैवान बना?
वाह! पत्थर पूजते पूजते तूभी पत्थर बन गया।
धर्म जाति के नाम पर इंसानियत का गला घोंटने को
है तू सीना तान खड़ा।
धर्म-जाति के चक्रव्यूह में ऐसा फसा,
कि तू इंसान को इंसान समझना ही भूल गया।
किसी को हिंदू तो किसी को मुस्लिम तूने नाम दिया,
किताबों वाले हाथों में पत्थर तूने थमा दिया।
स्याही से रंगने वाले हाथों को रक्तरंजित तूने करा दिया,
प्रेम व सौहार्द की खुशबुओं से महकने वाले बागों में
नफ़रत का बीज तूने लगा दिया।
भूल गया तू ,
कि सबसे पहले तू इंसान है
फिर हिन्दू -मुस्लिम, सिक्ख आदि है ।
मानवता को मृत्यु शैय्या पर सुला कर
तूने खुद पर बड़ा नाज किया,
पर भूल गया कि जिस रास्ते पर है तू चला,
उससे तूने खुद का ही विनाश किया ।
इंसान का मानवता ही है सबसे बड़ा धर्म ,
ये भी तुझे न याद रहा।
है कैसा तू किसी धर्म का अनुयायी?
जो इंसानियत का फर्ज भी तुझे न याद रहा।
है किस काम का वो धर्मग्रंथ?
जो इंसानों को इंसानियत का पाठ न पढ़ा सका।
है किस काम का वो ईश्वर ?
जो इंसानों से पत्थर की मूरत के खातिर
रक्त की नदियाँ है बहा रहा।
जला कर खाक कर देने चाहिए ऐसे धर्मग्रंथों को
जो इंसानियत का जनाजा उठवाते हो।
-मनीषा गोस्वामी
सोमवार, फ़रवरी 28, 2022
रो रही मानवता हँस रहा स्वार्थ
नीला आसमां हो गया धूमिल-सा
बेनूर और उदास,
स्वच्छ चाँदनी का नहीं दूर तक
कोई नामों निशान।
रात में तारों की मौजूदगी के
बचें नहीं कोई निशाना।
आग उगल रहा अम्बर,धरती रो रही आज।
सूर्योदय से पूर्व नहीं रहा
उषा की चुनरी का चम्पई आलोक।
फीकी पड़ रही रोशनी सूर्य की
धमाकों की आग के आगे आज।
नज़र नहीं आ रहा उड़ता हुआ
आसमां में पक्षी कोई,
नहीं आ रही पक्षियों की
चहकने की आवाज़।
सिर्फ़ नज़र आ रहा है काल बनकर
उड़ता हुआ लड़ाकू विमान।
पहाड़ों की नोकों पर
चमकीली बर्फ़ की परतें न रहीं
बर्फ़ की आहों का घुट-घुटा धुआं
भी नज़र नहीं आ रहा आज।
सिर्फ़ नज़र आ रहा है,
काले धुएं का गुब्बार।
आसमां की छाती में सुराख़ कर,
मिसाइलें ले रही मासूमों की जान।
धमाकों की गूँज में दब रही,
हमेशा के लिए लोगों की आवाज़ ।
चीख़ रही इंसानियत,
मानवता हो रही तार तार।
यह सब देख ठहाके मार कर
हँस रहा है स्वार्थ।
बुधवार, फ़रवरी 23, 2022
ऐसा क्यों और कब तक?
मंगलवार, फ़रवरी 15, 2022
एक साल बेमिसाल
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सुनहरे शब्द |
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सुनहरे शब्द |
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सुनहरे शब्द |
रविवार, फ़रवरी 13, 2022
युवा वर्ग अपनी जिम्मेदारी को पहचाने
खेलने का फैसला करने से लेकर खेल के मैदान तक सफर
कुश्ती के अखाड़े में जिन शेर और शेरनियों को लड़ते हुए देखते थे उन्हें आज जंतर मंतर पर अपने स्वाभिमान,अपने आत्मसम्मान के लिए लड़ना पड़ रहा है...
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वाह रे मानव, मानवता का दुश्मन है तू आज बना। क्यों तू इंसान से है हैवान बना? वाह! पत्थर पूजते पूजते तूभी पत्थर बन गया। धर...
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नीला आसमां हो गया धूमिल-सा बेनूर और उदास, स्वच्छ चाँदनी का नहीं दूर तक कोई नामों निशान। रात में तारों की मौजूदगी के बचें नहीं...
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कुश्ती के अखाड़े में जिन शेर और शेरनियों को लड़ते हुए देखते थे उन्हें आज जंतर मंतर पर अपने स्वाभिमान,अपने आत्मसम्मान के लिए लड़ना पड़ रहा है...