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गूगल से |
पता है कि मुझे बहुतों को मेरा ये लेख आपत्तिजनक और भेद्यता से भरा हुआ है! रास नहीं आयेगा शीर्षक देखकर ही अनदेखे कर देंगे ! लेकिन इससे हक़ीक़त नहीं बनी!
वैश्य बदलान और चरित्रहीन तो ही इस लिए समाज का तिरस्कार और समाज कई नाम दिए गए खमोशी के साथ अलर्ट है! पर क्या कोई और जन्म से ही वैश्य होता है ?क्या वो पैदाइशी चरित्रहीन होती है ? क्या उसके माथे पर लगे वैश्य के ठप्पे में अकेले उसका हाथ खुल जाता है? हाँ वो जिस्म बेचती है वो चरित्रहीन ! उसकी अपनी कोई इज्जत नहीं! उनका चरित्र क्या बनाता है? जो इसके जिस्म को अपने हवस के दृष्टिकोण तक पहुंचने के लिए जीत गए हैं और उनके नाम पर वैश्य के ठप्पा उम्मीदवार हैं? रात के अंधेरे में रात में जाने वाले सरफजादे और नवाबजादो को किसी का नाम क्यों नहीं दिया गया? क्या इसलिए कि ये लोग छिप कर करते हैं? और
वैश्य डंके की चोट पर आपका जिस्म का व्यापार करता है तभी तो पूरे विश्व का तिस्कार सहती है!
उन चरित्रवान पुरुषों का क्या है जो उनकी पत्नी, उनके परिवार की उपस्थिति से बचकर अपनी हवस के लिए बदनाम सड़कों पर निकल जाते हैं? क्या ये लोग चरित्रहीन नहीं होते?ये लोग तो चरित्रहीन होने के साथ धोखेबाज़ और विश्वास भी होते हैं। वैश्य फिर भी धोखेबाज नहीं होती वो अपना जिस्म व्यापार करती है पर किसी की भावनाओं के साथ विश्वास नहीं करती।
अगर वो किसी दायरे में रहता है, तो ये समाज के अभिषेक भी जिस्म के अटक जाते हैं!
जिस बदनाम गलियों को सुबह के उजाले में तिरस्कार भरी नजरों से देखते हैं, रात होती ही वही बदनाम गलियों में अपनी रात रंगे हुए होते हैं !वो अपना जिस्म बेचती है, तो ये भी तो अपना ईमान पहचानते हैं!तो फिर उसे ही अकेले में हमेशा बदनाम क्यों किया जाता है?
वैश्या अति संस्कारी और चरित्रवान पुरुषों की हवस को छिपाने वाले वो श्रेणी में ही आते हैं ये पुरुष समाज के सामने इस तरह के स्वभाव होंगें कि फिर नामांकन धारण करने के काबिल ही नहीं जीतेंगे!मुहं छिपाने की जगह नहीं मिलेगी!
और चरित्रवान होने का ढोंग करने वालों का घमण्ड और परिवार एक साथ इस तरह टूटेगा कि फिर उसे दुनिया के सबसे काबिल कलाकार भी नहीं जोड़ेंगे!
और अगर सभी लोग इतने ही चरित्रवान हैं तो फिर इन वैश्यों का धंधा आज भी कैसे चल रहा है? लागत है? विशिष्ट कौन है जो उन बदनाम गलियों में जाता है? क्या वो गरीब, जो दो घंटे की रोटी के लिए पूरे दिन मेहनत करता है लेकिन रात को पैसे जुटाता है उसी का जिस्म की भूख साफ हो गई है? लेकिन ये भी सच है कि सभी अमीर जिस्म के लिबास नहीं होते पर जिस्म की कीमत लगाने वाले सभी अमीर ही होते हैं!
और गरीब जिन और मध्यवर्गीय हवस के शिकारियों की पहुंच से ये कोठा होता है कि वे हवस को मिटाने के लिए रेपी बन जाते हैं! शुक्रगुजरा होना चाहिए वैश्यों का, कि वैश्यवृत्ति की बदलोलत रिसजादे रेपी नहीं बने, नहीं तो न्याय की कल्पना करना भी दुशवार हो जाता है !
ये सच है कि इस समाज की नजर में वैश्य की कोई इज्जत और औकात नहीं है क्योंकि ये इसी के हकदार हैं! लेकिन ये बात भी नहीं भूलनी चाहिए कि ये वैश्य बनाने वाले इस समाज के लोग ही हैं! और ये बातें भी याद रखना चाहिए कि वैश्य की नजरों में नोटों से नकली नवाब और चरित्रवान होने का ढोंग करने वालो की कोई औकात नहीं! तो क्या कोई मुझे बता सकता है कि कौन अधिक गिरा हुआ इंसान है वो जो सबकी नजरों में गिरा है या फिर वो जो, सबकी नजरों में गिरने वाले इंसान( वैश्या) की नजर में गिरा है?
वैश्या अपने पेट की आग से बचने के लिए अपने जिस्म को बेचती है और ये चरित्रवान लोग अपने हवस की भूख मिटाने के लिए अपने ईमान को जिस्म के नाम हैं! जब निवस्त्र दोनों होते हैं, तो फिर एक पर ही क्यों कलंक का ठप्पा लगता है? किसी एक को ही क्यों वैश्य का नाम मिलता है?
जिस्म को करके हवस के पुजारियों का विवरण,
चड़ा हो गया है,
एक कोने में जाके!
स्तब्ध सी निहारती रहती है ,
जिस्म को नोच वन गिद्धों को,
और इक वैश्य के आगे बेनकाब हुआ शराफत को!
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