तब ये कलम,
कोरे कागज़ को रंगीन करती है!
जब जब होता है
अभिव्यक्ति की आज़ादी पर वार,
तब तब कलम की तेज धार
शब्द रूपी बड़ों से करती है प्रहार!
जब मन में क्रोध का फूटता है अंगार,
तब कलम की तेज धार से
कोरे कागज पर
शब्दों का उमड़ता है सैलाब!
कभी दर्द तो कभी
दिल के अरमान लिखती है
कभी मधुर मुस्कान
तो कभी अश्रुधार लिखती है!
जब मन में उमड़ता है
सवालों का तूफान
तब ये कलम करती है जनसंचार!
जब करता है कोई उपहास
तब यह कलम बन तलवार का
रूप धारण करती है!
किए बिना रक्त रंजित घायल करती है!
कभी प्रफुल्लित होकर
कोरे कागज का मंत्रमुग्ध
करने वाला श्रृंगार करती है !
कभी प्यार की बौछार करती है,
तो कभी गुस्से का अंगार उगलती है
ये कलम हर बार कमाल करती है!