शुक्रवार, फ़रवरी 04, 2022

बुराई से लड़ते लड़ते बुरे बन गयें हम

बुराई से लड़ते लड़ते 
लोगों की नज़र में 
बुरे बन गए हम।
ये सब देख 
सहम कर ठहर गए हम।
गलत धारणाओं को 
खत्म करने की चाह में
लोगों की नजरों में 
बुरा बनना भी 
कबूल कर गए हम।
गैरों से जीतने की 
तो दूर की बात
अपनो से ही 
मात खा गए हम! 
एक बार फिर अपनो को 
जीतने के खातिर
आपनो से हार गए हम।  
दर्द तो तब खूब हुआ
जब आपनो की नज़र
गलत हो गयें हम।
एक बार फिर टूट कर 
खामोश हो गए हम।
दूसरों को खुश रखने की 
चाह में अपने 
फड़कते होठों की 
मुस्कान गव़ा बैठे हम।
आपनो को पाने की चाह में
खुद को खोते चले गए हम।

- मेरी डायरी से (2020) 

21 टिप्‍पणियां:

  1. दिल का दर्द व्यक्त करती बहुत ही सुंदर रचना, मनीषा। आज ज्यादातर इंसानों का हाल यहीं है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी आप बिल्कुल सही कह रही है गलत के खिलाफ लड़ते वक्त दुनिया की नजरों में गलत बनना पड़ता है
      मनोबल संवर्धन करती उपस्थिति के लिए हृदय से असीम धन्यवाद

      हटाएं
  2. ऐसा ही होता है । और जब अपनों से दर्द मिलता है तो ज्यादा तकलीफदेह होता है ।
    खुद को संभालना बहुत मुश्किल होता है । मन के भावों को बखूबी अभिव्यक्त किया है ।।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी आप बिल्कुल सही कह रही हैं!
      मनोबल बढ़ाती हुई प्रतिक्रिया के लिए आपका तहे दिल से बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय मैम!आप लोगों की वजह से मैं उस दौर से बाहर निकल पाई हूं और सारी मुश्किलों का सामना करते हुए खुद को मजबूत बना पाई हूं आपका बहुत-बहुत धन्यवाद🙏

      हटाएं
  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०५ -०२ -२०२२ ) को
    'तुझ में रब दिखता है'(चर्चा अंक -४३३२)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मेरी रचना को चर्चामंच में शामिल करने के लिए आपका तहे दिल से बहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय मैम🙏
      बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं💐

      हटाएं
  4. गैरों से जीतने की
    तो दूर की बात
    अपनो से ही
    मात खा गए हम!
    बहुत ही सार्थक पंक्तियाँ, आज के समय मे गैरों से ज्यादा अपनों से सावधान रहने की जरूरत है, गैरों से तो लड़ भी जाओगे पर अपनों का मुकाबला कैसे करें, बहुत सुंदर रचना मनीषा जी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी अपनों से लड़ना बहुत ही मुश्किल होता है और दर्द भरा होता है क्योंकि अपनों से जीतना नहीं बल्कि अपने कुछ जीतना होता है!
      मनोबल बढ़ाती हुई प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद सर🙏

      हटाएं
  5. बहुत ही सुन्दर रचना
    बसंत पंचमी की आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ और हार्दिक बधाई

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपको भी बसंत पंचमी की बहुत बहुत शुभकामनाएं आदरणीय मैम🙏
      धन्यवाद आदरणीय🙏

      हटाएं
  6. कुछ पाने के लिए खुद को नहीं खोना है, सयाने कह गए हैं,
    खुदी को खोकर, खुद को पाना है
    यही तो ज़िंदगी का छोटा सा फ़साना है

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मनोबल संवर्धन करती उपस्थिति के लिए हृदय से असीम धन्यवाद आदरणीय मैम🙏

      हटाएं
  7. साहित्यकारों का यही फ़र्ज़ है यही कर्म है कि वो व्याप्त गलत धारणाओं पर प्रहार करे।
    देखना सब अपने खेमे में होंगे एक दिन।
    व्यथा बयां करती कविता।

    समय साक्षी रहना तुम by रेणु बाला

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मनोबल संवर्धन करती उपस्थिति के लिए हृदय से असीम धन्यवाद व आभार आदरणीय सर 🙏

      हटाएं
  8. बुराई से लड़ना इसीलिए कठिन होता है क्योंकि ऐसी लड़ाई प्रायः अकेले ही लड़नी होती है। अच्छी कविता लिखी आपने। यह सच्ची है, इसीलिए अच्छी है। जहाँ तक अपनों के साथ छोड़ देने का सवाल है, जो बुराई के ख़िलाफ़ जंग में साथ न दें और किसी-न-किसी-रूप में बुराई की ही तरफ़ हो जाएं, वो अपने कैसे हुए? जो जंग अकेले लड़नी पड़े, उसमें तो चारों ओर बेगाने ही नज़र आएंगे। शुभकामनाएं आपको।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. इतने दिनों बाद आपको पुनः अपने ब्लॉग पर देख अति प्रसन्नता हुइ सर!आपकी प्रतिक्रिया के बिना रचनाएँ अधूरी सी लगती थी!
      कई बार आपके ब्लॉग पर भी गयीं पर आपकी कोई भी नई पोस्ट नहीं देखी और न ही आप ब्लॉग पर आते थे आपके ! पर आपकी मनोबल बढ़ाती हुई प्रतिक्रिया से बहुत ही खुशी हुई!😊😊मनोबल संवर्धन करती उपस्थिति के लिए हृदय से असीम धन्यवाद आदरणीय सर🙏🙏

      हटाएं
  9. दर्द भरी बहुत सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं
  10. कहने को तो हमारा समाज बहुत तेजी से बदल रहा है, पर अभी भी बहुत से ऐसे क्षेत्र हैं, जहां उसूलों की लड़ाई लड़ने पर भी बिलकुल अपने सगे साथ छोड़ देते हैं, लोग एक बनी बनाई लकीर पर ही लड़कियों को आज भी चलाना चाहते हैं, और जहां कोई लड़की मुखर होती है, सबसे बड़ा विरोधी उसका परिवार ही होता है,ये किसी एक की बात नहीं मनीषा ये बहुतों को झेलना पड़ता है ।अतः सच्चाई के साथ रहो,एक न एक दिन मार्ग प्रशस्त होगा और सारे विरोधी चुप हो जाएंगे । बहुत शुभकामनाएं और स्नेहाशीष ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आप से बेहतर कौन समझ सकता है मैम! एक लड़की का मुखर होना किस हद तक समाज स्वीकार करता है यह तो आप भी बड़ी बात जानती हैं सच्चाई सबको पसंद आती है पर दूसरों की अपनी नहीं! वैसे भी यह कविता मेरी लगभग 2 साल पुरानी है! और अब तो मैं सब का सामना करना सीख चुकी हूं! आपकी इस स्नेहिल और मनोबल बढ़ाती हुई प्रतिक्रिया के लिए आपका तहे दिल से बहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय मैम🙏💐

      हटाएं

नारी सशक्तिकरण के लिए पितृसत्तात्मक समाज का दोहरापन

एक तरफ तो पुरुष समाज महिलाओं के अधिकारों और उनके सम्मान की बात करता है और वहीं दूसरी तरफ उनके रास्ते में खुद ही एक जगह काम करता है। जब समाज ...