शनिवार, जून 26, 2021

अपनो से जीतना नहीं , अपनो को जीतना है मुझे!

तस्वीर गूगल से
देखती हूँ जब भी एक पिता का उतरा हुआ चेहरा, 
लड़की होने पर अफ़सोस होता है मुझे ! 
सोचती है काश लड़का होती, 
और एक बाप के सिर का बोझ न होकर ,सहारा होती, 
लड़की होना गुनाह नहीं पता है मुझे । 
पर दहेज रूपी दानव के कारण एक पिता के सिर का बोझ हूँ  मैं , 
महसूस कर सकूँ उसके दर्द को 
अभी इतनी काबिल नहीं मैं।
सपनो के खातिर नहीं लड़ सकती अपनो से , 
क्योंकि अपनो से जीतना नहीं , अपनो को जीतना है मुझे! 
देख कर एक बाप को अपनी छोटी छोटी ख्वाहिशों के समझौता करते हुए
ख्वाहिश बन रह कर जातीं हैं इच्छाएँ मेरी ,
छुपाती रहती हूँ उसकी नज़रो से खुद को , 
कि लड़की रूपी बोझ का एहसास ना हो उसको
मेरी बड़ती उम्र के साथ उसकी चिंताएँ बड़ रही है, 
पता है मुझे! 
सपने सच होने से पहले हाथ पीले हो जाएगें, 
पर ये पीले हाथ मेरे सपने सच होने से नहीं रोक पाएंगे! 
आज भले ही बोझ हूँ पर एक दिन पर दिन गर्व का कारण बनूंगी! 

शुक्रवार, जून 04, 2021

जिन्दगी की शाम

तस्वीर गूगल से

 कहने को उसका पूरा परिवार है,

फिर भी उसकी जिन्दगी विरान है!

परिवार रूपी बगीचे को लगाने वाला माली,

उसी बगीचे की छांव के लिए मोहताज है!

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जिन पौधों को प्रेम और स्नेह 

से सीच कर हरा भरा किया था,

उन्हीं के बीच खुद आज बैठा उदास है!

झुर्रीदार चेहरे में बैचेनिया छुपी हजार है,

पर इस बैचेनियो का किसी को नही एहसास है!

                   ◦•●◉✿✿◉●•◦

जिन्दगी की इस शाम में अकेला वो आज है!

जिससे परिवार रूपी बगीचे में आया बसन्त है

उसी की जिन्दगी में पतझड़ लगा आज है!

जिन हाथो ने छोटी छोटी उंगलियों को 

पकड़ कर चलना सिखाया था,

उन्हीं उंगलियों को खुद पर उठता देख हैरान है!

                     ◦•●◉✿✿◉●•◦

होली के रंग तो उसके चेहरे पर लगे है, 

पर जिन्दगी में फीके खुशियों के रंग है!

पास होकर भी कोई नही उसके साथ है!

जो कंधे बच्चों को पूरे मेेेले की सैैैर कराया करते थे,

उन्हीं की जिन्दगी एक काठ की छड़ी पर टिकी आज है!

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जिन्दगी के इस सफर में आकेला वो आज है,

बच्चों की तरह वो खुद से करता रहता संवाद है!

फिर भी अपने बच्चों की 

खुशियों के लिए हर पल करता फरियाद है!

आखिर वो इक बाप है! 

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एक तरफ तो पुरुष समाज महिलाओं के अधिकारों और उनके सम्मान की बात करता है और वहीं दूसरी तरफ उनके रास्ते में खुद ही एक जगह काम करता है। जब समाज ...