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तस्वीर गूगल से |
पहले पढ़ने का शौक था अब लिखने की बिमारी है।ये कलम कभी न रुकी थी, न ही आगे किसी के सामने झुकने और रुकने वाली है।क्योंकि कलम की जिंदगी में साँसें नहीं होतीं।कवयित्री तो नहीं हूँ पर अपनी भावनाओं को कविताओं के जरिए व्यक्त करती हूँ।लेखिका भी नहीं हूँ लेकिन निष्पक्ष लेखन के माध्यम से समाज को आईना दिखाने का दुस्साहस कर रही हूँ।
शनिवार, जून 26, 2021
अपनो से जीतना नहीं , अपनो को जीतना है मुझे!
शुक्रवार, जून 04, 2021
जिन्दगी की शाम
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तस्वीर गूगल से |
कहने को उसका पूरा परिवार है,फिर भी उसकी जिन्दगी विरान है!
परिवार रूपी बगीचे को लगाने वाला माली,
उसी बगीचे की छांव के लिए मोहताज है!
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जिन पौधों को प्रेम और स्नेह
से सीच कर हरा भरा किया था,
उन्हीं के बीच खुद आज बैठा उदास है!
झुर्रीदार चेहरे में बैचेनिया छुपी हजार है,
पर इस बैचेनियो का किसी को नही एहसास है!
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जिन्दगी की इस शाम में अकेला वो आज है!
जिससे परिवार रूपी बगीचे में आया बसन्त है
उसी की जिन्दगी में पतझड़ लगा आज है!
जिन हाथो ने छोटी छोटी उंगलियों को
पकड़ कर चलना सिखाया था,
उन्हीं उंगलियों को खुद पर उठता देख हैरान है!
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होली के रंग तो उसके चेहरे पर लगे है,
पर जिन्दगी में फीके खुशियों के रंग है!
पास होकर भी कोई नही उसके साथ है!
जो कंधे बच्चों को पूरे मेेेले की सैैैर कराया करते थे,
उन्हीं की जिन्दगी एक काठ की छड़ी पर टिकी आज है!
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जिन्दगी के इस सफर में आकेला वो आज है,
बच्चों की तरह वो खुद से करता रहता संवाद है!
फिर भी अपने बच्चों की
खुशियों के लिए हर पल करता फरियाद है!
आखिर वो इक बाप है!
नारी सशक्तिकरण के लिए पितृसत्तात्मक समाज का दोहरापन
एक तरफ तो पुरुष समाज महिलाओं के अधिकारों और उनके सम्मान की बात करता है और वहीं दूसरी तरफ उनके रास्ते में खुद ही एक जगह काम करता है। जब समाज ...

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