ही सिमट कर रह जाते हैं ?
क्यों बाहर निकलने से घबराते हैं ?
यदि डायरी से बाहर आ भी जाते हैं
तो एक ऊंची उड़ान भरने से पहले
क्यों उनके पंख तोड़ दिए जाते हैं ?
सपनों की दुनिया
क्यों एक डायरी में ही
सिमट कर रह जाते हैं?
क्यों हमारी ख्वाहिशों का
खुली हवा में एक लंबी सांस भरने से
पहले गला घोट दिया जाता है?
हमारी आंखों में सुनहरे सपने
पलने से पहले ही
क्यों खौफनाक मंजर भर दिए जाता है ?
क्यों हमें अपने सपने को
सिर्फ डायरी तक ही सीमित
रखने का अधिकार है ?
क्यों हमारे विचारों को चारदीवारी में
कैद करने का हर संभव प्रयास किया जाता है?
क्यों हमारे अपनों द्वारा हमेशा
यह नसीहत दी जाती है ,
कि घर के बाहर के मामले में
दखल करना लड़कियों के संस्कार नहीं ?
क्यों हमेशा हमें संस्कारी बनाने के
नाम पर बेचारी बनाया जाता है?
क्यों हमेशा हमें सिर्फ सहना
सिखाया जाता है?
कुछ तो कर रहीं अंतरिक्ष में नाम दर्ज,
तो कुछ निभा रहीं देश भक्ति का फर्ज!
पर कुछ अभी कर रही चौखट के
बाहर निकलने का ही संघर्ष!
क्यों कुछ को चौखट के
बाहर जाने का भी अधिकार नहीं?
क्यों पुत्र मोह में अंधी मां द्वारा
नन्ही-सी कली खिलने से
पहले ही तोड़ दी जाती है?
क्यों कुछ इस दुनिया में
आने के खातिर कर रहीं हैं संघर्ष?
तुम्हार हर प्रश्न हमारे देश की बहुतायत लड़कियों के प्रश्न हैं, मेरे समय,मेरी मां,मेरी दादी और कई पीढ़ियों पहले से ये प्रश्न हमारे जेहन में आते हैं चुभते हैं और जब कोई हल नहीं मिलता है धीरे से मन के किसी कोने में दुबक जाते हैं.. बस हमें बहुत बहुत आगे बढ़कर हर जगह प्रूफ करना होता है कि हम भी इसी ग्रह के प्राणी हैं, हां कुछ लोगों को खुशनसीबी से सब कुछ हासिल जो जाता है तो वे ऐसी पीड़ा को समझ ही माही पाते ।
जवाब देंहटाएंसारगर्भित अभिव्यक्ति के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएं प्रिय मनीषा ।
माही/ नहीं
हटाएंहां मैं हमें हर जगह प्रूफ करना होता है पहला मौका हमारे लिए आखिरी मौका होता है!
हटाएंपता नहीं कब सुधार आएगा!
आपका तहे दिल से बहुत-बहुत धन्यवाद 🙏🙏🙏🙏
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार
(21-11-21) को "प्रगति और प्रकृति का संघर्ष " (चर्चा - 4255) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा
मेरी रचना को चर्चमन में शामिल करने के लिए आपका तहेदिल से बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय मैम🙏🙏🙏
हटाएंसारगर्भित समकालीन रचना
जवाब देंहटाएं🙏🙏
हटाएंअंतर हृदय से प्रस्फुटित कुछ विषम प्रश्न सदियों से चले आ रहे हैं, शायद इन्हीं वर्जनाओं में कहीं अराजकता से बचें रहने का गहन भेद हो।
जवाब देंहटाएंगहन प्रश्न।
अभिनव सृजन।
🙏🙏🙏🙏
हटाएंमैंने कहा था एक स्वतंत्र आवाज तुम्हारी हर आवाज पर भारी हैं
जवाब देंहटाएंफिर क्यों ये लाचारी है । भुत को हम बदल नहीं सकते और भविष्य पर अपना वश नहीं । सो सम्पूर्ण वर्तमान में जीने की अब बारी हैं।
कुछ तुम बदलों कुछ हम कोशिश करते है कुछ छोड़ देते है समाज इस दुनिया पर जो वर्षों से थी आज भी बेचारी है।
और हाँ डायरी को इतने हल्के में मत लो -
डायरी जिसमें एक पुरा जीवन समा जाता है ।
डायरी जो तन्हाई में दोस्त बन आता है।
डायरी जो हमारी खुशियों से उफनता नहीं और
पीड़ा में साथ छोड़कर जाता नही।
डायरी जो मन कि व्यथा को बिना सवाल किय सुनता है
कभी कभी मुश्किल भरे सुवालों का हल बनकर उभरता हैं।
आपकी इस प्रतिक्रिया से मुझे इतनी हिम्मत मिली है यह मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकती!आपका आभार व्यक्त करने के लिए धन्यवाद शब्द तो बहुत ही छोटा है! आपका दिल की गहराइयों से असंख्य धन्यवाद 🙏🙏🙏🙏
हटाएंयह कोई आभार नहीं हक्क्ति हैं ।
हटाएंगहनता लिए चिंतनपरक सृजन ।
जवाब देंहटाएं🙏🙏
हटाएंप्रिय मनीषा, हर लड़की इन प्रश्नों के साथ जीती हुई जीवन जीती है। शायद हमसे पहली पीढ़ियों ने जीवन का संत्रास कहीं कहीं अधिक भोगा है पर आज शिक्षा के उजाले में लड़कियों ने अपने आप को खूब साबित किया है। धीरे धीरे स्थिति बदल रही है और भविष्य में भी और बेहतर होने की आशा है। पर कहीं न कहीं इन प्रश्नों का अस्तित्व समाप्त नहीं होगा कदाचित।
जवाब देंहटाएंइतने दिनों बाद आज आपकी प्रतिक्रिया देख कर बहुत ही खुशी मिली!😊😊
हटाएंधन्यवाद मैम 🙏🙏