है फूल -सी वो कोमल!
वो करुणा की है मूरत,
जिसके आगे ,
है फीकी सारी सूरत!
थोड़ी नासमझ और बहुत ही मासूम है,
ठंडी में आंगन की सुनहरी धूप है!
सूरज की तपती दुपहरी में ,
वो तरूवर की छांव है!
मुस्कान उसकी अध खिले फूल- सी,
गहरी है वो समंदर -सी,
नाजुक है वो ओस- सी
युध्द के क्षेत्र में ,
चमकती तलवार सी !
अंधियारों में चिराग सी,
अडिग है चट्टान सी
शब्दों में नहीं कर सकते बयां
ऐसा उसका प्यार है
उसकी सबसे अलग है पहचान !
वो इस संसार में ,
और उसी से संसार!
माँ से ही होता है,
इस सृष्टि का निर्माण!
माँ के चरणों को शत्-शत् प्रणाम!
बहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏🙏धन्यवाद सर🙏🙏🙏🙏
हटाएंअत्यंत सुंदर, हृदयस्पर्शी एवं सराहनीय रचना। अभिनंदन।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत धन्यवाद और आभार सर 🙏🙏
हटाएंरचना अच्छी है पर मुझे प्रतीक रुप में मां के लिए सर्प सही नहीं लगा। वैसे रचना अच्छी है ।
जवाब देंहटाएंहां मैम मुझे भी सही नहीं लग रहा था पर अब सुधार कर लिया!
हटाएंआपको तहेदिल से धन्यवाद🙏💕
शुक्रिया मनीषा, मेरे सुझाव को इतनी उदारता से लेने के लिए। अब रचना का सौंदर्य चौगुना बढ़ गया है ।मां पहाड़ सी ही होती है ।उसका अस्तित्व विराट है पर वह भीतर से पुष्प सी ही सुकोमल है। यूं लिखती हुई। यश बटोरती रहो। मेरी शुभकामनाएं और प्यार 🌷🌷❤️❤️
जवाब देंहटाएंमैम,आपको तहेदिल से धन्यवाद!
हटाएंआपकी ये बात मुझे बहुत अच्छी लगती है कि आप बेजिझक हमारी कमियों से हमें अवगत करती है! जोकि बहुत कम लोग ही करते हैं सामने तारीफ करने में सब माहिर होते है पर मुंह पर कमियाँ बताना में बहुत कम! इस लिए आपको तहेदिल से धन्यवाद🙏💕🙏💕🙏💕🙏💕🙏💕🙏💕
बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना |
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