मंगलवार, मई 18, 2021

जब पानी सर से बह रहा, फिर कैसे मैं मौन रहूँ?

तस्वीर गूगल से

तुम कहते हो मैं मौन रहूँ, 
जब पानी सर से बह रहा, 
तो कैसे मैं चुप- चाप सहू? 
क्या डूबने का इंतज़ार करूँ? 
दम घुट रहा है अब मेरा, 
और तुम कहते हो थोड़ा धैर्य धरूं! 
क्या आखिरी सांस का इंतज़ार करूँ? 
जब पानी सर .................... 
व्यंग्यों के चुभते बाणों को, 
कैसे मैं दिन रात  सहूँ? 
जो घायल करते मेरे हृदय को, 
उन पर कैसे ना पलटवार करूँ? 
हद से अधिक सहनशीलता
कायरता कहलाती है! 
फिर कैसे मैं चुप- चाप रहूँ? 
वे करते हैं अस्त्र- शस्त्र से वार, 
मैं कलम से भी ना प्रहार करूँ? 
तुम्हें शोभा देता होगा चुप रहना, 
पर मेरे लिए धिक्कार है! 
जब पानी सर...........
चीरहरण हो रहा द्रोपदी का 
कैसे मैं नज़रअंदाज़ करूँ? 
जी करता है उस हैवान के प्राण हरूँ, 
और तुम कहते हो, 
मैं जीना भी ना दुशवार करूँ!  
जो क्षमा के पात्र नहीं, 
उसकी दया यचिका, 
कैसे मैं स्वीकार करूँ? 
माफ़ी गलती की दी जाती है, 
गुनाहों को कैसे मैं माफ़ करूँ? 
जब पानी सर............ 



16 टिप्‍पणियां:

  1. बिलकुल ठीक कहा आपने। माफ़ी ग़लती की दी जाती है, गुनाहों की नहीं। ख़ामोश रहने की कोई ज़रूरत नहीं बल्कि बोलना ही ठीक है जब पानी सर से गुज़र रहा हो। बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे।

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    1. आपका बहुत बहुत धन्यवाद और आभार 🙏🙏

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  4. बहुत सुन्दर है आप की कविता 👌👌

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  5. हद से अधिक सहनशीलता
    कायरता कहलाती है! अवश्य...खामोशी अच्छी होती है लेकिन वह मनन के लिए हो तब, यदि वह अत्याचार को लेकर है तब उसका चीखना ही बेहतर है, वह भी पूरी ताकत से। अच्छी रचना है।

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  6. बहुत खुद प्रिय मनीषा | जब कोई अव्यवस्थाओं से असंतुष्ट होता है उसे जरुर आइना दिखाने के लिए आगे आना चाहिए | कलम ही प्रबुद्ध लोगों की ताकत है | यूँ ही लिखती आगे बढती रहो | मेरी शुभकामनाएं|

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  7. चुप्पी हर सवाल का जवाब नहीं है! वक़्त आने पर ये टूटनी ही चाहिए! हम अक्सर निजी जीवन में तभी आवाज़ उठाते हैं जब ज़्यादती हो या हद पार हो जाए पर हद पार हो तभी कुछ कहें, ऐसी नौबत नहीं आने देना चाहिए!

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    1. हाँ मैम आपने बिल्कुल सही कहाहम अक्सर निजी जीवन में तभी आवाज़ उठाते हैं जब ज़्यादती हो या हद पार हो जाती है 🙏🙏🙏धन्यवाद मैम🙏🙏🙏🙏

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