शुक्रवार, नवंबर 05, 2021

नई राष्ट्रीय जल नीति

जल शक्ति मंत्रालय द्वारा नई जल नीति बनाने के लिए 11 सदस्यों वाली एक ऐसी कमेटी का गठन किया गया है जिसके अध्यक्ष मिहिर शाह को बनाया गया है! इन 11 सदस्यों को लोगों के बीच जाकर जनता( बड़े-बड़े कॉलेज अनुसंधानों, संस्थाओं आदि से )जल आपूर्ति के बारे में और मुख्य कारण और समाधान के तरीकों पर राय लेनेपूछने का काम दिया गया !  इस मुहिम के जरिए अभी तक 124 सलाह प्राप्त हुई है! और मुख्य कारण सामने आए हैं! 
जिनमें से कुछ महत्वपूर्ण बिंदु
कृषि में विविधता-भारत में 80-90% पीने का पानी खेती के काम करने में लाते हैं! यह बात जानकर आप सोच रहे होंगे कि अगर खेती नहीं करेंगे तो खाएंगे क्या? तो यह जानकर हैरानी होगी कि असल में उन क्षेत्रों में पीने के पानी को सिचाई के उपयोग में लिया जा रहा,जोकि भौगोलिक रूप से उस प्रकार की खेती के लिए नहीं बने हैं! जिसकी कर रहें हैं! जैसे हरियाणा, पंजाब यह वह क्षेत्र है जहां चावल की खेती अधिक होती है, पर असल में यह जलवायवीय रूप से चावल की खेती करने के लिए अनुकूल नहीं है! क्योंकि चावल की खेती वास्तविक रूप से उन क्षेत्रों में होती है जहां पानी की मात्रा बहुत अधिक होती है! तो आप सोच रहे होंगे कि पंजाब हरियाणा में तो पानी की मात्रा बहुत ही है, फिर ऐसा क्यों कह रहे हैं! 
सबको पता है कि औसत जल वर्षा से पानी की मात्रा का पता लगाया जाता है इसलिए हमने जमीन से कितना पानी निकाला यह मायने नहीं रखता बल्कि यह मायने रखता है कि हमें बारिश से कितना पानी प्राप्त हुआ! इस हिसाब से पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और केरल जो जलवायवीय रूप से चावल की खेती करने के लिए अनुकूल है! जबकि पंजाब और हरियाणा में नहरों और हरित क्रांति के दौरान अंडर ग्राउंड वाटर को निकालने के लिए बनाई गई तकनीक से चावल की खेती होती है! जिससे अंडर ग्राउंड वाटर में जबरदस्त कमी आई अर्थात यह क्षेत्र जलवायवीय रूप से चावल की खेती करने के अनुकूल नहीं है फिर भी चावल के सबसे अच्छे उत्पादक राज्यों में आता है!जिस पानी से खेती हो रही है उसका उपयोग पीने के पानी में करने की जरूरत है! तो सवाल उठता है कि पंजाब और हरियाणा वाले कृषि करना बंद कर दें? तो बता दे कि कृषि बंद करने की कोई जरूरत नहीं है बस कृषि में विविधता लाने की  जरूरत है अर्थात जो क्षेत्र भौगोलिक रूप से जिस खेती के लिए अनुकूल हैं उस क्षेत्र में उसी की खेती की जानी चाहिए जिससे पीने कि पानी की कमी ना हो! और सरकार को चाहिए कि 31 फसलों के अतिरिक्त अन्य फसलों पर पर भी एमएसपी(न्यूनतम समर्थन मूल्य) या फिर सब्सिडी दे! जिससे किसान बेझिझक उन फसलों की खेती करें! इससे पानी का सदुपयोग होगा और पीने के पानी की किल्लत खत्म होगी! 
• आपूर्ति-पक्ष उपाय- राजस्थान जैसे राज्यों जिनमें  पानी की कमी है और वहांं पानी नहरों से पहुंचाने के बजाय पाइप लाइन से पहुंचाया जाना चाहिए जाए! जिससेेे वाटर का वेपर कम बनेगा और पानी रिस रिस कर जमीन में कम जाएगा ! जिससे बिना बर्बाद हुए  वहां पहुंंच जाएगा जहाँ जरूरत है और खर्चा भी होगा! 
और भी बहुत से कारण और समाधान के उपाय बताये गये हैं जो बहुत लागू भी होने वाले हैं! 

14 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०६-११-२०२१) को
    'शुभ दीपावली'(चर्चा अंक -४२३९)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आप का बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय मैम🙏🙏🙏

      हटाएं
  2. जल संरक्षण के लिए जागरूक करता सुंदर सराहनीय और चिंतनपूर्ण लेखन ।भैया दूज की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 💐💐

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपको भी भैया दूज की ढेर सारी शुभकामनाएं व बधाई🎉🎊

      हटाएं
  3. सुंदर विवेचना करता प्रेरक आलेख।
    साधुवाद।

    जवाब देंहटाएं
  4. ज्वलंत विषय पर उपयोगी जानकारी

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत उपयोगी जानकारी मिली आपके लेख से। लेख छोटा है पर बहुमूल्य है। साझा करने के लिए हार्दिक आभार।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही उपयोगी जानकारी देता आलेख|आपका हार्डी से आभार|सादर अभिवादन |

    जवाब देंहटाएं

नारी सशक्तिकरण के लिए पितृसत्तात्मक समाज का दोहरापन

एक तरफ तो पुरुष समाज महिलाओं के अधिकारों और उनके सम्मान की बात करता है और वहीं दूसरी तरफ उनके रास्ते में खुद ही एक जगह काम करता है। जब समाज ...