उसे नहीं पता था
कि वह अपने साथ
बाकी लड़कियों के आंखों से
उनके सुनहरे सपने
छीन कर ले जा रही थी!
खुद को तो आजाद कर रही थी
पर बाकी लड़कियों को
हमेशा के लिए चारदीवारी में
कैद किए जा रही थी!
गलती तो उसने की थी !
पर सजा उसके मां-बाप को मिल रही थी
उसके चेहरे पर तो
कलिख ही लग ही चुकी थी !
किंतु अपने कलिख की साया
छोड़े जा रही थी !
अनेकों लड़कियों की ख्वाहिशों का
गला घोट कर वह खुली हवा में
सांस लेने जा रही थी!
खुद गलत कदम उठा कर
हर लड़की को शक के घेरे में
कैद किए जा रही थी!
रात के अंधेरों में चोरों की तरह भागकर
बादशाह की
जिंदगी जीने जा रही थी!
समाज की रूढ़िवादी विचारधारा को
बदलने की बजाय
उसे और मजबूती देते जा रही थी !
खुद की जिंदगी में मधुर संगीत भरने के लिए
अपने मां- बाप की जिंदगी में
समाज के ताने तोहफे में दिए जा रही थी!
जिन की उंगलियों को
पकड़कर चलना सीखा
उन्हीं पर उंगली उठाने का
मौका दिए जा रही थी
एक जिस्म की चाह में वह
रूह के रिश्ते तोड़े जा रही थी !
जिनके सर चढ़ी थी ,
उन्हीं को सर झुका कर
जीने पर मजबूर किए जा रही थी!
कभी-कभी किसी एक की गलती का खामियाजा बहुतों को भुगतना पड़ता है
जवाब देंहटाएंप्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद आदरणीय सर
हटाएंअपनी चाहत में यही तो नहीं दिखता किसी को की कितनों की ज़िन्दगी में दुख भरा जा रहा है ।
जवाब देंहटाएंगहन सोच ।
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय मैम🙏
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 15 सितंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
मेरी रचना को "5 लिंको का आनंद में " जगह देने के लिए आपका तहे दिल से बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय मैम🙏
हटाएंVery nice poem.
जवाब देंहटाएंThank you🙏
हटाएं
जवाब देंहटाएंखुद को तो आजाद कर रही थी
पर बाकी लड़कियों को
हमेशा के लिए चारदीवारी में
कैद किए जा रही थी!
गलती तो उसने की थी !
पर सजा उसके मां-बाप को मिल रही थी ..सामाजिक चिंतन से ओतप्रोत रचना ।
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय मैम
हटाएंसम्बन्धों की डोर मृदुल है,
जवाब देंहटाएंखुद से अधिक बचा कर रखना।
सुन्दर और व्यवहारिक पंक्तियाँ।
आपका तहे दिल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय सर🙏🙏
हटाएंवाह!मनीषा जी लाजवाब यथार्थ।
जवाब देंहटाएंसादर
सहृदय आपका बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय मैम🙏🙏🙏🙏
हटाएंगहन विचार परक चिंतन देती रचना ।
जवाब देंहटाएंभाव खुलकर मुखरित हुए हैं ।
बना सुंदर सृजन के लिए।
सहृदय धन्यवाद आदरणीय🙏🙏🙏🙏🙏
हटाएंबधाई सुंदर सृजन के लिए।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीय 🙏🙏🙏🙏🙏
हटाएंजिस्म कि चाह में रूह के रिश्तें तोड़े जा रही थी क्योंकि वो जानती थी कमोंबहोत पुरी दुनिया
जवाब देंहटाएंइस आभा के आगे झुकती है तब भी तो इन्सानी पहले भी बिकता था आज भी बिकती है ।
और रूह । रूह ! पहले भी अजर अमर था आज भी है वो कल भी नहीं दिखता था आज भी नहीं दिखता है । यही हक्कीत है ।
"हर रिश्तें की बुनियाद अब पत्थरों पर खींचें जाते है
रूह से रिश्तें अब किस्से कहानीयों में दिखतें है । "
अति सुंदर एवं भावनात्मक रचना !
आपका बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय सर🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
हटाएंबहुत गहराई है आपके लेखन में ..,इसी तरह लिखती रहिए । शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंआपका तहे दिल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय मैम मेरा हौसला अफजाई करने के लिए आप लोगों की प्रतिक्रिया बहुत मायने रखती है! 🙏🙏🙏🙏
हटाएंबहुत सुंदर लेखन..
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है! आपका बहुत-बहुत धन्यवाद सर!
हटाएंरात के अंधेरों में चोरों की तरह भागकर
जवाब देंहटाएंबादशाह की
जिंदगी जीने जा रही थी!
समाज की रूढ़िवादी विचारधारा को
बदलने की बजाय
उसे और मजबूती देते जा रही थी !
बहुत सटीक...
जो छुपकर या भागकर किया जाय वह प्रेम हो ही नहीं सकता...
बहुत ही गहन चिन्तनपरक सृजन
वाह!!!
इतने बेहतरीन प्रतिक्रिया देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय मैम 🙏
हटाएंअत्यंत गहन अभिव्यक्ति!!!
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद 🙏🙏
हटाएं