उस बस्ती में रोज की तरह आज भी चूल्हे से उठता धुआं बगल में लगे कूड़े के डेर से उठती असहनीय बदबू वहीं पास में खेल रहे बच्चे और बगल में बह रहा गंदा नाला बस्ती से सटी गगनचुंबी बिल्डिंग्स जिसमें हजारों लोग रहते हैं जिसमें जाने के लिए चमचमाती सड़कें हैं, जिस पर अनेकों लोग आ जा रहे हैं! पर एकदम शांति है सिर्फ मोटर कार की आवाज ही आ रही है और वहीं बस्ती में शाम के वक्त कुछ ज्यादा ही चहल पहल है भेड़, बकरियों की आवाज बच्चे के रोने की आवाज आदि आ रही है! बस्ती में जाने के लिए कच्ची सड़कें हैं जिस पर शाम के वक्त कुछ ज्यादा ही धूल उड़ रही है! यह दृश्य अमीर और गरीब के बीच की असमानता को साफ साफ दर्शाता है ! अमीर और गरीब के बीच की खाई दूर से ही देखकर महसूस की जा सकती है! कच्ची सड़कों पर कुछ बच्चे एक साथ कूड़े से मिले जरूरी सामान को बोरी में भरकर पीठ पर लादे आपस में जोड़ घटाव करते हुए आ रहें हैं, कुछ खुश तो कुछ उदास दिख रहें हैं ! तभी बगल से एक लंबी सी चमचमाती कार, धूल उड़ाते हुए सामने निकलती है कार को देखकर सभी बच्चे कार के पीछे दौड़ पड़े यह सोच कर कि कोई सोशल वर्कर उनके लिए कुछ लेकर आया है! कार बस्ती के बीचो बीच जाकर रुकी, कार के रुकते ही आसपास के सभी बच्चे कार को घेर कर खड़े हो गए तभी कार का दरवाजा खुला, जिसमें से घुंघराले बालों, अच्छी कद काठी वाला व्यक्ति निकला। जिसकी उम्र लगभग 50-55 की होगी। उसके हाथ में एक मोटी सी डायरी और कलम है , और आंखों पर गोल फ्रेम का ऐनक पहन रखा है। यह व्यक्ति एक मशहूर लेखक है, पर बच्चों के लिए अजनबी। सभी बच्चे बड़ी उत्सुकता से उसकी तरफ देख रहे हैं लेखक बच्चों की तरफ देखता है और उनके पास जाता है खड़े-खड़े ही उनसे कुछ देर बात करता है और अपनी डायरी में कुछ लिखता है! फिर पास की झोपड़ी में चूल्हे पर खाना पका रही महिला के पास जाता है और लेखक वही बगल में पड़ी खाट पर बैठते हुए कहता है कि 'चूल्हे के धुए से आपको बहुत तकलीफ होती होगी ,मैं समझ सकता हूं' सभी बच्चे लेखक को घेर कर खड़े हो जाते हैं! लेखक वहीं बैठे वृद्ध व्यक्ति से बातें करने लगता है और अपने बारे में बताता है उन्हें बताता है कि वह उनकी गरीबी पर एक किताब लिखने के लिए आया है! इतना सुनकर वृद्ध व्यक्ति के लबों पर एक अजीब सी मुस्कान तैर जाती है! वृद्ध व्यक्ति मुसकुराते हुए कहता है आपसे पहले भी बहुत लोग आ चुके हैं हमारी गरीबी को कोरे कागज़ पर उतारने के लिए..! खैर, आपकी किताब के लिए जितनी मदद कर सकता हूँ वो करूँगा! लेखक साहब बातें करते करते अपनी डायरी पर कुछ पॉइंट लिख भी रहे हैं! तभी एक 15-16 साल का दुबला पतला सा लड़का बच्चों के बीच से बाहर आकर लेखक सेे बोलता है अंकल क्या मैं कुछ पूछ सकता हूं? लेखक कहता है हाँ, हाँ क्यों नहीं बिल्कुल!मैं आप लोगों से बातें करने और आप लोगों के बारे में जानने ही तो आया हूं ,बेझिझक पूछो जो पूछना है!
अंकल हमारी बेबसी को कैमरे में कैद करके बहुतों की जिंदगी चमक जाती है तो फिर हमारी जिंदगी बेरंग ही क्यों रहती है? जब लोग हमारी गरीबी को मात्र कोरे कागज पर उतार कर अमीर और फेमस हो जाते हैं तो हम गरीब क्यों रह जातें हैं? मतलब जिसकी वजह से बहुत से लोग अमीर हो जाते हैं वो गरीब क्यों रहता है? यह सवाल सुनकर लेखक निशब्द हो जाता है और उसकी कलम वहीं की वहीं रुक जाती है.....! मानो उसके शब्दकोश में शब्द ही नहीं रह गए!
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 07 दिसम्बर 2021 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आभार🙏🙏🙏
हटाएंलाजवाब 👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंधन्यवाद और आभार🙏🙏🙏
हटाएंगरीबी को कोरे कागज मात्र पर उतार कर अमीर और फेमस हो जाते हैं लेकिन गरीब अमीर नही होते। मतलब जिसकी वजह से बहुत से लोग अमीर हो जाते हैं वो गरीब क्यों रहता है? मनीषा इस सवाल का जबाब आज तक कोई नही दे पाया है। बहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद🙏💕
हटाएंबड़ा ही उम्दा लेखन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद🙏🙏
हटाएंबहुत ही हृदयस्पर्शी विषय उठाया है मनीषा । उत्कृष्ट और आंख खोलता आलेख । मैने भी इस पर कई रचनाएँ लिखी हैं ।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद🙏💕
हटाएंकिसी की ग़रीबी पर कलम उठाकर या बेबसी को कैमरे में कैद करके बहुतों की जिंदगी चमक जाती है, पर उनकी ज़िंदगी में कोई बदलाव नहीं आता, क्योंकि इस दुनिया में हरेक को अपना रास्ता खुद ही बनाता पड़ता है
जवाब देंहटाएंशायद आप ठीक कहर रहीं हैं..
हटाएंधन्यवाद आदरणीय🙏
शुक्रिया🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंनिशब्द करता यथार्थ । हृदयस्पर्शी सृजन मनीषा जी ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीय मैम🙏
हटाएंलाजवाब कर दिया इस वृतांत ने तो, वाह मनीषा जी
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद आदरणीय मैम
हटाएंसत्य कडुवा होता है ...
जवाब देंहटाएंपर निःशब्द कर देता है अकसर ...
जी सर आप बिल्कुल सच कह रहे हैं सत्य कड़वा होता है और यह हर किसी के गले नहीं उतर सकता
हटाएंआपकी इस प्रतिक्रिया के लिए बहुत होते हैं🙏
दिगम्बर जी ने सही कहा"सत्य कडुवा होता है ...
जवाब देंहटाएंपर निःशब्द कर देता है अकसर ..."
लेखक हो या समाज सेवी ये सिर्फ खुद के लिए ये सब करते हैं। तुम ने बहुत ही गंभीर विषय पर चिंतन किया है। प्रिय मनीषा,तुम्हारी इस कहानी को पढ़कर मुझे भी एक सत्य कहानी याद आ गई है, समय मिला तो जल्दी ही साझा करूंगी। ढ़ेर सारा स्नेह तुम्हें
जी मैम मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूं आप बिल्कुल सही कह रही है!
हटाएंसच कहूं तो यह कहानी लिखते हुए मुझे गिल्टी फील हो रहा था कि कहीं मैं भी तो नहीं कहानी के उसी लेखक की तरह...?
आपकी प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद🙏
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसफर में भीड़ तो होगी निकल सको तो चलो,
जवाब देंहटाएंमुझे गिरा के तुम संभल सको तो चलो
बशीर बद्र साहब का ये शेर हमारे समाज की इसी सच्चाई को ब्याननन करता है।
सदुर्भाग्य है मगर यही हो रहा हूं
शानदार लेखन
धन्यवाद आदरणीय सर 🙏🙏🙏
हटाएंहमारे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है🙏
सच है और कड़वा सच है.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीय🙏🙏🙏
हटाएंगरीब को अपनी किस्मत चमकाने के लिए दूसरे लेखक की जरूरत नहीं ...उसे अपनी किस्मत अपने हाथों लिखनी होगी...पर हाँ ये भी सच है कि ऐसी बस्तियों में लोग सिर्फ अपने स्वार्थ वश जाते हैं उनकी मदद के लिए नहीं।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सारगर्भित सृजन है आपका
बधाई एवं शुभकामनाएं।
शुक्रिया🙏🙏
हटाएंगरीब और गरीबी कि बड़ी-बड़ी बातें कागजों पर छाप आते है कुछ करते क्यों नहीं हम
जवाब देंहटाएंमुरझायें चेहरे पर उम्मीदों से पत्थराई आंखे देख दिल से दुःखी होते है कुछ करते क्यों नहीं हम
गुदड़ी में लिपटी जिन्दगी फुटपाथों पर देख वस उफ करते है कुछ करते क्यों नहीं हम
हंसी आती है दरियादिली देखकर 5 रु में 5000 रुपये वाली पब्लिसिटी कि
उम्मीद करते हैं पर कुछ करते क्यों नहीं हम।
" नाव में जल और घर में धन भरे तो जितना जल्दी हो सके अंजुली से उपछीयें "
मतलव सामर्थ्य अनुसार दान करते रहें।
हमेशा कि तरह सत्य सटीक सार्थक रचना !
सहृदय धन्यवाद🙏🙏🙏🙏🙏
हटाएंसचमुच निशब्द!
जवाब देंहटाएंसमाज को आईना दिखाती सार्थक अभिव्यक्ति।
सटीक दृश्य सटीक हृदय स्पर्शी सृजन।
बहुत बहुत साधुवाद।
धन्यवाद आदरणीय🙏🙏
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