उड़ती रहती थी
हवाओं के संग
वो तितली बन,
पेड़ पौधों से
दोस्ती थी उसकी,
मस्ती करती थी
वो पशु-पक्षियों के संग|
किलकाती रहती थी
कली में मधुप बन,
चहकती रहती थी
वो चिड़ियों के संग|
लहराती थी,
वह लहरों के संग,
बरखा में लरजाती थी
बन उमंग|
बांधा करती थी
जो पांव में तरंग,
उन्हीं पांवों को
अब रिश्तों के बंधन
ने लिए हैं जकड़|
भावनाओं पर लगने लगे हैं,
अब मर्यादा के पहरे|
जिन नयन ने सजाएं थे
अनगिने-स्वप्न,
उन नयनों में भर दिए गए
खौफनाक मंजर|
जो खेला करती थी
अंजुरी भर धूप के संग,
खेल, खेल रही जिंदगी
आज उसके संग|
अभिव्यक्ति पर है
अब उसके सीमा के बंधन,
फीकी है उसके चेहरे की चमक|
किसी चित्रकार की
अधूरी पड़ी तस्वीर सी,
आज उसकी जिंदगी है बेरंग|
बिखरा हुआ है सब कुछ,
पर अब भी ढूंढ रही है
चित्रकार को आशा भरी नजर|
◦•●◉✿मनीषा गोस्वामी✿◉●•◦
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १७ दिसंबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
🙏🙏
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१७-१२ -२०२१) को
'शब्द सारे मौन होते'(चर्चा अंक-४२८१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
धन्यवाद आदरणीय🙏
हटाएंये आशा ही तो जीवन की हर दुरूहता में एक नया मार्ग प्रशस्त करती है, और बंधनों को तोड़कर जीवन जीने की कला सिखाती है .. भावों भरी बेहतरीन रचना, बहुत शुभकामनाएं प्रिय मनीषा ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीय मैम🙏
हटाएंबेहतरीन रचना..
जवाब देंहटाएंसादर..
आभार...🙏🙏
हटाएंसेटिंग में जाकर तारीख सेट करिए, आज 17 दिसंबर है
जवाब देंहटाएंऔर 16 दिसंबर दिख रहा है
सादर..
जी
हटाएंयही स्त्री जीवन की त्रासदी है । उन्मुक्तता कब बंधन में बंध जाती है समझ नहीं आता । उम्र के जर पड़ाव पर आए परिवर्तन से सामंजस्य बैठना होता है ।
जवाब देंहटाएंगहन मंथन लिए रचना ।
बिल्कुल सही कहा आपने सामंजस्य बिठाना बहुत ही जरूरी होता है! पर आसान नहीं.. .! हर किसी को ऐसी अवस्था से गुजरना पड़ता है!
हटाएंधन्यवाद आदरणीय🙏
अब रिश्तों के बंधन
जवाब देंहटाएंने लिए हैं जकड़|
भावनाओं पर लगने लगे हैं,
अब मर्यादा के पहरे|
जिन नयन ने सजाएं थे
अनगिने-स्वप्न,
उन नयनों में भर दिए गए
खौफनाक मंजर|
वैसे तो बदलाव स्त्री हो या पुरुष सभी के जीवन में आता है और बदलाव को स्वीकारना मुश्किल भी होता है पर बदलाव अगर खौफनाक हो तो दुर्भाग्य बन जाता है।
बहुत ही सुन्दर मनमंथन करती लाजवाब कृति।
जी बदलाव हर एक के जिंदगी में आता है!
हटाएंआभार... आदरणीय मैम...🙏🙏
रिश्तों के बंधन खुबसूरत होते हैं और जरुरी भी। लेकिन जब ये बंधन असमय, जबरन और मर्जी के विरुद्ध हो तो जकड़न ही नहीं बोझ भी बन जाते हैं और फिर उस तितली का ही नहीं पुरे कुनबे का अस्तित्व भी ख़तरे में पड़ जाता है। आज भी इस पर और मंथन की जरूरत है। बहुत ही चिंतनपरक सृजन प्रिय मनीषा,ढ़ेर सारा स्नेह तुम्हें
जवाब देंहटाएंइस खूबसूरत और स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए आपका तहेदिल से बहुत बहुत धन्यवाद🙏💕
हटाएंबंधन जब भारी लगने लगें तब ऐसी ही कैफ़ियत होती है, सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद आदरणीय मैम🙏
हटाएंHeart touching poetry ❣️♥️
जवाब देंहटाएंThanks🙏
हटाएंबेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीय🙏
हटाएंआशा भरी नज़र तो हमेशा जरूरी है ... किसी भी काल की छाया देर तक नहीं रहती ...
जवाब देंहटाएंजीवन में सकारात्मकता रहना जरूरी है ...
जी सर..!
हटाएंआपका तहेदिल से बहुत बहुत धन्यवाद🙏
दिल को छू लेने वाली पंक्तियाँ.... जिस तरह उम्र बढ़ने के साथ कभी चाहे अनचाहे बंधन आपको बांधने लगते हैं उससे एक तरह की उत्कंठा मन में जागृत हो जाती है। उस उत्कंठा को आपने बाखूबी बयान किया है।
जवाब देंहटाएंइतने दिनों बाद आपको ब्लॉग पर देख कर बहुत खुशी हुई😊
हटाएंकविता के मर्म को समझने के लिए आपका तहेदिल धन्यवाद आदरणीय🙏
मनिषा, बढ़ती उम्र के साथ लगनेवाले बंधनों को बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त किया है तुमने।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद प्रिय दीदी 🙏🙏
हटाएंउम्मीद करतीं हूँ कि अब आपका स्वस्थ्य पहले से बेहतर होगा और आप पहले से अच्छा महसूस कर रहीं होगीं!
बहुत सुंदर रचना, दिल को छू लेने वाली पंक्तियों से सुसज्जित
जवाब देंहटाएंसहृदय बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय सर🙏🙏
हटाएंबहुत ही मर्मान्तक रचना प्रिय मनीषा। एक आम लड़की के मधुर बचपन में ढेरों प्यार और दुलार के बाद युवावस्था की आहट होते ही मर्यादाओं के रूप में बंधन और पहरे मन को वेदना से विगलित कर देते हैं। पर जीवन में आशा निष्फल नहीं रहती। पर कभी-कभी कोई अनचिन्हा चित्रकार बेजान और रूखे कैनवस पर अत्यन्त सजीले रंग भरकर उसे सदा के लिए एक अमर गरिमा प्रदान कर देता है। बहुत भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंइतनी बेहतरीन और स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए आपका तहेदिल से बहुत बहुत धन्यवाद प्रिय मैम 🙏
हटाएंआप सब हमारे मार्गदर्शक हो आप सभी की प्रतिक्रिया बहुत मायने रखती है और मेरी लेखनी को बेहतरीन बनाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाती है! 🙏
अपनी हाय किसे सुनायें
जवाब देंहटाएंन वन रहा न वनपारा ,
सुख गई नदियां
न जल रहा न जलधारा ।
सिमट गई फुलबगिया तितली कि
घर घरोंदो मर्यादों में ,
उलझ कर रह गया जीवन उसका
रिश्तों के रंगीन धागों में ।
मशलन तितलीयां फुलबगियां में नहीं अब चादरों कि कशिदों में मिलते हैं।
बहुत अच्छा लिखा है आपने |
पांव कि जंजीर ,अधुरी पड़ी तस्वीर
बता रही कि अधुरी है अभी
खिंची तुम्हारी ख्वावो कि लकिर ।
वाह! सर बहुत ही गहरे भाव व्यक्त करती बेहतरीन पंक्तियाँ!
हटाएंमेरी रचना का मर्म समझने के लिए आपका तहेदिल धन्यवाद🙏
अंजुरी भर धूप के संग,
जवाब देंहटाएंखेल, खेल रही जिंदगी
आज उसके संग|
अभिव्यक्ति पर है
अब उसके सीमा के बंधन,
बहुत सुन्दर और हृदयस्पर्शी सृजन । बहुत अच्छा लिखती हैं आप । सस्नेह...,
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय🙏
हटाएंबेड़ियाँ हमेशा उन्कुक्त उड़ान को रोकती हैं ...
जवाब देंहटाएंकाश ये समाज की बेड़ियाँ होती ही नहीं ... आज़ाद पंछी से हर कोई उड़ सकता ...
बहुत गहरी भावपूर्ण रचना ...
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय सर🙏
हटाएंबहुत सुंदर रचना, दिल को छू गई पंक्तियों
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद आदरणीय मैम🙏
हटाएंबहुत ही सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंहमारे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है सर! 💐
हटाएंप्रतिक्रिया के लिए सहृदय धन्यवाद आदरणीय सर🙏
बहुत ही कोमल भाव शब्द बन बिखरे हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
सादर स्नेह
बहुत बहुत धन्यवाद प्रिय मैम🙏
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