पहले पढ़ने का शौक था अब लिखने की बिमारी है।ये कलम कभी न रुकी थी, न ही आगे किसी के सामने झुकने और रुकने वाली है।क्योंकि कलम की जिंदगी में साँसें नहीं होतीं।कवयित्री तो नहीं हूँ पर अपनी भावनाओं को कविताओं के जरिए व्यक्त करती हूँ।लेखिका भी नहीं हूँ लेकिन निष्पक्ष लेखन के माध्यम से समाज को आईना दिखाने का दुस्साहस कर रही हूँ।
गुरुवार, दिसंबर 02, 2021
सबसे बड़ी सज़ा
अरू आज शॉपिंग से वापस आने के बाद पहले जैसे खुश नहीं थी और ना ही उछलते हुए सभी को अपने कपड़े,सैंडल आदि दिखाने गई! आते ही उसने कमरे में पड़ी टेबल पर शॉपिंग के बैग को रख दिया और कमरे में पड़ी बेड पर तकिए में मुंह छुपा कर लेट गई! तभी वहां उसका भाई नील आया और बोला 'ओए! तुझे क्या हुआ? तू ऐसे लेटी क्यों है? कपड़े नहीं दिखाने सभी को? ' अरू बोली 'नहीं कुछ नहीं ,बस थक गई हूं मूड नहीं है! इस पर नील अरू को चिढ़ाते हुए बोला अच्छा ! इससे पहले तो कभी नहीं थकती थी! शॉपिंग जाने से पहले तो ऐसे ही चहक रही थी जैसे पहली बार फ्लाइट में बैठने जा रही है! और अब जब सारी शॉपिंग हो गई फिर मुंह क्यों लटका है?'नहीं भाई कुछ नहीं हुआ है! पर तू मेरे रूम में बिना नॉक किए मत आया कर! और हां! जब मैं अकेली रहूं तो तुम मुझसे बात करने रूम में मत आया कर ,अगर कोई काम हो तो बाहर बुला लिया कर!' अरू का यह रूप देखकर नील एकदम हैरान था! उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर हुआ क्या है? बोला अरू तू ऐसे क्यों बात कर रही है? मैं तेरा भाई हूं और वह भी सगा! शॉपिंग में कोई चीज की कमी रहेगी जो तू मुझ से नाराज है? देख कल तेरा बर्थडे है और मुझे तेरी यह शक्ल बिल्कुल भी पसंद नहीं मुझे तेरी स्माइल देखनी है! 'हो गया तुम्हारा, तो अब जाओ यहाँ से! मुझे कुछ देर अच्छा महसूस कर लेने दे ! प्लीज! ये सुनकर नील बहुत दुखी होता है और उदास होकर वहां से चला जाता है! रात के 12:00 बजते ही नील अरु के रूम में बर्थडे विश करने आता है और जैसे ही बर्थडे विश करता है, अरू उस चिल्ला पड़ती है, तुम इतने असभ्य कैसे हो सकते हो ?रात के 12:00 बजे एक लड़की के रूम में.......! तुम ऐसी हरकत करने से पहले ये क्यों नहीं सोचते कि सामने वाला क्या महसूस कर रहा है वह तुम्हारे साथ सहज महसूस करता है या नहीं? यह सुनकर नील बोला पर तू तो रात में डरने पर मेरे पास आ जाती थी,क्योंकि तू मेरे पास खुद को सबसे अधिक सुरक्षित महसूस करती थी फिर ऐसा क्या हुआ जो तू ऐसी बातें कर रही है? तेरी सोच इतनी घटिया कैसे हो गई? छी...!मैं देख रहा हूं कल मार्केट से आने के बाद से तू मेरे साथ ऐसे विहैव कर रही है जैसे मैं तेरा भाई नहीं बल्कि कोई अजनबी हूँ! 'मेरी सोच घटिया नहीं बल्कि तुम घटिया इंसान हो !' और क्या कहा सुरक्षित महसूस करती थी मैं तुम्हारे साथ, हां करती थी पर कल मॉल में तेरा जो रूप देखा उसके बाद बिल्कुल भी सुरक्षित महसूस नहीं करती हूं! डर लगता है मुझे तेरे साथ! आश्चर्य से नील बोला! कौन -सा रूप? अरू बोली 'तुम्हें सच में नहीं मालूम...? कल उस लड़की को गंदी नजर से देखने वाले तुम नहीं थे तुम्हारा भूत था क्या? इतना सुनते ही नील के चेहरे का रंग उड़ गया! अरू आगे बोलती है तुम गंदी नजर से उस लड़की को देख रहे थे पर तुम्हारी नजरें चुभ मुझे रही थी, असहज मैं महसूस कर रही थी, तुम्हारी नजरें निवस्त्र उस लड़की को कर रही थी पर निवस्त्र मैं भी हो रही थी! और तुम्हारा चरित्र भी मेरे सामने निवस्त्र हो रहा था! तुम मेरे रक्षक और बाकियों के लिए भक्षक क्यों हो? भाई ऐसा क्यों नहीं हो सकता कि जितना सुरक्षित और सहज मैं तेरे साथ महसूस करती हूं उतना बाकी लड़कियां भी करें? अगर कोई लड़का दूसरी लड़कियों के लिए भक्षक ना बने तो उसे अपनी बहन का रक्षक बनने की जरूरत ही ना पड़े! मुझे हंसते हुए देखना चाहते हो, मुझे तोहफा देना चाहते हो ना ?तो तुम मुझे अपनी ये बुराइयां दे दो तोहफे में! मैं इस साल कैंडल नहीं बल्कि तुम्हारी इस बुराई को जलाना चाहती हूं! दे सकते हो...? अरू का नील के साथ असुरक्षित महसूस करना नील के लिए सबसे बड़ी सज़ा थी! नील पत्थर की मूरत सा खड़ा जमीन को देखे जा रहा था और उसकी आंखों से अश्रुधारा बह रही थी! उसके आंसुओं के साथ उसकी बुराइयां भी बह रही थी! अपने आंसुओं से अपनी गुनाहों का प्रायश्चित कर रहा था!
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जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार 3 दिसंबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
5 लिंकों में जगह देने के लिए आपका तहे दिल से बहुत-बहुत धन्यवाद🙏
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया संदेश है तुम्हारी कथा में प्रिय मनीषा। अपनी बहन को बहन और दूसरे की बहन-बेटी को मात्र नारी देह समझने वाले दोहरे चरित्र के व्यक्तियों को आईना दिखा रही कथा में, एक बहन ने बहुत ही पारदर्शिता से भाई के चरित्र का पटाक्षेप किया है। आज बेटियां सुरक्षित नहीं हैं, तो इसका कारण यहीं है कि परिवार अपने बेटों के सामाजिक व्यवहार पर नज़र नहीं रखते। उन्हें नहीं सिखाते कि बेटी और बहन सबकी एक समान होती है। अरु ने सही सज़ा तय की देहलोलुप भाई के लिए। नजरों से गिर व्यक्ति को वो सजा मिलती है जिसे दुनियां का कोई कानून नहीं दे सकता। बहुत ही शानदार विचार साझा किया है रचना के माध्यम से। यूं ही लिखती रहो। मेरी हार्दिक शुभकामनाएं और प्यार तुम्हारे लिए।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद प्रिय मैम कहानी का सही अर्थ समझने के लिए
हटाएं🙏🙏🙏
बहुत ही उम्दा लेखन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीय🙏
हटाएंमुझे हंसते हुए देखना चाहते हो, मुझे तोहफा देना चाहते हो ना ?तो तुम मुझे अपनी ये बुराइयां दे दो तोहफे में! मैं इस साल कैंडल नहीं बल्कि तुम्हारी इस बुराई को जलाना चाहती हूं!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर..
साद..
धन्यवाद आदरणीय दीदी 🙏🙏
हटाएंमेरी लघुकथा को चर्चामंच में शामिल करने के लिए आपका तहे दिल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय मैम 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर....हृदयस्पर्शी सीख ।
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏❤❤
हटाएंसार्थक लघु कथा ।
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏☺
हटाएंबहुत ही सुन्दर संदेशप्रद, सार्थक एवं लाजवाब कहानी
जवाब देंहटाएंमाँ के साथ बहने और बाकी सभी घर के सदस्य बेटों की गलतियों को नजरअंदाज न करके इसी तरह सीख और सजा दें तो शायद समाज में बदलाव आये।
धन्यवाद आदरणीय मैम 🙏🙏🙏🙏
हटाएंबहुत ही सुंदर प्रेरणाप्रद कथा
जवाब देंहटाएंशुक्रिया🙏🙏🙏
हटाएंमनीषा,जिस तरह अरु ने अपने भाई को आइना दिखाया काश वैसे ही यदि सभी बहने अपने भाई को आइना दिखाए तो हर लड़की कभी भी अपने आप को असुरक्षित नही महसूस करेंगी। बहुत सुंदर सन्देश देती लघुकथा।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय दी 🙏
हटाएंआपकी प्रतिक्रिया बहुत ही मायने रखती है मेरे लिए!
इतनी तकलीफ के बाद भी आप प्रतिक्रिया दे रही है इसके लिए आपका बहुत-बहुत आभार🙏❤
तमाम अनर्गल पाबंदिया लगा कर अपनी बहन बेटियों को सहेजने का जो ढोंग करते है , वही दुसरे कि बहन बेटियों का हवसी नजरों से रेप और जुवान से गंदें कमेंट करते हैं।
जवाब देंहटाएंमेरी समझ से - ये रोमांचित करने वाली या कोई प्रेरणादायक कथा नहीं ,
ये वो हक्कित है जिससे हम आप सिर्फ शर्मिंदा हो सकते है और कुछ नहीं।
मिलकर कोशिश कुछ ऐसा करते है -- कोई कैंडल नहीं
पश्चाताप कि आग ऐसी हो कि दोष अंग - अंग धु-धु कर जलें ,
घर बाहर क्या मुझमें और तुझमें क्या ये भक्षक संसार में फिर कहीं न पलें।
वाकई शब्दों का गठजोर हमेशा कि तरह बहुत उन्दा !
आप बिल्कुल सही कह रहे हैं आदरणीय सर
हटाएंआपकी इस प्रतिक्रिया के लिए हृदय तल से आपका बहुत-बहुत धन्यवाद🙏🙏
यथार्थ की कसौटी को कसती बहुत ही सार्थक कथा प्रिय मनीषा,ये स्थितियाँ हृदय में कहीं गहरे तक चोट दे जाती हैं, मर्म को छूती इस रचना के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत-बहुत धन्यवाद और आभार आदरणीय मैम🙏🙏
हटाएं