शनिवार, अक्तूबर 09, 2021

रजत पुलिन

दिवसावसान के पश्चात , 
जब आई 
पूर्णिमा की रात! 
चांदनी रात को , 
निरवता लगा रही थी,
चार चांद! 
लोल लहरें मंद स्वर 
के साथ कर रहीं थीं! 
नृत्य का अभ्यास! 
निरवता को तोड़ते हुए, 
जा रही थी जिसकी 
दूर तक आवाज! 
तमिस्त्रतोम को विभेदित
करती रेशमी विभा! 
बढ़ा रही थी
राका निसि की सोभा! 
व्योम मण्डल की 
स्वाति-घटा को, 
पेखि-पेखि हृदय तल में, 
उत्पन्न हो रहा था अनुराग! 
मंत्रमुग्ध कर रही थी, 
यमुना की अविरल धार! 
यमुना के निर्मल जल में, 
शशि की मोहक छवि देख, 
लबों पर आ रही थी मुस्कान! 
देख पूर्णिमा का अद्भुत श्रृंगार, बार-बार 
मन प्रफुल्लित हो रहा था बार-बार
                          - मनीषा गोस्वामी

18 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  2. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 10 अक्टूबर 2021 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    उत्तर
    1. मेरी रचना को 5 लिंको में शामिल करने के लिए आपका तहे दिल से बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय मैम

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  3. बहुत ही सुन्दर। पूर्णिमा का सौन्दर्य मन मोह लेता है।

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  4. सुंदर, सार्थक रचना !........
    ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

    जवाब देंहटाएं
  5. मेरी रचना को चर्चामंच में शामिल करने के लिए आपका तहे दिल से धन्यवाद प्रिय मैम🙏

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  6. बहुत खूबसूरत भावों से ओत-प्रोत है आपकी रचना ढेरों बधाई आपको..

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  7. बहुत सुन्दर सृजन

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  8. चांद और चांदनी को विभिन्न छायाचित्रों से परिभाषित करती उत्कृष्ट रचना ।बहुत शुभकामनाएं प्रिय मनीषा।

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    उत्तर
    1. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय मैम🙏

      हटाएं
  9. सुन्दर पूर्णिमा का सौन्दर्य

    जवाब देंहटाएं
  10. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 23 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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