एक लाल का निर्माण हुआ,
इक माँ को लाल
और इक खानदान को
अपना चिराग मिला!
उसी लाल रंग को
एक माँ को अपने लाल से
छुपाना क्यों पड़ा?
यदि वह लाल रंग अशुद्ध होता है,
तो उसी अशुद्धता से
इस सृष्टि का निर्माण हुआ,
फिर कैसे कोई पवित्र
और कोई अपवित्र हुआ?
समाज समझता है जिसको घृणित,
उसी से हुआ है निर्मित!
अभिशाप नहीं, अभिमान है,
वो पांच दिन
नारी के पवित्रता का सूचक है,
वो पांच दिन
संपूर्ण नारीत्व का पहचान है,
वो पांच दिन!
स्त्री के यौवन का श्रृंगार है,
वो पांच दिन!
रूढ़िवादिता की सोच से जो दाग है,
अशुद्धता की निशानी ,
वास्तव में वो मातृत्व अवस्था में
कदम रखने की है निशानी!
उस रंग के बिना एक स्त्री
माँ होने के बजाय बांझ है बन जाती!
इती सी बात इस समाज को
समझ क्यों नहीं आती?
21वीं सदी में भी जो लोग
उस लाल रक्त को नापाक कहते हैं
ऐसी सोच को हम ख़ाक़ कहते हैं!
- मनीषा गोस्वामी
मैं देख रहीं हूँ कि बहुत से लोग ये पोस्ट देख चुकें हैं पर अपनी प्रतिक्रिया नहीं दे रहें हैं, शायद वे ऐसे विषयों पर प्रतिक्रिया देना उचित नहीं समझते ! तारीफ न सही आलोचना तो कर ही सकते थे!
कमाल है!
आज भी ऐसी महान आत्माऐं हमारे बीच ब्लॉगर के रूप में उपस्थित हैं पर अफ़सोस हम देख नहीं सकते काश की दर्शन भी हो पाता तो हम धन्य हो जाते!
मनीषा,
जवाब देंहटाएंबहुत ही सही शब्दो का इस्तेमाल करके महिलाओं के उन पांच दिनों को समाज कलुषित क्यो मानता है ये सवाल किया है। बहुत सुंदर रचना।
ब्लॉग पर amazon का विज्ञापन देख कर अच्छा लगा। इसी विषय पर मेरी दो पोस्ट जरूर पढ़ना।
https://www.jyotidehliwal.com/2020/03/kya-mahilao-ne-masik-dharm-ke-dauran-khana-banaya-to-shvan-paida.html
और
https://www.jyotidehliwal.com/2015/10/kya-rajasvala-hona-nari-ka-gunah.html
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद दीदी😊😊😊🙏🙏
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 14 अक्टूबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
आपका बहुत बहुत धन्यवाद🙏
हटाएंवाह!मनीषा जी ,बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मैम😊
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१५ -१०-२०२१) को
'जन नायक श्री राम'(चर्चा अंक-४२१८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आदरणीय मैम आपका तहे दिल से बहुत-बहुत धन्यवाद मेरी रचना को चर्चामंच में जगह देने के लिए🙏🙏
हटाएंबहुत गहन बात , सार्थक उठता प्रश्न।
जवाब देंहटाएंविचारणीय रचना।
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद 🙏
हटाएंसमाज समझता है जिसको घृणित,
जवाब देंहटाएंउसी से हुआ है निर्मित!
अभिशाप नहीं, अभिमान है,
वो पाच दिन
सही कहा 21वीं सदी में भी कुछ लोगों की सोच नहीं बदली...पर बहुत से लोग बदल चुके हैं अपनी सोच..अब पहले की तरह छुपाने की जरूरत नहीं पड़ती नई पीढ़ी के बच्चे पाठ्यक्रम में ही इस बारे में काफी कुछ समझ रहे हैं...और उम्मीद है आगे और सुधार होगा।
सुन्दर रचना।
आपका तहे दिल से धन्यवाद आदरणीय मैम 🤗🙏
हटाएंसार्थक प्रश्न उठाती गूढ़ रचना,चिंतनपूर्ण भी ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मैम🙏
हटाएंसटीक सुंदर सृजन!
जवाब देंहटाएंआपका सहृदय धन्यवाद मैम!
हटाएंहमारे ब्लॉक पर आपका हार्दिक स्वागत है आती रहिएगा🙏🙏
अतिसुंदर रचना बहुत ही कम शब्दों में उन पांच दिनों को व्यक्त कर दिया आपने
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय मैम मेरा हौशला बढ़ाने के लिए🙏
हटाएंनापाक नहीं मासिक धर्म स्वभाव है एक सम्पूर्ण औरत का पूर्णविकसित प्रजननक्षम महिला का।यौव्नारम्भ में मासिक रक्तस्राव के शुरू होने को 'मेंआरके' और संपन्न होने को 'मीनोपोज़' कहा जाता है। प्रगल्भा- प्रौढ़ावस्था के पार जब यह प्रजनन क्षमता छीजने लगती है औरत बाँझ नहीं होती है पल्लवित होती है।अलबत्ता इस्ट्रोजन छीजने लगता है।
जवाब देंहटाएंऔर हाँ बाँझ पुरुष भी होते हैं औरत से ज्यादा हिन्दुस्तान की दीवारें इसका सुबूत हैं बचपन से पढ़ते आये हैं हकीम फलाने -नामर्दी का शर्तिया इलाज़। लो स्पर्म काउंट ,पूअर मोटिलिटी,'इरेक्टाइल डिस्-फंक्शन ' यानी लिंगोथ्थान अभाव , तमाम कारण हैं मर्दाना बांझपन के और हाँ लड़का होगा या लड़की इसका निर्धारण लड़की बिलकुल नहीं कर सकती वह तो मात्र ' एक्स -एक्स ' गुणसूत्र की स्वामिनी है। पुरुष ' एक्स -वाई 'गुणसूत्र (क्रोमोसोमों )का स्वामी है ,मिलन -मनाने के बाद मर्द की तरफ से एक्स आएगा या वाई यह एक पासा फैंक गेम है चांस की बात है।
एक वर्जना को आपने आइना दिखलाया है। अलबत्ता समाज का उद्भव एवं विकास पल्लवन इवोल्यूशन एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। कहीं रजस्वला का रसोई प्रवेश वर्जित है तो कहीं मंदिर प्रवेश। बहरसूरत यदि यह मुश्किल दिनों में राहत देने के तहत है तो और बात है। एथलीट्स महिलायें ट्रेनिंग सेशन में अपने मासिक धर्म को स्विच की तरह ऑन ऑफ़ कर लेती हैं। दुनिया बहुत बड़ी है परम्पराएं वर्जनाएं भी एक से एक आला हैं।
बढ़िया विषय पर लेखनी चलाई है मनीषा ने बधाई।
हां सर मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूं, आप जो करें बिल्कुल सही है इतनी अच्छी प्रतिक्रिया देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद🙏
हटाएंhttps://veeruji05.blogspot.com/2021/10/blog-post_19.html
जवाब देंहटाएंमनीषाजी आपकी यह पोस्ट (मासिक रक्तस्राव का लाल रंग और सामाजिक वर्जनाएं )उल्लेखित ब्लॉग पर शेयर की गई है कृपया पधारें। वीरुभाई !
मेरी रचना को इतना सम्मान देने के लिए मैं आपका शुक्रिया कैसे करूं मुझे समझ नहीं आ रहा ! तहेदिल से धन्यवाद🙏🙏
हटाएंबहुत सुन्दर सृजन । इसी तरह लिखती रहिए । आपकी नई पोस्ट पर कमेंट "शो" नही हो रहा ।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय मैम🙏
हटाएंमैम मैंने दूसरे फोन से देखा तो सबका कमेंट तो रहा है पर आपका नहीं!पता नहीं क्या प्रॉब्लम है!
बहुत से लोग बदल चुके हैं पर अभी समाज मे कुछ लोगों की सोच नहीं बदली....
जवाब देंहटाएंहां सर! बस उन्हीं लोगों को बदलने का दुस्साहस कर रहे हैं! प्रतिक्रिया देने के लिए धन्यवाद🙏
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