मंगलवार, अक्तूबर 05, 2021

मैं उस वक़्त सबसे असहाय होती हूंँ!

मैं उस वक्त दुनिया की 
सबसे कमजोर व असहाय 
शख़्स खुद को महसूस करती हूंँ, 
जब रोते बच्चे के आंखों से 
आंसू नहीं ले पाती हूंँ! 

मैं उस वक्त सबसे 
असहाय व लाचार होती हूंँ, 
जब मन विचलित हो जाता है 
पीड़ित लोगों के कष्ट देख 
लेकिन कष्ट हर नहीं पाती हूंँ! 

मेरी स्थिति उस वक्त 
सबसे दयनीय होती है, 
जब गलत का विरोध 
ना कर पाने के कारण 
खुद से लड़ रही होती हूंँ! 

मैं खुद को उस वक्त 
बंदी महसूस करती हूंँ, 
जब रिश्तो के बंधन में 
बंधने के कारण 
अपने विचार भी नहीं रख पाती हूंँ! 

मैं उस वक़्त खुद को
अपराधी महसूस करती हूंँ, 
जब अन्याय सह रहे लोगों के 
खातिर आवाज नहीं उठा पाती हूँ! 

मैं उस वक्त 
उस मोरनी की भांति होती हूंँ, 
जिसके पर तो बहुत आकर्षक होते हैं 
पर उड़ नहीं सकती है! 
जब वृद्ध पिता को अपनी औलादों की 
हीनता भरी निगाहों का 
सामना करते देखती हूंँ! 
पर अंदर ही अंदर 
फड़फड़ा कर रह जाती हूँ! 

मैं उस वक्त दुनिया की 
सबसे गरीब शख्स होती हूंँ, 
जब रंग-बिरंगे कपड़ों को 
लालच भरी निगाहों से 
निहार रहे बच्चे को देख 
एक आंह मात्र भर कर रह जाती हूंँ!
पर कुछ नहीं कर पाती  हूंँ! 

मैं उस वक्त संसार की 
सबसे लाचार  व स्वार्थी 
शख़्स होती हूंँ ,
जब अपने निजी स्वार्थ के चलते 
लोगों के कष्ट देख 
सिर्फ आंह भर के रह जाती हूंँ! 
पर कुछ नहीं कर पाती हूंँ! 

38 टिप्‍पणियां:

  1. मनीषा, यह कविता पढ़ कर ऐसा लगा जैसे शब्द तो तुम्हारे है लेकिन ये आवाज मेरे दिल की है। शायद सिर्फ मेरी नही तो हर का इंसान की यही आवाज है जो कुछ अच्छा करना चाहता है। बहुत सुंदर रचना।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आप बिल्कुल सही कह रही हैं दी!
      आपका बहुत बहुत धन्यवाद🙏

      हटाएं
  2. अद्भुत, संवेदनीय व्यथा। गहरा मर्मभरा।

    जवाब देंहटाएं
  3. दिल में कहीं गहरे तक उतर गई यह बात।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपका तहे दिल से बहुत-बहुत धन्यवाद और आभार🙏

      हटाएं
  4. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (06-10-2021) को चर्चा मंच         "पितृपक्ष में कीजिए, वन्दन-पूजा-जाप"    (चर्चा अंक-4209)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मेरी रचना को चर्चामंच में जगह देने के लिए आपका सहृदय धन्यवाद आदरणीय सर🙏

      हटाएं
  5. मेरी रचना को 5 लिंकों में जगह देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद🙏

    जवाब देंहटाएं
  6. सुन्दर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  7. रचनाकार जरूर आप हैं किन्‍तु मुझ जैसे अनगिनत लागों को यह रचना अपने मन की बात लगेगी। बहुत-ुसुन्‍दर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हमारे ब्लॉग पर आने के लिए आपका सहयोग दें धन्यवाद आदरणीय सर

      हटाएं
  8. उम्दा लेखन जो प्रत्येक दिल की धङकन में रहता है।इतनी सुंदर रचना के लिए बहुत बहुत बधाई।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद और आभार

      हटाएं
  9. गहनतम लेखन...। सच और खरी ...। खूब बधाई

    जवाब देंहटाएं
  10. मर्मस्पर्शी ... मन की बेबसी , बेचैनी को व्यक्त करती सुन्दर रचना।
    बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  11. तुम इतनी वेचैन क्यों हो कमजोर नहीं असहाय नहीं हो तुम ,
    समाज को आईना दिखाती इन्द्रा कल्पना साइना संधु आज कि नारी हो तुम ।
    जग जननी ! जग को चरम तक पहुंचाने वाली दुर्गा काली हो तुम,
    हर आवाज पर स्वतंत्र आवाज तुम्हारी सच में बहुत भारी हो तुम ।

    बहुत सुन्दर रचना !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सर आपकी हौसला बढ़ाने वाली प्रतिक्रिया प्रतिक्रिया का आभार व्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है!🙏🙏🙏🙏🙏🙏

      हटाएं
    2. मैं आपकी प्रतिक्रिया से मिली खुशी को शब्दों में बयां नहीं कर सकती!😊😊🤗🤗

      हटाएं
  12. ये सिर्फ तुम्हारी आवाज़ नहीं है हर उस संवेदनशील इंसान की आवाज़ है जो कमज़ोर, असहाय को देख तड़पता है। अन्याय को देखकर भी चुप होने को मजबूर है। ऐसा नहीं है कि वो कमजोर और कायर है बस उसके हाथ किसी न किसी बेड़ी में जकड़े है। फिर भी यदि हम लेखन के जरिये ही कुछ कर सकें, सोई आत्माओं को जगा सकें वो भी बहुत बड़ा कर्म है। सराहनीय सृजन ,ढेर सारा स्नेह तुम्हें

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी प्रतिक्रिया बहुत मायने रखती है मेरे लिए, आपका स्नेह और प्यार हमेशा मुझे प्रेरित करता है लिखने के लिए!
      आपका तहे दिल से बहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय मैम🙏

      हटाएं
  13. अबला नहीं देवी हो ,सबला हो ,तदानुभूति करती औरों की पीड़ा की सहभोक्ता बनती हो और हाँ लिखना बीमारी नहीं दवा है हर इलाज़ और घुटन की। फैले फले आपका लेखन। आशीष।
    वीरुभाई

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हमारे ब्लॉग पर आकर इतनी अच्छी प्रतिक्रिया देने के लिए आपका
      दिल की गहराइयों से बहुत बहुत बहुत धन्यवाद🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

      हटाएं
  14. उम्दा सृजन शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  15. अद्भुत और सुंदर आदरणीय । बहुत बधाइयाँ ।

    जवाब देंहटाएं
  16. बहुत सुंदर सार्थक अभिव्यक्ति ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय मैम🙏🙏

      हटाएं
  17. हर कोमल हृदय की संवेदनाओं को स्वर देती आपकी अभिव्यक्ति सार्थक और हृदय स्पर्शी है।
    एहसासों को शब्द देती सुंदर भावाभिव्यक्ति।
    सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं
  18. बहुत जल्द बहुत बढ़िया लिखना शुरु कर दिया है। प्रभावशाली अभिव्यक्ति के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मेरा हौसला बढ़ाने के लिए आपका दिल की गहराइयों से बहुत-बहुत धन्यवाद 🙏🙏

      हटाएं
  19. मन की बेचैनी को व्यक्त करती सुन्दर रचना....बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  20. धन्यवाद आदरणीय सर🙏

    जवाब देंहटाएं

नारी सशक्तिकरण के लिए पितृसत्तात्मक समाज का दोहरापन

एक तरफ तो पुरुष समाज महिलाओं के अधिकारों और उनके सम्मान की बात करता है और वहीं दूसरी तरफ उनके रास्ते में खुद ही एक जगह काम करता है। जब समाज ...