बचावूं कैसे?
रेत से बिखर रहे
संभालू कैसे?
कड़वे सच छीन रहे
रिश्ते मुझ से!
झूठ बोलने का
हुनर लाऊं कैसे!?
यादों की दलदल से
बाहर आऊं कैसे?
भावनाओं के सागर से
गलतफहमियों के
घड़ियालों को
निकालूं कैसे?
काच-से हो रहे रिश्ते
कच्ची मिट्टी सा
बनाऊँ कैसे?
काश!
रिश्ते काच-सा
न होकर,
कच्ची मिट्टी-सा होते!
जिससे इक नया
आकार दे सकते!
तस्वीर गूगल साभार से
रिश्तें-रिश्तेदारों कि इक अनुठी सी होड़ है
जवाब देंहटाएंअंधों कि वस्ती में उजालों कि शोर है ।
इसे देखें और प्रतिक्रिया दें - "रिश्तों कि खनक ! "
अति नन्हीं सी सुंदर रचना!
धन्यवाद सर🙏🙏
हटाएंऔर इसे भी देखें - "रिश्तों कि मनमोहक खुशबू ... ! "
जवाब देंहटाएंहाँ सर जरूर देखुं!
हटाएंभावनाओं के सागर से
जवाब देंहटाएंगलतफहमियों के
घड़ियालों को
निकालूं कैसे?
वाह बहुत ही गहरे भाव है।
मेरे ब्लॉग पर आने और सराहने के लिए आभार
आपका बहुत बहुत धन्यवाद सर🙏🙏
हटाएंरिश्ते को
जवाब देंहटाएंबचावूं कैसे?
रेत से बिखर रहे
संभालू कैसे?
कड़वे सच छीन रहे
रिश्ते मुझ से!
झूठ बोलने का
हुनर लाऊं कैसे!?
यादों की दलदल से
बाहर आऊं कैसे?
बढ़िया प्रिय मनीषा ! विरह-विगलित मन की दशा का सटीक चित्रण | हार्दिक शुभकामनाएं|
इतने दिन बाद एक बार फिर आपकी प्रतिक्रिया देख कर बहुत खुशी हुई! आपका बहुत बहुत धन्यवाद🙏
हटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण कविता।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंमेरी रचना को पांच लिंकों में सामिल करने के लिए आपका बहुत
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद 🙏💕
वाह👌
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर
हटाएंसत्य कहा ,सुन्दर भावाभिव्यक्ती
जवाब देंहटाएंआपका बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय मैम 🙏
हटाएंबहुत खूबसूरत सृजन, भावपूर्ण पंक्तियां
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद
हटाएंअद्भुत सृजन..
जवाब देंहटाएंतहेदिल से धन्यवाद
हटाएंरिश्ता की कड़ियां बुनती धुनती सुंदर कृति ।
जवाब देंहटाएंप्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद और आभार
हटाएंजीवन की कड़वी सचाई है यह... बहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर
आपका बहुत बहुत धन्यवाद🙏
हटाएंघड़ियालों को
जवाब देंहटाएंनिकालूं कैसे?
वाह बहुत ही गहरे भाव है मनीषा अद्भुत सृजन..
फुर्सत मिले तो कभी ब्लॉग पर भो आये
शब्दों की मुस्कुराहट
https://sanjaybhaskar.blogspot.com
धन्यवाद आदरणीय सर🙏🙏🙏
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