तस्वीर गूगल से |
तो कुछ नहीं कर पा रहीं
घर की दहलीज भी पार!
जब भी करती है एक स्त्री
एक महिला के रूप में बात!
उसके अपने ही बन जाते हैं
उसके राहों की दिवार!
कभी मां का,कभी बेटी का,
तो कभी पत्नी आदि रिश्तो का
हवाला देकर अप्रत्यक्ष रूप से,
उसके अंदर की नारी को
मारने का करतें हैं प्रयास!
खुद ही करते अपमान,
और खुद ही करते सम्मान की बात!
बराबरी के अधिकार की लड़ाई में
महिलाओं की एड़ियाँ घिस रही आज,
किंतु आरक्षण हर बार
महिलाओं की काबिलियत पर
समाज को दे देता है
सवाल उठाने का अधिकार!
खुद ही करते भेदभाव
और खुद ही करते समानता की बात!
जब भी एक स्त्री
एक महिला के रूप में
आवाज उठाती है !
तो इस समाज को वो
फूटी आंख भी नहीं भाती है!
जो स्त्री मां, बेटी ,और बहू
बनते बनते नारी बनना भूल जाती है !
वही स्त्री इस समाज को भाती है!
उसी को संस्कारी होने की
उपाधि दी जाती है!
100% Right
जवाब देंहटाएंThank you🙏
हटाएंजो स्त्री मां, बेटी ,और बहू
जवाब देंहटाएंबनते बनते नारी बनना भूल जाती है !
वही स्त्री इस समाज को भाती है!
उसी को संस्कारी होने की
उपाधि दी जाती है!
बिल्कुल सही है मनीषा। यह सच्चाई काल थी आज है और न जाने कब तक रहेगी?
हां मैम आप बिल्कुल सही कह रही है पता नहीं कब बदलेगा यह सब! सहृदय धन्यवाद 🙏🙏🙏
हटाएंपंख दिये तो नभ भी देना,
जवाब देंहटाएंजीवन को पूरा कर देना।
धन्यवाद 🙏🙏🙏
हटाएंस्त्री को स्वयं ही अपने पैरों में बंधी जंजीरें तोड़नी होंगी, संस्कारी होने का तमगा भी यदि बाधक बने तो उसे उतार देना होगा
जवाब देंहटाएंहां मैम! आप बिल्कुल सही कह रही है!आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूं!आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!
हटाएंहम अच्छे हैं ! समानता और अधिकार कि बड़ी बड़ी बात करते हैं
जवाब देंहटाएंफिर बहु और बेटियों में भेद ढुंढ लेते है । क्योंकि हम 'अच्छे' हैं ।
बहुत सुन्दर रचना !
तहेदिल से धन्यवाद सर!
हटाएंकुछ छू रहीं आसमान,
जवाब देंहटाएंतो कुछ नहीं कर पा रहीं
घर की दहलीज भी पार!
जब भी करती है एक स्त्री
एक महिला के रूप में बात!
उसके अपने ही बन जाते हैं
उसके राहों की दिवार!....सच्चाई बयां करती सार्थक,सुंदर रचना ।
आपका तहेदिल से बहुत-बहुत धन्यवाद 🙏
हटाएंYes this is true
जवाब देंहटाएंआपकी बात ठीक है। बेहतर है कि कम-से-कम महिलाओं के अपने तो उनके मार्ग की दीवार न बनें। वे उनका सम्बल बनें, प्रेरणा बनें; होना तो यही चाहिए। लेकिन फिर भी बाधाएं आएं उनके मार्ग में किसी के भी कारण तो बेहतर है कि वे स्वयं अपनी बेड़ियों को तोड़कर आगे बढ़ जाएं। न किसी को ख़ुद को ज़बरदस्ती रोकने का मौका दें, न ही इमोशनल ब्लैकमेल से रोकने का। किसी पर भी निर्भर न रहें।
जवाब देंहटाएंयस सर आप बिल्कुल सही कह रहे हैं!मैं आपकी हर एक बात से सहमत हूं! आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय सर 🙏
हटाएंस्त्री की व्यथा का अच्छा विवरण दिया गया है| आपकी लेखनी को नमन, कभी मेरे ब्लॉग पे भी पधारें धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआपका बहुत-बहुत धन्यवाद सर 🙏🙏🙏
हटाएंअवश्य आऊंगी आपके ब्लॉग पर..
सशक्त सृजन । यूँ ही लिखते रहें ।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय मैम मेरा हौसला बढ़ाने के लिए 🙏
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