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तस्वीर गूगल से |
पता है मुझे बहुतों को मेरा ये लेख आपत्तिजनक और अश्लीलता से भरा हुआ लगेगा ! रास नहीं आयेगा शीर्षक देखकर ही अनदेखा कर देंगे ! लेकिन इससे हकीक़त नहीं बदल जाती!
वैश्या बदचलन और चरित्रहीन तो है ही इस लिए तो समाज का तिरस्कार और समाज द्वारा दिये गये अनेक नाम के साथ खमोशी के साथ जीती है! पर क्या कोई औरत जन्म से ही वैश्या होती ?क्या वो पैदाइशी चरित्रहीन होती है ? क्या उसके माथे पे लगे वैश्या के ठप्पे में सिर्फ़ उसका अकेले का हाथ होता है ? हाँ वो जिस्म बेचती है वो चरित्रहीन ! उसकी अपनी कोई इज्जत नहीं! पर उनका क्या जो उसे चरित्रहीन बनाते? जो इसके जिस्म को अपनी हवस की प्यास को बुझाने के लिए खरीदते हैं और उसके माथे पर वैश्या का ठप्पा लगाते हैं? रात के अंधेरे में रातेरंगीन करने जाने वाले शरीफजादे और नवाबजादो को क्यों नहीं कोई नाम दिया गया ? क्या इसलिए कि ये लोग छुप कर करते हैं? और
वैश्या डंके की चोट पर अपने जिस्म का व्यापार करती है तभी तो पूरी दुनिया का तिरस्कार सहती है!
पर उन चरित्रवान पुरुषो का क्या जो अपनी पत्नी, अपने परिवार की नजरो से बचकर अपने हवस की प्यास बुझाने बदनाम गलियों में जाते हैं ? क्या ये लोग चरित्रहीन नहीं होते? ये लोग तो चरित्रहीन होने के साथ धोखेबाज़ और विश्वासघाती भी होते हैं । वैश्या फिर भी धोखेबाज नहीं होती।वो अपने जिस्म व्यापार करती है पर किसी की भावनाओं के साथ विश्वासघात नहीं करती ।
अगर वो पैसों की भूखी रहती है, तो ये समाज के ठेकेदार भी तो जिस्म के भूखे होतें हैं!
जिस बदनाम गलियों को सुबह के उजाले में तिरस्कार भरी नजरों से देखते , रात होते ही उसी बदनाम गलियों में अपनी रातें रंगीन करते हैं !वो अपना जिस्म बेचती है,तो ये भी तो अपना ईमान बेचते हैं! तो फिर उसे ही अकेले हमेशा अपमानित क्यों किया जाता है?
वैश्या अति सस्कारी और चरित्रवान पुरुषों की हवस को छिपाने वाली वो लिबास है जिसके उतरते ही ये पुरुष ,समाज के सामने इस तरह निवस्त्र होगें कि फिर वस्त्र धारण करने के काबिल ही नही रह जाएगें! मुहं छिपाने की जगह नहीं मिलेगी!
और चरित्रवान होने का ढोंग करने वालों का घमण्ड और परिवार एक साथ इस तरह टूटेगा कि फिर उसे दुनिया के सबसे काबिल कारीगर भी नहीं जोड़ पायेगें!
और अगर सभी लोग इतने ही चरित्रवान हैं तो फिर इन वैश्याओं का धन्धा आज भी कैसे चल रहा है ?ये रइसजादे जो बात बात पर खुद को अच्छे , शरीफ़ खानदान का होने की अकड़ दिखाते रहतें हैं ,तो रातों को जिस्मों को खरीदने का हुजूम किसका लागता है? आखिर कौन है जो उन बदनाम गलियों में जाता है? क्या वो गरीब, जो दो वक्त की रोटी के लिए पूरे दिन मेहनत करता है लेकिन रात को पैसे इकट्ठा होते ही अपने जिस्म की भूख मिटाने चला जाता है? लेकिन ये भी सच है कि सभी अमीर जिस्म के खरीददार नहीं होते पर जिस्म की कीमत लगाने वाले सभी अमीर ही होते हैं!
और जिन गरीब और मध्यवर्गीय हवस के शिकारियों की पहुँच से ये कोठा बाहर होता है वे हवस को मिटाने के लिए बलात्कारी बन जाते हैं ! शुक्रगुज़ार होना चाहिए वैश्याओं का , कि वैश्यावृत्ति की बदोलत रइसजादे बलात्कारी बनते ,नहीं तो न्याय की कल्पना करना भी गुनाह हो जाता!
ये सच है कि इस समाज के नज़र में वैश्या की कोई इज्जत और औकात नही क्योंकि ये इसी की हकदार हैं! लेकिन ये बात भी नही भूलनी चाहिए कि इन्हें वैश्या बनाने वाले इस समाज के लोग ही हैं! और ये बात भी याद रखनी चाहिए कि वैश्या की नजरों में नोटों से घिरे नवाबों और चरित्रवान होने का ढोंग करने वालो की कोई औकात नहीं होती! तो क्या कोई मुझे बता सकता है कि कौन अधिक गिरा हुआ इंसान है वो जो सबकी नजरों में गिरा हुआ है या फिर वो जो, सबकी नजरों में गिर चुके इंसान की नजरों में गिरा हुआ है?
वैश्या अपने पेट की आग बुझाने के लिए अपने जिस्म को बेचती है और ये चरित्रवान लोग अपने हवस की भूख मिटाने के लिए अपने ईमान को जिस्म के हाथों बेच देते है ! जब निवस्त्र दोनों होतें हैं ,तो फिर एक पर ही क्यों कलंक का ठप्पा लगता है? किसी एक को ही क्यों वैश्या का नाम मिलता है?
जिस्म को करके हवस के पुजारियों के हवाले,
खड़ी हो जाती है ,
एक कोने में जाके!
स्तब्ध सी निहारती रहती है ,
जिस्म को नोच रहें गिद्धों को,
और इक वैश्या के आगे बेनकाब होती शराफत को!
नोट- आलोचनात्मक टिप्पणी करने की पूरी स्वतंत्रता है! पर शब्दों की सीमा का ध्यान रखें!
Fantastic Article.👍👍👍 Keep writing dear🤗🤗
जवाब देंहटाएंThank you 🤗😇😇
हटाएंGood one. Truth of society.
जवाब देंहटाएंThank you so much Sir🙏🙏
हटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति प्रिय मनीषा।
जवाब देंहटाएंकोई भी आँखें नहीं चुराएगा आपकी इस अभिव्यक्ति से।
औरत होने के नाते इस पीड़ा को शब्द देना जायज़।
वैश्या शब्द ही अपने आप में पीड़ा दाय है जो भी लिखा आपने सार्थक है।
समाज में समानता के नाम पर औरतों का होता दोहरा शोषण... शब्दों से होता बलात्कार काया से ज़्यादा हृदय को आघात देता है। आज भी अगर औरत घर से बाहर निकलती है तब एक संकीर्ण विचार को लगता है उन्हीं के लिए निकली है नहीं तो फिर निकली ही क्यों?
बहुत कुछ ऐसा है समाज में जो सदियों से ज्यों को त्यों है बस समय अपनी सफ्तार से आगे बढ़ता जाता है।
गंभीर विषय उठाया है आपने और गहन लेखन...
बहुत सारा स्नेह।
आप सही कह रहीं हैं मैम पर कुछ लोग हैं जिन्हें ऐसी अभिव्यक्ति बिल्कुल भी रास नहीं आती! क्योंकि उन्हें वैश्या के बारे बात भी करना पाप लगता है! लेकिन वे भूल जाते हैं कि नकारात्मक चीजों से भागते रहने से नकारात्मकता खत्म नही हो जाती! जब तक उस पर विचार विमर्श नहीं किया जाता! और आपने बिल्कुल सही कहा मैम कि कुछ संकीर्ण सोच वाले लोगों को लगता है कि महिलाएँ सिर्फ़ उनके लिए बाहर निकलतीं हैं और कुछ को लगता है कि सिर्फ़ उनके लिए ही श्रृंगार करती हैं! इससे महिलाओं के बारे में तो नहीं पता चलता है पर इससे इन लोगों के बारे में जरूर पता चलता है! कि ये लोग महिलाओं को आकर्षित करने के लिए ही सब करते हैं!
हटाएंइतनी विस्तार से समिक्षा करने के लिए आपका तहेदिल से धन्यवाद आदरणीय मैम 🙏🙏🙏
बहुत ही साहसिक व सत्य को उजागर करती रचना, साहिर लुधियानवी के शब्दों में - - औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया,
जवाब देंहटाएंजब जी चाहा मसला कुचला जब जी चाहा धुत्कार दिया - - आपका आलेख समाज को बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करता है, प्रभावशाली लेखन - - नमन सह आदरणीया।
औरत ने जन्म......
हटाएंआपने बिल्कुल सही कहा सर!
अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया के लिए आपका तहेदिल से बहुत बहुत धन्यवाद सर🙏🙏🙏
सर "नमन सह आदरणीया।" लिख कर शर्मिंदा न करें आप हमसे उम्र में बहुत बड़े हैं! 🙏🙏🙏
"नोट- आलोचनात्मक टिप्पणी करने की पूरी स्वतंत्रता है! पर शब्दों की सीमा का ध्यान रखें!" - चूँकि आपने "शब्दों की सीमा" का ध्यान रखने के लिए कहा है तो .. संक्षेप में .. समाज की मूक पीड़ादायक घाव को कुरेदने के लिए असीम शुभाशीष .. बस यूँ ही ...
जवाब देंहटाएंसर आपकी प्रतिक्रिया पूरी तरह से समझ में तो नहीं आयी पर देख कर अच्छा लगा 😄😄😄
हटाएंसहृदय धन्यवाद सर🙏🙏🙏🙏
प्रिय मनीषा वैश्या शब्द ही सुनकर लोग चौंक जाते है,परंतु एक वैश्या का जीवन कैसा है वो कौन सी मजबूरी है, कि वो इस दलदल में फंसी है,किसी को कोई सरोकार नहीं समाज में हर तरह के लोग है,उसी तरह एक वैश्या है,बस। एक सार्थक आलेख के लिए तुम्हें मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंआपने बिल्कुल सही कहा मैम वैश्या शब्द सुनकर लोग चौक जातें हैं और ऐसे मुद्दो पर बात करने से भी हिचकते हैं! लेकिन कोई उसकी दर्द को नहीं समझना चाहता है बस उसे अपमानित करते रहते है! और वही उसके खरीददार को कुछ नहीं कहतें!
हटाएंआपका बहुत बहुत धन्यवाद मैम प्रतिक्रिया देने और लेख की गंभीरता को समझने के लिए 🙏🙏🙏
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (26-7-21) को "औरतें सपने देख रही हैं"(चर्चा अंक- 4137) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
कृपया २६ की जगह २७ पढ़े
हटाएंकल थोड़ी व्यस्तता है इसलिए आमंत्रण एक दिन पहले ही भेज रही हूँ।
आपका तहेदिल से बहुत बहुत धन्यवाद प्रिय मैम ! वैसे मेरी बहुत सारी रचनाएँ और लेख चर्चा मंच में शामिल हो चुकें हैं पर आज मुझे उतनी खुशी मिली है जितनी खुशी पहली बार चर्चा मंच में शामिल होने पर मिली थी!क्योंकि मुझे नहीं लगा था कि कोई इसे चर्चा मंच में शामिल करेगा!
हटाएंइसलिए एक बार फिर से आपका हृदय की गहराइयों से बहुत बहुत प्र धन्यवाद प्रिय मैम🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
कडवी हकीकत से रूबरू कराता आलेख !
जवाब देंहटाएंआभार !!!
सहृदय धन्यवाद आदरणीय सर🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
हटाएंआपकी बात, आपका आक्रोश दोनों सही हैं। कड़वा सच्चाई को बेबाकी के साथ दुनिया के सामने रखने के लिए आपको बधाइयाँ और शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत धन्यवाद और आभार सर🙏🙏🙏🙏
हटाएंयथार्थ से मार्मिक साक्षात्कार।
जवाब देंहटाएंआभार आपका 🙏🙏🙏🙏🙏
हटाएंमनीषा जी
जवाब देंहटाएंइतने गंभीर और ''बोल्ड'' विषय को विवेचना हेतु चुनने के लिए साधुवाद ! दुनिया के इस सबसे पुराने व्यवसाय (पेशा शब्द उचित नहीं लगता) के पक्ष में कुछ लिखने-बोलने के लिए बहुत हिम्मत और साहस चहिए !
पुराने जमाने से लेकर इतिहास काल या उसके भी काफी बाद तक, इसे समाज में एक सम्मान का दर्जा प्राप्त था। कहते हैं, राजे-महाराजे-नवाब अपने बेटों को तहजीब सिखाने इनके पास भेजा करते थे। नृत्य-गायन में प्रवीण महिलाएं विदुषी भी होती थीं ! ऐसे अनेकों नाम हैं जो अपने राजा, राज्य और देश के काम आए।
समय के साथ सब कुछ बदल जाता है ! इसमें भी बदलाव आया ! गरीब शोधित महिलाओं की चाहे जैसे भी हुई इस क्षेत्र में आमद होने लगी ! कई ऐसी घटनाएं हैं जो बताती हैं कि कैसे, मजबूरन यहां आई माँ ने अपनी बेटी को सम्मानित जिंदगी दी ! इस सब पर लिखा जाए तो पूरा ग्रंथ बन जाए !
आपने सही कहा कि पुरुष समाज ने अपनी लंपटता के लिए इस बाज़ार को तरह-तरह के रूप दे अस्तित्व में बनाए रखा ! भले ही उन महिलाओं की समाज में इज्जत या औकात नहीं हो पर हिम्मत तो है लोगों के सामने खड़े होने की ! पर आधुनिक काल की विडंबना और कड़वी सच्चाई यह भी है, कि आसानी से धन लाभ के लिए आज बहुतेरे चेहरे इस राह पर चल अपना मुंह काला कर रहे हैं..
वेश्या पैदा नहीं होती, समाज उसे बनाता है। एक कड़वा सच। आपने बेबाक ढंग से इसे प्रस्तुत किया है। साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ
हटाएंसर आपने बिल्कुल सही कहा!
हटाएंधन्यवाद सर🙏🙏🙏🙏
आपसे ऐसी ही बारीक और निष्पक्ष प्रतिक्रिया की उम्मीद थी सर🙏 वैसे किसी से उम्मीद करना नहीं चाहिए पर पूर्णिमा की रात्रि से उजाले की उम्मीद नहीं करेंगे, तो क्या अमावस्या की रात्रि से करेंगे!
हटाएंएक आप हैं जो हर ब्लॉग पर प्रतिक्रिया देते हैं इतने बड़े ब्लॉगर होने के बाद भी लेकिन कुछ बड़े ब्लॉगर प्रतिक्रिया देना तो दूर की बात आभार भी व्यक्त करना जरूरी नहीं समझते! आपका बहुत बहुत धन्यवाद सर इतनी अच्छी प्रतिक्रिया देने के लिए! शर्मा सर 🙏🙏🙏🙏🙏🙏
आपने बिल्कुल सही कहा सर कि कुछ लोग हैं जो धन के लिए अपना मुंह शौक से करा लेते हैं! तभी तो समाज में इनकी कोई इज्जत नही और होनी भी नहीं चाहिए! पर सवाल उठता है कि जो इन गिरे हुए लोगों की नजरों में जो गिरा हुआ है उसे क्या कहें?
एक अनछुए विषय पर बेबाक, सार्थक विचार जो अंतर्मन की पीड़ा भी प्रकट करते हैं!
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद मैम🙏🙏🙏🙏🙏🙏
हटाएंइसे कहते हैं स्वतन्त्र आवाज और वेबाक विचार!जैसा नाम वैसा काम,
जवाब देंहटाएंआप जिस निर्भीकता से अपनी बात रखती हैं काबिलेतारीफ है। सरहनीय और
प्रभावशाली आलेख ऐसे ही अपनी बाते निर्भीकता से हमेशा रखती रहिए मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ।
हृदयतल से धन्यवाद🙏
हटाएंमनीषा दी,कोई भी महिला अपनी इच्छा से वैश्या बनना नही चाहती। मजबूरी में बनती है। असल मे तिरस्कार वैश्याओं का नही उन पुरुषों का होना चाहिए जो वहां जाते है। विचारणीय पोस्ट।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत धन्यवाद मैम🙏🙏🙏
हटाएंमैम आपने बिल्कुल सही कहा, तिरस्कार वैश्या को नहीं उन पुरुषों...! पर ये नहीं हो सकता तो कमसेकम वैश्या के साथ इनका भी तिरस्कार होना चाहिए!
अत्यन्त संवेदनशील विषय और उतनी ही प्रबलता से उठाया है आपने। निश्चय ही इस दृष्टि से समाज का तम समेटे जी रहीं हैं, उपेक्षितायें।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर🙏🙏🙏🙏🙏
हटाएंसदियों से सामाजिक व्यवस्था में नारी को अनुगामिनी समझा गया है। पुरुष प्रधान समाज ने नारी को हर तरह से अपने पर आश्रित रखा , जैसा चाहा उसके साथ व्यवहार किया। उस पर अपना प्रभुत्व कायम रखने के लिए उसे कई रीतियों से बांधने की कोशिश की गयी, जिनसे कई कुरीतियां भी बाहर निकल आई, तो सारा दोष उस पर पर ही मढ़ लिया गया। सामाजिक व्यवस्था ही कुछ ऐसी बनायी गई कि उसमें नारी का कोई योगदान न रहे। उनके लिए लक्ष्मण रेखा खींची गयी लेकिन नारी चुपचाप धरती माँ की तरह सब सहती चली गई।
जवाब देंहटाएंपुरुषों द्वारा जो सदियों से उनके बारे में लिखा गया, वह आज जी पूरी तरह मिटाया नहीं जा सका है, यद्यपि हमारी कई क्रांतिकारी महिलाओं ने इसे मिटाने की पुरजोर कोशिश की है लेकिन सदियों से जो जड़ें गहरी जमी हैं वे आज भी पूरी तरह मिट नहीं पायी हैं।
यूँ ही निरंतर यदि हम धीरे-धीरे इन नारी विरोधी सदियों से जमे विकृत वृक्ष की जड़ों में हींग और मट्ठा डालते रहेंगे तो ऐसे कई भेदभाव को मिटा सकने में सक्षम हो सकेंगे
गंभीर संवेदनशील, सामाजिक व्यवस्था पर बेबाक लेखन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं।
आपने बिल्कुल सही कहा मैम गहरी जड़े इतनी आसानी से नष्ट नहीं की जा सकती, धीरे धीरे ही खत्म होंगी!
हटाएंआपका बहुत बहुत आभार और धन्यवाद आदरणीय मैम🙏🙏🙏
प्रिय मनीषा,
जवाब देंहटाएंविषय के संबंध सभी सम्मानीय लेखकों ने भावपूर्ण, तथ्यात्मक विचार व्यक्त रखे हैं। मेरे कहने के लिए खास कुछ बचा नहीं है।
वेश्याएँ सभ्य समाज का वो आईना है जिसकी आड़ में वो अपना वीभत्स चेहरा छुपाता है।
लेखन का उद्देश्य सार्थक करती रहे आपकी लेखनी ऐसे ही।
मेरी खूब सारी शुभकामनाएं और स्नेह।
आपका तहेदिल से शुक्रिया मैम🙏🙏
हटाएंगहन विमर्श ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीय🙏
हटाएंइस संदर्भ में मेरे विचार भी पूर्णतः आपके जैसे ही हैं। यह विषय बहुआयामी है किन्तु संक्षेप में इतना तो कहा ही जा सकता है कि हमारा पाखंडी समाज उत्पीड़ित को ही दोषी ठहराकर उसका तिरस्कार करता है। वास्तविक दोषी सीना तानकर घूमते हैं, उन पर उंगली भी नहीं उठती। जो मज़लूम और मजबूर है, समाज की निगाहों में गुनाहगार वही है। हकीकत तो यह है कि गुनाहगार ख़ुद समाज ही है जो दिन के उजाले में कहता कुछ और है, रात के अंधेरे में करता कुछ और है। आपका लेख आईना है जिसमें अपना चेहरा देखने से समाज यकीनन डरेगा।
जवाब देंहटाएंआपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ सर आपकी प्रतिक्रिया का मुझे हमेशा इंतज़ार रहता है! आप सभी की प्रतिक्रिया बहुत मायने रखती है ! आपका बहुत बहुत धन्यवाद और आभार आदरणीय सर🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
हटाएंप्रिय मनीषा
जवाब देंहटाएंगंभीर विषय पर गंभीर लेखन ।
समाज को आइना दिखती विचारणीय पोस्ट ।
लिबास से तुलना सटीक लगी ।
ऐसी ही धार बानी रहे तुम्हारी कलम में । शुभकामनाएँ
धन्यवाद मैम🙏🙏
हटाएंऐसे ही झकझोरती रहिये मनीषा जी,समाज को सजग-सचेत करने के लिये बहुत ज़रूरी है.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मैम🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
हटाएंएक पर्दे की ओट में रहने वाले विषय पर बेबाक लेखनी चली धारदार चली,मनीषा जी बहुत ही आक्रोश से भरा है लेख और होना भी चाहिए ,एक सत्य पर लिखा तो बहुत गया है पर सुधार की कोई गुंजाइश नही दिखती ।
जवाब देंहटाएंएक सार्थक चिंतन परक लेख।
गगन जी के उद्गार सटीक और सार्थक रहे।
और भी सभी की विशेष टिप्पणियां ये दर्शाती है कि सोचते तो बहुत हैं पर लिखता बस आप जैसे ही कोई कोई।
साधुवाद।
धन्यवाद आदरणीय मैम 🙏🙏🙏🙏🙏
हटाएंवाकई बेबाकी भरा लेखन।
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं।
धन्यवाद सर🙏
हटाएंप्रिय मनीषा , आपके इस सार्थक लेख पर समयाभाव के कारण ना लिख पाने का अफ़सोस बहुत रहा मुझे --पर इस पर प्रतिक्रियाओं केरूप में जो विमर्श दिखा उससे बहुत संतोष हुआ | इस कथित वर्जित विषय पर लिखने के लिए बहुत हिम्मत चाहिए | समझ नहीं आता
जवाब देंहटाएं-- वेश्यावृति को बढ़ावा देने वाले कौन सफेदपोश हैं जो समाज में खुद को इतना अच्छा दिखाते हैं पर वास्तव में वेश्यावृति में लिप्त रहते हैं |नारी के सौन्दर्य को बहुत ढंग से लाभ में परिवर्तित कर आनंद और भोग का जरिया बनाया गया | कभी स्वर्ग की अप्सरा कभी नगर वधु या गणिका कहकर उसे शोषित किया गया |पर आज शिक्षा ही ऐसी सीढ़ी है जो इस प्रकार की सामाजिक विकृतियों को समाप्त करने मेंप्रभावी सिद्ध होगी |
आपको अफ़सोस करने की कोई जरूरत नहीं है मैम समय नहीं था तो इसमें आपकी क्या गलती है और प्रतिक्रिया का क्या वो तो कभी भी की जा सकती है! ऐसा तो नहीं है कि देर से आयी प्रतिक्रिया का महत्व खत्म हो जाता है! और अभी तो देर हुई ही नहीं है!
हटाएंआपने एक साथ मेरी सभी रचनाओं और लेख को पढ़ा और उस प्रतिक्रिया भी दी! आपका आभार कैसे व्यक्त करूं समझ में नहीं आ रहा है बार बार एक ही शब्द लिखना उचित नहीं लग रहा है! निशब्द हूँ! 🙏🙏🙏🙏🙏🙏 🙇🙌❤
बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय सृजन , प्रभावशाली प्रस्तुति |शुभ कामनाएं |
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद आदरणीय सर🙏
हटाएंRealty of our society. Amazing article. Keep writing dear. 👍👍👍
जवाब देंहटाएंThank you🙏
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 23 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आपका बहुत बहुत धन्यवाद और आभार🙏🙏🙏
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