शनिवार, जुलाई 24, 2021

वो जिस्म बेचती है तो वो बाजारू कहलायी लेकिन जिस्म को खरीदने वाले.....?

गूगल से
पता है कि मुझे बहुतों को मेरा ये लेख आपत्तिजनक और भेद्यता से भरा हुआ है! रास नहीं आयेगा शीर्षक देखकर ही अनदेखे कर देंगे ! लेकिन इससे हक़ीक़त नहीं बनी! 
वैश्य बदलान और चरित्रहीन तो ही इस लिए समाज का तिरस्कार और समाज कई नाम दिए गए खमोशी के साथ अलर्ट है! पर क्या कोई और जन्म से ही वैश्य होता है ?क्या वो पैदाइशी चरित्रहीन होती है ? क्या उसके माथे पर लगे वैश्य के ठप्पे में अकेले उसका हाथ खुल जाता है? हाँ वो जिस्म बेचती है वो चरित्रहीन ! उसकी अपनी कोई इज्जत नहीं! उनका चरित्र क्या बनाता है? जो इसके जिस्म को अपने हवस के दृष्टिकोण तक पहुंचने के लिए जीत गए हैं और उनके नाम पर वैश्य के ठप्पा उम्मीदवार हैं? रात के अंधेरे में रात में जाने वाले सरफजादे और नवाबजादो को किसी का नाम क्यों नहीं दिया गया? क्या इसलिए कि ये लोग छिप कर करते हैं? और
वैश्य डंके की चोट पर आपका जिस्म का व्यापार करता है तभी तो पूरे विश्व का तिस्कार सहती है! 
उन चरित्रवान पुरुषों का क्या है जो उनकी पत्नी, उनके परिवार की उपस्थिति से बचकर अपनी हवस के लिए बदनाम सड़कों पर निकल जाते हैं? क्या ये लोग चरित्रहीन नहीं होते?ये लोग तो चरित्रहीन होने के साथ धोखेबाज़ और विश्वास भी होते हैं। वैश्य फिर भी धोखेबाज नहीं होती वो अपना जिस्म व्यापार करती है पर किसी की भावनाओं के साथ विश्वास नहीं करती। 
अगर वो किसी दायरे में रहता है, तो ये समाज के अभिषेक भी जिस्म के अटक जाते हैं! 
जिस बदनाम गलियों को सुबह के उजाले में तिरस्कार भरी नजरों से देखते हैं, रात होती ही वही बदनाम गलियों में अपनी रात रंगे हुए होते हैं !वो अपना जिस्म बेचती है, तो ये भी तो अपना ईमान पहचानते हैं!तो फिर उसे ही अकेले में हमेशा बदनाम क्यों किया जाता है? 
वैश्या अति संस्कारी और चरित्रवान पुरुषों की हवस को छिपाने वाले वो श्रेणी में ही आते हैं ये पुरुष समाज के सामने इस तरह के स्वभाव होंगें कि फिर नामांकन धारण करने के काबिल ही नहीं जीतेंगे!मुहं छिपाने की जगह नहीं मिलेगी! 
और चरित्रवान होने का ढोंग करने वालों का घमण्ड और परिवार एक साथ इस तरह टूटेगा कि फिर उसे दुनिया के सबसे काबिल कलाकार भी नहीं जोड़ेंगे! 
और अगर सभी लोग इतने ही चरित्रवान हैं तो फिर इन वैश्यों का धंधा आज भी कैसे चल रहा है? लागत है? विशिष्ट कौन है जो उन बदनाम गलियों में जाता है? क्या वो गरीब, जो दो घंटे की रोटी के लिए पूरे दिन मेहनत करता है लेकिन रात को पैसे जुटाता है उसी का जिस्म की भूख साफ हो गई है? लेकिन ये भी सच है कि सभी अमीर जिस्म के लिबास नहीं होते पर जिस्म की कीमत लगाने वाले सभी अमीर ही होते हैं! 
और गरीब जिन और मध्यवर्गीय हवस के शिकारियों की पहुंच से ये कोठा होता है कि वे हवस को मिटाने के लिए रेपी बन जाते हैं! शुक्रगुजरा होना चाहिए वैश्यों का, कि वैश्यवृत्ति की बदलोलत रिसजादे रेपी नहीं बने, नहीं तो न्याय की कल्पना करना भी दुशवार हो जाता है ! 
ये सच है कि इस समाज की नजर में वैश्य की कोई इज्जत और औकात नहीं है क्योंकि ये इसी के हकदार हैं! लेकिन ये बात भी नहीं भूलनी चाहिए कि ये वैश्य बनाने वाले इस समाज के लोग ही हैं! और ये बातें भी याद रखना चाहिए कि वैश्य की नजरों में नोटों से नकली नवाब और चरित्रवान होने का ढोंग करने वालो की कोई औकात नहीं! तो क्या कोई मुझे बता सकता है कि कौन अधिक गिरा हुआ इंसान है वो जो सबकी नजरों में गिरा है या फिर वो जो, सबकी नजरों में गिरने वाले इंसान( वैश्या) की नजर में गिरा है? 
वैश्या अपने पेट की आग से बचने के लिए अपने जिस्म को बेचती है और ये चरित्रवान लोग अपने हवस की भूख मिटाने के लिए अपने ईमान को जिस्म के नाम हैं! जब निवस्त्र दोनों होते हैं, तो फिर एक पर ही क्यों कलंक का ठप्पा लगता है? किसी एक को ही क्यों वैश्य का नाम मिलता है? 
जिस्म को करके हवस के पुजारियों का विवरण, 
चड़ा हो गया है, 
एक कोने में जाके! 
स्तब्ध सी निहारती रहती है , 
जिस्म को नोच वन गिद्धों को, 
और इक वैश्य के आगे बेनकाब हुआ शराफत को! 
नोट- आलोचनात्मक टिप्पणी करने की स्वतंत्रता है! शब्दों की मर्यादा ध्यान रखें! 

57 टिप्‍पणियां:

  1. Fantastic Article.👍👍👍 Keep writing dear🤗🤗

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  2. बेहतरीन अभिव्यक्ति प्रिय मनीषा।
    कोई भी आँखें नहीं चुराएगा आपकी इस अभिव्यक्ति से।
    औरत होने के नाते इस पीड़ा को शब्द देना जायज़।

    वैश्या शब्द ही अपने आप में पीड़ा दाय है जो भी लिखा आपने सार्थक है।
    समाज में समानता के नाम पर औरतों का होता दोहरा शोषण... शब्दों से होता बलात्कार काया से ज़्यादा हृदय को आघात देता है। आज भी अगर औरत घर से बाहर निकलती है तब एक संकीर्ण विचार को लगता है उन्हीं के लिए निकली है नहीं तो फिर निकली ही क्यों?
    बहुत कुछ ऐसा है समाज में जो सदियों से ज्यों को त्यों है बस समय अपनी सफ्तार से आगे बढ़ता जाता है।
    गंभीर विषय उठाया है आपने और गहन लेखन...
    बहुत सारा स्नेह।

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    1. आप सही कह रहीं हैं मैम पर कुछ लोग हैं जिन्हें ऐसी अभिव्यक्ति बिल्कुल भी रास नहीं आती! क्योंकि उन्हें वैश्या के बारे बात भी करना पाप लगता है! लेकिन वे भूल जाते हैं कि नकारात्मक चीजों से भागते रहने से नकारात्मकता खत्म नही हो जाती! जब तक उस पर विचार विमर्श नहीं किया जाता! और आपने बिल्कुल सही कहा मैम कि कुछ संकीर्ण सोच वाले लोगों को लगता है कि महिलाएँ सिर्फ़ उनके लिए बाहर निकलतीं हैं और कुछ को लगता है कि सिर्फ़ उनके लिए ही श्रृंगार करती हैं! इससे महिलाओं के बारे में तो नहीं पता चलता है पर इससे इन लोगों के बारे में जरूर पता चलता है! कि ये लोग महिलाओं को आकर्षित करने के लिए ही सब करते हैं!
      इतनी विस्तार से समिक्षा करने के लिए आपका तहेदिल से धन्यवाद आदरणीय मैम 🙏🙏🙏

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  3. बहुत ही साहसिक व सत्य को उजागर करती रचना, साहिर लुधियानवी के शब्दों में - - औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया,
    जब जी चाहा मसला कुचला जब जी चाहा धुत्कार दिया - - आपका आलेख समाज को बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करता है, प्रभावशाली लेखन - - नमन सह आदरणीया।

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    1. औरत ने जन्म......
      आपने बिल्कुल सही कहा सर!
      अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया के लिए आपका तहेदिल से बहुत बहुत धन्यवाद सर🙏🙏🙏
      सर "नमन सह आदरणीया।" लिख कर शर्मिंदा न करें आप हमसे उम्र में बहुत बड़े हैं! 🙏🙏🙏

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  4. "नोट- आलोचनात्मक टिप्पणी करने की पूरी स्वतंत्रता है! पर शब्दों की सीमा का ध्यान रखें!" - चूँकि आपने "शब्दों की सीमा" का ध्यान रखने के लिए कहा है तो .. संक्षेप में .. समाज की मूक पीड़ादायक घाव को कुरेदने के लिए असीम शुभाशीष .. बस यूँ ही ...

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    1. सर आपकी प्रतिक्रिया पूरी तरह से समझ में तो नहीं आयी पर देख कर अच्छा लगा 😄😄😄
      सहृदय धन्यवाद सर🙏🙏🙏🙏

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  5. प्रिय मनीषा वैश्या शब्द ही सुनकर लोग चौंक जाते है,परंतु एक वैश्या का जीवन कैसा है वो कौन सी मजबूरी है, कि वो इस दलदल में फंसी है,किसी को कोई सरोकार नहीं समाज में हर तरह के लोग है,उसी तरह एक वैश्या है,बस। एक सार्थक आलेख के लिए तुम्हें मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।

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    1. आपने बिल्कुल सही कहा मैम वैश्या शब्द सुनकर लोग चौक जातें हैं और ऐसे मुद्दो पर बात करने से भी हिचकते हैं! लेकिन कोई उसकी दर्द को नहीं समझना चाहता है बस उसे अपमानित करते रहते है! और वही उसके खरीददार को कुछ नहीं कहतें!
      आपका बहुत बहुत धन्यवाद मैम प्रतिक्रिया देने और लेख की गंभीरता को समझने के लिए 🙏🙏🙏

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  6. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (26-7-21) को "औरतें सपने देख रही हैं"(चर्चा अंक- 4137) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    --
    कामिनी सिन्हा

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    1. कृपया २६ की जगह २७ पढ़े
      कल थोड़ी व्यस्तता है इसलिए आमंत्रण एक दिन पहले ही भेज रही हूँ।

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    2. आपका तहेदिल से बहुत बहुत धन्यवाद प्रिय मैम ! वैसे मेरी बहुत सारी रचनाएँ और लेख चर्चा मंच में शामिल हो चुकें हैं पर आज मुझे उतनी खुशी मिली है जितनी खुशी पहली बार चर्चा मंच में शामिल होने पर मिली थी!क्योंकि मुझे नहीं लगा था कि कोई इसे चर्चा मंच में शामिल करेगा!
      इसलिए एक बार फिर से आपका हृदय की गहराइयों से बहुत बहुत प्र धन्यवाद प्रिय मैम🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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  7. कडवी हकीकत से रूबरू कराता आलेख !
    आभार !!!

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    1. सहृदय धन्यवाद आदरणीय सर🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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  8. आपकी बात, आपका आक्रोश दोनों सही हैं। कड़वा सच्चाई को बेबाकी के साथ दुनिया के सामने रखने के लिए आपको बधाइयाँ और शुभकामनाएँ।

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    1. आपका बहुत बहुत धन्यवाद और आभार सर🙏🙏🙏🙏

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  9. यथार्थ से मार्मिक साक्षात्कार।

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  10. मनीषा जी
    इतने गंभीर और ''बोल्ड'' विषय को विवेचना हेतु चुनने के लिए साधुवाद ! दुनिया के इस सबसे पुराने व्यवसाय (पेशा शब्द उचित नहीं लगता) के पक्ष में कुछ लिखने-बोलने के लिए बहुत हिम्मत और साहस चहिए !

    पुराने जमाने से लेकर इतिहास काल या उसके भी काफी बाद तक, इसे समाज में एक सम्मान का दर्जा प्राप्त था। कहते हैं, राजे-महाराजे-नवाब अपने बेटों को तहजीब सिखाने इनके पास भेजा करते थे। नृत्य-गायन में प्रवीण महिलाएं विदुषी भी होती थीं ! ऐसे अनेकों नाम हैं जो अपने राजा, राज्य और देश के काम आए।

    समय के साथ सब कुछ बदल जाता है ! इसमें भी बदलाव आया ! गरीब शोधित महिलाओं की चाहे जैसे भी हुई इस क्षेत्र में आमद होने लगी ! कई ऐसी घटनाएं हैं जो बताती हैं कि कैसे, मजबूरन यहां आई माँ ने अपनी बेटी को सम्मानित जिंदगी दी ! इस सब पर लिखा जाए तो पूरा ग्रंथ बन जाए !

    आपने सही कहा कि पुरुष समाज ने अपनी लंपटता के लिए इस बाज़ार को तरह-तरह के रूप दे अस्तित्व में बनाए रखा ! भले ही उन महिलाओं की समाज में इज्जत या औकात नहीं हो पर हिम्मत तो है लोगों के सामने खड़े होने की ! पर आधुनिक काल की विडंबना और कड़वी सच्चाई यह भी है, कि आसानी से धन लाभ के लिए आज बहुतेरे चेहरे इस राह पर चल अपना मुंह काला कर रहे हैं..

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    1. वेश्या पैदा नहीं होती, समाज उसे बनाता है। एक कड़वा सच। आपने बेबाक ढंग से इसे प्रस्तुत किया है। साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ

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    2. सर आपने बिल्कुल सही कहा!
      धन्यवाद सर🙏🙏🙏🙏

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    3. आपसे ऐसी ही बारीक और निष्पक्ष प्रतिक्रिया की उम्मीद थी सर🙏 वैसे किसी से उम्मीद करना नहीं चाहिए पर पूर्णिमा की रात्रि से उजाले की उम्मीद नहीं करेंगे, तो क्या अमावस्या की रात्रि से करेंगे!
      एक आप हैं जो हर ब्लॉग पर प्रतिक्रिया देते हैं इतने बड़े ब्लॉगर होने के बाद भी लेकिन कुछ बड़े ब्लॉगर प्रतिक्रिया देना तो दूर की बात आभार भी व्यक्त करना जरूरी नहीं समझते! आपका बहुत बहुत धन्यवाद सर इतनी अच्छी प्रतिक्रिया देने के लिए! शर्मा सर 🙏🙏🙏🙏🙏🙏
      आपने बिल्कुल सही कहा सर कि कुछ लोग हैं जो धन के लिए अपना मुंह शौक से करा लेते हैं! तभी तो समाज में इनकी कोई इज्जत नही और होनी भी नहीं चाहिए! पर सवाल उठता है कि जो इन गिरे हुए लोगों की नजरों में जो गिरा हुआ है उसे क्या कहें?

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  11. एक अनछुए विषय पर बेबाक, सार्थक विचार जो अंतर्मन की पीड़ा भी प्रकट करते हैं!

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  12. इसे कहते हैं स्वतन्त्र आवाज और वेबाक विचार!जैसा नाम वैसा काम,
    आप जिस निर्भीकता से अपनी बात रखती हैं काबिलेतारीफ है। सरहनीय और
    प्रभावशाली आलेख ऐसे ही अपनी बाते निर्भीकता से हमेशा रखती रहिए मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  13. मनीषा दी,कोई भी महिला अपनी इच्छा से वैश्या बनना नही चाहती। मजबूरी में बनती है। असल मे तिरस्कार वैश्याओं का नही उन पुरुषों का होना चाहिए जो वहां जाते है। विचारणीय पोस्ट।

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    1. आपका बहुत बहुत धन्यवाद मैम🙏🙏🙏
      मैम आपने बिल्कुल सही कहा, तिरस्कार वैश्या को नहीं उन पुरुषों...! पर ये नहीं हो सकता तो कमसेकम वैश्या के साथ इनका भी तिरस्कार होना चाहिए!

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  14. अत्यन्त संवेदनशील विषय और उतनी ही प्रबलता से उठाया है आपने। निश्चय ही इस दृष्टि से समाज का तम समेटे जी रहीं हैं, उपेक्षितायें।

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  15. सदियों से सामाजिक व्यवस्था में नारी को अनुगामिनी समझा गया है। पुरुष प्रधान समाज ने नारी को हर तरह से अपने पर आश्रित रखा , जैसा चाहा उसके साथ व्यवहार किया। उस पर अपना प्रभुत्व कायम रखने के लिए उसे कई रीतियों से बांधने की कोशिश की गयी, जिनसे कई कुरीतियां भी बाहर निकल आई, तो सारा दोष उस पर पर ही मढ़ लिया गया। सामाजिक व्यवस्था ही कुछ ऐसी बनायी गई कि उसमें नारी का कोई योगदान न रहे। उनके लिए लक्ष्मण रेखा खींची गयी लेकिन नारी चुपचाप धरती माँ की तरह सब सहती चली गई।
    पुरुषों द्वारा जो सदियों से उनके बारे में लिखा गया, वह आज जी पूरी तरह मिटाया नहीं जा सका है, यद्यपि हमारी कई क्रांतिकारी महिलाओं ने इसे मिटाने की पुरजोर कोशिश की है लेकिन सदियों से जो जड़ें गहरी जमी हैं वे आज भी पूरी तरह मिट नहीं पायी हैं।
    यूँ ही निरंतर यदि हम धीरे-धीरे इन नारी विरोधी सदियों से जमे विकृत वृक्ष की जड़ों में हींग और मट्ठा डालते रहेंगे तो ऐसे कई भेदभाव को मिटा सकने में सक्षम हो सकेंगे
    गंभीर संवेदनशील, सामाजिक व्यवस्था पर बेबाक लेखन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं।

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    1. आपने बिल्कुल सही कहा मैम गहरी जड़े इतनी आसानी से नष्ट नहीं की जा सकती, धीरे धीरे ही खत्म होंगी!
      आपका बहुत बहुत आभार और धन्यवाद आदरणीय मैम🙏🙏🙏

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  16. प्रिय मनीषा,
    विषय के संबंध सभी सम्मानीय लेखकों ने भावपूर्ण, तथ्यात्मक विचार व्यक्त रखे हैं। मेरे कहने के लिए खास कुछ बचा नहीं है।
    वेश्याएँ सभ्य समाज का वो आईना है जिसकी आड़ में वो अपना वीभत्स चेहरा छुपाता है।
    लेखन का उद्देश्य सार्थक करती रहे आपकी लेखनी ऐसे ही।
    मेरी खूब सारी शुभकामनाएं और स्नेह।

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    1. आपका तहेदिल से शुक्रिया मैम🙏🙏

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  17. इस संदर्भ में मेरे विचार भी पूर्णतः आपके जैसे ही हैं। यह विषय बहुआयामी है किन्तु संक्षेप में इतना तो कहा ही जा सकता है कि हमारा पाखंडी समाज उत्पीड़ित को ही दोषी ठहराकर उसका तिरस्कार करता है। वास्तविक दोषी सीना तानकर घूमते हैं, उन पर उंगली भी नहीं उठती। जो मज़लूम और मजबूर है, समाज की निगाहों में गुनाहगार वही है। हकीकत तो यह है कि गुनाहगार ख़ुद समाज ही है जो दिन के उजाले में कहता कुछ और है, रात के अंधेरे में करता कुछ और है। आपका लेख आईना है जिसमें अपना चेहरा देखने से समाज यकीनन डरेगा।

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    1. आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ सर आपकी प्रतिक्रिया का मुझे हमेशा इंतज़ार रहता है! आप सभी की प्रतिक्रिया बहुत मायने रखती है ! आपका बहुत बहुत धन्यवाद और आभार आदरणीय सर🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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  18. प्रिय मनीषा
    गंभीर विषय पर गंभीर लेखन ।
    समाज को आइना दिखती विचारणीय पोस्ट ।

    लिबास से तुलना सटीक लगी ।
    ऐसी ही धार बानी रहे तुम्हारी कलम में । शुभकामनाएँ

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  19. ऐसे ही झकझोरती रहिये मनीषा जी,समाज को सजग-सचेत करने के लिये बहुत ज़रूरी है.

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  20. एक पर्दे की ओट में रहने वाले विषय पर बेबाक लेखनी चली धारदार चली,मनीषा जी बहुत ही आक्रोश से भरा है लेख और होना भी चाहिए ,एक सत्य पर लिखा तो बहुत गया है पर सुधार की कोई गुंजाइश नही दिखती ।
    एक सार्थक चिंतन परक लेख।
    गगन जी के उद्गार सटीक और सार्थक रहे।
    और भी सभी की विशेष टिप्पणियां ये दर्शाती है कि सोचते तो बहुत हैं पर लिखता बस आप जैसे ही कोई कोई।
    साधुवाद।

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  21. वाकई बेबाकी भरा लेखन।
    शुभकामनाएं।

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  22. प्रिय मनीषा , आपके इस सार्थक लेख पर समयाभाव के कारण ना लिख पाने का अफ़सोस बहुत रहा मुझे --पर इस पर प्रतिक्रियाओं केरूप में जो विमर्श दिखा उससे बहुत संतोष हुआ | इस कथित वर्जित विषय पर लिखने के लिए बहुत हिम्मत चाहिए | समझ नहीं आता
    -- वेश्यावृति को बढ़ावा देने वाले कौन सफेदपोश हैं जो समाज में खुद को इतना अच्छा दिखाते हैं पर वास्तव में वेश्यावृति में लिप्त रहते हैं |नारी के सौन्दर्य को बहुत ढंग से लाभ में परिवर्तित कर आनंद और भोग का जरिया बनाया गया | कभी स्वर्ग की अप्सरा कभी नगर वधु या गणिका कहकर उसे शोषित किया गया |पर आज शिक्षा ही ऐसी सीढ़ी है जो इस प्रकार की सामाजिक विकृतियों को समाप्त करने मेंप्रभावी सिद्ध होगी |

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    1. आपको अफ़सोस करने की कोई जरूरत नहीं है मैम समय नहीं था तो इसमें आपकी क्या गलती है और प्रतिक्रिया का क्या वो तो कभी भी की जा सकती है! ऐसा तो नहीं है कि देर से आयी प्रतिक्रिया का महत्व खत्म हो जाता है! और अभी तो देर हुई ही नहीं है!
      आपने एक साथ मेरी सभी रचनाओं और लेख को पढ़ा और उस प्रतिक्रिया भी दी! आपका आभार कैसे व्यक्त करूं समझ में नहीं आ रहा है बार बार एक ही शब्द लिखना उचित नहीं लग रहा है! निशब्द हूँ! 🙏🙏🙏🙏🙏🙏 🙇🙌❤

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  23. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय सृजन , प्रभावशाली प्रस्तुति |शुभ कामनाएं |

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  24. Realty of our society. Amazing article. Keep writing dear. 👍👍👍

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  25. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 23 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. आपका बहुत बहुत धन्यवाद और आभार🙏🙏🙏

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नारी सशक्तिकरण के लिए पितृसत्तात्मक समाज का दोहरापन

एक तरफ तो पुरुष समाज महिलाओं के अधिकारों और उनके सम्मान की बात करता है और वहीं दूसरी तरफ उनके रास्ते में खुद ही एक जगह काम करता है। जब समाज ...