शनिवार, मार्च 11, 2023

नारी सशक्तिकरण के लिए पितृसत्तात्मक समाज का दोहरापन

एक तरफ तो पुरुष समाज महिलाओं के अधिकारों और उनके सम्मान की बात करता है और वहीं दूसरी तरफ उनके रास्ते में खुद ही एक जगह काम करता है। जब समाज की बात आती है तो खुद को महिलाओं का सबसे बड़ा शुभचिंतक बताने में कोई भी पुरुष पीछे नहीं रहता लेकिन जब बात अपने परिवार में किसी महिला के साथ हो रहे अन्य, घरेलू हिंसा जैसी आती है जब उसके साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ न्याय की बात आती है। तो घर की बात घर में ही सुलझा देने के नाम पर महिलाओं के अधिकारों के संबंध में और उसके स्वभिमान और सम्मान से अधिक, रिश्तों को महत्व देते हैं जबकि पुरुषों के साथ ऐसा कुछ भी नहीं करते। पुरुष के लिए आत्मा सम्मान सर्वोपरि होता है, कोई पुरुष खुद को कितना भी आधुनिक क्यों न कह ले पर स्त्री के मामले में वह अपने पूर्वजों के पदचिन्हों पर चलना ही पसंद करता है। हाँ, कुछ भी अपवाद निश्चित रूप से  हैं पर बहुत कम,सौ में एक हैं। पर दिखावा करने वाले की कोई कमी नहीं है ये लोग जो खुद को महिलाओं का शुभचिंतक बताते हैं या उनके अधिकार की बड़ी बड़ी बातें करते हैं वे लोग यह नियम क्यों नहीं शुरू करते हैं कि जिस तरह महिलाओं को अपने पति का नाम लिखना हर सरकारी व निजी दस्तावेज़ में लिखना ज़रूरी होता है वैसे ही पुरुषों के लिए भी अपनी पत्नी का नाम लिखना अनिवार्य होना चाहिए। और अगर नहीं कर सकते तो फिर इस नियम से महिलाओं को भी स्वतंत्र कर देना चाहिए। ये जो कुछ महापुरुष स्वयं को महिलाओं के शुभचिंतक होने का दावा करते हैं और उनके सम्मान की बात करते हैं उनसे एक प्रश्न है मेरा कि जब कोई व्यक्ति कायरतापूर्ण कार्य करता है तो उसे महिला के रूप में क्यों देते हैं अपनी महिलाओं को वक्र क्यों देते हैं क्या महिलाओं की वक्रता का प्रतीक है? क्या चूड़ी, बिंदी सिंदूर कायरता की निशानी है या फिर महिलाएं ? और जब कोई महिला कोई साहसिक कार्य करती है तो उसे मर्दानी क्यों कहते हैं कि पुरुष क्या साहसिक कार्य करते हैं? ये कैसा सम्मान है क्या कोई यादगार? और ये शुभचिंतक व महिलाओं के सबसे बड़े हितैषी जब कोई चुनाव के पोस्टर शुभकामनाओं आदि में किसी महिला के नाम के साथ उसके पति का नाम लिखा होता है कि फला व्यक्ति की पत्नी उसी तरह पुरुषों के नाम के साथ क्यों नहीं लिखती कि किसी व्यक्ति के नाम के साथ पति?आज इक्कीसवीं शदी में भी दावा किया जाता है कि स्वतंत्रता और केवल 'पौरुष' के लक्षण हैं तभी तो जब कोई महिला कोई साहस कार्य करती है तो उसे मरदानी कहा जाता है और जब कोई पुरुष कोई कायरता पूर्ण हरकत करता है तो उसकी उपमा महिलाओं से किया जाती है, बहुत से ऐसे कार्यलय मिल जाएंगे जहां सिर्फ पैंट शर्ट पहनने की ही अनुमति है महिलाओं को, कहने को तो सिर्फ ये कपड़े हैं। पर इसकी गहराई में जाकर देखें तो इसकी हक़ीक़त क्या ज्ञात होगी। जब कोई महिला किसी उच्च पद पर आसीन होती है तो उसे मैम या मैडम जी कह सम्बोधित नहीं किया जाता है बल्कि उसे सर कह कर सम्बोधित किया जाता है इसके पीछे यह धारणा है कि सर शब्द ताकत को चित्रित करता है, इसका एक उदाहरण धारावाहिक "मैदम सर" भी! ये तो धारावाहिक है पर वास्तव में ऐसा ही होता है और धारावाहिक, फिल्म ये सब वास्तविक समाज पर ही आधारित होते हैं। यह पितृसत्ता का सबसे भयावह उदाहरण है अधिकतर शब्द जो ताकत जैसे हिम्मत, साहस को दर्शाते हैं वे अधिकतर पुलिंग ही हैं। अर्थात पुरुषों से किसी न किसी रूप में जुड़े हुए हैं, पर पितृसत्तात्मक समाज ये बात कभी मानता कि वह स्त्रियों के साथ अत्याचारी दमनकारी व्यवहार करता है हमेशा यह कह कर अपना पल्ला झाड़ लेता है कि स्त्री के उपर पुरुषों का अधिपत्य तो सामाजिक संरचना का एक हिस्सा है। 

रविवार, मार्च 05, 2023

खेलने का फैसला करने से लेकर खेल के मैदान तक सफर

कुश्ती के अखाड़े में जिन शेर और शेरनियों को लड़ते हुए देखते थे उन्हें आज जंतर मंतर पर अपने स्वाभिमान,अपने आत्मसम्मान के लिए लड़ना पड़ रहा है। इससे दुर्भाग्यपूर्ण और क्या होगा? जिनका एक एक पल बेशकीमती होता है वे आपना वक़्त अपनी प्रतिभा को देने के बजाय जंतर मंतर पर बर्बाद करने पर मजबूर हो रहें हैं। जिस लड़ाई की नौबत ही नहीं आनी चाहिए उसे लड़ते हुए तीन दिन हो गए और सत्ताधारी लोग मुंह में दही जमाये बैठे हैं।जिस महाशय पर आरोप लगा है उनके रंगीन मिज़ाज से सब वाकिफ़ हैं फिर भी मूकदर्शक बने बैठे हैं। सत्ता के नशे में इस तरह लीन रहते हैं कि  किसी को मंच पर ही थप्पड़ जड़ सकते हैं और सरेआम किसी की हत्या करने की बात कबूल सकते हैं।और पता नहीं कितनी लड़कियों का नजरों से बलात्कार कर चुके हैं।जो खुद को सांवरिया समझतें हैं। जिनके महाविद्यालय कुछ इस हर जगह खुले हैं जैसे कुकुर मुत्ता हर जगह उगा रहता है।शिक्षा व्यवस्था की पूरी धज्जी उड़ा कर रख दी है। पर इसकी जिम्मेदार आम जनता है क्योंकि आम जनता ने ही इन्हें सर पर चढ़ा रखा है। जहाँ आज सबको आगे आकर पहलवानों का साथ देना चाहिए और उनके कंधे से कंधा मिलाकर चलना चाहिए तो हमारे गोण्डा के महान लोग उत्तर प्रदेश बनाम हरियाणा करने में लगे हैं। नेता जी हम आपके साथ है कह कर अपनी उच्च सोच का  प्रदर्शन कर रहें हैं। पर नेताओं के तलवे चाटने वाले भूल रहें हैं कि उनकी माँ-बहन और बेटी भी इसका शिकार हो सकती है या शायद हो चुकी भी हो पर चुप हो। और उन लड़कियों को तो इक्कीस तोपों की सलामी जो आज भी इस नरभक्षी की दिवानी बनी बैठीं है और सेल्फी लेने के लिए मरती रहतीं है। मुझे हैरानी होती है कि ये लड़कियाँ किसी के स्पर्श को महसूस कैसे नहीं कर पाती कि गंदे इरादों से स्पर्श कर रहा है, यहाँ गंदी नजरें भी महसूस कर ली जाती है कि कौन अपनी अश्लील नज़रों से निवस्त्र कर रहा है और कौन नहीं। लेकिन हमारे गोण्डा वाले बहुत महान है अपने परिवार के सदस्य(गोण्डा के निवासियों) की हर गलती और गुनाहों को मांफ कर देते हैं।और अपनी बहन और बेटियों की इज़्ज़त अपने प्रिय नेता जी के लिए दांव पर भी लगा देते हैं। अभी भी कुछ लोग इस हवस्खोर के साथ सेल्फी लेकर सोशल मीडिया पर ऐसे पोस्ट करेंगे और ऐसा महसूस करेंगे जैसे कि साक्षात भगवान के दर्शन हो गयें हो। शुक्रगुज़ार होना चाहिए इन पहलवानों का कि वे हमारे और आपके हिस्से की लड़ाई लड़ रहे हैं और इस जिस्म के पुजारी से निजात दिलाना में एड़ी चोटी का जोर लगा रहें हैं। पर नहीं हम तो गोण्डा वाले है हम अपने गोण्डा के लोगों की अलोचना कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं।यही चमचागिरी हमें आगे बढ़ने नहीं दे रही, जिस लड़ाई की नौबत ही नहीं आनी चाहिए उसे लड़ते हुए तीन दिन हो गए और कुर्सी के लालची मुंह में दही जमाये बैठे हैं।पर ब्रिज भूषण को और उनके चमचों को उनकी पंसदीदा पंक्तियाँ याद रखनी चाहिए कि- सच है विपत जब आती है कायर को ही दहलाती है............सूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते.........! हमारे सूरमा (पहलवान)भी विचलित होने वाले नहीं है इतनी आसानी से। कहते मानव जब जोर लगता पत्थर पानी बन जाता है, जब हमारे सूरमाओं ने जोर लगाया तो.....! हम दुआ करते हैं कि हमारे प्रिय सांसद जी की  रंगीन जिंदगी से ये वक़्त जल्द से जल्द गुजर जाए और इससे भी अधिक बुरा वक़्त आए। मासूमों की इज़्ज़त के साथ खेलने वाले की सराफत की नकाब कुछ इस तरह बेनकाब हो कि छुपाने के लिए कपड़े कम पड़ जाए । ऐसा पहली बार नहीं है जब हमारी महिला खिलाड़ियों के साथ ऐसा हुआ है ऐसे अनगिनत हवस्खोर हर क्षेत्र में उच्च पदों पर विराजमान हैं। इससे पहले हरियाणा के खेल मंत्री और पूर्व हॉकी कप्तान संदीप सिंह द्वारा हरियाणा में एक जूनियर महिला कोच पर यौन शोषण का आरोप लगाया गया, सच्चाई तो जांच के बाद पूरी तरह स्पष्ट होगी।लेकिन ये बात साफ हो गई है कि किस तरह प्रति दिन खेल जगत में महिलाओं के साथ खेल खेला जा रहा है और और यौन शोषण के आरोपों ने एक बार फिर खेल जगत में व्याप्त गंदगी को उजागर कर दिया है। इससे पहले भी खेल जगत से कई महिलाओं के साथ अभद्रता और छेड़छाड़ जैसी घटनाएं सामने आई हैं, लेकिन ये घटना ज्यादा हैरान करने वाली इसलिए है क्योंकि दोषी भारतीय हॉकी टीम का जाना-माना चेहरा है जिस पर सूरमा फिल्म भी बनी है।और इसी साल मई में एक महिला साइकिलिस्ट के साथ कोच द्वारा यौन उत्पीड़न और कोच के साथ कमरे में सोने का विरोध करने पर महिला साइकिलिस्ट को लक्ष्य (एनसीआई) से हटाकर अपने करियर को पूरी तरह से बर्बाद करने की धमकी देने की बात निकल कर सामने आई थी।,कितना संघर्ष करना पड़ता है और कितनी ऐसी लड़ाइयाँ लड़ती हैं जिन लड़ाइयों की नौबत ही नहीं पैदा होनी चाहिए। और ऐसी घटनाओं से खेल जगत में भविष्य देखने वाली युवा लड़कियों का मनोबल भी टूटता है। जिस तरह आये दिन खेल जगत से महिलाओं के साथ अभद्रता की खबरें बाहर आ रही हैं ये उभरती हुई युवा महिला खिलाड़ियों के रास्ते का रोड़ा बनती जा रहीं हैं।हमारे देश में पहले से ही लड़कियां का खेलना अधिकतर अभिभावक और समाज पसंद नहीं करता था, और अब जब लोगों की सोच में थोड़ा बहुत खुलापन और विस्तार आ रहा था, जब लोगों को लगने लगा था कि हां, खेल सिर्फ खेल नहीं है बल्कि बहुत कुछ है, जिसमें अपना हुनर दिखाने का लड़के-लड़कियों सभी को बराबर अवसर मिलना चाहिए।आज जब खेल के प्रति सदियों से चलती आ रही रूढ़िवादी विचारधाराओं को महिला खिलाड़ियों ने खेल के मैदान में झंडे गाड़ कर अपना लोहा मनवा रहीं हैं और लोगों का महिलाओं के प्रति लोगों का नजरिया बदल रहीं हैं तो ऐसी घटनाएं इन सभी खिलाड़ियों के मेहनत पर पानी फेरने का काम कर रहीं हैं।पहले से ही बहुत कम अभिभावक अपने बेटियों को खेल जगत में भेजते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इसमें उनकी बेटियां सुरक्षित नहीं है और न ही उनकी इज्जत है।और अब ऐसी घटनाएं होने के बाद अधिकतर अभिभावक अपनी बेटियों को इस खेल जगत में भेजने से बचेंगे।क्योंकि हर अभिभावक के लिए सबसे अधिक जरूर कोई चीज होती है तो उनके बच्चों की सुरक्षा। इसलिए खेलों में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने की सख्त जरूरत है।और ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्यवाही करने और सज़ा देने की जरूरत है जिससे दुबारा कोई ऐसी हरकत करने के बारे में सोचने से रूह काँप जाए। 

बुधवार, मार्च 01, 2023

देखो कैसा वक़्त आया आज

 देखो कैसा वक़्त है आया आज।

जो कभी चलते थे सीना तान , 

चीर निन्द्रा में सो गयें हैं आज।

खा रहें हैं काग

उनके चुन चुन आज मांस, 

सिर पर बैठ गिद्ध निकाल खा रहे आँख।

देखो कैसा वक़्त है आया आज।

लाल हुएं कुत्ते के मुंह , प्रफुल्लित हुआ काग।

करते नहीं थे जो कभी किसी से सीधे मुंह बात, 

न सुनते थे किसी की बात।

हुई दुर्दशा देखों उनकी कैसी आज

जीभ कुत्ते नोच रहें , चील नोच रही कान

और खाल खींच रहे सियार।

हुए आनन्दित मांसभक्षी

दौड़े जा रहे दुर्गंध के पास।

सड़े मांस की तीक्ष्ण दुर्गंध

रहगुज़र को मजबूर कर रही, 

बंद करने को आँख और नाक ।

था जिस तन पर बड़ा ही नाज़ ।

इत्र से महकता रहता था जो तन हमेशा, 

वो तन सड़ कर दुर्गंध फैला रहा है आज।

उस तन पर क्षुद्र जन्तु कर रहे निवास।

उस तन की दुर्गंध से दूषित हो रहा वातावरण आज।

देखो कैसा वक़्त है आया आज।

शुक्रवार, जनवरी 06, 2023

इंसानियत का दुश्मन क्यों तू आज बना?


      वाह रे मानव, मानवता का दुश्मन है तू आज बना।

क्यों तू इंसान से है हैवान बना? 

वाह! पत्थर पूजते पूजते तूभी पत्थर बन गया।

धर्म जाति के नाम पर इंसानियत का गला घोंटने को

है तू सीना तान खड़ा।

धर्म-जाति के चक्रव्यूह में ऐसा फसा, 

कि तू इंसान को इंसान समझना ही भूल गया।

किसी को हिंदू तो किसी को मुस्लिम तूने नाम दिया, 

किताबों वाले हाथों में पत्थर तूने थमा दिया।

स्याही से रंगने वाले हाथों को रक्तरंजित तूने करा दिया, 

प्रेम व सौहार्द की खुशबुओं से महकने वाले बागों में 

नफ़रत का बीज तूने लगा दिया।

भूल गया तू , 

कि सबसे पहले तू इंसान है 

फिर हिन्दू -मुस्लिम, सिक्ख आदि है ।

मानवता को मृत्यु शैय्या पर सुला कर

तूने खुद पर बड़ा नाज किया,

पर भूल गया कि जिस रास्ते पर है तू चला, 

उससे तूने खुद का ही विनाश किया ।

इंसान का मानवता ही है सबसे बड़ा धर्म ,

ये भी तुझे न याद रहा।

है कैसा तू किसी धर्म का अनुयायी? 

जो इंसानियत का फर्ज भी तुझे न याद रहा।

है किस काम का वो धर्मग्रंथ? 

जो इंसानों को इंसानियत का पाठ न पढ़ा सका।

है किस काम का वो ईश्वर ? 

जो इंसानों से पत्थर की मूरत के खातिर 

रक्त की नदियाँ है बहा रहा।

जला कर खाक कर देने चाहिए ऐसे धर्मग्रंथों को 

जो इंसानियत का जनाजा उठवाते हो।

-मनीषा गोस्वामी

सोमवार, फ़रवरी 28, 2022

रो रही मानवता हँस रहा स्वार्थ

नीला आसमां हो गया धूमिल-सा
बेनूर और उदास, 
स्वच्छ चाँदनी का नहीं दूर तक 
कोई नामों निशान।
रात में तारों की मौजूदगी के 
बचें नहीं कोई निशाना।
आग उगल रहा अम्बर,धरती रो रही आज।
सूर्योदय से पूर्व नहीं रहा
उषा की चुनरी का चम्पई आलोक।
फीकी पड़ रही रोशनी सूर्य की
धमाकों की आग के आगे आज।
नज़र नहीं आ रहा उड़ता हुआ 
आसमां में पक्षी कोई, 
नहीं आ रही पक्षियों की 
चहकने की आवाज़।
सिर्फ़ नज़र आ रहा है काल बनकर
उड़ता हुआ लड़ाकू विमान।
पहाड़ों की नोकों पर 
चमकीली बर्फ़ की परतें न रहीं
बर्फ़ की आहों का घुट-घुटा धुआं
भी नज़र नहीं आ रहा आज।
सिर्फ़ नज़र आ रहा है, 
काले धुएं का गुब्बार।
आसमां की छाती में सुराख़ कर, 
मिसाइलें ले रही मासूमों की जान।
धमाकों की गूँज में दब रही, 
हमेशा के लिए लोगों की आवाज़ ।
चीख़ रही इंसानियत,
मानवता हो रही तार तार।
यह सब देख ठहाके मार कर 
हँस रहा है स्वार्थ।


बुधवार, फ़रवरी 23, 2022

ऐसा क्यों और कब तक?

बात पिछले साल की है,मैं कम्प्यूटर क्लास के लिए रोज़ कि तरह जा रही थी, मेरे घर से करीब एक किमी की दूरी पर ही एक शौचालय का निर्माण हो रहा था वहाँ कुछ मज़दूर काम कर रहे थे मैं जैसे ही शौचालय के सामने से गुज़रती उन मज़दूरों में से कोई एक ने माक्स पर टिप्पणी की तबतक मैं आगे निकल चुकी थी मुझे साफ़ साफ़ सुनाई तो नहीं पड़ा कि क्या कहा पर मास्क को लेकर कुछ कहा इतना समझ में आ गया मैं ये सोच कर बिना कुछ कहे चली गई कि वापसी में अगर कुछ कहेगा तब इसकी खबर लुंगी पर वापसी में कुछ नहीं कहा। फिर दूसरे दिन जाते वक़्त उसने कोरोना वाला कोई गाना गाया क्योंकि मैंने माक्स लगा रखा था, कुछ लोग होते हैं ना जो लड़की को देखकर खुद को रोक नहीं पाते हैं कुछ ना कुछ कहे ह डालते हैं उन्हीं में से एक वो था, किस मुझ पर क्या टिप्पणी करें समझ नहीं आया, इसलिए वो माक्स पर ही करता रहता था।पर आते वक़्त फिर कुछ नहीं बोला,लेकिन तीसरे दिन आते वक़्त जब उसने फिर टिप्पणी की तो मेरे मन में जो आया उस वक़्त सब कुछ कहा,वहीं काम कर रहे बाकी मज़दूर मुझे समझाने लगे और उससे डाटने लगे तो मैंने कहा इतने दिनों से जब ये हमेशा माक्स को लेकर कुछ न कुछ कहता रहता था तब कहाँ थे आप? फिर एक लोग बोले "बिटिया तू जाऊ यैं ऐसे बका करत हैं " फिर जब मैं वहाँ से थोड़ी दूर निकल आयी तो एक मज़दूर उससे बोला "कहत रहेन तूहसे कि फालतू न बोला कराऊ देख लिहेव" फिर मैं घर आ गयी पर घर पर किसी को कुछ नहीं बताया क्योंकि घरवालों के बारे में मुझे अच्छे से पता था क्या करते हैं।लेकिन दूसरे दिन जाते वक़्त मुझे बहुत डर लग रहा तरह-तरह के ख्याल मन में आ रहे थे चूंकि मैंने सरेआम उसे बहुत कुछ कहा था इसलिए डर लग रहा था कि कहीं बदला लेने की कोशिश न करें, लेकिन मैं जब वहाँ से गुजरी तो उसी तरफ़ देखते हुए कि उसे ये न लगे कि मैं थोड़ी भी डरी हुई हूँ। मैं अपनी सुरक्षा के लिए एक खुली ब्लेड अपनी टोकरी में हमेशा रखतीं हूँ मैंने सोचा अगर कुछ हुआ तो...! लेकिन फिर वह कभी कुछ कहना तो बड़ी दूर की बात नजर उठा कर देखता भी नहीं था ऐसे ही एक बार रास्ते में एक बाइक पर तीन लड़कों ने मुझ पर टिप्पणी करते हुए मुझे छेड़।फिर जब वे वापस आने लगे तो मैंने अपनी साइकिल उनके बाइक के आगे खड़ी कर दी वो लोग हैरान रह हो गयें और मेरी साइकिल तक आते-आते इतनी तेज स्पीड बढ़ा दी अपनी बाइक की और मेरी साइकिल की टोकरी में ठोकर मारते हुए इतनी तेजी से निकले लेकिन तभी मेरा एक सहपाठी बाईक से वहाँ गया जिसके साथ दो लोग और थे जो पुलिस की ट्रेनिंग कर रहे थे इसलिए पुलिस की ड्रेस में थे उन्होंने ,उन मनचलों को आवाज लगाते हुए पीछा पीछा किया, वे मनचले इतनी तेज भागे कि अगर कोई गाड़ी आ रही होती तो वही तुरंत ढेर हो जाते हैं।मुझे बहुत ही खुशी मिली उन लोगों को भागते हुए देख कर और यकीन हो गया कि वे दोबारा किसी लड़की को नहीं छेड़ेंगे। यह दो ही ऐसे केस थे जिनमें मैंने पलट कर जवाब दिया।लेकिन अनगिनत बार रास्तें में लोग टिप्पणी करते रहते हैं इनमें वो लोग भी होतें है जो हमसे दुगनी उम्र के होते हैं जिनकी खुद की बेटी हमारी उम्र की होती है, लेकिन हम कुछ कहें उससे पहले वो निकल जाते हैं। इन लोगों की हरक़त की वज़ह से अधिकतर लड़कियों की पढ़ाई बंद हो जाती है ,बाहर जाना बंद हो जाता है।जो लोग कहते हैं कि अगर लड़कियों की जिंदगी में परेशानियाँ हैं तो लड़कों की जिंदगी भी आसान नहीं, सही कहते हैं। पर कितने लड़के या पुरुष हैं जिनकी परेशानी और बर्बादी का कारण वे लड़कियाँ हैं जिन्हें वे जानते तक नहीं?कितनी बार उन्हें रास्ते मेंं लड़कियाँ ने छेड़ा हैं?कितनी बार अज़नबी लड़कियों की वजह से लड़कों के सपने टूट कर चकनाचूर हुएं हैं?लेकिन अधिकतर लड़कियों के सपने तो लड़कों के कारण ही टूट कर चकनाचूर होतें हैं वो भी उन लड़कों के कारण जिन्हें वे जानती तक नहीं।लड़कियों का स्कूल जाना बंद,कारण लड़के।बाहर जा कर पढ़ नहीं सकती कारण लड़के। सूरज के ढलते ही घर के अन्दर, बाहर खतरा किससे?जवाब लड़कों से।एक लड़की रास्ते में तब उतना नहीं डरती जब वो अकेली होती है जितना दो चार-लड़कों के होने पर डरती है।क्या कभी लड़कों को भी रास्ते की लड़कियों से डर लगा है? अगर रास्ते में किसी ने छेड़ा तो समाज व घर वाले लड़की को ही दोष देंगे अगर नही देगें तो ये कहेंगे कि लड़के तो कुत्ते हैं उन्हें कोई कुछ नहीं कहेगा उंगलियाँ तुम पर ही उठेंगी।कीचड़ में कभी दाग़ थोड़ी लगता है और लड़कें तो कीचड़ हैं।इसलिए लड़कियााँ हर एक से उचित दूर बनाएं रखना पसन्द करती हैं,लड़कियाँ अपने माँ बाप के सर पर बोझ कारण लड़के।क्योंकि लड़कों का जन्म ही होता है दहेज़ लेने के लिए और इसी दहेज़ के कारण लड़कियों को अपनी ही जिंदगी बोझ लगने लगती है।अपने जिन्दगी का बीस प्रतिशत जिंदगी तो बोझ होने के घुटन के साथ गुजारती हैं।और जो लोग कहते हैं कि लड़के भी बहुत बड़ा समझौता करते हैं अपनी जिन्दगी के साथ।क्योंकि एक अनपढ़ लड़की के साथ अपनी पूरी जिंदगी गुजार देते हैं,अगर इन लोगों को एक अनपढ़ लड़की के साथ बहुत बड़ी बात लगती है क्योंकि नहीं अपनी पत्नी को पढ़ाने का काम करते? अगर अपने पढ़ाई को आधी करके अपने पत्नी की भी पढ़ाई चालू करवा दे तो मानू कि ये वाक़ई समझौता करते हैं और दूसरा ये लोग दहेज़ के मामले में ऐसा समझौता क्यों नहीं दिखाते? बिना दहेज़ लिए क्यों नहीं शादी करते? क्यों नहीं अमीर होने के बावजूद एक गरीब लड़की से शादी बिना दहेज़ लिए कर लेते? मुझे तो अभी तक एक भी ऐसा शख़्स नहीं दिखा जिसने ऐसा कुछ किया हो।अपने जान पहचान में।यहाँ पर लोग हैं जिनकी शादी बिना दहेज़ के बिना हुई है? जिन लोगों की हुई है वो बहुत ही खुशकिस्मत वाली हैं,और जिन लोगों ने बिना दहेज़ लिए शादी की मैं उन्हें शलाम करती हूँ क्योंकि ऐसे लोगों सच में महिलाओं की इज़्ज़त करते हैं। 

मंगलवार, फ़रवरी 15, 2022

एक साल बेमिसाल

आज ही के दिन मैंने इस खूबसूरत ब्लॉग जगत में कदम रखा था।ब्लॉगिंग करने का मेरा मुख्य कारण लोगों तक अपनी विचारों को साझा करना और अपने अंदर उठ रहे तमाम सवालों को लोगों के बीच रखना।जिससे मुझे आत्म संतुष्टि मिलती है।जब मैं ब्लॉगिंग नहीं करती थी तब मुझे बहुत ही घुटन होती रहती थी जब कभी किसी का बलात्कार होता,किसी हत्या भीड़ द्वारा कर दी जाती, या किसी के साथ कोई भी अन्याय होता और मेरी रातों की नींद उड़ जाती थी मुझे चैन की नींद नहीं आती अजीब सी हलचल होती रहती थी मन में घुटन होने लगती थी। ऐसा लगता था कि मैं भी इसमें शामिल हूं क्योंकि मैं कुछ नहीं कर पा रही हूं चुप रहना मेरे लिए गुनाह करने जैसा था। इसलिए मैं अक्सर व्हाट्सएप स्टेटस पर छोटे-छोटे लेख डालती रहती थी, पर पता था कोई ज्यादा पढ़ता नहीं है किसी को फर्क नहीं पड़ने वाला।और न ही सुधार आने वाला, कुछ एक थे जो पढ़ते थेपर मुझे फर्क नहीं पड़ता था क्योंकि मैं लिखती इसलिए थी कि मुझे अफसोस ना रहे कि मैं नहीं उतना भी नहीं किया जितना कर सकती थीमैंने जब से लिखना शुरू किया यानी कि 2015 में ही ब्लाग जगत में कदम रख चुकी होती पर कुछ कारणवश ऐसा नहीं हो पाया।मुझे इस बात का थोड़ा अफसोस है पर देर से ही सही.....। 
सुनहरे शब्द
इस एक वर्ष में मुझे जितना प्यार मिला सभी प्रिय जनों से जिसे शब्दों के माध्यम से बयां कर पाना बहुत ही मुश्किल है! जब मैंने ब्लॉगिंग करना शुरू किया था मुझे ब्लॉगर तक पहुंचना भी नहीं आता था मुझे नहीं पता था कि मैं ऐसे ब्लॉगर तक कैसे पहुंचूं और ना ही किसी ब्लॉगर को जानती थी जिसके जरिए मैं पहुंच पाती।लेकिन एक दिन जब मैंने नास्तिक विचारधारा को गूगल पर सर्च किया तब मुझे एक ब्लॉग मिला जिसके माध्यम से मैं आप सभी तक पहुंच पाई, मेरे ब्लॉग पर पहली प्रतिक्रिया मेरे लिए  खूबसूरत सपने जैसा था जितेंद्र सर और रेणु मैम की हौसला बढ़ाने वाली पहली प्रतिक्रिया अद्भुत थी जिसे याद करके मैं पूरा दिन मुस्कुराती रहती थी! जिस तरह पहली पोस्ट पर सब ने खासकर कामिनी  मैम और जितेंद्र सर ने मेरा हौसला बढ़ाया और मेरे नास्तिक विचारधारा का समर्थन किया उससे मुझे हमेशा निर्भीक और स्वतंत्र होकर लिखने के लिए बहुत हिम्मत मिली।कामिनी मैम का मुझे बच्चे कहकर संबोधित करना मां की प्यारी सी झप्पी जैसी थी और रेणु मैम का हमेशा मेरी लेखनी में सुधार करवाते रहना मेरे लिए बहुत ही खूबसूरत एहसास था।
सुनहरे शब्द
शुरुआत में मुझे लगता था कि कहीं बाकी सोशल मीडिया ऐप्स की तरह यहां भी सब लोग सिर्फ औपचारिकता के लिए इतनी तारीफ के पुल तो नहीं बांध रहें हैं पर जैसे-जैसे वक्त बीतता गया साफ हो गया कि यहां पर उपस्थित सभी लोग बाकी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एकदम अलग है सभी के परिवार की तरह लगने लगे और यहां उपस्थित अधिकतर लोग मेरे माता- पिता के उम्र के हैं और सभी लोग मुझे माता-पिता के जैसा प्यार दे देते रहें हैं और मेरी गलतियों को सुधारने में मेरी मदद जिस तरह करते रहें हैं यशोदा दी की वो पांच लिंकों की प्रस्तुति जिसमें सभी रचनाएँ  मेरे ब्लॉग से ही थी और दी की वो प्रतिक्रिया मेरा हमेशा हौसला बढ़ाती है।संगीता मैम,ज्योति दी,अनिता मैम सबने मेरी लेखनी को सुधारने में बहुत ही मदद की!ब्लॉगिंग के जरिए ही मुझे जिज्ञासा मैम मिली जिनका मायका हमारे क्षेत्र में ही है पर अगर ब्लॉगिंग न करती तो कभी नहीं जान पाती, हमेशा मेरा हौसला बढ़ाती है और आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा देती रहतीं हैं। बहुत शुभचिंतक मिले मुझे।
सुनहरे शब्द
यूं तो नहीं है कोई सगा संबंधी 
यहां किसी का 
पर सगे संबंधियों से भी अधिक खास है ।
किसी का प्यार मां जैसा 
तो कोई पिता समान है
कोई शुभचिंतक 
तो किसी का लाड प्यार बेहिसाब है
अलग बोली, अलग भाषा 
अलग-अलग शहरों में सभी का घर द्वार है
पर सभी का व्यवहार एक समान है
सब में अपनत्व और प्रेम बेमिसाल है
मेरे परिवार से मिला मुझे 
बहुत ही प्यार और सम्मान है
प्यार और सम्मान के लिए सभी की
मनीषा शुक्रगुजार है
सभी प्रिय जनों को करती प्रणाम है

नारी सशक्तिकरण के लिए पितृसत्तात्मक समाज का दोहरापन

एक तरफ तो पुरुष समाज महिलाओं के अधिकारों और उनके सम्मान की बात करता है और वहीं दूसरी तरफ उनके रास्ते में खुद ही एक जगह काम करता है। जब समाज ...