क्यों तू इंसान से है हैवान बना?
वाह! पत्थर पूजते पूजते तूभी पत्थर बन गया।
धर्म जाति के नाम पर इंसानियत का गला घोंटने को
है तू सीना तान खड़ा।
धर्म-जाति के चक्रव्यूह में ऐसा फसा,
कि तू इंसान को इंसान समझना ही भूल गया।
किसी को हिंदू तो किसी को मुस्लिम तूने नाम दिया,
किताबों वाले हाथों में पत्थर तूने थमा दिया।
स्याही से रंगने वाले हाथों को रक्तरंजित तूने करा दिया,
प्रेम व सौहार्द की खुशबुओं से महकने वाले बागों में
नफ़रत का बीज तूने लगा दिया।
भूल गया तू ,
कि सबसे पहले तू इंसान है
फिर हिन्दू -मुस्लिम, सिक्ख आदि है ।
मानवता को मृत्यु शैय्या पर सुला कर
तूने खुद पर बड़ा नाज किया,
पर भूल गया कि जिस रास्ते पर है तू चला,
उससे तूने खुद का ही विनाश किया ।
इंसान का मानवता ही है सबसे बड़ा धर्म ,
ये भी तुझे न याद रहा।
है कैसा तू किसी धर्म का अनुयायी?
जो इंसानियत का फर्ज भी तुझे न याद रहा।
है किस काम का वो धर्मग्रंथ?
जो इंसानों को इंसानियत का पाठ न पढ़ा सका।
है किस काम का वो ईश्वर ?
जो इंसानों से पत्थर की मूरत के खातिर
रक्त की नदियाँ है बहा रहा।
जला कर खाक कर देने चाहिए ऐसे धर्मग्रंथों को
जो इंसानियत का जनाजा उठवाते हो।
-मनीषा गोस्वामी