मंगलवार, मई 25, 2021

दास्ताँ-ए-गाँव

 मैं आज आप लोगो को अपने गाँव की कुछ रूढ़िवादी विचारधाराओं से रूबरू करवाती हूँ  ! हमारे गाँव में आज भी कुछ ऐसे बुद्धिजीवी लोग है जिनका मानना है कि महिलाएँ ज्यादा पढ़- लिख लेती हैं तो उनका दिमाग खराब हो जाता है वे हमारे यहाँ की परंपरा , रीत -रिवाजों , और संस्कारों को भूल जाती है । अपने पैर पर खड़े होते ही अपने से बडो़ की इज्ज़त करना भूल जाती है दरअसल इन बुद्धिजीवियों की समस्या ये है, इनको लगता है, कि जो ये कहते है और जो करते है सिर्फ वही सही है । यदि कोई औरत इनके विचारों पर अपने विचार रखती है तो इन को उसमें अपना अपमान नज़र आता है । इसलिए इन लोगो को स्याही वाले हाथ की उम्र में मेहंदी वाले हाथ भाते है कानून ने भले ही महिलाओं को हर क्षेत्र में जाने अधिकार दे रखा है पर  हमारे यहाँ घर वाले और  गाँव वाले ने सिर्फ मेडिकल, टीचिंग, पुलिस ,बैकिंग के ही क्षेत्रों में जाने का अधिकार दिया है! मैं आप लोगो को आज अपने गाँव की चाची जी के बारे में बताती हूँ जिनकी उम्र लगभग 40 के आस - पास है  जो पहले गाँव में दिहाड़ी मजदूरी करती थी पर दो, तीन साल से एक सरकारी अस्पताल में काम करती है बस इसी बात से गाँव के लोगों के निशान पर रहती है मौका पाते ही कुछ लोग उनके  चरित्र पर उंगली उठाने से नहीं चूकते  हैं । और कहते है , "यैं रात रात भर अस्पताल मा रहत हीं इनके घरे खाना खाय वाला नाय है, पता नाय कतने जन से मुंह काला करावत हीं, ई मिहारू पूरे गाँव कैय नाक कटाय कैय तब दम ली! इन लोगों को गाँव की चिंता तब नही सताती जब एक औरत रात के दो बजे ही खेतों मे मर्दों के बीच काम करती है और तब भी जब तेज़ दोपहरी में काम करते करते पसीने में भीगने के कारण सारे कपडे़ बदन से चिपक जाते हैं जिससे खेत मे काम कर रहे लोगो के फूहड़ मजाक का सामना करना पड़ता है जब बोझा उठाते वक्त पल्लू को गिरने के कारण गंदी नजरों का शिकार होती है ! तब इन बुद्धिजीवियों को गााँव के इज्जत के साथ खिलवाड़ होता हुआ नज़र नहीं आता और अनहोनी की बू नहीं आती ! लेकिन जब  एक औरत 7-8 किमी की दूरी पर एक अस्पताल मे काम करने जाने लगी तो ये बात गले नहीं उतर रही है और  ये समाज उनके गलत हो जाने के डर से पतला होता जा रहा है  ! कुछ महान लोगो ने तो उनसे सारे रिश्ते तोड़ लिए उनके यहाँ का पानी भी नहीं पीते हैं । क्योंकि वो रात के नौ - दस बजे काम से वापस आतीं हैं जो इनकी नजर मे गलत है हमारे  यहाँ  किसी की बेटी भाग जाती है तो उसकी सजा मां - बाप को मिलती है सजा के तौर पर उन्हें समाज से अलग कर दिया जाता है उनके यहाँ  पानी तक नहीं पीते है . क्योंकि लोगों को लगता है कि यदि कोई उसके घर खाना खाता है या पानी पीता है सारा पाप उसके सर पर आ जाता है लेकिन यदि कोई पुरुष एक पत्नी के रहते हुए दूूसरी औरत ले कर आ जाए जो उनसे नीची जाति की ना हो ( दरअसल हमारे यहाँ आज भी ऊँच नीच का भेद भाव कायम है) तो बिना कोई सवाल किए सारे लोग स्वीकार कर लेते है । जब यही काम कोई महिला करती है तो उसे समाज से अलग कर दिया जाता है मुझे समझ नहीं आता जो काम महिलाओं के लिए गलत है वो पुरुषों के लिए सही  कैसे हो जाता है ? क्या काम का भी जेंडर होता है ? जो चीज गलत है मतलब गलत है वो किसी एक के लिए सही कैसे हो सकती है ?ये तो वही बात हुई तुम करो तो रासलीला और हम करे तो कैरेक्टर ढीला!  जो काम गलत है वो हर किसी कर लिए गलत होता है किसी एक के लिए सही नहीं हो सकता!  क्योंकि सत्यनारायण की कथा कहने वाले पंडित जी यदि मंत्र की जगह अगर गाली देते हैं तो वो मंत्र नहीं हो जाती !गाली ही रहती । या मस्जिद मे कुरान पढ़ने वाले मौलवी नवाज़ की जगह अशब्द का इस्तेमाल करे तो वो शब्द पाक नहीं हो जाता वो अशब्द  ही रहता है ठीक उसी तरह गलत काम गलत ही रहता है फिर करने वाला चाहे कोई भी हो । हमारे यहाँ आज भी महिलाएं साड़ी के सिवा कुछ और नहीं पहन सकती । क्योंकि ऐसा करने पर हास्य , तंज भरी निगाहों  और व्यंग्य के चुभते बाड़ों का सामना करना पड़ता है लेकिन पुरुषों के साथ ऐसा  कुछ भी नहीं होता , वे तो बहुत पहले ही ' आधुनिक हो चुकें है बड़े - बूढ़े भी पैंट -शर्ट और वरमूडा पहनते है लेकिन महिलाएँ अगर सलवार -कुर्ता भी पहन ले तो इन्हे रास नहीं आता  है लेकिन साड़ी में आधा बदन भी दिखे तो भी स्वीकार है । यहाँ महिलाओं के लिए बदलाव कछुआ की तरह रेेंगते हुुए आता है पर पुरुषों के लिए चीते की रफ्तार से! यहाँ यदि 14 साल का लड़का बुलेट जैसी  वजनदार बाइक पर फर्राटे भरता तो समाज ,कानून किसी के भी कान पर जूं तक नहीं रेंगती लेकिन जब एक 40 साल की महिला खुद की कमाई से गाड़ी खरीद कर ड्राइविंग लाइसेंस साथ लेकर गाड़ी चलाए तो ये बात इनके गले नहीं उतरती उसके बिगड़ने की चिंता में समाज अवसाग्रस्त होता जाता है! जिसके चलते दिन प्रति दिन पतला होता जाता है! 

कुछ पंक्तियाँ हमारे समाज के महान लोगो के लिए-

इन नाजुक हाथों से 

जिस दिन कलम की तेज धार निकलेगी, 

जिस दिन रिश्तों का लिहाज़ किये बिना, 

खुल कर रूढ़िवादी विचारधारा पर प्रहार करेगी, 

शराफ़त की नकाब ओढ़ कर बैठे हैं, 

जितने शरीफ़जादे ,

उनके चेहरे बेनकाब करेगी! 


30 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 26 मई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बेनक़ाब करती जाइए ऐसे चेहरों को अपनी क़लम से क्योंकि वे इसी लायक हैं। ग़लत काम तो ग़लत ही है, चाहे वह कोई भी करे। बाक़ी अपनी लम्पटता को छुपाने के लिए महिलाओं पर तानाकशी करना और उन पर झूठे लांछन लगाना तो बदअख़लाक़ लोगों का पुराना शगल है। उससे किसी बेदाग़ पर दाग़ नहीं लग सकता। और अगर समाज फिर भी लगाए तो ग़ैरतमन्द शख़्स को उसकी परवाह करना ही छोड़ देना चाहिए।

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    1. आपका बहुत बहुत धन्यवाद और आभार 🙏🙏

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  3. यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।
    यत्रैता॒स्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ॥

    जहा स्त्रियों का आदर किया जाता है वहा देवता रमण करते हैं और जहां इनका अनादर होता है वहा सब काम निष्फल होते हैं ।

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    1. काश ये बात यहाँ के लोगों को समझ आ जाए!
      🙏🙏🙏🙏धन्यवाद सर🙏🙏🙏🙏

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  4. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (26 -5-21) को "प्यार से पुकार लो" (चर्चा अंक 4077) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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    1. 🙏🙏आपका बहुत बहुत धन्यवाद और आभार मैम 🙏🙏
      🤗🤗🤗🤗

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  5. 🙏🙏🙏🙏धन्यवाद🙏🙏🙏🙏

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  6. लाजवाब!सुंदर वर्णन।

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    1. आपका बहुत बहुत धन्यवाद और आभार 🙏🙏

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  7. वाह!मनीषा जी ,एकदम सही बात कही है ।

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    1. आपका बहुत बहुत धन्यवाद और आभार 🙏🙏

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  8. अभी भी पुरुष की मानसिकता बदलने में वक़्त लगेगा ।
    सार्थक लेख । यूँ ही चेतना जागृत करती रहिए ।

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    1. आपका बहुत बहुत धन्यवाद और आभार 🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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  9. प्रिय मनीषा, यूं तो सभी गांव शहरों की अपेक्षा सभी तरह के विचारों मेंथोड़ा पीछे है। पर इस तरह की आदिम सोच के साथ जीना बहुत दुखद है । स्त्री हो या पुरुष सभी को सम्मानित ढंग से आजीविका कमाने का अधिकार है और पहनने ओढ़ने का भी। फिर भी राहत की बात है जिस गांव में आप जैसे प्रखर विचारक और समग्र हालात पर ईमानदारी से दृष्टिपात कर न्याय की बात कहने वाले युवा मौजूद हैं, वहां परिवर्तन आना वीज्यादा दूर नहीं। जब गांव की बेटी दूसरी चाची नारी के पक्ष में दृढ़ता से खड़ी होगी तो चाची को जरूर इंसाफ मिलेगा और दूसरी औरतों के लिए भी नई राहें निकलेंगी। विचारों की नवीनता लिए इस लेख के लिए हार्दिक शुभकामनाएं 💐💐🌷🌷

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    1. आपका बहुत बहुत आभार और तहेदिल से धन्यवाद वाकई आपकी हिंदी बहुत अच्छी है! हमारी गलतियां हमे ज्ञात करा कर उन्हें सुधारने के लिए आपको दिल की गहराइयों से धन्यवाद!आगे भी आप हमारी गलतियों से हमें रूबरू करातीं रहेंगी!और उसमें सुधार करातीं रहेगीं!लेकिन कोशिश करूगीं ये अवसर आपको बहुत कम प्राप्त हो! 😇😇 एक बार फिर तहेदिल से आपको धन्यवाद🙏💕🙏💕🙏💕🙏💕🙏💕

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  10. नयी चेतना का सृजन

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  11. रूढ़िवादी सोच या कि पूर्वाग्रह कहिए ये सत्य है।
    विचारोत्तेजक लेख ।
    सटीक ।

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  12. मजदूरी या खेती के काम करती नारी से पुरुषों की दमनवादी प्रवृत्ति को संतुष्टि जो मिलती है। पढ़ी लिखी स्त्री की स्वाभिमानी छवि आज भी गाँव के रूढ़िवादी स्त्री पुरुषों के गले नहीं उतरती। स्त्री किसी बात से नहीं डरती पर इज्जत पर आँच आने और चरित्र पर इल्जाम लगने से बेहद डरती है। मात्र इसी डर के कारण मैंने कितनी ही प्रतिभाशाली लड़कियों को पढ़ाई लिखाई अधूरी छोड़, शादी के बँधन में बॅधते देखा है। महिलाओं की स्थिति में संपूर्ण बदलाव से अभी हमारा देश कोसों दूर है। एक बेहतरीन विचारोत्तेजक लेख के लिए बधाई आपको।

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    1. 𝗽𝗺
      हाँ मैम, बस इसी बात का फायदा उठाते हैं इनके चरित्र पर तो दाग लग ही नहीं सकता क्योंकि उसके लिए स्वच्छ छवि होनी चाहिए और पुरुषों के लिए हमारे यहाँ एक कहावत है कि मर्द का इनकी नियत कब बदल जाए कुछ पता नहीं!ये लोग तो ही खराब हैं साफ शब्दों में कहें तो पुरुष का दूसरा नाम चरित्र हीन!पर मैं नहीं मानती सारे लोग एक जैसे नहीं होतें! चरित्र पर उंगली उठाने में कुछ महिलाएं ज्यादा ही आगे है!महिलाएं ही महिलाओं की सबसे बड़ी दुश्मन बन बैठीं है! खुद दब कर रहतीं है और दूसरों को भी दबा कर रखना चाहतीं हैं! हमारे लेख पर आकर अपनी राय रखने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद🙏🙏🙏

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  13. बहुत ही सार्थक प्रश्न उठाता आपका लेख सराहनीय है, सादर शुभकामनाएं।

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    1. आपका बहुत बहुत धन्यवाद और आभार मैम 🙏🙏

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  14. आपकी इस लेख की तारीफ में हमारे पास एक ही शब्द बचा है--निःशब्द.

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    1. आपका बहुत बहुत आभार और हृदय तल से धन्यवाद🙏🙏🙏🙏🙏

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