रविवार, फ़रवरी 21, 2021

रोता बचपन

  
             𝓗𝓮𝓪𝓻𝓽 ❤ 𝓣𝓸𝓾𝓬𝓱𝓲𝓷𝓰 𝓜𝓸𝓶𝓮𝓷𝓽 😭
      उढ़ा देतीं हैं कुछ तस्वीरें नींद रातों की मेरी
      जब याद आता है वो मंज़र छलक आती है 
                            आंखें मेरी|
        खिलौने और मैदान के झूले को निहारती                                 लालचभरी निगाहें|
        कैसे वो बच्चा मन मार कर रह जाता है.
स्कूल के बस्ते को उठाने की उम्र में वो जिम्मेदारियों                        का बोझ उठाता है|
  जिद करने की उम्र में वो जरुरतें पूरी करता है|
            हम ब्रांडेड जूते चप्पल पहनते है 
            वो नगें पैर मीलों चलता रहता है|
                     हम महलों में रहते हैं 
           और वो चारदीवारी को तरसता है|
       उसका पूरा दिन कूड़े के ढेर में गुजरता है
   पर किसी का दिल उसके लिए नहीं पसीजता है|
         उसका बचपन  हर रोज जोरो से रोता है, 
              पर किसी को सुनाई नहीं देता है.
             जुबां होने पर भी वे जुबा बन कर                                           सब सहता है|
 
            ऐसी तस्वीरें देख धूमिल जी की ये पंक्ति मेरे जेेेहन में आ जाती है_
               "गरीबी एक खुुुली हुई किताब , 
      जो हर समझदार और मुर्ख के हाथ में दे दी गई है|
                       कुछ उसे पढ़ते हैं, 
                     कुछ उसके चित्र देख
                   उलट -पुलट कर रख देते 
                       नीचे 'शो- केस' के |"


                

19 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. Thank you🙏
      Chalo Koi to hai jo aisi cheejo ko padhana like karta hai mujhe to laga tha ki jis tarah log hotel Or dhabe pe tea, coffee etc. lete time tea ki pyas itani rahti hai ki tea dene wale ki age nazar hi nahi aati. Aur jis tarah apni car, bike ko saaf karwate time unhe apne vahan ke saaf hone ki itni chinta rahti hai ki ye bhi nazar nahi aata ki wash karne wala child labour hai usi meri poem nazar to aayegi par koi gaur karega ye nahi socha tha. So thank you from the heart 🙏🙏🙏🙏

      हटाएं
  2. जो आपने बयां किया है, वो एक दर्दभरा सच है असंख्य भारतीय बालकों के जीवन का । ऐसे कई बच्चे जब बड़े होकर ग़लत राह पकड़ लें, समाज की आंखें तब भी नहीं खुलें तो सुधार कैसे हो ?

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. समाज की आंखें तो बंद हैं ही साथ में कानून के रखवाले भी ऐसी चीजों को आम समझ कर नज़र अंदाज़ कर देते हैं जो अति दुखद है!

      हटाएं
  3. वाह! एक अत्यंत सार्थक रचना!!!

    जवाब देंहटाएं
  4. अभावों के शिकार मासूम बचपन पर आपकी ये रचना मन को भावुक कर गयी प्रिय मनीषा | यूँ तो अनगिन लोग इन मासूमों को रोज देखते हैं पर एक कविमन ही इनकी पीड़ा का आकलन कर सकता है और उसे समझ सकता है | अव्यवस्थाएं और दुर्भाग्य से ग्रस्त ये नौनिहाल किसी मसीहा की राह तकते हैं जो इन्हें कभी नहीं मिलता | असंख्य बच्चों की यही स्थिति है | करुना जगाते करूँ चित्र के लिए आप सराहना की हकदार हैं | हार्दिक शुभकामनाएं और प्यार आपके लिए |

    जवाब देंहटाएं
  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  6. प्रिय मनीषा मुझे लगता है आपके ब्लॉग का नाम कुछ और होना चाहिए क्योकि भावों से भरे लेखन पर ये नाम जम नहीं रहा |अगर आपको सही लगे तो मन की आवाज या कोई और अच्छा नाम रख सकती हैं दूसरे आप इसकी थीम बदल लें जैसे watermark अथवा Awesome Inc. इत्यादि उनमें विल्कप ज्यादा है और ज्यादा अच्छा भी लगेगा | सस्नेह

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जरुर मै आप की बातों पर अमल करूगीं! मुझे सलाह दे के लिए आपको तहेदिल से धन्यवाद! मैं आप की आभारी हूँ!

      हटाएं
  7. कोई बात नहीं मेरा मात्र सुझाव था।

    जवाब देंहटाएं
  8. संवेदनशीलता रचनाकार का मानवीय गुण हैं, जो आपकी रचना में है
    यह जरुरी है

    जवाब देंहटाएं
  9. बड़ा ही मार्मिक विषय है ये मनीषा जी ये, मैने भी कुछ दिन पहले इसी विषय पर कविता पोस्ट की थी..कूड़ा बीनते बच्चे.. आप देख सकती हैं ब्लॉग पर आकर..

    जवाब देंहटाएं
  10. A good informative post that you have shared and thankful your work for sharing the information. I appreciate your efforts. this is a really awesome and i hope in future you will share information like this with us. Please read mine as well. leave me alone quotes

    जवाब देंहटाएं

नारी सशक्तिकरण के लिए पितृसत्तात्मक समाज का दोहरापन

एक तरफ तो पुरुष समाज महिलाओं के अधिकारों और उनके सम्मान की बात करता है और वहीं दूसरी तरफ उनके रास्ते में खुद ही एक जगह काम करता है। जब समाज ...