बुधवार, फ़रवरी 23, 2022

ऐसा क्यों और कब तक?

बात पिछले साल की है,मैं कम्प्यूटर क्लास के लिए रोज़ कि तरह जा रही थी, मेरे घर से करीब एक किमी की दूरी पर ही एक शौचालय का निर्माण हो रहा था वहाँ कुछ मज़दूर काम कर रहे थे मैं जैसे ही शौचालय के सामने से गुज़रती उन मज़दूरों में से कोई एक ने माक्स पर टिप्पणी की तबतक मैं आगे निकल चुकी थी मुझे साफ़ साफ़ सुनाई तो नहीं पड़ा कि क्या कहा पर मास्क को लेकर कुछ कहा इतना समझ में आ गया मैं ये सोच कर बिना कुछ कहे चली गई कि वापसी में अगर कुछ कहेगा तब इसकी खबर लुंगी पर वापसी में कुछ नहीं कहा। फिर दूसरे दिन जाते वक़्त उसने कोरोना वाला कोई गाना गाया क्योंकि मैंने माक्स लगा रखा था, कुछ लोग होते हैं ना जो लड़की को देखकर खुद को रोक नहीं पाते हैं कुछ ना कुछ कहे ह डालते हैं उन्हीं में से एक वो था, किस मुझ पर क्या टिप्पणी करें समझ नहीं आया, इसलिए वो माक्स पर ही करता रहता था।पर आते वक़्त फिर कुछ नहीं बोला,लेकिन तीसरे दिन आते वक़्त जब उसने फिर टिप्पणी की तो मेरे मन में जो आया उस वक़्त सब कुछ कहा,वहीं काम कर रहे बाकी मज़दूर मुझे समझाने लगे और उससे डाटने लगे तो मैंने कहा इतने दिनों से जब ये हमेशा माक्स को लेकर कुछ न कुछ कहता रहता था तब कहाँ थे आप? फिर एक लोग बोले "बिटिया तू जाऊ यैं ऐसे बका करत हैं " फिर जब मैं वहाँ से थोड़ी दूर निकल आयी तो एक मज़दूर उससे बोला "कहत रहेन तूहसे कि फालतू न बोला कराऊ देख लिहेव" फिर मैं घर आ गयी पर घर पर किसी को कुछ नहीं बताया क्योंकि घरवालों के बारे में मुझे अच्छे से पता था क्या करते हैं।लेकिन दूसरे दिन जाते वक़्त मुझे बहुत डर लग रहा तरह-तरह के ख्याल मन में आ रहे थे चूंकि मैंने सरेआम उसे बहुत कुछ कहा था इसलिए डर लग रहा था कि कहीं बदला लेने की कोशिश न करें, लेकिन मैं जब वहाँ से गुजरी तो उसी तरफ़ देखते हुए कि उसे ये न लगे कि मैं थोड़ी भी डरी हुई हूँ। मैं अपनी सुरक्षा के लिए एक खुली ब्लेड अपनी टोकरी में हमेशा रखतीं हूँ मैंने सोचा अगर कुछ हुआ तो...! लेकिन फिर वह कभी कुछ कहना तो बड़ी दूर की बात नजर उठा कर देखता भी नहीं था ऐसे ही एक बार रास्ते में एक बाइक पर तीन लड़कों ने मुझ पर टिप्पणी करते हुए मुझे छेड़।फिर जब वे वापस आने लगे तो मैंने अपनी साइकिल उनके बाइक के आगे खड़ी कर दी वो लोग हैरान रह हो गयें और मेरी साइकिल तक आते-आते इतनी तेज स्पीड बढ़ा दी अपनी बाइक की और मेरी साइकिल की टोकरी में ठोकर मारते हुए इतनी तेजी से निकले लेकिन तभी मेरा एक सहपाठी बाईक से वहाँ गया जिसके साथ दो लोग और थे जो पुलिस की ट्रेनिंग कर रहे थे इसलिए पुलिस की ड्रेस में थे उन्होंने ,उन मनचलों को आवाज लगाते हुए पीछा पीछा किया, वे मनचले इतनी तेज भागे कि अगर कोई गाड़ी आ रही होती तो वही तुरंत ढेर हो जाते हैं।मुझे बहुत ही खुशी मिली उन लोगों को भागते हुए देख कर और यकीन हो गया कि वे दोबारा किसी लड़की को नहीं छेड़ेंगे। यह दो ही ऐसे केस थे जिनमें मैंने पलट कर जवाब दिया।लेकिन अनगिनत बार रास्तें में लोग टिप्पणी करते रहते हैं इनमें वो लोग भी होतें है जो हमसे दुगनी उम्र के होते हैं जिनकी खुद की बेटी हमारी उम्र की होती है, लेकिन हम कुछ कहें उससे पहले वो निकल जाते हैं। इन लोगों की हरक़त की वज़ह से अधिकतर लड़कियों की पढ़ाई बंद हो जाती है ,बाहर जाना बंद हो जाता है।जो लोग कहते हैं कि अगर लड़कियों की जिंदगी में परेशानियाँ हैं तो लड़कों की जिंदगी भी आसान नहीं, सही कहते हैं। पर कितने लड़के या पुरुष हैं जिनकी परेशानी और बर्बादी का कारण वे लड़कियाँ हैं जिन्हें वे जानते तक नहीं?कितनी बार उन्हें रास्ते मेंं लड़कियाँ ने छेड़ा हैं?कितनी बार अज़नबी लड़कियों की वजह से लड़कों के सपने टूट कर चकनाचूर हुएं हैं?लेकिन अधिकतर लड़कियों के सपने तो लड़कों के कारण ही टूट कर चकनाचूर होतें हैं वो भी उन लड़कों के कारण जिन्हें वे जानती तक नहीं।लड़कियों का स्कूल जाना बंद,कारण लड़के।बाहर जा कर पढ़ नहीं सकती कारण लड़के। सूरज के ढलते ही घर के अन्दर, बाहर खतरा किससे?जवाब लड़कों से।एक लड़की रास्ते में तब उतना नहीं डरती जब वो अकेली होती है जितना दो चार-लड़कों के होने पर डरती है।क्या कभी लड़कों को भी रास्ते की लड़कियों से डर लगा है? अगर रास्ते में किसी ने छेड़ा तो समाज व घर वाले लड़की को ही दोष देंगे अगर नही देगें तो ये कहेंगे कि लड़के तो कुत्ते हैं उन्हें कोई कुछ नहीं कहेगा उंगलियाँ तुम पर ही उठेंगी।कीचड़ में कभी दाग़ थोड़ी लगता है और लड़कें तो कीचड़ हैं।इसलिए लड़कियााँ हर एक से उचित दूर बनाएं रखना पसन्द करती हैं,लड़कियाँ अपने माँ बाप के सर पर बोझ कारण लड़के।क्योंकि लड़कों का जन्म ही होता है दहेज़ लेने के लिए और इसी दहेज़ के कारण लड़कियों को अपनी ही जिंदगी बोझ लगने लगती है।अपने जिन्दगी का बीस प्रतिशत जिंदगी तो बोझ होने के घुटन के साथ गुजारती हैं।और जो लोग कहते हैं कि लड़के भी बहुत बड़ा समझौता करते हैं अपनी जिन्दगी के साथ।क्योंकि एक अनपढ़ लड़की के साथ अपनी पूरी जिंदगी गुजार देते हैं,अगर इन लोगों को एक अनपढ़ लड़की के साथ बहुत बड़ी बात लगती है क्योंकि नहीं अपनी पत्नी को पढ़ाने का काम करते? अगर अपने पढ़ाई को आधी करके अपने पत्नी की भी पढ़ाई चालू करवा दे तो मानू कि ये वाक़ई समझौता करते हैं और दूसरा ये लोग दहेज़ के मामले में ऐसा समझौता क्यों नहीं दिखाते? बिना दहेज़ लिए क्यों नहीं शादी करते? क्यों नहीं अमीर होने के बावजूद एक गरीब लड़की से शादी बिना दहेज़ लिए कर लेते? मुझे तो अभी तक एक भी ऐसा शख़्स नहीं दिखा जिसने ऐसा कुछ किया हो।अपने जान पहचान में।यहाँ पर लोग हैं जिनकी शादी बिना दहेज़ के बिना हुई है? जिन लोगों की हुई है वो बहुत ही खुशकिस्मत वाली हैं,और जिन लोगों ने बिना दहेज़ लिए शादी की मैं उन्हें शलाम करती हूँ क्योंकि ऐसे लोगों सच में महिलाओं की इज़्ज़त करते हैं। 

30 टिप्‍पणियां:

  1. मनीषा,सही कहा तुमने। लड़कियों पर जो भी बंदिशें लगाई जाती है उसका कारण लड़के ही होते है।
    ऐसी कई प्रतिभावान लडकिया है जो दहेज के कारण आज भी उच्च शिक्षा नहीं ले पाती क्योंकि ज्यादा शिक्षित लड़की के लिए लड़का भी ज्यादा पढ़ा लिखा ढूंढना पड़ेगा।

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    1. जी मैम आप बिल्कुल सही कह रही हैं बहुत सी लड़कियों शिक्षा इसलिए रोक दी जाती है कि अगर वह ज्यादा पढ़ेंगी तो ज्यादा पढ़ा-लिखा लड़का ढूंढना पड़ेगा और जो ज्यादा पढ़ा लिखा होगा वह ज्यादा दहेज मांगेगा!और बहुत सी लड़कियां हैं जिनकी पढ़ाई इसलिए रोक दी जाती है क्योंकि बाहर का माहौल ठीक नहीं है!

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  2. समाज का एक हिस्सा आज भी इंसानी सोच से बहुत नीचे जी रहा है उनको अभी इंसानियत की भी पहचान नहीं है उन्हीं लोगों के वजह से पूरा एक हिस्सा बदनाम हो रहा है, ऐसे जाहिल लोगों के वजह से आज हमारा देश और समाज बहुत पीछे रह रहा है, आपने जो परेशानी झेली उसके लिए खेद है मनीषा जी, पर आपको और हमे इस लड़ाई को लड़ना होगा और अपने समाज मे सभ्य समाज बनाने मे मदद करनी होगी

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    1. सर आपको खेद प्रकट करने की कोई जरूरत नहीं इसमें आपकी क्या गलती पर कहते हैं ना कि तालाब एक मछली की वजह से सारा तालाब...! कुछ लड़कियां सभी लड़कों से डरती हैं क्योंकि कौन शरीफ है और कौन गुंडा यह उनकी शक्ल पर तो नहीं लिखा रहता है!ऐसे लोग लड़कियों के लिए के लिए खतरा तो हैं ही पर पूरे पुरुष समाज के लिए खतरा हैं! इसलिए सबको इन लोगों के खिलाफ़ एक साथ मिलकर लड़ना होगा!

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  3. पितृसत्तात्मक समाज लड़कियों को वह स्वतंत्रता नही देता,जो उन्हें मिलना चाहिए
    लड़कियां डरी, सहमी और कुंठाग्रस्त जीवन जीती है,
    प्रगतिशीलता की बातें या स्त्री विमर्श की बातें केवल किताबों में लिखी जाती है,या किसी अखबार के बीच के पन्ने के कोने में दर्ज होती हैं.
    लड़कियों को अपने हित के लिए स्वयं लड़ना पड़ेगा और अपनी आत्मरक्षा की रणनीति बनानी पड़ेगी.
    पुरुषों को, लड़कों को महिमामंडित करना बंद करना पड़ेगा तभी लड़कियां स्वतंत्र जीवन जी सकती हैं.
    अच्छा आलेख जागरूक करता संस्मरण

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    1. आपकी बात से पूर्णतः सहमत हूँ आदरणीय सर🙏

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  4. लड़कियों को निडर होकर पलटकर जवाब देना ही होगा। चुप रहने की वजह से ही ऐसे लोगों का हौसला बढ़ता है। विकास के इस दौर में अफसोसजनक रूप से हम नैतिकता में पिछड़े हुए ही हैं।
    जहां तक बात लड़कियों की शिक्षा की है तो एक उदाहरण तो हमारे परिवार में ही है। हमारी बुआ जी की मात्र इंटर की पढ़ाई करवाकर शादी करा दी गई थी। ससुरलियों और दिवंगत फूफा जी के सहयोग से उन्होंने संस्कृत में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की।
    दहेजमुक्त विवाह की तो खैर परंपरा ही हमारे परिवार में रही है। अपने विवाह में मैं इसे जारी ही रखूँगा।
    बहरहाल आपका आलेख वर्तमान की एक चिंताजनक तस्वीर प्रस्तुत करता है।

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    1. बहुत खुशी जानकर कि दहेज़ मुक्त विवाह....!
      सर हर सिक्के का पहलू होता!
      आपके फूफा जी बहुत अच्छे थे और वे वास्तव में महिलाओं की इज़्ज़त करते थे तभी ऐसा! पर हर किसी की नसीब इतनी अच्छी नहीं होती है! और एक हकीक़त ये भी है कि बहुत सी लड़कियों की पढ़ाई लड़कों की हरकतों की वज़ह से रोक दी जाती है यह कहते हुए कि बाहर का महौल ठीक नहीं है कहीं कुछ ऊंच-नीच हो गई तो उंगलियाँ तुम्हीं पर उठेंगी लड़कों पर नहीं और मैंने बहुत से उदाहरण देखें हैं अपने आस-पास और ये लेख हमारे समाज के महौल की ही देन है!
      🙏सहृदय प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद🙏

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  5. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(२५ -०२ -२०२२ ) को
    'खलिश मन की ..'(चर्चा अंक-४३५१)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. मेरे आलेख को चर्चा मंच में जगह देने के लिए आपका तहेदिल से बहुत बहुत आभार व धन्यवाद🙏

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  6. ना जाने जग कब बदलेगा
    तीन पीढ़ियों से तो हम बदलने की उम्मीद लिए देख रहे हैं
    विकृतियों से भरा समाज का सजीव चित्रण आपके आलेख में

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    1. बदलाव तब आएगा जब लड़कियों पर पाबंदी न लगा कर लड़कों का मनोबल न बड़ा कर उन्हें सज़ा दी जाएगी उनके अपनों द्वारा तभी शायद कुछ बदलाव आये!
      मनोबल संवर्धन करती उपस्थिति के लिए हृदय से असीम धन्यवाद🙏

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  7. सच को उजागर करती पोस्ट ।
    वैसे पता नहीं लड़कों की ये कैसी फितरत होती है कि लड़की देख कर कुछ न कुछ हरकत कर देते हैं । जब हम कॉलेज में पढ़ते थे तब भी यही हाल था । तब बाइक कम होती थीं तो छेड़ कर जल्दी भाग नहीं पाते थे हाँ साइकिल वाले भाग लेते थे । मैं तो 12 वीं में थी तो पिटाई भी कर चुकी हूँ । और उसके बाद क्लास में जाते डर लग रहा था कि पता नहीं क्या बदला लिया जाएगा । लेकिन उसके बाद हमेशा वो लड़का नीची नज़रें किये निकलता था । कितनी पुरानी घटना याद करा दी । 1969 की बात है ।
    और हाँ हमारे परिवार में दहेज़ न दिया गया न लिया गया । बनियों के यहाँ ऐसा परिवार मिलना मुश्किल ही है लेकिन न जाने कैसे जहाँ भी हमारे खानदान की लड़कियों का संबंध जुड़ा वहां दहेज़ की माँग नही हुई । मेरे भी बेटे और बेटी के विवाह में दहेज़ का कोई नाम नहीं था ।
    मुझे हैरत होती है कि लोग कैसे दहेज़ की माँग करते हैं ।

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    1. मैम आपने सही कहा पता नहीं क्यों लड़कें लड़कियों को देखते ही कुछ न कुछ हरक़त कर ही देते!कुछ लोग तो सिर्फ़ जोर से चिल्ला देते जैसे ह्ह्ह्!आपके द्वारा की गयी पिटाई से मुझे सात आठ साल पहले की एक घटना याद आ गयी जब हमारे आम के बगीचे में एक लड़का कुछ फूहड़ गाना गा कर हम लोगों छोड़ रहा था तब मैं और दो और सहेलियों ने मिलकर उसे वहीं छोटे से तालाब में बोर बोर कर खूब मारा था, और अब जब भी उसे देखती हूँ तो हँसी रोक नहीं पाती!
      आपको हैरानी होती है सोचकर कि लोग दहेज़ कैसे मागते पर जिससे आपको हैरानी होती वही लोग बड़े गर्व से मागते है!
      इतनी विस्तार में प्रतिक्रिया देने के लिए आपका तहेदिल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय मैम🙏

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  8. विचारोत्तेजक लेख।

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  9. बहुत ही चिंतनपूर्ण विषय पर सराहनीय पोस्ट ।
    किसी भी स्त्री या लड़की से अगर इस विषय पर बात की जाय तो उसके जीवन में कभी न कभी ऐसा जरूर कुछ न कुछ हुआ होगा, चाहे छेड़छाड़ हो या दहेज हो या बालिका शिक्षा हो । हर विषय पर चर्चा बहुत होती है,परंतु समस्या का कोई हल नहीं निकलता ।
    क्यों ? क्योंकि इन मानसिक विकृतियों के लिए हमारे नैतिक मूल्य ही जिम्मेदार हैं,जब तक धरातल पर काम नहीं होता ।सुधार असंभव है ।
    एक विचारणीय आलेख के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएं प्रिय मनीषा ।

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    1. आपने बिलकुल सही कहा प्रिय मैम शायद ही कोई महिला होगी जिसके साथ ऐसा न हुआ हो!
      बहुत बहुत धन्यवाद प्रिय मैम प्रतिक्रिया के लिए🙏

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  10. विचारणीय लेख।
    बचपन से लेकर आज तक लड़कियों के लिए समाज की आँखों में हम कोई खास परिवर्तन नहीं देख पाये हैं। तरह-तरह के तर्कों के साथ
    सिर्फ़ ऊपरी लबादा को ही झाड़-पोछकर चमका दिया गया है।
    लड़कियों के लिए ज़माना कभी नहीं बदलता...।
    बदकिसी भी बदललाव की उम्मीद में समाज का मुँह जोहने से बेहतर है स्वयं को सशक्त बनाया जाए यही एकमात्र उपाय है।

    सस्नेह।

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    1. जी आपने बिलकुल सही कहा कि खुद को सशक्त बनाना पड़ेगा तभी कुछ सुधार आएगा! बचपन से लेकर बड़े होने तक सिर्फ और सिर्फ लड़कियों पर ही पाबंदी लगाईं जाती है! पर लड़कों को कभी भी कुछ नहीं कहा जाता!
      मनोबल संवर्धन करती उपस्थिति के लिए हृदय से असीम धन्यवाद🙏

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  11. लड़कियों को डर से रहना सिखाना,और लड़कों में संयम और संस्कारों की कमी।
    यथार्थ पर चिंतन देती अप्रतिम पोस्ट।

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  12. यथार्थ दर्शाती चिंतनपरक पोस्ट ।

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  13. वाह!प्रिय मनीषा जी बहुत खूब।
    काफ़ी बार पोस्ट पर पहुंची परंतु पूरा नहीं पढ़ पाई।
    आप पूरा हुआ...सराहनीय 👌
    खूब लिखो।
    सादर स्नेह

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    1. मनोबल संवर्धन करती उपस्थिति के लिए हृदय से असीम धन्यवाद प्रिय मैम🙏

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