गुरुवार, अगस्त 05, 2021

मानवता की हदें पार करने वाले के लिए मानवता की बात क्यों?

तस्वीर गूगल से

बेटियाँ  कैसे सुरक्षित रहेगी जब तुमने अपने लाडलों  को घटिया हरकत करने की छूट दे रखी है?और बेटियों के पढ़ाई और बाहर जाने पर भी पाबंदी लगा रखी है ! महिलाएँ असुरक्षित है ,ये तो सब कहते है पर खतरा किससे है, ये बताने कि हिम्मत किसी में नही है ! तुम्हारे लाडलो और तुम्हारी वजह से लड़कियों पढ़ाई अधुरी रह जाती है ,सपने अधुरें रह जाते है , खुल के जीने का हक छीन लिया जाता है । और तुम खुद पर शर्म करने बजाय खुद के मर्द होने पर गर्व करते हो! कभी ये सोचा है कितनी लड़कियों के सपने सिर्फ तुम्हारी वजह से अधूरें रह जाते हैं? 
ऐसे ही चुप बैठे रहे तो एक दिन अफसोस करोगे मर्द होने पर !ये सच है कि सभी पुरुष बलात्कारी नहीं होते ,पर सभी बलात्कारी पुरुष ही होते है!  
उन सभी अच्छे लोगो को आवाज बुलंद करने की जरूरत है जो चरित्रवान और बहुत ही अच्छे व्यक्तित्व के है! क्योंकि एक मछली के सड़ने से पूरे तालाब का पानी दूषित हो जाता है! और अगर दूषित होने से बचाना है तो समय रहते उसे तालाब से फेकना ही पड़ेगा! 
किसी लड़की को तब उतना डर नहीं लगता जब रात के अंधेरे में सूनसान सड़क पर अकेले होती है जितना डर दो-चार अजनबी लड़कों के होने पर लगता है । फिर चाहे वे अच्छे ही हो पर पता थोड़ी होता है ,अगर कुछ पता होता है तो सिर्फ इतना कि ये उस पुरुष जाति के लोग है जिसमें हैवान भी रहते हैं । इंसान और हैवान बाहर से एक जैसे ही दिखते है! अंतर कर पाना बहुत ही मुश्किल होता है! इसलिए अगर कोई लड़की किसी अच्छे व्यक्ति को भी गलत समझती है तो ये उसकी गलती नही है! बल्कि कुछ पुरुष रूपी हैवानो की देन है! 
क्या तुम्हारी जिम्मेदारी नहीं है, कि अपने पुरुष जाति के मनचलों के खिलाफ आवाज उठाने की और उनसे सारे रिश्ते नाते तोड़ने की ?महिलाओं के लिए न सही पर अपने जाति को बदनाम होने से बचाने के लिए तो कोई कदम उठाओ! अब आप भले तो जग भला वाली नीति से काम नहीं चलेगा।अपने साथ दूसरों को भी भला बनाना पड़ेगा! अगर पुरुष जाति पर रेपिस्ट का ठप्पा लगवाने से बचाना चाहते हो तो ? 
ये जो मनचले होते हैं, ये अपने घर की लड़कियों के बहुत अच्छे वाले भाई होतें हैं! वहीं बाहर दूसरी लड़कियों के लिए कसाई होते हैं ! ये अपने घर की बेटियों का सुरक्षा कवच होता है वही दूसरी लड़कियों के सुरक्षा कवच का कारण होतें है ! ऐसे लोगों को उनके ही घर की बेटियाँ को  इस बात का एहसास कराना चाहिए कि वे उनके साथ असुरक्षित महसूस करती है! जब इनके अपने इनकी भावनाओं को चोट पहुचाएंगे! तब इन मनचलों को कुछ फर्क पड़ेगा!
जो लोग बलात्कार की वजह छोटे कपड़े बताते हैं
और कहते है कि लड़कियाँ छोटे कपड़े पहनती तो लड़को का मनमचल जाता है और उनमें यौन इच्छा उत्पन्न हो उठती है जो उन पर हावी हो जाती है और बलात्कार का रूप धारण कर लेतीं हैं! तो उनसे पूछना चाहती हूँ , कि गाँव की लड़कियाँ तो छोटे कपड़े नहीं पहनती फिर उनके साथ ऐसी दरिंदगी क्यों होती है? 
और 5-6 साल की बच्ची के साथ भी क्यों? क्या छोटी बच्चियों को देख कर भी इनका मन मचल जाता है? अगर इनका अपनी इंद्रियों पर इतना ही काबू नहीं है तो इनके पुरुष होने की पहचान को ही खत्म कर देना चाहिए! अगर अंग प्रदशन से बलात्कार होते है तो फिर एक अधजली महिला के साथ क्यो दरिंदगी होती है ? मुझे आज भी उस महिला की बात याद जो 2019 में  मैने अखबार में पढ़ी थी! जिसमें वो अपने जलने पर दुखी होने की जगह खुश थी,क्योंकि उसे लगता था कि उसके बदसूरत होने के बाद उसके साथ फिर कभी दरिंदगी नहीं होगी पर वो गलत थी! इसके बाद भी उसके साथ कई बार बलात्कार होता रहा और आखिर में एक दिन वो मौत से हार गयी! किसे खूबसूरत दिखना पसंद नहीं है पर वो अपने बदसूरत होने पर खुश हो रही थी !  
सोचिये जरा किन हालातों में वो ऐसी बातें कर रहीं थी! 
हम उसके दर्द का अनुमान भी नहीं लगा सकते कि वो किस दर्द से गुजर रही थी!
वहीं पिछले साल गाजियाबाद के पत्रकार विक्रम जोशी की हत्या सरेआम बीच बाजार में उनकी दो नन्ही- नन्ही बेटियों के सामने सिर्फ इसलिए कर दी गयी क्योंकि उसने अपने भांजी को छेड़ने वाले मनचलो के खिलाफ केस कर दिया था ! सोचिए जरा ऐसा होने के बाद वो बेटियाँ जिनके पिता की हत्या उनके आँखो के सामने कर दी गई हो, वे कभी किसी मनचलो के खिलाफ आवाज उठा पायेंगी?और वो बेटी जिसके मामा की हत्या उसके लिए आवाज उठाने पर कर दी गयी हो ? उस लड़की के साथ आज क्या हो रहा होगा कितने तानो और तिरस्कार  भरी नजरो का सामना करना पड़ रहा होगा! क्योंकि
उसके मामा की हत्या का जिम्मेदार उसे ठहराने से कोई चूक नहीं रहा होगा! 
कोई ये कहने से नहीं चूक रहा होगा कि सिर्फ छेड़ा ही तो था क्या जरूरत थी घर के गार्जियन को बताने की ? क्या हुआ इससे उल्टा जान चली गयी!  अरे! रास्ता बदल लेती कान बंद कर लेती, तो जान बच जाती । लड़के तो होते ही है कुत्ते भौकने देते ।और ऐसा कहने वाली अधिकतर महिलाएँ ही होती है!  सोचिए इतना कुछ होने के बाद वो लड़की कभी किसी के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत कर पायेगी ?और जितनी भी लड़कियों ने खबर देखी , पढ़ी होगी वे किसी मनचलों के खिलाफ आवाज उठाना चाहेगीं? अपने परिवार वालों की जान दाव पर लगना चाहेगीं? 
मुझे समझ में नहीं आता कि विक्रम जोशी के हत्यारों को अब तक मौत की सज़ा क्यों नहीं मिली? जबकि घटना के वक्त उनकी दो बेटियों  मौजूद थी और वारदात सीसीटीवी कैमरे में भी कैद हैं फिर किस सबूत की कमी है? और तो और ऐसे गुनाहगारों को बेल क्यों दी जाती है? क्या इसलिए कि बाहर जाकर पीड़ित परिवार पर दबाव बनाये उन्हें डराएं धमकायें? क्यों नहीं ऐसी सज़ा का प्रावधान करते हैं कि जिससे लोगों के मन में डर बने और ऐसी हरकत करने के बारे में सोचने से भी डरें? क्यों मानवता की हदें पार करने वाले के लिए मानवता की बात की जाती है? और हमारे समाज के लोग जो गौहत्या करने वाले को समाज से अलग कर देते हैं और उसे भीख मांग कर पेट भरने के लिए मजबूर कर देते हैं! उससे सारे रिश्ते नाते तोड़ देते हैं, तो फिर एक हैवान के साथ ऐसा क्यों नहीं करते? 
राजनेताओं की तो मुझे बात ही नहीं करनी है क्योंकि लाशों पर राजनीति करना तो उनकी परंपरा है? वैसे भी शिकायतें उनकी की जाती है जिनसे कुछ अच्छे की उम्मीद हो! और राजनेताओं से सिर्फ यही उम्मीद की जा सकती है! 
नोट- इस लेख में उन पुरुषों की आलोचना की गयी है जो हमेशा लड़कियों को हिदायतें देते रहते हैं और लड़कों की गलतियों पर पर्दा डालते रहते हैं! 
 

37 टिप्‍पणियां:

  1. आपका लेख निश्चय ही सत्यपरक है और आपकी भावनाओं से प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहमत होना अनिवार्य है। लेकिन आपका शोध निश्चय ही अपूर्ण है। 'सभी पुरुष हैवान नहीं होते पर सभी हैवान पुरुष ही होते है', यह सच नहीं है। पूरे सच तक पहुंचने के लिए आपको सतही बातों से ऊपर उठकर गहराई में जाना होगा। स्त्रियों पर स्त्रियों के द्वारा ही कितने अत्याचार किये जाते हैं तथा ऐसे घृणास्पद अपराधों में स्त्रियों की कितनी भागीदारी है; यह जानने के लिए गहन अध्ययन की आवश्यकता है। और यह इसलिए आवश्यक है ताकि समस्या का भी कोई तात्कालिक अथवा अस्थायी समाधान न निकले, स्थायी एवं उसे समूल नष्ट करने वाला समाधान निकले। बेटे पिताओं से अधिक अपनी माताओं के लाड़ले होते हैं और पुत्रियों के साथ भेदभाव करने में परिवार की महिलाएं पुरुषों से कम नहीं हैं। बेटों को अच्छे संस्कार न मिलें तो क्या घरों में उपस्थित उनकी माताएं उत्तरदायी नहीं? अब रही बात विक्रम जोशी के हत्यारों को मौत की सज़ा न मिलने की। आपकी बात सही है पर ऐसा भेदभाव भी कई उत्पीड़ितों एवं उत्पीड़िताओं के साथ किया जाता है जिस पर न्याय और समाज के ठेकेदार (अपनी भेदभावपूर्ण सोच के कारण) चुप्पी साधे रहते हैं। 2002 के गुजरात दंगों में बिलकीस बानो का जीवन बरबाद कर देने वालों को मौत की सज़ा नहीं दी गई और उसे न्याय के लिए बरसोंबरस दर-दर की ठोकरें खानी पड़ीं, क्यों? अब भी इस मामले पर सभी चुप हैं, क्यों? मैंने इसी विषय पर 'दर्द सबका एक-सा' लेख लिखा था। दुराचार जैसे अपराध से निर्दोष एवं सीधे-सादे लड़के भी सुरक्षित नहीं हैं। और जहाँ तक मौत की सज़ा का सवाल है, हमारी कानून-व्यवस्था ऐसी दोषपूर्ण है कि यह सज़ा जल्दबाज़ी में नहीं दी जानी चाहिए। न ही जल्दबाज़ी में पुलिस द्वारा तथाकथित एनकाउंटर के नाम पर पकड़े गए आरोपित लोगों की हत्या का समर्थन किया जाना चाहिए (हैदराबाद में एक पशु-चिकित्सिका के साथ दुराचार एवं हत्या के मामले में पकड़े गए लोगों को पुलिस ने बिना जांच-पड़ताल के कथित एनकाउंटर में मार डाला था, अगर वे निर्दोष थे तो वास्तविक दोषी अब भी छुट्टे घूम रहे होंगे)। आज बच्चों को सफल तो सभी देखना चाहते हैं, उन्हें चरित्रवान कौन बनाना चाहता है? ऐसी प्रत्येक समस्या का समाधान तो समाज का चरित्रवान बनना ही है। पर किसे परवाह है इसकी? होती तो बेटियों की सुरक्षा इतनी विकराल समस्या न बन गई होती। आपने ऐसी कई पुस्तकें देखी होंगी जो कहती हैं - 'सफल कैसे बनें?' लेकिन क्या आपने ऐसी भी कोई पुस्तक देखी है जो कहती हो - 'चरित्रवान कैसे बनें?'

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    1. आपकी प्रतिक्रिया से बहुत कुछ सीखने को मिलता है!
      इतनी विस्तृत समीक्षा के लिए आपका तहेदिल से धन्यवाद आदरणीय सर🙏🙏
      परन्तु न्याय में इतनी देरी नहीं होनी चाहिए! क्योंकि समय पर न मिले न्याय तो बाद में वो न्याय नहीं रह जाता! पता नहीं कितने माँ बाप अपने बेटी के न्याय की उम्मीद लिए इस दुनियाँ को अलविदा कह चुके होगें? पता नहीं कितने आश लगाए बैठे होगें सालों से? ऐसे मामलों के लिए कठोर कानून बनाने की सख्त जरूरत है! जिससे समय रहते पीड़ित परिवार को न्याय मिल सके!

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    2. कठोर कानून तो पहले से ही हैं मनीषा जी, वस्तुतःन्यायिक प्रक्रिया को त्वरित एवं संवेदनशील बनाया जाना चाहिए जिससे न्याय अवश्य मिले एवं उचित समयावधि में मिले क्योंकि देर ही अंधेर है (यही तो आप भी कह रही हैं)।

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    3. आपकी सभी बातों से सहमत हूँ सर पर कुछ सवालों का तूफान मन में उठता रहा था इसलिए कह रहीं हूँ! दरअसल विचार मैंने पहले ही रखा था पर नेटवर्क की समस्या के कारण टिप्पणी प्रकाशित नहीं हो पायी और फिर वही बात दुबारा तुरंत लिखना आसान नहीं था इसलिए अब कह रहीं हूँ -
      आपने जो कहा सर बिल्कुल सही है इसे नकार नहीं सकते कि अधिकतर महिलाओं का शोषण महिलाओं द्वारा होता है! पर सर महिलाओं को अजनबी महिलाओं से डर नहीं लगता सून सान रास्ते में,रात में ट्रेन के डिब्बे में और भी बहुत जगह ! और न ही पुरुषों को लगता है!
      इसमें कोई शक नहीं कि कुछ महिलाएँ भी हैवान होती हैं! और इन महिलाओं को भी वही सजा मिलनी चाहिए जो इक बलात्कारी को मिलती है क्योंकि सबकी इज्जत,इज्जत होती है फिर चाहे वो पुरुष की हो या महिला की!
      पर इन कुछ महिलाओं के कारण पूरे पुरुष समाज को मुशिबतों का सामना करना नहीं पड़ता है और न ही इन्हें सूरज के ढलने के बाद घर से बाहर निकलने में डर लगता है! न ही किसी महिला ड्राइवर के रिक्शे पर बैठ कर अकेले जाते वक्त मन में भय पैदा होता है! और न ही सून सान सड़कों पर महिलाओं के झुंड को देख कर घबराहट होती है! लेकिन जबकि लड़कियों को हर रोज इस भय से गुजरना पड़ता है!
      मैं ये बिल्कुल नहीं कहती कि सभी पुरुषों की गलती है लेकिन कुछ लोग पूरे पुरुष जाति की छवि खराब कर रहे हैं! इसलिए सभी का फर्ज है कि आवाज उठाये क्योंकि इन्हें लड़कियों की तुलना में कहीं अधिक परिवार वालों से आवाज़ उठाने की छूट मिली होती है! और बहुत से लोग है जो आवाज़ उठाते हैं! हम उनके आभारी हैं! बस मैं इतना चाहतीं हूँ कि हर एक व्यक्ति ऐसे लोगों की आलोचना करे और जैसे गाय के हत्यारे को समाज से अलग कर दिया जाता है वैसे ही इनके साथ भी करें! बाकी कानून तो अपना काम करेगा ही!

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    4. अगर कानून अपना काम सही ढंग से और सही रफ़्तार से कर रहा होता तो अब तक अपराधियों में डर क़ायम हो गया होता। निर्भया कांड पर हुए शोर के बाद कानून में बहुत-से सुधार किए गए हैं लेकिन बात तो कानून को लागू करने वालों की है। कानून की कठोरता से अधिक न्याय की सुनिश्चितता से ऐसे अपराध रूकेंगे। अभी तक ऐसे अपराध नहीं रूके हैं क्योंकि कानून को अपना काम ठीक से करने ही नहीं दिया जाता है और बहुत ही कम पीड़िताओं को न्याय मिल पाता है। इसीलिए तो कानून का डर नहीं है। मुजरिमों को लगता है कि शोर चाहे जितना हो (कई बार तो वो भी नहीं होता) लेकिन आख़िरकार वे छूट ही जाएंगे। यही भाव उन्हें दुस्साहसी बनाता है जबकि महिलाओं में सुरक्षा का भाव जागृत नहीं होने देता। ऐसे मामलों में बहुत ही कम मुजरिमों को सज़ा होती है। कोरी बातें बनाने से ऐसी गम्भीर समस्याएं हल नहीं हो सकतीं, सच्ची नीयत से ठोस कदम उठाने और व्यवस्था को सुधारने से ही हल हो सकती हैं। जो लड़के ऐसे रास्तों पर चल पड़ते हैं, उन्हें सही संस्कार देने का कर्तव्य सबसे पहले उनके परिवारों का है। बेटियां महफ़ूज़ रहें, इसके लिए परिवारों को बेटों को संस्कारी बनाना होगा। और सरकारें अगर गाल बजाने की जगह ईमानदारी से ऐसी घटनाओं को रोकने और मज़लूमों को इंसाफ़ दिलवाने पर तवज़्ज़ों दें तो ही बात बनेगी। और इस मामले में हमारी (यानी कि सारे समाज की) संवेदनशीलता प्रत्येक पीड़िता के लिए एक जैसी ही होनी चाहिए क्योंकि दर्द सबका एक-सा ही होता है, इसलिए पीड़िता-पीड़िता में भेदभाव क्यों? (लेकिन ऐसा भेदभाव होता है, असलियत में ही नहीं, उस आभासी दुनिया में भी जिसमें आप ब्लॉग लिख रही हैं)। और कानून तथा व्यवस्था से जुड़े हुए लोग भी इसी समाज से आते हैं। भेदभाव उनकी मानसिकता में भी है। जिस मानसिकता के साथ व्यावहारिक कदम उठाए जाते हैं, पहले उसे तो निर्मल कर लें।

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    5. हाँ सर आप बिल्कुल सही कह रहें हैं!

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  2. अत्यन्त ज्वलन्त प्रश्न। निराकरण आवश्यक, हर स्तर पर।

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  3. Well Done Manisha !!
    ऐसे ही लिखती रहिए, समाज को आईना दिखाने की इस राह में हम मिलते रहेंगे!
    यहां भी आपके पदचिन्हों का इंतज़ार रहेगा!
    https://www.bhramjaal.com/

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  4. प्रिय मनीषा , तुम्हारे इस विचारोत्तेजक लेख को पढ़कर बहुत अच्छा लगा | लेखन में जो प्रखरता है वह उज्जवल भविष्य की परिचायक है | पर शायद जो मैं कहना चाहती थी वह जितेन्द्र जी कह चुके | निश्चित रूप में पुरुष को गढ़ने वाली नारी ही होती है | पर फिर भी कुछ चीजें ऐसी हैं जिनकी शह एक बेटा पिता से ही पाता है | वह है निरंकुशता ! पुरुष प्रकृति से ही साहसी और कहीं ना कहीं निरंकुश होता है | लेकिन निरंकुशता में वह अपराध ही करे ये जरूरी नहीं | कई साहसिक काम भी कर सकता है |
    यूँ तो कोई ही अभागा माता- पिता होगा जो अपने बच्चे को गलत चींजें सिखाएगा - पर मात्र सिखाना ही नहीं बल्कि गलत आचरण देखने पर उसे ढककर बिठा लेना भी बहुत बड़ा अपराध है | यदि बेटे में गलत लक्षण नजर आये हैं उनका प्रतिकार बहुत जरूरी है | | सच है संस्कार से ही लड़कियों का शोषण रुक सकता है | और रही बात लड़कियों के लिए छोटे कपड़े पहनने की बात तो ये सब बहाने हैं कुत्सित मानसिकता वाले लोगों के |जिसकी भावना ही दूषित हो उसके लिए कपड़े कितने पहन रखे ये बात कभी मायने नहीं रखती -- उसे अपनी भावनाओं पर काबू नहीं जिसकी परिणति अक्षम्य अपराधों केरूप में होती है | यूँ कानून बहुत सख्त हैं पर न्याय जल्दी नहीं मिल पाता ये उसकी बहुत बड़ी खामी है | वहीँ , हैदराबाद में एक पशु चिकित्सका की मौत के लिए दोषी लोगों को तत्काल मौत मिलना भी न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता क्योकि इस तत्काल निर्णय से पुलिस पर सवाल उठे हैं |जितेन्द्र जी ने सही कहा -- अपने बच्चों को सफल सभी बनाना चाहते हैं संस्कारवान कोई भी नहीं | बच्चो के चरित्र पर बुरा असर डालने में सोशल मीडिया की भी बहुत बड़ी भूमिका है |एक संवेदनशील लेख के लिए निश्चय ही तुम सराहना की पात्र है हो |लिखती रहो मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं |

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    1. आपका बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय मैम🙏
      मैं आपकी और जितेंद्र सर की बात से पूर्णतः सहमत हूँ! पर तत्काल मिला हुआ इंसाफ़ न्याय नहीं कहलाता और नहीं हद से ज्यादा देरी करने पर!

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  5. प्रिय मनीषा ,
    बहुत ज्वलंत मुद्दा उठाया है । बिल्कुल खरी खरी बात कि पहनावे से कोई फर्क नहीं पड़ता । मानसिकता ही ऐसी होती है । छोटी छोटी बच्चियों के साथ , यहाँ तक कि बूढ़ी औरतों तक के साथ ऐसी घटनाएं सुनने में आती हैं । सामाजिक बहिष्कार हो और ऐसे व्यक्तियों को कोई बचाये नहीं तभी कुछ उम्मीद बन सकती है । अन्यथा तो ये घटनाएं दिन ब दिन बढ़ती जा रही हैं ।
    एक बात कहना चाहूँगी कि बलात्कार की घटनाएँ अधिकतर पुरुष द्वारा की जाती हैं लेकिन कभी कभी स्त्रियाँ भी ऐसा करती हैं ।बस उनके द्वारा किया गया बलात्कार सुर्खियों में नहीं आता । और ऐसी घटनाएं बहुत कम होती हैं । लिखते लिखते ऐतराज मूवी ध्यान में आ गयी इसी लिए लिखा ।
    तुमने बेबाक हो कर इस लेख में हर बात कह दी है । इसके लिए बहुत बहुत बधाई ।
    सस्नेह

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    1. बिल्कुल मैम इसमें कोई शक नहीं कि कुछ महिलाएँ भी बलात्कारी होती हैं! और इन महिलाओं को भी वही सजा मिलनी चाहिए जो इक बलात्कारी को मिलती है क्योंकि सबकी इज्जत,इज्जत होती है फिर चाहे वो पुरुष की हो या महिला की!
      पर इन कुछ महिलाओं के कारण पूरे पुरुष समाज को मुशिबतों का सामना करना नहीं पड़ता है और न ही इन्हें सूरज के ढलने के बाद घर से बाहर निकलने में डर लगता है! न ही किसी महिला ड्राइवर के रिक्शे पर बैठ कर अकेले जाते वक्त मन में भय पैदा होता है! और न ही सून सान सड़कों पर महिलाओं के झुंड को देख कर घबराहट होती है! लेकिन जबकि लड़कियों को हर रोज इस भय से गुजरना पड़ता है!
      मैं ये बिल्कुल नहीं कहती कि सभी पुरुषों की गलती है लेकिन कुछ लोग पूरे पुरुष जाति की छवि खराब कर रहे हैं! इसलिए सभी का फर्ज है कि आवाज उठाये क्योंकि इन्हें लड़कियों की तुलना में कहीं अधिक परिवार वालों से आवाज़ उठाने की छूट मिली होती है! और बहुत से लोग है जो उठाते हैं उनके हम आभारी हैं!
      इतनी विस्तृत समीक्षा के लिए आपका तहेदिल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय मैम🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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  6. आज के समाज का ज्वलंत मुद्दा,बेबाक़ लेखन के लिए बधाई, लिखती रहें और निखरती रहें।

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  7. एक ज्वलन्त समस्या पर आपका लेखन सोचने को विवश करता है।हार्दिक शुभकामनाएं आपको।

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    1. हृदय की गहराइयों से धन्यवाद आदरणीय सर🙏🙏

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  8. आपकी लिखी रचना सोमवार 9 ,अगस्त 2021 को साझा की गई है ,
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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    1. आपका हृदय की गहराइयों से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय मैम🙏

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  9. बलात्कार जैसी घटना अर्थात् यह संस्करण जो अपने आप में अभिश्राप है
    वो शब्द विषय रूप में कैसे अच्छा हो सकता है।
    हम और आप जैसे समाजिक प्रतिष्ठित लोगों की देन है कि इतनी गंभीर समाजिक समस्या
    सिर्फ एक अच्छा विषय बनकर ही रह गई है । आज तमाम पत्र पत्रिकाओ टीवी रेडियों हर जगह यह विकृत शब्द सिर्फ लिखने पढ़ने देखने सुनने का एक अच्छा विषय बनकर ही सुशोभित है। क्या हम अन्जाने में इस दानव पोषित नहीं कर रहें है।

    न जाने कब हम और कुंठित समाज इस विषय (बात) को समझगां ।

    आपने कहा- सभी पुरुष बलात्कारी नहीं होते सही । पर सभी बलात्कारी
    पुरुष होते है बिलकुल गलत।
    Google करें % ज्यादा कम हो सकता है।
    वैसे आपकी लेखनी वेहतरीन है शब्दो को बहुत अच्छा पिरोया है। कुछ गलत कहा हो तो मुझे खेद है।

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    1. आपका बहुत बहुत धन्यवाद हमारे लेख को पढ़ने के लिए और अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
      सर आपकी बात सही है पर मुझे नहीं पता कि पुरुष के अलावा और भी कोई होता है जो बलात्कारी होता है? जो ऐसी हैवानियत करता है जिससे समस्त मानजाति कलंकित होती हैं? वास्तविकता तो ये है कि ऐसी हरकत करने वाले इंसान ही नहीं होते हैं,पर अफ़सोस ये अपने लिंग (पुरुष होने) का फायदा उठाते हैं! पर इन्हें पुरुष या इंसान कहना भी गलत है! पर पुरुष होने के कारण ये ऐसी हरकते करने सफल होते हैं इसे हम नकार नहीं सकते! और आप सायद कहना चाहते हैं कि महिलाएँ भी ऐसी दरिंदगी करतीं हैं तो मैं बिल्कुल मानती हूँ इसमें कोई शक नहीं! पर इन कुछ हैवान औरतों के कारण सारे पुरुषजाति को कठनाईयों का सामना करना नहीं पड़ता है! न उन्हें हर अजनबी औरत से डर लगता है! कितना दर्द होता है जब दूसरों कि गलती की सज़ा हमें मिलती है! हमें अपनी छोटी छोटी ख्वाहिशों का गला घोटना पड़ता है! हर किसी का परिवार अभी न तो इतना आधुनिक सोच वाला हुआ है और न ही इतना मजबूत हृदय वाला! जो आधुनिक सोच वाले है वे ऐसी घटनाएँ देख अपनी राय बदल लेते हैं!
      सर अगर आपको मेरी कोई बात बुरी लगी हो तो मुझे माफ करना मेरा इरादा किसी की भावनाओं को आहत करना बिल्कुल भी नहीं है और न ही किसी को गलत साबित करने का! बस उस दर्द को बंया करना है जिस का डर हर लड़की के मन में होता है! 🙏🙏🙏🙏🙏

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    2. सहमत आपकी हर बात से। मेरा मकसद इस Topic कि महत्ता को कम समझना या समझाना नहीं था मैं नहीं चाहता यह विषय सिर्फ चर्चा का एक आम विषय बनें। भावनात्मक रूप से मैं भी आहत होता हूँ जब इस तरह कि घटना का जिक्र मेरे आसपास होती है या घटती है यह समस्या महिलाओं और पुरुषों कि नहीं पूरे समाज कि है।

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  10. मनीषा,ज्वलन्त नहीं सदियों की महिलाओं की समस्या पर बहुत ही अच्छा लिखा है तुमने। मैं ज्यादा कुछ नही कहूँगी क्योंकि जितेंद भाई, रेणु दी और संगिता ने वो सब कह दिया है। इस विषय पर मेरे निम्न दो लेख जरूर पढ़ना।

    https://www.jyotidehliwal.com/2019/12/priyanka-reddy-rape-case-in-do-upayo-se-lag-sakata-hain-balatkariyon-par-ankush.html

    https://www.jyotidehliwal.com/2017/07/balatkar-ke-lie-doshi-kaun-pidita-balatkari-ya-ham-sab.html

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    1. आपका तहेदिल से धन्यवाद आदरणीय मैम 🙏
      जरूर पढ़ेंगे आपका लेख!

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  11. बेबाक और मर्म को झकझोरती अभिव्यक्ति के लिए बहुत बधाई प्रिय मनीषा जी।
    प्रश्न तो अनगिनत है मन में-
    कौन करेगा आत्मा के बलात्कार का इंसाफ़?
    रौंदे गये तन-मन से मवाद रिस रहे बेहिसाब
    अंधों की दरिंदगी बहरों की सियासत है
    मुर्दों के शहर में ज़िंदगी की पुकार मत लगाओ
    -----

    सस्नेह।

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    1. बिल्कुल सही कहा आपने मैम! ये अंधो की दरिंदगी और बहरों की सियासत ही है!
      आपका सहृदय धन्यवाद इतनी अच्छी प्रतिक्रिया के लिए🙏🙏🙏
      वैसे मैं सच कहूं तो इस लेख को मैने लेख के नजरिये से बिल्कुल भी नहीं लिखा है और न ही प्रतिक्रिया के लिए! बस आपने मन के आक्रोश को निकाल कर, मन की शान्ति के लिए लिखा है जिससे मुझे ये अफसोस न रहे कि मैं जितना कर सकती थी, मैने उतना भी नहीं किया!

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  12. सच को तर्कपूर्ण ढंग से रखा है आपने.

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    1. मुझे यकीन नहीं हो रहा है कि मेरे लेख को एक पत्रकार ने पढ़ा है, और प्रतिक्रिया भी दी ये मेरे लिए किसी सपने से कम नहीं है मैं कितनी खुश हूँ ये शब्दों में बयां नहीं कर सकती!आपका हृदय की गहराइयों से बहुत बहुत धन्यवाद और आभार मैम🙏🙏🙏😊😊😊😊😊😊

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  13. बहुत ही ज्वलंत मुद्दे पर बेबाक लेख ...मैं भी आप सभी की बातों से सहमत हूँ हाँ बिल्कुल सही लिखा है प्रिय मनीषा जी ने कि जैसे गोहत्या पर समाजिक दण्ड दिया जाता है वैसे ही ऐसे कुकर्म करने वालों को कानूनी दण्ड ही नहीं अपितु सामाजिक दण्ड का भी प्रावधान होना चाहिए... उन्हे बेल नहीं मिलनी चाहिए और अगर मिली है तो उनके इर्दगिर्द का समाज ही उनका जीना हराम करे तो शायद अन्य दरिन्दों का हौसला टूटे...।
    मर्मस्पर्शी लेख ।

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    1. आपका तहेदिल बहुत बहुत धन्यवाद मैम महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर गौर करने के लिए और इस लेख का सही मतलब समझने के लिए 🙏🙏 🙏🙏🙏🙏

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  14. प्रिय मनीषा,तुमने अपने शब्दों के जरिय हर लड़की ही नहीं हर औरत के मन के आक्रोश को व्यक्त किया है जो अग्नि चिता की भाँति हर पल जला रही है हमें। मैं बहुत देर से आयी हूँ। इसलिए ज्यादा कुछ नहीं कहूँगी क्यूँकि सभी आदरणीयों ने अपने अपने सही तर्क दिए है।
    बेटा,ये एक कटु सत्य है कि -समाज के इस कोढ़ियों का समाधान सिर्फ चर्चा-परिचर्चा से या सरकार और कानून को दोष देने से नहीं होगा।
    मैं जितेंद्र जी और रेणु की बातों से सहमत हूँ कि

    "जो लड़के ऐसे रास्तों पर चल पड़ते हैं, उन्हें सही संस्कार देने का कर्तव्य सबसे पहले उनके परिवारों का है। बेटियां महफ़ूज़ रहें, इसके लिए परिवारों को बेटों को संस्कारी बनाना होगा।अपने बच्चों को सफल सभी बनाना चाहते हैं संस्कारवान कोई भी नहीं | "
    "यूँ तो कोई ही अभागा माता- पिता होगा जो अपने बच्चे को गलत चींजें सिखाएगा - पर मात्र सिखाना ही नहीं बल्कि गलत आचरण देखने पर उसे ढककर बिठा लेना भी बहुत बड़ा अपराध है |"

    बेटा। कही ना कही हमारी पूर्वज नारी जातियों की गलतियों की सजा ही हमारी बेटियां काट रही है। हमने ही सिखाया बेटियों को चुप होकर सहना और बेटों को उदंडता की खुली छूट देना। तुम्हे इस बात का भी अंदाजा होगा कि -सुनसान सड़क पर ही नहीं बेटियाँ तो अपने घर की बंद चारदीवारी में भी महफूज नहीं। उनके अपने ही उन्हें ये यातना देते हैं और घर की औरते अर्थात "स्वयं माँ' उसे चुप रहकर सहने के लिए मजबूर करती है। यहां कानून क्या करेगा।
    मेरी समझ से तो सरकार, कानून और पुरुषो से पहले हम नारी जाति को ही हिम्मत करके ये संकल्प लेना होगा कि -"अपने घर के पुरुषों के इस कुकर्म की सजा पहले हम देंगे "मुश्किल है पर असम्भव नहीं। हमारी पीढ़ी ने थोड़ी हिम्मत दिखाई है बाकि आपकी पीढ़ी की जिम्मेदारी होगी।
    ऐसे ही ज्वलत मुद्दे उठती रहो और झकझोरती रहें मरी हुई आत्माओं को। लेकिन पहले अन्याय का विरोध करना स्वयं सीखो। ढेर सारा आशीष तुम्हे

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    1. आप बिल्कुल सही कह रहीं हैं मैम पूर्वज नारियों की गलती की सज़ा भुगत रहें हैं लेकिन हम भी ऐसे ही चुप्पी साधे रहें तो आने वाली पीढ़ी को भी डर के साथ जीना होगा! इस लड़ाई को महिला और पुरुष तथा कानून वा समाज सब को एक साथ मिलकर लड़ना होगा!
      आपका बहुत बहुत धन्यवाद प्रिय मैम🙏🙏🙏

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  15. बहुत बहुत सुन्दर लेख | समीक्षा में क्या लिखूं ? सब कुछ तो विस्तार से लिखा जा चुका है | बस ऐसे ही लिखती रहिये | बहुत बहुत आशीष , शुभ कामनाएं |

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    1. आपका तहेदिल से बहुत बहुत धन्यवाद और आभार आदरणीय सर🙏

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