चित्र गूगल साभार |
निती अभी कक्षा आठ में पढ़ती, है अपनी माँ करुणा की तरह समाजसेवी बनने का और वृद्धाश्रम खोलने का सपना है।आज उसका मूड बहुत ही ऑफ है स्कूल से आते ही उसने एकतरफ बैग पटक कर कपड़े चेंज करके, बिना कुछ कहे झन में छत पर चली गई और बालकनी में पड़ी कुर्सी पर बैठ गयी।हर रोज की तरह आज उसने मम्मी को भी नही पूछा और न ही किचन में खाने की तलाश में गयी।गुमसुम सी बैठी सामने आ जा रहे लोगों को देख रहीं थी।तभी उसकी मम्मी की आवाज आयी। निती! तू टिफन बॉक्स वैसे ही वापस क्यों ले आई कुछ खाया क्यों नहीं?देख तेरी आदते दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है, पक्का तूने बाहर की चीजें खाई होगी। मैं तुम्हें कितनी बार समझा चुकी हूं कि बाहर की चीजें हमारे सेहत के लिए अच्छी नहीं होती है।पर निती, करुणा के सवालों का कोई जवाब नहीं दिया और वहीं चुपचाप बैठी रही। करुणा दोबारा वहीं सीढ़ियों से आवाज लगाती है "अच्छा कोई बात नहीं आगे से ख्याल रखना!" अब चल नीचे आजा कुछ खा ले भूख लगी होगी तुझे! पर इस बार भी निती कुछ नहीं कहती और वहीं चुपचाप बैठी रही। जब कुछ देर तक निती नीचे कुछ देर तक नीचे नहीं आयी, तो फिर करुणा सोचने लगी कि शायद दोस्तों के साथ लड़ाई हुई होगी इसलिए मूड ऑफ है। सो नीचे नहीं आ रही है!
ओह!
ऊपर से मैंने भी डांट दिया, चलो मनाते हैं किसी तरह।निती को मनाने के लिए करुणा सीढ़ियों से ही आवाज़ लगाने लगी, निती बेटा चलो जल्दी-जल्दी कुछ खा लो फिर तुम्हें अपने वृद्धाश्रम में आए नये मेहमानों से मिलाती हूं तुम्हें उनसे बातें करना कितना पसंद है ना ,और तुम्हें अपने दोस्तों के साथ खेलने भी तो जाना है। "मुझे किसी के साथ नहीं खेलना और ना ही किसी से मिलना है।" कहते हुए निती का गलाभर आया। अब तक करुणा बालकनी पर आ गयी होती है, निती की आंखों में आंसू देख करुणा परेशान हो गयी, मम्मी को देख कर निती रो पड़ी और करुणा की सीने से चिपक गयी!अब करुणा और भी ज्यादा परेशान हो गयी।"क्या हुआ मेरे बच्चे तू रो क्यों रही है किसी ने कुछ कहा क्या ?
रो मत!
तू बता मुझे! मैं तेरे साथ हूं! तुझे कुछ नहीं होगा तेरी मम्मा है ना तेरे साथ, सब ठीक कर देगी तू बता तो सही।
निती रोते हुए कहती है मम्मी आप कहती हो कि बाहर की चीजें हमारे सेहत के लिए ठीक नहीं होती है जितनी घर की ठीक होती है।
"हां तो सही तो कहती हूं!"
तो फिर लोग अपने वृद्ध मां बाप को वृद्धाश्रम क्यों भेज देते हैं ?बाहर के लोग भी तो उतने अच्छे नहीं होते उनके लिए, जितने अपने अच्छे होते हैं। जितनी अपनों की प्यार से उन्हें खुशी मिलती है उतनी खुशी बाहर के लोगों के प्यार से तो नहीं मिलती। जब कोई पराया प्यार करता है व परवाह करता है तब-तब सोचते हैं कि काश ये प्यार मुझे मेरे अपनो से मिलता! मम्मी पता है आपको, मेरे दोस्त के दादाजी को वृद्धाश्रम भेज दिया आज उसके मम्मी पापा ने ,उसके दादा इतने अच्छे हंसमुख और प्यार बांटने वाले थे , खुशियों का पिटारा होता था उनके पास। जो भी उनके पास जाता था मुस्कुराते हुए वापस आता था। फिर भी उन्हें वृद्धाश्रम भेज दिया। दादा जी से मैं जब भी बात करती थी टाइम का पता ही नहीं चलता था, मैं हमेशा सोचती थी कि मैं उनको भी अपने यहाँ बुला लूं लेकिन आज जब वह हमारे पास आ रहे थे तब मुझे खुशी नहीं हुई जब उनकी आंखों में आंसू देखा तब मैंने तय कर लिया कि मैं कभी भी आपकी तरह नहीं बनूंंगी, मैं कभी भी वृद्धाश्रम नहीं खोलूंगी बल्कि मैं किसी भी मां-बाप को उसके दो बेटे से अलग नहीं होने दुंगी।मैं ऐसा काम करूंगी कि लोग अपने मां बाप को वृद्धाश्रम भेजने के बारे में सोचें भी ना, मैं लोगों की नजरिया बदलने का काम करूंगी! लोगों को जागरूक करूंगी।लोगों के मन में अपने मां-बाप के लिए प्रेम का पौधा लगाऊंगी और खुद ही सींचुंगी कि हमेशा हरा भरा रहे और जिससे मैं अपने समाज को वृद्धाश्रम मुक्त बना सकूं। यह सब सुन कर करुणा की आंखों में खुशियों के आंसू छलक आए। करुणा ने कहा हां बिल्कुल! तुम मेरी तरह मत बनना तुम मुझसे एक कदम हमेशा आगे ही रहना।करुुणा को अपनी बेटी की नई सोच पर नाज हो रहा था।
नन्हें मन के बहुत सुंदर विचार, भावी पीढ़ी के ऐसे विचार समाज केस्वास्थ्य लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
जवाब देंहटाएंसचमुच ऐसी संतान गर्व करने योग्य है।
सस्नेह।
सहृदय धन्यवाद🙏
हटाएंसमाज में कुछ नया करने की अभिलाषा और जनचेतना की प्रेरणा देती बहुत ही भावप्रवण कहानी । इतने सार्थक विषय पर उत्कृष्ट लेखन के लिए बहुत बधाई प्रिय मनीषा👌👌💐💐😀😀
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद प्रिय मैम🙏
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (२८-०१ -२०२२ ) को
'शब्द ब्रह्म को मेरा प्रणाम !'(चर्चा-अंक-४३२४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
मेरी लघुकथा को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपका तहेदिल से बहुत बहुत धन्यवाद🙏💕
हटाएंजागरूक करती रचना। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जो आज युवा हैं, कल उन्हें भी वृद्ध होना ही होना है।
जवाब देंहटाएंजी! आपने बिल्कुल सही कहा हर एक युवा को कल वृद्ध होना पर पता नहीं क्यों भूल जाते हैं और ऐसा करते वक़्त एकबार भी नहीं सोचते हैं कि उनकी देखा देखी उनके बच्चे भी उनके साथ ऐसा ही करेंगे!
हटाएंआभार आदरणीय🙏
इश प्रेम पौधों को वटवृक्ष बनाने की आवश्यकता है वर्ना वर्तमान परिदृश्य खुद अपनी बदहाली की गवाही दे कर सबको सतर्क कर रहा है। सुन्दर लेखन।
जवाब देंहटाएंजी आप बिल्कुल ठीक कह रहीं हैं! इस खूबसूरत प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत आभार🙏
हटाएंपांच लिंकों में जगह देने के लिए तहे दिल से बहुत बहुत आभार🙏
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति प्रिय मनीषा। नीति जैसी बच्चियां ही समाज के लिए सबसे बड़ी आशा हैं। बेटियां ही घर संभालती हैं और समाज में वृद्धाश्रम जैसी संस्थाएं पनपने में उनका बहुत बड़ा हाथ हैं। बेटियां ही बहु बनती हैं । यदि उनमें बड़ों के लिए सम्मान और विश्वास की भावना होगी तो घर के बड़े कभी वृद्धाश्रम में नहीं जा पायेंगे। भावपूर्ण कथा के लिए हार्दिक बधाई और प्यार ❤️❤️🌷🌷
जवाब देंहटाएंआपकी प्रतिक्रिया हमेशा मेरे लिए बहुत ही खास रहती है और मेरा हौसला बढ़ाती है आपकी इस प्यारी सी प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय मैम😊🙏
हटाएंमैं ऐसा काम करूंगी कि लोग अपने मां बाप को वृद्धाश्रम भेजने के बारे में सोचें भी ना, मैं लोगों की नजरिया बदलने का काम करूंगी! लोगों को जागरूक करूंगी।लोगों के मन में अपने मां-बाप के लिए प्रेम का पौधा लगाऊंगी और खुद ही सींचुंगी
जवाब देंहटाएंउत्तम अतयोत्तम..
आभार..
हौसला अफजाई के लिए आपका दिल की गहराइयों से बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय मैम!🙏
हटाएंबहुत बढ़िया सोच दर्शाती रचना, मनीषा। सच में यदि आज की युवा पीढ़ी नीति जैसी सोच रखे तो वृद्धाश्रम की जरूरत ही न पड़े। अच्छी कहानी के बधाई।
जवाब देंहटाएंइस प्यारी सी प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय दीदी!🙏🙏
हटाएंसच कहूं तो जो नीति का सपना है वह वास्तव में मेरा सपना है! मैं अभी अपने लेखन के माध्यम से लोगों मन में उनके माता-पिता के लिए प्रेम का पौधा लगाने का प्रयास कर रही हूं पर भविष्य में सिर्फ लेखन से ही नहीं बल्कि लोगों से संवाद करके करना चाहती हूं!
काश कि मैं ऐसा करने में सफल हो पाऊं!
बेहतरीन सोच लिए समाज को संदेश देती कथा । काश ये आशा की लौ पूरा प्रकाश पुंज बन सके ।
जवाब देंहटाएंकहानी या लघु कथा लिखते समय एक बात का ध्यान रखो कि उसमें नाटक विधा की तरह संवाद न हों । जैसे --
तभी उसकी मम्मी की आवाज आती है। ...... आती है के स्थान पर आयी लिखना ज्यादा सही है ।।
मेरी लेखनी में मेरी कमियां बता कर सुधार करवाने के लिए आपका दिल की गहराइयों से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय मैम! सच कहूं तो मुझे लघुकथा या कहानी लिखते वक़्त डर लगता रहता है क्योंकि मुझे कहानी लिखनी बहुत कम ही आती है यूँ समझ लो नौसिखिया ही हूँ इसलिए मेरी कमियां बताने के लिए और प्रतिक्रिया के लिए आपका एक बार फिर से बहुत-बहुत आभार🙏
हटाएंप्रिय मनीषा ,
हटाएंतुमको अपनी बेटी के समान समझ कर ही कुछ भी सलाह दे देती हूँ । कमी की दृष्टि से नहीं बस और सुंदर लिख सको । तुम सकारात्मक रूप से लेती हो तो बेहिचक लिख देती हूँ ।
यूँ ही खूब लिखो ।
समाज को संदेश देतीं हुई सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंसादर
धन्यवाद आदरणीय मैम🙏
हटाएंबहुत विचारोत्तेजक रचना !
जवाब देंहटाएंलेकिन मनीषा यह बात जान लो कि हमारी पीढ़ी जो आज बूढ़ी है, वह भी कभी श्रवणकुमार की अनुयायी नहीं थी.
पश्चिम की भौतिकतावादी विचारधारा की नकल करते-करते हम बहुत स्वार्थी और संवेदना रहित हो गए हैं.
नीति आज तो अच्छा सोचती है लेकिन कल बड़ी हो कर अपने बुजुर्गों के साथ वह कैसा व्यवहार करेगी, यह तो आने वाला वक़्त ही बताएगा.
जी आप सही कह रहे हैं
हटाएंआप तो अध्यापक है आप से बेहतर कौन जान सकता है!
आपको आज अपने ब्लॉग पर देखकर बहुत ही खुशी हुई 😃
प्रतिक्रिया के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद🙏
अद्भुत
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद🙏
हटाएंसुंदर संदेश देती बेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीय मैम🙏
हटाएंकथा के रूप में सुंदर संदेश है मनीषा जी,
जवाब देंहटाएंआज के किशोर ऐसा सोचते हैं बाल मन भावुक होता है, कल बड़े होने पर भौतिकता और स्वतंत्रता के नाम पर न जाने ये आदर्श कितने साकार हो ,पर अच्छा है संस्कार कुछ हद तक तो जीवित रहेंगे।
सुंदर संदेश देती सुंदर लघु कहानी।
आप की लेखनी सदा सामाजिक मुद्दों पर सकारात्मक पहलू उजागर करती है।
साधुवाद।
बहुत-बहुत धन्यवाद आपका आदरणीय मैम
हटाएंआप सभी से मुझे बहुत प्रेरणा मिलती है लिखते रहने की🙏
प्रेरणादायी पोस्ट।नमस्कार मनीषा जी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीय सर🙏
हटाएंएक अच्छा सन्देश देते हुए है ये कहानी ...
जवाब देंहटाएंकिशोरे मन के द्वन्द को बाहूबी लिखा है ...
धन्यवाद आदरणीय🙏
हटाएंकाश कि कोई किसी का नजरिया बदल पाये और लोग ऐसे अपने वृद्धों को वृद्धाश्रम न भेंजें।
जवाब देंहटाएंबहुत ही हृदयस्पर्शी लाजवाब कहानी।
काश कि ऐसा हो पाये
हटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय मैम🙏