तुम्हारा आना,बसंत के आने जैसा था।
इस बंजर-सी जिंदगी में उम्मीद का
पौधा लग जाने जैसा था।
तुम्हारे द्वारा मेरा हौसला बढ़ाना
रब़ी की फसलों पर हुई
बारिश की मोती-सी बूदों-सा था।
वो नयनों का लजाना,
बिना कहे बहुत कुछ कह जाना।
जो शब्दों में न बयां हो सकें
वो एहसास दे जाना।
बिना छुए ही तुम्हारी आंखों का
मुझको हर बार छू जाना,
काले मेघ-सी भौंह की छांह में डूब जाना,
प्रीत नगर की गलियों में
तुम्हारे इत्र का हवाओं में घुल जाना
बहुत याद आता है वो गुजरा जमाना
आसां नहीं होता है
यादों के गलियारों से निकल पाना।
जब मंजिलें अलग थी तो
राहें कब तक एक रहतीं।
एक न एक दिन तो अलग होना ही था।
ये सच है कि कभी हम थे हमराही
पर एक न एक दिन तो
खानाबदोश में ठहरना ही था।
इश्तिहार से कहा महफिलें सजती।
महफ़िलें तो शायरियों से सजायी जाती है
इश्तिहार को एक न एक दिन तो भूल जाना ही था।
कितनी शामें गुज़र गयीं,कितने मौसम गुज़र गयें,
तू भी बड़ी दूर है निकल गया,
पर मैं आज भी वहीं खुद को खड़ा पाती हूँ।
तेरे बिना मैं खुद को अधूरा पाती हूँ
अब मैं दिल से नहीं,सिर्फ लबों से ही मुस्कराती हूँ।
पहली बार किसी और के भावों को महसूस करके अधूरें प्रेम को अपने शब्द के माध्यम से बयां करने की कोशिश की है!
मनीषा, कविता के शुरवात में लगा कि कहीं मेरी मनीषा को किसी से प्यार तो नहीं हो गया? बाद में लगा कि अरे ब्रेक अप भी हो गया! लेकिन अंत में तुम्हारी टिप्पणी की किसी और के मनोभावों...तो दिल को थोड़ी तसल्ली हुई।
जवाब देंहटाएंकिसी और के मनोभावों को भी बहुत सुंदर तरीके से व्यक्त किया है तुमने।
इसीलिए तो अंत में टिप्पणी कर दी थी अपनी खुद की😄😄
हटाएंप्यार-व्यार से दूर ही रहना चाहती हूँ बड़े पंगे हैं इसमें😅😅😄
जब होता तो लोग हवा में उड़ने लगतें हैं लेकिन जब ब्रेक अप होता है तो पैरों तले जमीन खिसक जाती है!
पहले आज मैं ऊपर आसमां नीचे..
बाद में जग सूना सूना लागे...! 😆
वैसे ये मेरी दोस्त की भावनाएं हैं जिसके साथ लगभग चार साल पहले ऐसा हुआ था पर आज भी वो निकल नहीं पाई है उस यादों के दल दल से! अब उसे लड़कें शब्द से भी नफ़रत हो गयी है!😢 मुझे कुछ ही महीने पहले पता चला!
पहले तो मैंने वो शब्द का इस्तेमाल किया था पर बाद में सोचा चलो इस बार वो की जगह पर मैं का इस्तेमाल करती हूंँ! दूसरा कारण ये भी था कि वो से रचना वैसी नहीं बन पा रही थी जैसा मैं चाह रही थी!
प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद🙏🙏
उम्मीद करतीं हूँ अब आपकी सारी दुविधा दूर हो गई होगी प्रिय दी!❤
हटाएंउम्मीद की जमीन पर खड़े प्रेम के पांव के नीचे की जमीन जब खिसक जाती है, तो वह अधूरे प्रेम की आस में भटकने लगता है.
जवाब देंहटाएंयह आस ही उसे जिंदा रखती है.
अधूरे प्रेम से गुजरते समय की मनोदशा का बेहतरीन चित्रण
शानदार रचना
बधाई
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय सर
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर रविवार 20 फ़रवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
मेरी रचना को 5 लिंको में शामिल करने के लिए आपका तहे दिल से बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय सर🙏
हटाएंरब़ी की फसलों पर हुई
जवाब देंहटाएंबारिश की मोती-सी बूदों-सा था।
वो नयनों का लजाना,
बिना कहे बहुत कुछ कह जाना।
प्रेमपूर्ण कविता
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय सर🙏
हटाएंमनीषा, सुन्दर भावपूर्ण कविता !
जवाब देंहटाएंकैसी भी कविता लिखने की कोशिश कभी मत करना.
कविता की रचना तभी करो, जब तुम्हारे ह्रदय में भावों का ज्वार उठे.
जी सर,मैं ऐसा दुबारा कभी नहीं करूंगी!
हटाएंआप मेरे लिए गुरु समान हैं!
वैसे भी आप तो अध्यापक हैं और मैं विद्यार्थी वर्तमान में तो इस नाते भी गुरु का कहना मानना हमारा फर्ज है!😊
आपका तहेदिल बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय सर🙏
बहुत सुंदर तरीके से भावों को सजाने की सराहनीय कोशिश ।
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण अभिव्यक्ति ।
बहुत बहुत धन्यवाद प्रिय मैम🙏
हटाएंटूटे दिल के मनोभावों की बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएं! प्रेम की अमरता उसके अधूरेपन में ही निहित है। इसी सच को बहुत अच्छी तरह अभिव्यक्त किया गया है। साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ
तहेदिल से बहुत बहुत धन्यवाद व आभार आदरणीय सर🙏
हटाएंबहुत ही सुंदर हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति प्रिय मनीषा जी।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत बहुत आभार प्रिय मैम🙏
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (22-2-22) को "प्यार मैं ही, मैं करूं"(चर्चा अंक 4348)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा
मेरी रचना को चर्चामंच में शामिल करने के लिए आपका तहे दिल से बहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय मैम🙏
हटाएंप्रिय मनीषा, अधूरे प्रेम की पीड़ा को दर्शाती भावपूर्ण अभिव्यक्ति। सम्भवतः हर रिशते की एक उम्र होती है। शायद प्रेम की नियति में ही अधूरापन लिखा है। एक मार्मिक शब्दचित्र जो प्रेम में असफल प्रेयसी के मनोभावों की सुन्दर अभिव्यक्ति है।
जवाब देंहटाएंमनोबल संवर्धन करती उपस्थिति के लिए हृदय से असीम धन्यवाद प्रिय मैम🙏
हटाएंबहुत सुंदर रचना,
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद मैम
हटाएंलाजवाब सृजन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीय सर
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद🙏
हटाएंतुम्हारा आना,बसंत के आने जैसा था।
जवाब देंहटाएंइस बंजर-सी जिंदगी में उम्मीद का
पौधा लग जाने जैसा था।
तुम्हारे द्वारा मेरा हौसला बढ़ाना
रब़ी की फसलों पर हुई
बारिश की मोती-सी बूदों-सा था।
वो नयनों का लजाना,
अति सुंदर सृजन------
सहृदय के बहुत-बहुत धन्यवाद🙏
हटाएंअरे वाह!प्रिय मनीषा ये अलहदा रूप है आपकी लेखनी का यथार्थ की धरातल से विरह श्रृंगार की कल्पना तक का संसार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर है ,आपके मिज़ाज से अलग होते हुए भी सुंदर प्रयास ।
सुंदर सृजन।
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय मैम 🙏
हटाएंसखी से अपनत्व और संवेदना इतनी होती है कि उसका हर सुख दुख अपना सा लगता है तभी तो उसके अधूरे प्रेम को आपने इतनी संवेदना से लिखा कि लगता नहीं कि ये गैरों का दर्द है
जवाब देंहटाएंलाजवाब सृजन।
🙏🙏🙏🙏
हटाएंबहुत सुन्दर सृजन, बधाई मनीषा जी, जय श्री राधे।
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